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प्रतिज्ञा, भारत मेरा देश है। समस्त भारतीय मेरे भाई - बहिन हैं ।, मैं अपने देश से प्रेम करता/करती हूँ तथा मुझे इसकी विपुल, एवं विविध थातियों पर गर्व है। मैं इसके योग्य होने, के लिए सदैव प्रयत्न करता रहूँगा/करती रहूँगी।, मैं अपने माता-पिता, अध्यापक एवं समस्त बड़ों का सम्मान, कुँगा/कुँगी तथा प्रत्येक व्यक्ति के साथ शिष्टता से, व्यवहार करँगा/करुँगी।, मैं अपने देश एवं देशवासियों के प्रति निष्ठा बनाए रखने की, प्रतिज्ञा करता/करती हूँ। मेरी प्रसन्नता केवल उनके कल्याण, एवं उनकी समृद्धि में ही है ।, © प्रकाशक के हित में सर्वाधिकार सुरक्षित, संस्करण :, 201, प्रतियां, :, राजस्थान सरकार द्वारा राजकीय विद्यालयों में, निःशुल्क वितरण हेतु, बोर्ड द्वारा उपलब्ध कराए गये 58 जी.एस.एम. क्रीम, वॉव पेपर IS :1848/2007 एवं 130 जी.एस.एम., कवर पेपर IS : 6956/1973 प्रयुक्त ।, मुद्रक :
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प्रतिज्ञा, भारत मेरा देश है। समस्त भारतीय मेरे भाई - बहिन हैं ।, मैं अपने देश से प्रेम करता/करती हूँ तथा मुझे इसकी विपुल, एवं विविध थातियों पर गर्व है। मैं इसके योग्य होने, के लिए सदैव प्रयत्न करता रहूँगा/ करती रहूँगी ।, मैं अपने माता-पिता, अध्यापक एवं समस्त बड़ों का सम्मान, कुँगा/कुँगी तथा प्रत्येक व्यक्ति के साथ शिष्टता से, व्यवहार करँगा/करँगी।, मैं अपने देश एवं देशवासियों के प्रति निष्ठा बनाए रखने की, प्रतिज्ञा करता/करती हूँ। मेरी प्रसन्नता केवल उनके कल्याण, एवं उनकी समृद्धि में ही है ।, © प्रकाशक के हित में सर्वाधिकार सुरक्षित, संस्करण, 2012, प्रतियां, मूल्य (अंकों में) :, रूपये, (शब्दों में) :, बोर्ड द्वारा उपलब्ध कराए गये 58 जी.एस.एम. क्रीम, वॉव पेपर IS :1848/2007 एवं 130 जी.एस. एम., कवर पेपर IS : 6956/1973 प्रयुक्त ।, मुद्रक :
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प्राक्कथन, यह पुस्तक माध्यमिक शिक्षा बोर्ड, राजस्थान द्वारा स्वीकृत नवीनतम पाठ्यक्रम के, अनुसार, कक्षा 9, 10, 11 और 12 के लिए तैयार की गई है और विद्यार्थियों के मार्गदर्शन हेतु प्रस्तुत है ।, प्रस्तुत पुस्तक में उन सभी विषयों का समावेश किया गया है जो व्याकरण के अंग हैं ।, भाषा का सामाजिक सरोकार आज के युग में एक अहम् मुद्दा बना हुआ है । भाषा प्रयोगों, में (उच्चारण संबंधी, वर्तनी संबंधी एवं वाक्य-गठन संबंधी) विभिन्न प्रकार की विकृतियाँ अपना प्रभुत्व, जमाती जा रही हैं। बोलचाल की भाषा एवं आंचलिक प्रयोगों के परिणाम स्वरूप राष्ट्र-भाषा हिन्दी, का स्वरूप विशिष्ट से विचित्र होता जा रहा है । हिन्दी भाषी प्रदेशों में व्याकरणिक स्तर पर हिन्दी, की जो दुर्गति हो रही है, वह समस्त हिन्दी -प्रेमियों के लिए चिन्ता का विषय है । ऐसी परिस्थिति, में हिन्दी के समर्थकों एवं हिन्दी के पाठकों का यह विशेष दायित्व बन जाता है कि उसके शुद्ध, एवं मानक रूप को स्वीकार करें एवं इस प्रकार राष्ट्र-भाषा हिन्दी के संवर्द्धन में सक्रिय सहयोग, दें, तभी इसका गौरवशाली इतिहास जीवित रह सकेगा । भाषा की शुद्धता ही उसकी प्राण- शक्ति, होती है। व्याकरण संबंधी इस पुस्तक के प्रणयन की पृष्ठभूमि में हमारा यही प्रयास रहा है कि, व्याकरण सम्मत नियमों-उपनियमों की जानकारी कर आज का विद्यार्थी लाभान्वित हो तथा शुद्ध, भाषा सीखे। अशुद्ध भाषा प्रयोक्ता को अनेक बार शर्मिन्दा होना पड़ता है, जब कि भाषा के शुद्ध, प्रयोग हमारे आत्म- बल को बढ़ाने के साथ-साथ राष्ट्रीय स्तर पर भावात्मक संबंधों में भी अभिवृद्धि, करते हैं।, व्याकरण प्रायः नीरस विषय है । अतः उसके पठन-पाठन में छात्रों की रुचि कम होती है ।, प्रायः यह माना जाता है कि व्याकरण के नियम रटने ही पड़ते हैं इस पुस्तक के माध्यम से उन्हें, सरल और सहज रूप में हृदयंगम कराना ही हमारा उद्देश्य रहा है।, इसके साथ ही हमने व्याकरण के नियमों-उपनियमों की जानकारी देते हुए ऐसे उदाहरण-वाक्यों, को व्यवहृत किया है, जो सांस्कृतिक - समन्वय, भाईचारे की भावना, राष्ट्रीय मान-मूल्य एवं, मानवोचित व्यवहार को सबल आधार प्रदान करने में सहायक सिद्ध हो सकते हैं। आशा है, विभिन्न, अध्यायों में दिये गये ऐसे उदाहरणों को पढ़ाते समय शिक्षकगण और भी ऐसे अनेक वाक्य, शिक्षार्थियों के समक्ष प्रस्तुत करेंगे जो साम्प्रदायिक सौहार्द एवं राष्ट्रीय विकास हेतु प्रेरक सिद्ध, हों। यदि शिक्षक एवं शिक्षार्थी इस पुस्तक से लाभान्वित हुए तो हम हमारा प्रयास सफल मानेंगे।, लेखकगण