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६७४ ५४ ४॥25 0110, , 7. मातृभूमि के आभूषण क्या हैं ?, , (मंडन-आभूषण , (ठ9/3(0670०), , उत्तर : फूल और तारे, , 8. मातृभूमि का स्तुतिगान कौन करता है ?, , उत्तर : पक्षियों का समूह, , 9. मातृभूमि का सिंहासन कया है ?, , उत्तर : शेषनाग का फन, , 10. बादल क्या करते हैं ?, , उत्तर : बादल पानी बरसाकर मातृभूमि का अभिषेक करते हैं।, 11. मातृभूमि किसकी सगुण मूर्ति है ?, , उत्तर : मातृभूमि निर्गुण और निराकार ईश्वर की सगुण मूर्ति है।, 12. कवितांश की आस्वादन-टिप्पणी लिखें।, , उत्तरः राष्ट्रववि मैथिलीशरण गुप्त द्विवेदी युग के प्रसिद्ध कवि हैं । प्रस्तुत कविताँश उनकी, 'मातृभूमि' शीर्षक कविता से लिया गया है। इस कविता में कवि ने देश की गरिमा का वर्णन किया, है और साथ ही मातृभूमि के प्रति कवि के आत्मसमर्पण की भावना भी मुखरित है।, , जननी और जन्मभूमि का महत्व स्वर्ग से भी बढ़कर होता है। कवि मातृभूमि का गुणगान, करते हैं। मातृभूमि के हरित- तट पर नीलाकाश रूपी वस्त्र सुन्दर लग रहा है। सूरज और चाँद, इसके मुकुट के रूप में शोभित हैं। समुद्र इसकी करधनी है। नदियाँ मातृभूमि के प्रेम और, वात्सल्य का प्रवाह है। फूल और तारे इसके आभूषण हैं। पक्षियों का समूह मातृभूमि का गुणगान, करता है। हमारी मातृभूमि शेषनाग के फन रूपी सिंहासन पर विराजमान है | बादल पानी, बरसाकर इसका अभिषेक करते हैं। कवि मातृभूमि के इस सुंदर रूप पर आत्मसमर्पण करते हैं।, कवि कहते हैं कि हमारी मातृभूमि सचमुच निर्गुण और निराकार ईश्वर की सगुण-साकार मूर्ती है।, , , , , , यहाँ कवि ने मातृभूमि के मनोमुग्धकारी रूप- सौंदर्य का सुन्दर वर्णन किया है। मातृभूमि, हमारी जननी है और उसमें परमात्मा का प्रेम- भाव समा गया है।
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६७४ ५४ ४॥25 0110, , सूचना : कविताँश पढ़ें और उत्तर लिखें।, जिसकी रज में लोट-लोट कर बड़े हुए हैं,, , घुटनों के बल सरक-सरक कर खड़े हुए हैं।, परमहंस-सम बाल्यकाल में सब सुख पाए,, जिसके कारण “धूल भरे हीरे” कहलाए।, हम खेले कूदे हर्षयुत जिसकी प्यारी गोद में,, है मातृभूमि! तुझको निरख मग्न क्यों न हों मोद में?, 1. हम कहाँ बड़े हुए हैं ?, उत्तर : मातृभूमि की रज में / मातृभूमि की मिट्टी में, 2. हम कैसे बड़े हुए हैं ?, उत्तर : हम मातृभूमि की मिट्टी में लोट- लोट कर बड़े हुए हैं।, 3. हम कैसे खड़े हुए हैं ?, उत्तर: हम घुटनों के बल पर सरक - सरक कर खड़े हुए हैं।, , 4. कवि ने बचपन में क्या पाया ?, , , , उत्तर : परमहंस के सामान कवि ने बचपन में सब सुख और आनंद पाये।, 5. मातृभूमि के कारण कवि क्या कहलाए गये ?, , उत्तर : 'धूल भरे हीरे' कहलाये गये।, , 6. हम कहाँ खेले और कूदे हैं ?, , उत्तर : मातृभूमि की प्यारी गोद में।, , 7. मातृभूमि को देखकर कवि को कया अनुभव होता है ?, , , , उत्तर : मातृभूमि को देखकर कवि को सुख और आनंद का अनुभव होता है। उनका मन आनंद में, डूब जाता है।
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६७४ ५४ ४॥25 0110, , 8. मातृभूमि के साथ कवि का बचपन कैसे जुड़ा है ?, , उत्तर: मातृभूमि की मिट्टी से कवि का बचपन गहरा जुड़ा है। कवि मातृभूमि की मिट्टी में लोटलोट कर बड़े हुए हैं। घुटनों के बल पर सरक - सरक कर खड़ा होना सीखा है। परमहंस के, सामान कवि ने बचपन में सब सुख और आनंद पाये और 'धूल भरे हीरे' कहलाये गये।, , , , , , 9. ' जिसके कारण धूल भरे हीरे कहलाए' - इसका मतलब क्या है ?, , उत्तर: इसका मतलब यह है कि मातृभूमि की धूल में पलने से ही कवि का जीवन हीरे के समान, चमक उठा है। वे 'धूल भरे हीरे' कहलाये गये, याने महान बन गये। इस मिट्टी में खेल-कूदकर वे, बड़े हुए और परमहंस के समान बचपन में ही समस्त सुख और आनंद पाये। इस महान देश की, मिट्टी में पैदा होना सौभाग्य की बात है।, , 10. कवितांश की आस्वादन टिप्पणी लिखें।, , , , उत्तरः राष्ट्रववि मैथिलीशरण गुप्त द्विवेदी युग के प्रसिद्ध कवि हैं । प्रस्तुत कविताँश उनकी, 'मातृभूमि' शीर्षक कविता से लिया गया है। इस कविता में कवि ने देश की गरिमा का वर्णन किया, है और साथ ही मातृभूमि के प्रति कवि के आत्मसमर्पण की भावना भी मुखरित है।, , जननी और जन्मभूमि का महत्व स्वर्ग से भी बढ़कर होता है। मातृभूमि की मिट्टी से कवि, का बचपन गहरा जुड़ा है। कवि कहते हैं कि मातृभूमि की मिट्टी में लोट- लोट कर वे बड़े हुए हैं।, घुटनों के बल पर सरक - सरक कर खड़ा होना सीखा है। परमहंस के सामान उन्होंने बचपन में, सब सुख और आनंद पाये और 'धूल भरे हीरे' कहलाये गये। मातृभूमि की प्यारी गोद में खुशी के, साथ खेलने-कूदने का सौभाग्य उन्हें मिला है ,जो गौरव की बात है। मातृभूमि को देखकर कवि, को सुख और आनंद का अनुभव होता है। उनका मन आनंद में डूब जाता है।, , इस कविता में देशप्रेम की भावना है। भारत की मिट्टी में पैदा होने से परमानंद प्राप्त होता है, और आत्मगौरव बढ़ जाता है।, , सूचना : कविताँश पढ़ें और उत्तर लिखें।, पाकर तुझसे सभी सुखों को हमने भोगा,, , तेरा प्रत्युपकार कभी क्या हमसे होगा?, तेरी ही यह देह, तुझी से बनी हुई है,, बस तेरे ही सुरस-सार से सनी हुई है।
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६७४ ५४ ४॥25 0110, , हा! अंत-समय तू ही इसे अचल देख अपनाएगी,, हे मातृभूमि! यह अंत में तुझमें ही मिल जाएगी॥, 1. मातृभूमि से हमने क्या पाया है ?, उत्तर: सभी सुख और आनंद को पाया है।, 2. कवि मातृभूमि के लिए क्या करना चाहता है ?, उत्तर: आत्मसमर्पण करके प्रत्युपकार करना चाहता है।, 3. हमारा शरीर किससे बना हुआ है ?, उत्तर: मातृभूमि की मिट्टी से।, 4. यह देह किससे सनी हुई है ?, उत्तर: यह देह मातृभूमि के मीठे सारतत्व (अमृत) से सनी हुई है।, , 5. मातृभूमि हमारा शरीर कब अपनायेगी ?, , , , उत्तर: जब हमारी मृत्यु होगी/ जब हमारा शरीर अचल हो जाएगा, 6. यह देह अंत में कहाँ मिल जाएगी ?, उत्तर :मातृभूमि में/ मिट्टी में, 7. ' यह देह अंत में तुझमें ही मिल जाएगी' - यहाँ कवि की कौनसी भावना व्यक्त हुई है ?, उत्तर : यहाँ कवि के आत्मसमर्पण की भावना व्यक्त हुई है।, 8. 'तेरा प्रत्युपकार कभी क्या हमसे होगा ?' कवि ऐसा क्यों कहते हैं ?, या, , कवि मातृभूमि का प्रत्युपकार कैसे करना चाहते हैं ?, , , , उत्तर : माँ का प्यार- दुलार अनुपम है। इसका प्रत्युपकार असंभव है। हमारा शरीर मातृभूमि की, मिट्टी से बना है। हम जो कुछ हैं, सब मातृभूमि की देन है। इसका अन्न और जल प्राप्त करके हम, बड़े हुए हैं। मातृभूमि से हमें सारा सुख और आनंद प्राप्त हुआ है। इसका प्रत्युपकार कर पाना, मुश्किल है। इसलिए कवि आत्मसमर्पण कर के प्रत्युपकार करना चाहते हैं।