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हीं, में, ल, आधुनिक भारतीय भाषाओं का विकास : सामान्य परिचय, हिंदी का उद्भव, विश्व की भाषाओं को परिवारों में बांटा गया है जैसे एक दम्पति ये उत्पन्न, संताने एक ही परिवार की कही जाती हैं। उसी प्रकार एक भाषा से निकली, भाषाएँ और बोलियाँ भी एक परिवार की कहलाती हैं इन भाषाओं के परिवारों, के बंटवारे के दो आधार हैं-, 1. भाषिक समानता 2. स्थानिक समीपता।, विश्व की भाषाओं को भिन्न-भिन्न परिवारों में इस प्रकार बाँटा गया है-, 1. भारोपीय परिवार, 3. चीनी अथवा एकाक्षरी परिवार 4. समेटिक हैमेटेक परिवार, 2. द्रविड़ परिवार, 5. यूराल अल्टाइक परिवार, 7. जापानी-कोरियाई, 9. आस्ट्रो-एशियाटक परिवार, 11. बाँटू परिवार, 13. अमरीकी परिवार, इन विभिन्न परिवारों की विस्तार से चर्चा करना हमारा अभीष्ट नहीं है, अत: केवल इतना जान लें कि हिंदी भाषा का संबंध भारोपीय परिवार से है।, क्योंकि भारत से लेकर लगभग पूरे यूरोप में बोले जाने के कारण इस परिवार, को भारोपीय परिवार कहते हैं-इसका क्षेत्र एशिया में भारत, बंगलादेश, श्रीलंका., पाकिस्तान, अफगानिस्तान, ईरान, यूरोप में रूस सोमानिया, फ्रांस, पुर्तगाल, स्पेन,, इंग्लैंड, जर्मनी आदि तथा अमरीका, कनाडा, अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया के भागों, तक फैला है।, विश्व में जितने भी भाषायी परिवार हैं उनमें से भारोपीय परिवार सबसे, अधिक बड़ा है। भौगोलिक दृष्टि से वह विश्व का सबसे बड़ा परिवार हे। इस, भाषा परिवार में बोलने वालों की संख्या अन्य भाषा परिवारों की अपेक्षा अधिक, है। इस भाषा परिवार में साहित्य रचना सबसे अधिक हुई तथा इसकी बोलियों, 6. काकेशियन परिवार, 8. मलय पालिनेशियन परिवार, 10. बुश मैन परिवार, 12. सूडान परिवार
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8। हिंदी भाषा और साहित्य-हिंदी 'ख', हिंदी भाषा और साहित्य-हिंदी 'ख' ।9, का अध्ययन-विश्लेषण भी सबसे अधिक हुआ। इस भाषा परिवार के विद्वान, (पाणिनी, भतृहरि, ब्लूमफील्ड तथा चाम्स्की) आदि ने भाषा के क्षेत्र में, सर्वाधिक कार्य किया है। इस परिवार को मुख्य रूप में दो भागों में बॉटा गया, है-केंतुम (यह लैटिन भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है सौ), सतम् यह शब्द, 'अवेस्ता' का है, इसका भी अर्थ सौ ही है।, 'केंतुम' के अंतर्गत आने वाली भाषाएँ- केल्टिक, ( आयरिश, स्कॉच,, जर्मनिक, जर्मनी, अंग्रेजी, स्वीडिश) लैटिन (इतालवी, स्पेनी, फ्रांसीसी, पुर्तगाली, आदि) हैं तथा सतम के अंतर्गत आने वाली भाषाएं-स्लाव (रूसी, बल्गेरियन,, पोलिश) ईरान (फारसी ताजिक) भारतीय ( संस्कृत, पालि, प्राकृत, हिंदी,, असमी. गुजराती, बंगला और मराठी आदि) हैं। भारोपीय परिवार की इन भाषाओं, को कुछ इस प्रकार से भी समझा जा सकता है।, वेद, ब्राह्मण और उपनिषदों की भाषा वैदिक संस्कृत है। ऋग्वेद के प्रथम और, दसवें मंडल को छोड़कर शेष ग्रंथ की भाषा पर्याप्त प्राचीन है ब्राह्मणों और, उपनिषदों के कुछ अपवादों को छोड़ दें तो पाएँगें कि भाषा उत्तरोतर विकसित, होती चली गई। वैदिक संस्कृत का जो रूप आज ठपलब्ध है उसे उस काल की, बोलचाल की भाषा या बोली के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता।, तत्कालीन बोलचाल की भाषा के वे साहित्यिक रूप हैं। लौकिक संस्कृत को, ही 'देव भाषा' भी कहा जाता था। संस्कृत उत्तरी भारत में प्रयुक्त बोली पर, आधारित थी। अत: उस समय लगभग तीन बोलियाँ-ठत्तरी मध्य देशीय और, पूर्वी प्रचलित थी। लौकिक संस्कृत का आधार उत्तरी भारत की बोली को माना, गया है। साहित्य में प्रयुक्त भाषा के रूप में इस का प्रयोग पाँचवी सदी पूर्व या, उससे भी बाद तक होता रहा। किंतु उत्तरी भारत के आर्य भाषा भाषियों में कई, बोलियाँ जन्म ले चुकी थीं, जो आगे चलकर विभिन्न प्राकृतों, अपभ्रंशों एवं, आधुनिक आर्य भाषाओं के जन्म का कारण बनी, पाणिनी ने जो स्वयं उत्तर भारत, के निवासी थे, पाँचवी सदी ई. पूर्व के आसपास इस भाषा को व्याकरणबद्ध, किया। "संस्कृत" नाम उसी काल की देन है।, साहित्य में संस्कृत का प्रयोग महाभारत तथा रामायण से लेकर शाहजहाँ, के काल तक हुआ। संस्कृत का साहित्य विश्व के सम्पन्नतम साहित्यों में गिना, जाता है और कालिदास विश्व के सर्वश्रेष्ठ कवियों में माने जाते हैं ।, 2. मध्यकालीन आर्य भाषा-लौकिक संस्कृत ही आगे चल कर प्राकृत, के रूप में 500 ई. पूर्व से 1000 ई. तक पल्लवित एवं पुष्पित होती रही। इस, पूरे काल को प्रथम प्राकृत काल, द्वितीय प्राकृत काल तथा तृतीय प्राकृत काल, खंडों में विभाजित किया गया है इनमें से प्रथम काल की भाषा पालि तथा दूसरे, भारोपीय परिवार, कॅतुम, सतम्, रूसी, आर्मीनियन, भारत-ईरानी, भारतीय, ईरानी, दरद, फारसी, ताज़िक पश्तो आदि कश्मीरी, शिणा आदि संस्कृत ( भारतीय आर्य भाषाएँ), माना जाता है कि 1500 ई. पूर्व के लगभग आर्य भारत में आ चुके थे।, इसका अर्थ यह है कि भारतीय आर्य-भाषा का इतिहास 1500 ई. पूर्व से लेकर, 21वीं सदी तक फैला है। हजारों वर्षों के इस लम्बे काल को समझने की सुविधा, की दृष्टि से वर्गों में निम्न प्रकार से विभाजित किया जा सकता है-, 1. प्राचीन भारतीय भाषा-काल (1500 ई. पू. से 500 ई.पू.), 2. मध्यकालीन भारतीय आर्य भाषा काल (500 ई.पू. से 1000 ई. तक), 3. आधुनिक भारतीय आर्य भाषा काल (1000 ई. से आज तक), प्राचीन भारतीय आर्य भाषा के दो मुख्य रूप मिलते हैं वेदिक संस्कृत और कड़ी कहा जा सकता है। अपभ्रंश का काल 500, लौकिक संस्कृत। वैदिक संस्कृत का प्राचीनतम रूप 'ऋग्वेद' में मिलता है यही, भाषा अवेस्ता से मिलती-जुलती थी। वैदिक भाषा का काल ( 2000 ई. से, 1500 ई. पूर्व) तथा ब्राह्मण काल (1500 ई. पूर्व से 1000, साहित्यिक संस्कृत काल ( 1000 ई. से 500 ई. पूर्व) तक माना गया हैं। चारों, काल खंड की भाषा प्राकृत थी तथा तीसरे काल खंड की भाषा का नाम, अपभ्रंश' पडा ।, हिंदी का प्रारंभ अपध्रंश से माना जाता है। मूलत: अपभ्रंश प्राकृत काल की, योलचाल की ही भाषा थी इसे प्राकृत और आधुनिक आर्य भाषाओं के बीच की, से 1000 ई. तक है इसमें, छठी शताब्दी से काव्य-रचना होने लगी थी और तभी से इसका अपभ्रंश नाम, सामने आया। विद्वानों के अनुसार इस भाषा के विकास के साथ ही आधुनिक, भारतीय आर्य भाषा सामने आई। यह भी सत्य है कि किसी भी भाषा के, उद्भव, और विकास के काल को किसी स्पष्ट लक्ष्मण रेखा में बद्ध नही किया जा, पूर्व) तथा