Page 1 :
कक्षा 12 अध्याय 1, भारतीय समाज की जनसांख्यिकीय संरचना, जनसांख्यिकीय जनसंख्या का सुव्यवस्थित अध्ययन है । हिंदी में इसे 'जनांकिकी' भी कहा, जाता है। इसका अंग्रेजी पर्याय 'डेमोग्राफी' यूनानी भाषा के दो शब्दों 'डेमोस' यानी जन, (लोग) और 'ग्राफीन यानी वर्णन से मिलकर बना है, जिसका तात्पर्य है, लोगों का, |, वर्णन।, जनसांख्यिकी विषय के अंतर्गत जनसंख्या से संबंधित अनेक रुझानों तथा, प्रक्रियाओं का अध्ययन किया जाता है जैसे जनसंख्या के आकार में परिवर्तन जन्म, मृत्यु, तथा प्रवसन के स्वरूप और जनसंख्या की संरचना और गठन अर्थात् उसमें स्त्रियों,पुरुषों, और विभिन्न आयु वर्ग के लोगों का क्या अनुपात है?, जनसांख्यिकी के प्रकार, 1.आकारिक जनसांख्यिकी जिसमें अधिकतर जनसंख्या के आकार यानी मात्रा का अध्ययन, किया जाता है और, 2.सामाजिक जनसांख्यिकी जिसमें जनसंख्या के सामाजिक, आर्थिक या राजनीतिक पक्षों पर, विचार किया जाता है ।, जनसांख्यिकी का अध्ययन समाजशास्त्र के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।, जनसांख्यिकीय आँकड़े, राज्य की नीतियाँ, विशेष रूप से आर्थिक विकास और सामान्य जन, कल्याण संबंधी नीतियाँ बनाने और कार्यान्वित करने के लिए महत्त्वपूर्ण होते हैं । जनसंख्या, अध्ययन या सामाजिक जनसांख्यिकी के अंतर्गत जनसंख्या की संरचनाओं और परिवर्तनों के, व्यापक कारणों तथा परिणामों का पता लगाया जाता है । जनसांख्यिकी से देश के, लिगानुपात,बाल लिंगानुपात, आयु संरचना,जनसंख्या घनत्व,साक्षरता दर, जनसंख्या वुद्धि, दर,जन्म दर व मृत्यु दर आदि के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त होती है । इन सबसे देश, की सामाजिक व विकास योजनाए बनाने में मदद मिलती है । दुर्खीम ने अपना जनसंख्या, सम्बंधी सिद्धांत इसी आधार पर दिया।
Page 2 :
राज्य द्वारा सामाजिक आँकड़े इकट्ठे करने का प्रचलन 18वीं शताब्दी के, अंतिम वर्षों में अस्तित्व में आया । अमेरिका की 1790 की जनगणना संभवतः सबसे पहली, आधुनिक किस्म की जनगणना थी और भारत में जनगणना का कार्य भारत की अंग्रे, सरकार ने सर्वप्रथम 1867 -72 के बीच प्रारंभ किया और फिर तो 1881 से हर दस साल, बाद ;दसवर्षीय जनगणना की जाती रही । स्वतंत्रा भारत ने भी इस को चालू रखा और सन्, 1951 से अब तक सात दसवर्षीय जनगणनाएँ हो चुकी हैं जिनमें 2011 में हुई जनगणना, सबसे नयी है। भारतीय जनगणना विश्व भर में जनगणना किए जाने का सबसे बड़ा कार्य, है;हालाँकि चीन की जनसंख्या भारत की तुलना में कुछ अधिक है पर वहाँ नियमित रूप से, जनगणना नहीं की जाती।, माल्थस का जनसंख्या वृद्धि का सिद्धांत, अंग्रेज राजनीतिक अर्थशास्त्री थॉमस रोबर्ट माल्थस ( 1766- 1834) ने, जनसंख्या वृद्धि का सिद्धांत अपनी पुस्तक 'ऐस्से ऑन पॉपुलेशन' ( 1798 ) में स्पष्ट दिया गया, है जो एक तरह से निराशावादी सिद्धांत था ।उनका कहना था कि मनुष्यों की जनसंख्या, भरण-पोषण के साधन की दर की तुलना में अधिक तेजी से बढ़ती है ।जहाँ जनसंख्या में, वृद्धि ज्यामितीय या गुणोत्तर रूप से जैसे 2, 4, 8, 16, 32 आदि की श्रृंखला में होती है, वहीं कृषि उत्पादन में वृद्धि गणितीय या समांतर रूप से ,जैसे 2, 4, 6, 8, 10 आदि की, तरह होती है।, जनसंख्या व खाद्य संतुलन को बनाये रखने के लिए जनसंख्या नियंत्रण जरूरी है ।, माल्थस ने जनसंख्या नियंत्रण के दो उपाये बताये-, 1. कृत्रिम निरोध, इसमें मानवीय प्रयास से जनसंख्या नियंत्रण की कोशिश की जाती, है जैसे कि बड़ी उम्र में विवाह करके या यौन संयम रखकर अथवा ब्रह्मचर्य का, पालन करते हुए सीमित संख्या में बच्चे पैदा किए जाएँ।, 2. प्राकृतिक निरोध-खाद्य आपूर्ति और बढ़ती हुई जनसंख्या के बीच असंतुलन को, रोकने के लिए प्रकृति अपने आप यह कार्य करती है। जैसे प्राकृतिक आपदाए
Page 3 :
अकाल, बाढ़, भुकम्प, बिमारियां महामारी फैलना आदि । इन्हें प्राकृतिक निरोध कहा, जाता है।, माल्थस के सिद्धांत की आलोचना-, माल्थस का यह सिद्धांत एक लंबे समय तक प्रभावशाली रहा। लेकिन, कुछ विचारकों ने इसका विरोध भी किया, जो यह मानते थे कि आर्थिक संवृद्धि जनसंख्या, वृद्धि से अधिक हो सकती है । बिमारिया पर काफी हद तक नियंत्रण हो गया है । गर्भ, निरोधकों द्वारा जनसंख्या नियंत्रण के अनेक उपाय विकसित कर लिये गये है । जन्म दरें, घट गईं और महामारियों के प्रकोप पर नियंत्रण किया जाने लगा । माल्थस की, भविष्यवाणियाँ झूठी साबित कर दी गईं क्योंकि जनसंख्या की तीव्र वृद्धि के बावजूद, खाद्य, उत्पादन और जीवन स्तर लगातार उन्नत होते गए।, जनसांख्यिकीय संक्रमण का सिद्धांत, जनसांख्यिकीय संक्रमण के सिद्धांत जनसंख्या वृद्धि के तीन बुनियादी चरण होते हैं ।, 1. उच्च जन्मदर व उच्च मृत्यु दर- समाज में जनसंख्या वृद्धि का कम होती है क्योंकि, समाज अल्पविकसित और तकनीकी दृष्टि से पिछड़ा होता है । वृद्धि दरें इसलिए, कम होती हैं क्योंकि मृत्यु दर और जन्म दर दोनों ही बहुत ऊँची होती हैं।, 2. उच्च जन्मदर व निम्न मृत्यु दर-, दुसरे चरण में चिकित्सा बिमारियो पर नियंत्रण, पाने व अन्य कारणो से मृत्यु दर में कमी आ जाती है लेकिन जन्म दर में कोई, कमी नहीं आती है। इससे जनसख्या में तीव्र वृद्धि होती है इस प्रकार जनसख्या में, तीव्र वृद्धि होना जनसंख्या विस्पोट स्थिति कहलाती है ।, 3. निम्न मृत्युदर व निम्न जन्मदर- तिसरे चरण मृत्यु दर के साथ में जन्म दर में भी, कमी आती है ।तीसरे चरण में भी विकसित समाज में जनसंख्या वृद्धि दर नीची
Page 4 :
रहती है क्योंकि ऐसे समाज में मृत्यु दर और जन्म दर दोनों ही काफी कम हो, जाती हैं और उनके बीच अंतर बहुत कम रहता है।, सामान्य संकल्पनाएँ, जन्म दर, प्रति एक हजार की जनसंख्या के पीछे जीवित उत्पन्न हुए बच्चों की संख्या, को जन्म दर कहा जाता है। इसी प्रकार मृत्यु दर भी एक ऐसा ही आँकड़ा है ।एक हजार, की जनसंख्या के पीछे मरने वालो की संख्या को मृत्युदर कहा जाता है । लेकिन ये दोनो, आंकड़े सही सही उपलब्ध नही हो पाते है ।, जनसंख्या संवृद्धि दर, प्राकृतिक वृद्धि दर या जनसंख्या संवृद्धि दर का तात्पर्य है जन्म दर और, मृत्यु दर के बीच का अंतर। जब यह अंतर शून्य ,अथवा व्यावहारिक रूप से बहुत कम,, नगण्य होता है तब हम यह कह सकते हैं कि जनसंख्या 'स्थिर' हो गई है या वह, 'प्रतिस्थापन स्तर' पर पहुँच गई है। यह एक ऐसी अवस्था होती है जब जितने बूढ़े लोग, मरते हैं उनका खाली स्थान भरने के लिए उतने ही नए बच्चे पैदा हो जाते हैं। कभी -कभी, कुछ समाजों को ऋणात्मक संवृद्धि दर की स्थिति से भी गुजरना होता है अर्थात् उनका, प्रजनन शक्ति स्तर प्रतिस्थापन दर से नीचा रहता है। आज विश्व में कई ऐसे देश और, क्षेत्र हैं जहाँ ऐसी स्थिति है जैसे, जापान, रूस, इटली एवं पूर्वी यूरोप।, प्रजनन दर, प्रजनन दर का अर्थ है बच्चे पैदा कर सकने की आयु वाली प्रति 1000, स्त्रियों की इकाई के पीछे जीवित जन्में बच्चों की संख्या ।, शिशु मृत्यु दर, उन बच्चों की संख्या को शिशु मुत्यु दर कहते है जो जीवित पैदा हुए 1000, बच्चों में से एक वर्ष की आयु से पहले ही मौत के मुँह में चले जाते हैं।
Page 5 :
मातृ-मृत्यु दर, मातृ-मृत्यु दर उन स्त्रियों की संख्या की सूचक है जो जीवित प्रसूति के, एक लाख मामलों में अपने बच्चे को जन्म देते समय मृत्यु को प्राप्त हो जाती हैं। शिशु, और मातृ-मृत्यु की ऊँची दरें निसंदेह पिछड़ेपन और गरीबी की सूचक होती हैं, औसत आयु, औसत आयु या आयु संभाविता जन्म से लेकर जीवित रहने की औसत आयु होती है।, लिंगानुपात, किसी क्षेत्र विशेष में एक निश्चित अवधि के दौरान प्रति 1000 पुरुषों के पीछे, स्त्रियों की संख्या को स्त्री पुरुष अनुपात कहते है। चीन, दक्षिण कोरिया और विशेषतः, भारत जैसे कुछ देशों में स्त्री-पुरुष अनुपात घटता जा रहा है। इस प्रघटना को वर्तमान, सामाजिक मानकों से जोड़ा जा सकता है जिनके अनुसार पुरुषों को स्त्रियों की तुलना में, कहीं अधिक महत्त्व दिया जाता है और इसी के परिणामस्वरूप 'बेटे को अधिमान्यता, ,अधिक पसंद्ध दी जाती है और बालिका शिशुओं की उपेक्षा की जाती है।, * आयु संरचना, विभिन्न आयु वर्गों में व्यक्तियों का अनुपात क्या है।, जनसंख्या की आयु संरचना से तात्पर्य है कि कुल जनसंख्या के, -, पराश्रितता अनुपात जनसंख्या का वह भाग(अनुपात) जो अपनी आजीविका के लिए युवा, वर्ग पर आश्रित रहते है । पराश्रित वर्ग में ऐसे बुजुर्ग लोग आते हैं जो अपने बुढ़ापे के, 1., कारण काम नहीं कर सकते और ऐसे बच्चे भी आते हैं जो इतने छोटे हैं कि काम नहीं, कर सकते। कार्यशील वर्ग में आमतौर पर 15 से 64 वर्ष की आयु के लोग होते हैं ।, पराश्रितता अनुपात 15 वर्ष से कम और 64 वर्ष से अधिक आयु वर्ग के लोगों की, संख्या को 15 से 64 वर्ष के आयु वर्ग के लोगों की संख्या से भाग देने के बाद प्राप्त, हुई संख्या के बराबर होता है।"