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है 82% ६ इर, ६- त में >, , लेखिका के व्यक्तित्व 'पर किन-किन व्यक्तियों का-और किस रूप में प्रभाव पड़ा; है, , लेखिका के व्यक्तित्व पर उससे दो साल॑ बड़ी उसकी बहन सुशीला, पिताजी, हिन्दी आओ ५,, , पिताजी के घनिष्ठ मित्र डॉ० अंबालाल जी का प्रभाव पड़ा। लेखिका का रंग साँवला था और उसको, , गौरा था। पिताजी सुशीला को चाहते थे और लेखिका की उपेक्षा करते थे। परिणामस्वरूप लेखिका, , भावना उत्पन्न हो गई और लम्बे समय तक उनके व्यक्तित्व का अंग बनी रही। पिताजी से उन्होंने जे, , दोनों जगह प्रतिष्ठा बनाए रखने की विचारधारा को अपनाया। उनके व्यवहार ने लेखिका के मन में, , ... के भाव उत्पन्न किए। हिन्दी प्राध्यापिका शीला अग्रवाल ने उनमें पुस्तकों के चयन के कि, , साहित्यकारों में रुचि उत्पन्न कौ। उन्होंने लेखिका को जीवन में एक नया रास्ता दिखाया। हमें यह व, , संकोच नहीं होता कि लेखिका के व्यक्तित्व निर्माण में शीला अग्रवाल का विशिष्ठ योगदान था। डॉ. ;, , जो लेखिका को पिताजी के अभिनन्नमित्र थे , ने लेखिका के भाषण की प्रशंसा कर उन्हें क्रान्ति के पथ, , प्रेरणा दी। हु हर 0 । रे, , 2. इस आत्मकध्य में लेखिका के पिता ने रसोई को “भटियारखाना' कहकर क्यों संबोधित किया, , “एक कहानी यह भी” आत्मकथा के लेखिका के पिता ने रसोई घर को भटियारखाना कहकर इसलिए स॑, , है क्योंकि उनका मानना था कि रसोईघर की भटठी में महिलाओं की प्रतिभा और क्षमता जल कर राख, , : उन्हें रसोई के कामों में उलझकर अपनी कला, प्रतिभा, इच्छाओं का दमन करना पड़ता है। श, , '.. वह कौन-सी घटना थी जिसको सुनने पर लेखिका को न अपनी आँखों पर विश्वास हो पाया और, , कानों पर? | हा, सत्त् 946-47 के स्वतंत्रता आंदोलन के दिनों में लेखिका और उंसके साथ की दो-तीन लड़कियाँ अकसर कॉ., , नासबाजी, हड़तालें करती रहती थीं। जिस कारण से कॉलेज प्रशासन को कॉलेज चलाने में असुविधा हो रही १०8, , _. दिन कॉलेज की प्रिंसिपल ने लेखिका के घर पर पत्र भेजा, जिसमें उसके प्रति अनुशासनात्मक कार्रवाई करने की वा, , कही गई थी। पत्र पढ़ते ही लेखिका के पिताजी का चेहरा क्रोध से तमतमा गया। उन्होंने कहा कि यह 5, , कही मुँह दिखाने लायक जहीं छोड़ेगी। पता नहीं इसके विषय में अब हमें क्या-क्या और सुनना पड़ेगा?, , से गए तो गुस्से में थे कितु आए जब खुश थे। उन्हें यह जानकर बहुत गर्व हो रहा था कि पूरा कॉलेज पा, कर, , लड़कियों के इशारों पर चलता है। प्रिंसिपल ने लेखिका को घर पर रखने का ही आग्रह किया था। वे लड़कि, जैसे-तैसे कक्षाओं में बैठाते हैं लेकिन उनके एक इशारे पर सभी लड़कियाँ कक्षाएँ छोड़कर मैदान में एकत्र है, , लगाने लगती हैं। उनके.कारण उन्हें कॉलेज चलाना मुश्किल हो गया था। ये सब बातें जब पिताजी बड़े खुशी हू, , में बता रहे थे तो लेखिका को न तो अपनी आँखों पर विश्वास हुआ ओर न ही कानों पर।, , लेखिका की अपने पिता से वैचारिक टकराहट को अपने शब्दों में लिखिए।, लेखिका ने जब से होश संभाला उनके पिताजी से उनकी किसी-न-किसी बात पर टकराव होता ही रहता था।, से ही उनके पिताजी ने उनमें हीनता की भावना को उत्पन्न कर दिया था । लेखिका के अंदर उनके पिताजी, प्रतिक्रिया के रूप में प्रतिच्छाया बनकर रहते थे। स्वतंत्रता आंदोलन के दिनों में जब लेखिका लड़कों के र, लगाती, हड़तालें करवाती शहर की सड़कों पर घूमती थी तो पिताजी को सहन नहीं होता था और वे उसे, से मना करते थे ओर लेखिका को घर पर. बैठ कर दूसरों द्वारा दी जाने वाली आज़ादी पसंद नहीं थी। ल्, कहना हैं कि सम्रय चाहे हमें दूसरी दिशा में बहा ले जाए, स्थितियों का दबाव चाहे हमारा रूप बदल दे, हमें पूरी तरह मुक्त नहीं कर सकती।, इस आत्मकथ्य के आधार पर स्वाधीनता आंदोलन के परिदृश्य का चित्रण करते हुए उसमें मल, भूमिका को रेखांकित करें। श्जु, सन् 946-47 के स्वतंत्रता आंदोलन में लेखिका मननू भंडारी भी पीछे नहीं रही। उन्होंने छोटे शहर की एक युव
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होते हुए आज़ादी की लड़ाई में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया। स्वाधीनता आंदोलन के अन्तर्गत जब देश भर में हड़तालें, तरेबाजी, भाषण, जलसे हो रहे थे, तब लेखिका ने अपने कॉलेज में नारों, हड़तालों और भाषणों कों सिलसिला आरम्भ, कर दिया। उनका उत्साह, संगठन क्षमता और विरोध करने का तरीका देखते हीं बनता था। कॉलेज में इतना प्रभाव, था कि उनके संकेत मात्र से ही लड़कियाँ कक्षाएँ छोड़कर मैदान में एकत्र हो जाती और नारे लगाने लगती थीं। यहाँ, तक कि वे शहर के चौराहों पर भी भाषण देने, हंडतालें करवाने आंदिं के माध्यम से विरोध-प्रदर्शन करने में बिल्कुल, भरी नहीं झिझकती थीं। >, चना और अभिव्यक्ति ।, लेखिका ने बचपन में अपने भाइयों के साथ गिल्ली डंडा तथा पतंग उड़ाने जैसे खेल भी खेले किंतु लड़की, , होने के कारण उनका दायरा घर की चारदीबारी तक सीमित था। क्या आज भी लड़कियों के लिए स्थितियाँ, ' ऐसी ही हैं या बदल गई हैं अपने परिवेश के आधार पर लिखिए), , लेखिका ने बचपन में अपने भाइयों के साथ गिल्ली-डंडा तथा पंतग उड़ाने जैसे खेल भी खेले किंतु लड़की होने के, , कारण उनका दायरा घर की चारदीवारी तक सीमित था। आज स्थितियाँ बदल गई हैं। लड़कियाँ केवल चारदीवारी के, , अन्दर खेलने -कदने तक सीमित नहीं रह गई हैं। वे घर को दहलीज पार कर देश और विदेशों तक पहुँच गई हैं। आज, , लड़कियों पर लगे अंकुश धीरे-धीरे समाप्त होते जा रहे हैं। लड़कियाँ लड़कों के साथ कंधे-से-कंधा मिलाकर चल, , . रही हैं। पहले जो लड़कियाँ घर के अन्दर रहा करती थीं, आज देखने में आ रहा है कि वे खेल-कूद, सांस्कृतिक कार्यक्रमों,, समाज सेवा संबंधी लगने वाले विभिन्न शिविरों में उत्साहपूर्ण भाग लेती हैं। आज लड़की अपने दब्बूपन से ऊपर उठ कर, नीडरता और साहसपूर्ण कार्य करती दिखाई देती है।