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भारत में सामाजिक परिवर्तन एवं विकास, , 'ट्वर्तमान को समझने के लिए यह जरूरी है कि उसके अतीत के कुछ पक्षों की भी जानकारी हो। अतीत, का यह ज्ञान किसी भी व्यक्ति या समूह या फिर भारत जैसे पूरे देश को जानने हेतु आवश्यक है। भारत, का इतिहास काफ़ी समृद्ध एवं विस्तृत है। भारत के अतीत की जानकारी प्राचीन एवं मध्यकालीन भारत को, जानने से मिलती है। जबकि आधुनिक भारत को समझने के लिए ज़रूरी है कि भारत के औपनिवेशिक, अनुभवों को जानें। भारत में आधुनिक विचार एवं संस्थाओं की शुरुआत औपनिवेशिकता की देन है।, उपनिवेशवाद के प्रभाव के कारण भारत ने आधुनिक विचारों को जाना। यह एक विरोधाभासी स्थिति भी, थी। इस दौर में भारत ने पाश्चात्य उदारवाद एवं स्वतंत्रता को आधुनिकता के रूप में जाना वहीं दूसरी ओर, इन पश्चिमी विचारों के विपरीत भारत में ब्रितानी उपनिवेशवादी शासन के अंतर्गत स्वतंत्रता एवं उदारता का, अभाव था। इस तरह के अंत: विरोधी तथ्यों ने भारतीय सामाजिक संरचना एवं संस्कृति में परिवर्तनों, को दिशा दी एवं उन पर प्रभाव डाला। ऐसे अनेक संरचनात्मक और सांस्कृतिक परिवर्तनों के बारे में, अध्याय 1 और 2 में चर्चा की गई है।, अगले कुछ पाठों में यह बात साफ़ उभर कर आएगी कि किस प्रकार भारत में सामाजिक सुधार और, राष्ट्रीय आंदोलन, हमारी विधि व्यवस्था, हमारा राजनीतिक जीवन और संविधान, हमारे उद्योग एवं कृषि,, हमारे नगर और हमारे गाँव-इन सब पर उपनिवेशवाद के विरोधाभासी अनुभवों का गहरा प्रभाव पड़ा।, उपनिवेशवाद के साथ हमारे इन विरोधाभासी संबंधों का प्रभाव आधुनिकता पर भी पड़ा। इसके कुछ, उदाहरण, जो हम अपने आम जीवन में पाते हैं, वे इस प्रकार हैं:हमारे देश में स्थापित संसदीय, विधि एवं शिक्षा व्यवस्था ब्रिटिश प्रारूप व प्रतिमानों पर आधारित है।, यहाँ तक कि हमारा सड़कों पर बाएँ चलना भी ब्रिटिश अनुकरण है। सड़क के किनारे रेहड़ी व गाड़ियों, पर हमें 'ब्रेड-ऑमलेट' और 'कटलेट' जैसी खाने की चीजें आमतौर पर मिलती हैं। और तो और, एक, , , , , , , , , , , , प्रसिद्ध बिस्कुट निर्माता कंपनी का नाम भी ' ब्रिटेन' से संबद्ध है। अनेक स्कूलों में 'नेक-टाई' पोशाक का, , , , 2019-2020
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भारत में सामाजिक परिवर्तन एवं विकास, , , , इस अध्याय में हमने उन अनेक संरचनात्मक परिवर्तनों का उल्लेख किया है जो उपनिवेशवाद के कारण, आए। अब हम इस जानकारी के बाद उपनिवेशवाद को एक संरचना एवं व्यवस्था के रूप में समझेंगे।, उपनिवेशवाद ने राजनीतिक, आर्थिक एवं सामाजिक संरचना में नवीन परिवर्तन उत्पन्न किए। इस अध्याय में, हम दो संरचनात्मक परिवर्तनों “ औद्योगीकरण एवं नगरीकरण” की चर्चा करेंगे। हमारे विवेचन का मुख्य केंद्र, तो विशिष्ट औपनिवेशिकतावाद होगा, पर साथ ही हम स्वतंत्र भारत में हुए विकास का भी उल्लेख करेंगे।, इन सभी संरचनात्मक परिवर्तनों के साथ सांस्कृतिक परिवर्तन भी हुए जिनकी चर्चा हम अगले अध्याय, में करेंगे। हालाँकि इन दोनों परिवर्तनों को अलग करना बहुत कठिन है। फिर भी आप देखेंगे कि संरचनात्मक, परिवर्तनों की चर्चा कैसे सांस्कृतिक परिवर्तनों को सम्मिलित किए बिना कठिन है?, , 1.1 उपनिवेशवाद की समझ ॥ |, , एक स्तर पर, एक देश के द्वारा दूसरे देश पर शासन को, उपनिवेशवाद माना जाता है। आधुनिक काल में, पश्चिमी उपनिवेशवाद का सबसे ज्यादा, प्रभाव रहा है। भारत के इतिहास से, यह स्पष्ट होता है कि यहाँ, काल और स्थान के अनुसार, विभिन्न प्रकार के समूहों का, » उन विभिन क्षेत्रों पर शासन, $ रहा जो आज के आधुनिक, 5 भारत को निर्मित करते हैं,, | लेकिन औपनिवेशिक शासन, किसी अन्य शासन से अलग, डे और अधिक प्रभावशाली रहा।, इसके कारण जो परिवर्तन आए., वह अत्यधिक गहरे और, भेदभावपूर्ण रहे हैं। इतिहास ऐसे, उदाहरणों से भरा पड़ा है जिसमें दूसरे, देश के क्षेत्रों पर कब्जा करके राजनीतिक, क्षेत्र का विस्तार किया गया। ऐसे अनगिनत उदाहरण, हैं जिसमें कमजोर लोगों पर शक्तिशाली लोगों ने शासन किया। लेकिन गौर करने वाली बात यह है कि, पूँजीवाद के आने से पहले के साम्राज्य और एँजीवादी दौर के शासन में गुणात्मक अंतर है। पूर्व-पूँजीवादी, शासक अपने प्रभुत्व से लाभ प्राप्त कर सके जो उनके निरंतर शासन अथवा विरासत से व्यक्त होता है। कुल, मिलाकर पूर्व-पूँजीवादी शासक समाज के आर्थिक आधार में हस्तक्षेप नहीं कर सके। उन्होंने परंपरागत आर्थिक, व्यवस्थाओं पर कब्जा करके अपनी सत्ता को बनाए रखा। (अल्वी एवं शानिन), , ननननयओ इसके विपरीत ब्रितानी उपनिवेशवाद पूँजीवादी व्यवस्था पर आधारित था। इसने प्रत्यक्ष रूप से आर्थिक, व्यवसाय में बड़े पैमाने पर हस्तक्षेप किए। जिनसे ब्रितानी पूँजीवाद का विस्तार हुआ और उसे मजबूती मिली।, षषषषषकण्म्म्म्म््, , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , उदाहरण के लिए भूमि संबंधी नियमों को लें। ब्रितानी उपनिवेशवाद ने केवल भूमि स्वामित्व के नियमों को, , 2019-2020
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संरचनात्मक परिवर्तन, , ही नहीं बदला अपितु यह भी निर्धारित किया कि कौन सी फसल उगाई जाए और कौन सी नहीं। इसने, उत्पादन क्षेत्र को भी नहीं छोड़ा। वस्तुओं के उत्पादन की प्रणाली और उनके वितरण के तरीकों को भी, बदल दिया। यहाँ तक कि ब्रिटिश उपनिवेशवाद ने ब्रिटिश पूँजीवाद के प्रसार के लिए जंगलों को भी नहीं, छोड़ा। उन्होंने पेड़ों की कटाई और बागानों में चाय की खेती की शुरुआत कराई। जंगल को नियंत्रित एवं, प्रशासित करने के लिए अनेक कानून भी बनाए। इससे जंगल पर आश्रित गड्रिये व ग्रामीण लोगों के जीवन, में परिवर्तन आए। नए औपनिवेशिक कानूनों के अंतर्गत ग्रामीणों, चरवाहों व गड़रियों का जंगलों में, आना-जाना प्रतिबंधित कर दिया गया। अब जंगल से भेड््-बकरियों, गाय-भैंसों आदि पशुओं के लिए चारा, इकट्ठा करना दुर्लभ हो गया। नीचे दिए गए बॉक्स में संक्षेप में बताया गया है कि किस प्रकार औपनिवेशिक, कानून, विशेषकर जंगलों से संबंधित कानून, ने पूर्वोत्तर भारत पर प्रभाव डाला। इस संदर्भ में पूर्वोत्तर भारत, में जंगल से संबंधित औपनिवेशिक नीतियाँ उल्लेखनीय हैं।, , पूर्वोत्तर भारत में जंगल से संबंधित औपनिवेशिक नीतियाँ, बंगाल में रेलवे की शुरुआत... एक निर्णायक घटना थी, जिससे असम की जंगल से संबंधित नीतियों में एक, , परिवर्तन आया (उस समय असम बाल प्रांत का एक हिस्सा था); अब ये नीतियाँ उदार न होकर हस्तक्षेपवादी हो, गई... जैसे-जैसे रेलवे के शयनयानों की माँग बढ़ी वैसे-वैसे असम का वह जल जो व्यावसायिक दृष्टि से बहुत उपयोगी, नहीं था, राजस्व कमाने का एक आकर्षक संसाधन बन गया, (उन दिनों का असम, आज के सातों पूर्वोत्तर राज्यों से मिलकर, बनता था)।, , 1861 और 1878 के बीच, 269 वर्ग मील का विस्तृत जंगल, आरक्षित घोषित कर दिया गया। सन् 1894 तक यह क्षेत्र, 3683 वर्गमील का हो गया। और यह बढ़ते-बढ़ते 19वीं सदी', के अंत तक 20061 वर्ग मील का हो गया, (जिसमें कुल | ए 7: 9 थ, प्रांत का 42.2 प्रतिशत क्षेत्रफल था) इसमें से 3,609 वर्ग मील. भरत में पहले क्रीक पुल जो कि थाणे के पास है। उसके ऊपर से, को आरक्षित रखा गया था। इसमें गौर करने की बात यह है कि गुजरती हुई रेलगाड़ी-1854, , जंगल का वो बड़ा क्षेत्र जिसमें आदिवासी समुदायों का निवास, , था और जो सदियों से वहाँ जीवनयापन करते आए थे, भी प्रशासकीय नियंत्रण में आ गया। पहाड़ी क्षेत्रों में आदिवासी, जनजातीय समुदाय जंगलों से संबद्ध होकर प्रकृति के साथ मैत्रीपूर्ण जीवन जीते थे। (नौंगबरी, 2003), , उपनिवेशवाद ने लोगों कौ आवाजाही को भी. सन् 1834 से लेकर 1920 तक, भारत के अनेकों, बढ़ाया। भारत के एक हिस्से से दूसरे हिस्से में बंदरगाहों से नियमित रूप से जहाज़ जाते थे। उन, , जी: जाता, बताता खा जैसे आज के झारखंड जहाजों में विभिन्न धर्मों, लिंग, वर्गों व जातियों के भारतीय लोग होते, प्रदेश से, उन दिनों, बहुत से लोग चाय बागानों में थे जिन्हें कम से कम पाँच साल के लिए मॉरीशस के बागानों में, मजदूरी करने के उद्देश्य से असम आए। उन्हीं दिनों मजदूरी करने के लिए पहुँचाया जाता था। इसके लिए कई दशकों, एक नए मध्य वर्ग का भी उद्भव हुआ जो मुख्यतः तक लोगों का चयन मुख्यतः बिहार प्रांत के विशेषकर पटना, गया,, , बंगाल और मद्रास क्षेत्र से था। उसमें वे लोग थे मा न, जिनको उपनिवेशवादी शासन ने देश के विभिन्न आरा, सारण, तिरहुत, चंपारण, मुंगेर, भागलपुर और पूर्णिया जिलों में, से होता था। (पाइनीओ 1984), , भागों से सेवा के लिए चुना था इसके अलावा, विभिन्न पेशेवर लोग जैसे-डॉक्टर एवं वकील। इन, सरकारी सेवाकर्मियों और व्यवसायियों का भी बहुत आवागमन होता रहा। यह आवागमन भारत तक ही सीमित. ...्््््््््््््-रखः़, , , , , , , , , , , , 2019-2020