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ही संरचना, (७0291 87 )स्ठए7९), , सामाजिक संरचना शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग हरबर्ट स्पेंसर ने अपनी पुस्तक शयालंछा€ ०, , &02010£29 में किया तत्पश्चात् इमाइल दुर्खीम ने द रूलस ऑफ सोशियोलॉजिकल मैथ्डस में, किया। संरचना शब्द का प्रयोग बनावट या ढांचे से लिया जाता है।, समाज अखण्ड व्यवस्था नहीं हैं। हमारा समाज अनेक सामाजिक इकाइयों (यथा संस्था,, , समूह, समिति, संगठन, प्रस्थिति, भूमिका आदि) का योग है। इन इकाइयों,/अंगों की व्यवस्थित, कमबद्धता (आपसी संबंधों की व्यवस्था) को सामाजिक संरचना कहते है। जिस प्रकार प्रत्येक वस्तु, की एक निश्चित संरचना होती है और उनमें अनेक इकाइया होती है। जैसे एक मकान की, इकाइयों की बात करे तो इसमें ईंट, सीमेन्ट, दरवाजे आदि इकाइयां है और जब इनको एक, निश्चित कम में जोड़ा जाता है तो मकान की संरचना बन जाती है। समाज की संरचना भी कुछ, इसी प्रकार से है।, , सामाजिक संरचना की इकाइयों में परिवर्तन हो सकता है लेकिन इकाइयां हमेशा बनी, रहती है अर्थात् सामाजिक संरचना स्थायी होती है। हैरी एम. जांनसन के अनुसार - सामाजिक, संरचना का निर्माण अलग-अलग अंगो के परस्पर संबंधों से होता है।, , सामाजिक संरचना की परिभाषा :, 1. मर्टन - सामाजिक इकाइयों की कमबद्धता और उनकी पारस्परिक निर्भरता से उत्पन्न व्यवस्था, को सामाजिक संरचना कहते है।, , 2. एस.एफ. नैडेल - सामाजिक संरचना अनेक अंगों की एक कमबद्धता को स्पष्ट करती है।, संरचना स्थायी होती है लेकिन इकाइयां परिवर्तनशील होती है।, , 3. पारसंस-सामाजिक संरचना परस्पर संस्थाओं, एजेन्सियों, सामाजिक प्रतिमानों तथा साथ ही, प्रत्येक सदस्य द्वारा ग्रहण किए गए पदों तथा कार्यों की विशिष्ट कमबद्धता को कहते है।, , 4. रेडक्लिफ ब्राउन - सामाजिक संरचना के अंग मनुष्य ही है, स्वयं संरचना, संस्था द्वारा, परिभाषित और नियमित संबंधों में लगे हुए व्यक्तियों की एक कमबद्धता है।, , 5. कार्ल मैनहीम - सामाजिक संरचना अन्तःकियात्मक सामाजिक शक्तियों का एक जाल है,, जिससे अवलोकन एवं चिन्तन की विभिन्न प्रणालियों का बोध होता है।, , 6. जॉनसन - किसी वस्तु का ढ़ांचा उसके अंगों के अपेक्षाकृत स्थायी संबंधों से निर्मित होता है।
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ः ः, सामाजिक संरचना की विशेषताएं, , . सामाजिक संरचना अमूर्त होती है। अर्थात सरंचना की विभिन्न इकाइयों को देखा नहीं, जा सकता है |(नोट- ब्राउन एवं नाडेल ने सामाजिक संरचना को मूर्त माना है|), , . समाज के व्यक्ति ,संस्थाएं, समूह, संगठन सामाजिक संरचना की अनेक इकाइयां है।, , - ये संस्थाएं, समूह आदि एक विशेष व्यवस्था से एक दूसरे से बंधे होते हैं।, , . सामाजिक संरचना से समाज के बाहय स्वरूप(सामाजिक ढ़ाचे) का ज्ञान होता है, उसके आंतरिक स्वरूप को ज्ञात नहीं किया जा सकता।, , . सामाजिक संरचना में परिवर्तन व गतिशीलता भी पाई जाती है।, , . प्रत्येक समाज की एक अलग संरचना होती है।, , . सामाजिक संरचना की प्रत्येक इकाइ का निश्चित स्थान होता है।, , . सामाजिक संरचना में प्रत्येक इकाई की अपनी अलग संरचना होती है।, , सामाजिक संरचना से संबंधित अवधारणाएं :, प्रकार्य-- सामाजिक संरचना के वे तत्व जो सामाजिक व्यवस्था को बनाये रखने में योगदान, देते है प्रकार्य कहलाते है। मर्टन ने इसके दो प्रकार प्रकट प्रकार्य एवं अप्रकट प्रकार्य बताये, है।, , अप्रकार्य:- सामाजिक संरचना के वे तत्व जो सामाजिक व्यवस्था को कमजोर करते है।, , , , अप्रकार्य कहलाते है।, , सामाजिक संरचना क प्रमुख स्वरूप :, सामाजिक मूल्यों के आधार पर पारसंस ने सामाजिक संरचना के चार स्वरूप तथा चार, दशाएं बताई है। स्वरूप - 1. सार्वभौमिक प्रदत्त प्रतिमान 2. सार्वभौमिक अर्जित प्रतिमान 3., विशिष्ट प्रदत्त (स्पेन) 4. विशिष्ट अर्जित(भारत, चीन) दशाएं - 1. अनुकूलन 2.लक्ष्य 3., एकीकरण एवं 4. प्रतिमान रक्षण, , हेरी एम. जॉनसन ने सामाजिक संरचना के दो स्तरों संरचनात्मक उप प्रणाली एवं, प्रकार्यात्मक उप प्रणाली का उल्लेख किया हैं