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एलएल0एम0 प्रथम वर्ष, भारत में विधि एवं सामाजिक परिवर्तन (प्रथम प्रश्न पत्र), खण्ड-I, : विधि एवं सामाजिक परिवर्तन, इकाई-1, : सामाजिक परिवर्तन : सैद्धान्तिक विश्लेषण, संरचना, 1.0 प्रस्तावना, 1.1 उद्देश्य, 1.2 सामाजिक परिवर्तन का अर्थ, 1.3 सामाजिक परिवर्तन की विशेषतायें, 1.4 सामाजिक परिवर्तन के मुख्य स्त्रोत, 1.5 सामाजिक परिवर्तन से सम्बद्ध कुछ अवधारणारें, 1.5.1 उद्विकास, 1.5.2 प्रगति, 1.5.3 विकास, 1.5.4 सामाजिक आन्दोलन, 1.5.5 क्रान्ति, 1.6 सामाजिक परिवर्तन के सिद्धान्त, 1.6.1 चक्रीय सिद्धान्त, 1.6.2 उतार-चढ़ाव का सिद्धान्त, 1.6.3 रेखीय परिवर्तन का सिद्धान्त, 1.6.4 द्वन्द्व या संघर्ष का सिद्धान्त, {1}
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1.6.4.1 कार्ल मार्क्स का सिद्धान्त, 1.6.4.2 कोजर का सिद्धान्त, 1.6.4.3 डेहरनफोर्ड का सिद्धान्त, 1.6.4.4 वेबलन का सिद्धान्त, 1.6.4.5 टायनबी का सिद्धान्त, 1.7 सामाजिक परिवर्तन के प्रतिमान, प्रकार या प्रारूप, 1.8 सामाजिक परिवर्तन के कारक, 1.9 सारांश, 1.10 अपना आकलन करें, 1.11 सन्दर्भ सूची, 1.0 प्रस्तावना, सामाजिक परिवर्तन समाज के आधारभूत परिवर्तनों पर प्रकाश डालने वाला एक, विस्तृत एवं कठिन विषय है । इस प्रक्रिया में समाज की संरचना एवं कार्यप्रणाली का एक, नया जन्म होता है। इसके अन्तर्गत मूलतः प्रस्थिति, वर्ग, स्तर तथा व्यवहार के, अनेकानेक प्रतिमान बनते एवं बिगड़ते हैं। समाज गतिशील है और समय के साथ, परिवर्तन अवश्यंभावी है।, आधुनिक संसार में प्रत्येक क्षेत्र में विकास हुआ है तथा विभिन्न समाजों ने अपने, तरीके से इन विकासों को समाहित किया है, उनका उत्तर दिया है, जो कि सामाजिक, परिवर्तनों में परिलक्षित होता है। इन परिवर्तनों की गति कभी तीव्र रही है कभी मन्द ।, कभी-कभी ये परिवर्तन अति महत्वपूर्ण रहे हैं तो कभी बिल्कुल महत्वहीन। कुछ परिवर्तन, आकस्मिक होते हैं, हमारी कल्पना से परे और कुछ ऐसे होते हैं जिसकी भविष्यवाणी, संभव थी। कुछ से तालमेल बिठाना सरल है जब कि कुछ को सहज ही स्वीकारना, कठिन है। कुछ सामाजिक परिवर्तन स्पष्ट है एवं दृष्टिगत हैं जब कि कुछ देखे नहीं जा, सकते, उनका केवल अनुभव किया जा सकता है। हम अधिकतर परिवर्तनों की प्रक्रिया, {2}
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और परिणामों को जाने समझे बिना अवचेतन रूप से इनमें शामिल रहे हैं । जब कि कई, बार इन परिवर्तनों को हमारी इच्छा के विरुद्ध हम पर थोपा गया है। कई बार हम, परिवर्तनों के मूक साक्षी भी बने हैं । व्यवस्था के प्रति लगाव के कारण मानव मस्तिष्क, इन परिवर्तनों के प्रति प्रारंभ में शंकालु रहता है परन्तु शनैः शनैः उन्हें स्वीकार कर लेता, है।, 1.1 उद्देश्य, प्रस्तुत खण्ड I की इकाई 2 का उद्देश्य आपको सामाजिक परिवर्तन की, अवधारणा से परिचित कराना है। संक्षेप में उपरोक्त इकाई का उद्देश्य है कि आप, निम्नलिखित बिन्दुओं को समझ सकें ।, सामाजिक परिवर्तन का अर्थ, विशेषताये, स्त्रोत, सामाजिक परिवर्तन से मिलती जुलती अन्य अवधारणायें, सामाजिक परिवर्तन के सिद्धान्त, सामाजिक परिवर्तन के प्रतिमान, प्रकार या प्रारूप, सामाजिक परिवर्तन के कारक, 1.2 सामाजिक परिवर्तन का अर्थ, सामाजिक परिवर्तन के अन्तर्गत हम मुख्य रूप से तीन तथ्यों का अध्ययन करते, हैं- (क) सामाजिक संरचना में परिवर्तन, (ख) संस्कृति में परिवर्तन एवं (ग) परिवर्तन के, कारक । सामाजिक परिवर्तन के अर्थ को स्पष्ट करने के लिए कुछ प्रमुख परिभाषाओं पर, विचार करेंगे।, मकीवर एवं पेज (R.M. Maclver and C.H. Page) ने अपनी, Society i, सामाजिक परिवर्तन को स्पष्ट करते हुए बताया है कि समाजशास्त्री होने के नाते हमारा, प्रत्यक्ष संबंध सामाजिक संबंधों से है और उसमें आए हुए परिवर्तन को हम सामाजिक, परिवर्तन कहेंगे।, {3}
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डेविस (K. Davis) के अनुसार सामाजिक परिवर्तन का तात्पर्य सामाजिक संगठन, अर्थात् समाज की संरचना एवं प्रकार्यों में परिवर्तन है ।, एच0एम0 जॉनसन (H.M. Johnson) ने सामाजिक परिवर्तन को बहुत ही संक्षिप्त, एवं अर्थपूर्ण शब्दों में स्पष्ट करते हुए बताया कि मूल अर्थों में सामाजिक परिवर्तन का, अर्थ संरचनात्मक परिवर्तन है । जॉनसन की तरह गिडेन्स ने बताया है कि सामाजिक, परिवर्तन का अर्थ बुनियादी संरचना (Underlying Structure) या बुनियादी संस्था (Basic, Institutions) में परिवर्तन से है ।, ऊपर की परिभाषाओं के संबंध में यह कहा जा सकता है कि परिवर्तन एक, व्यापक प्रक्रिया है। समाज के किसी भी क्षेत्र में विचलन को सामाजिक परिवर्तन कहा, जा सकता है। विचलन का अर्थ यहाँ खराब या असामाजिक नहीं है । सामाजिक,, आर्थिक, राजनीतिक, धार्मिक, नैतिक, भौतिक आदि सभी क्षेत्रों में होने वाले किसी भी, प्रकार के परिवर्तन को सामाजिक परिवर्तन कहा जा सकता है। यह विचलन स्वयं, प्रकृति के द्वारा या मानव समाज द्वारा योजनाबद्ध रूप में हो सकता है। परिवर्तन या तो, समाज के समस्त ढाँचे में आ सकता है अथवा समाज के किसी विशेक्ष पक्ष तक ही, सीमित हो सकता है। परिवर्तन एक सर्वकालिक घटना है। यह किसी - न - किसी रूप में, हमेशा चलने वाली प्रक्रिया है। परिवर्तन क्यों और कैसे होता है, इस प्रश्न पर, समाजशास्त्री अभी तक एकमत नहीं हैं । इसलिए परिवर्तन जैसी महत्वपूर्ण किन्तु जटिल, प्रक्रिया का अर्थ आज भी विवाद का एक विषय है | किसी भी समाज में परिवर्तन की, क्या गति होगी, यह उस समाज में विद्यमान परिवर्तन के कारणों तथा उन कारणों का, समाज में सापेक्षिक महत्व क्या है, इस पर निर्भर करता है। सामाजिक परिवर्तन के, स्वरूप को स्पष्ट करने के लिए यहाँ इसकी प्रमुख विशेषताओं की चर्चा अपेक्षित है ।, 1.3 सामाजिक परिवर्तन की विशेषताएँ (Characteristics of Social Change), विशेषतायें निम्नलिखित हैं।, (1) सामाजिक परिवर्तन एक विश्वव्यापी प्रक्रिया (Universal Process) है । अर्थात्, सामाजिक परिवर्तन दुनिया के हर समाज में घटित होता है । दुनिया में ऐसा, {4}
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कोई भी समाज नजर नहीं आता, जो लम्बे समय तक स्थिर रहा हो या स्थिर, है। यह संभव है कि परिवर्तन की रफ्तार कभी धीमी और कभी तीव्र हो, लेकिन, परिवर्तन समाज में चलने वाली एक अनवरत प्रक्रिया है ।, (2) सामुदायिक परिवर्तन ही वस्तुतः सामाजिक परिवर्तन है । इस कथन का मतलब, यह है कि सामाजिक परिवर्तन का नाता किसी विशेष व्यक्ति या समूह के, विशेष भाग तक नहीं होता है। वे ही परिवर्तन सामाजिक परिवर्तन कहे जाते हैं।, जिनका प्रभाव समस्त समाज में अनुभव किया जाता है।, (3) सामाजिक परिवर्तन के विविध स्वरूप होते हैं। प्रत्येक समाज में सहयोग,, समायोजन, संघर्ष या प्रतियोगिता की प्रक्रियाएँ चलती रहती हैं जिनसे, सामाजिक परिवर्तन विभिन्न रूपों में प्रकट होता है । परिवर्तन कभी एकरेखीय, (Unilinear) तो कभी बहुरेखीय (Multilinear) होता है । उसी तरह परिवर्तन, कभी समस्यामूलक होता है तो कभी कल्याणकारी। परिवर्तन कभी चक्रीय होता, 1., है तो कभी उद्विकासीय। कभी-कभी सामाजिक परिवर्तन क्रांतिकारी भी हो, सकता है। परिवर्तन कभी अल्प अवधि के लिए होता है तो कभी दीर्घकालीन ।, (4) सामाजिक परिवर्तन की गति असमान तथा सापेक्षिक (Irregular and Relative), होती है। समाज की विभिन्न इकाइयों के बीच परिवर्तन की गति समान नहीं, होती है।, (5) सामाजिक परिवर्तन के अनेक कारण होते हैं । समाजशास्त्री मुख्य रूप से, सामाजिक परिवर्तन के जनसांख्यिकीय, (Demographic), प्रौद्योगिक, (Technological) सांस्कृतिक ( Cultural ) एवं आर्थिक (Economic) कारकों की, चर्चा करते हैं। इसके अलावा सामाजिक परिवर्तन के अन्य कारक भी होते हैं,, क्योंकि मानव-समूह की भौतिक (Material) एवं अभौतिक ( Non -material), आवश्यकताएँ अनन्त हैं और वे बदलती रहती हैं ।, {5}