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बच्चे काम पर जा रहे हैं की व्याख्या भावार्थ, , कोहरे से ढँकी सड़क पर बच्चे काम पर जा रहे हैं, सुबह सुबह, , बच्चे काम पर जा रहे हैं, , हमारे समय की सबसे भयानक पंक्ति है यह, भयानक है इसे विवरण की तरह लिखा जाना, लिखा जाना चाहिए इसे सवाल की तरह, , काम पर क्यों जा रहे हैं बच्चे ?, , भावार्थ - प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि राजेश जोशी जी के द्वारा, , रचित कविता बच्चे काम पर जा रहे हैं से उद्धृत हैं | इन, , पंक्तियों के माध्यम से कवि जोशी जी के द्वारा बाल-श्रम के, , ज्वलंत मुद्दे पर बल देने का प्रयास किया गया है | कवि कहते, , हैं कि सुबह-सुबह सड़कों पर कोहरे छाए हुए हैं और बच्चे, , अपनी दीनता का बोझ कंधों पर लेकर अपने-अपने घरों से, निकल पड़े हैं काम करने के लिए | अर्थात्, इन बच्चों का, बचपन ही छीन गया | खेलने-कूदने तथा पढ़ने-लिखने के, समय में बच्चे काम करने को मजबूर हैं | ताकि दो रोटी की, व्यवस्था करके पेट की आग बुझाया जा सके | आगे कवि, कहते हैं कि मासूम बच्चों का खेलना-कूदना, पढ़ना-लिखना, सब छूट गया * और वे काम पर जा रहे हैं..., ये हमारे लिए, सबसे शर्मनाक और भयानक बात है | बच्चे काम पर जा रहे, हैं... ये विवरण की तरह लिखना ही काफी नैं है | बल्कि, समाज की अन्यायपूर्ण व्यवस्था से ये प्रश्न पूछना चाहिए कि - आखिर बच्चे काम पर क्यूँ जा रहे हैं ? क्यूँ उनका मासूम, बचपन काम की भट्टी में झोंका जा रहा है ?
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(2)- क्या अंतरिक्ष में गिर गई हैं सारी गेंदें, , क्या दीमकों ने खा लिया है, , सारी रंग बिरंगी किताबों को, , क्या काले पहाड़ के निचे दब गए हैं सारे खिलौने, क्या किसी भूकंप में ढह गई हैं, , सारे मदरसों की इमारतें, , क्या सारे मैदान, सारे बगीचे और घरों के आँगन, , खत्म हो गए हैं एकाएक, , भावार्थ - प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि राजेश जोशी जी के द्वारा, , रचित कविता बच्चे काम पर जा रहे हैं से उद्धृत हैं।, नग॒छ 0 ८/ए४ी००, , , , ९ |
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कवि राजेश जोशी जी, मासूम बच्चों की दुर्दशा, पर बहुत दुखी * |, बच्चों को लेकर वे, अनेक प्रश्नों से भरे हुए, हैं | वे बच्चों के काम, करने पर आपत्ति, जताते हुए सवाल पूछ, रहे हैं कि -- क्या, बच्चों के खेलने वाली, गेंदों को अंतरिक्ष, निगल गया है ? क्या बच्चों के किताबों को दीमकों ने अपना, खुराक बना लिया है ? या फिर बच्चों के सारे खिलौने काले, पहाड़ के नीचे आकर दब गए * ? क्या ये बच्चे जिन मदरसों, या विद्यालयों में बैठकर शिक्षा ॥सिल किया करते थे, उन, मदरसों की इमारतें धवस्त हो गई हैं ? या फिर वे सारे मैदान,, बगीचे और घरों के आँगन खत्म हो गए हैं, जहाँ बच्चे खेला व, टहला करते थे | कवि राजेश जोशी जी के द्वारा उक्त पंक्तियों, और प्रश्नों में बेहद मार्मिक और बच्चों के प्रति स ।नुभूति के, भाव प्रस्फुटित हुए हैं | उन्हें बच्चों का काम पर जाना बिल्कुल, गैरकानूनी लग रहा है तथा वे बच्चों को उनके अधिकार, दिलाने का हर सम्भव प्रयास कर रहे हैं|, , , , राजेश जोशी
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(3)- तो फिर बचा ही क्या है इस दुनिया में ?, कितना भयानक होता अगर ऐसा होता, भयानक है लेकिन इससे भी ज़्यादा यह, , कि हैं सारी चींजे हस्बमामूल, , पर दुनिया की हज़ारों सड़कों से गुजरते हुए, बच्चे, बहुत छोटे छोटे बच्चे, , काम पर जा रहे हैं।, , भावार्थ - प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि राजेश जोशी जी के द्वारा, रचित कविता बच्चे काम पर जा रहे हैं से उद्धृत हैं | कवि, कहते * कि यदि बच्चों के खेलने-कूदने, पढ़ने-लिखने की, सारी चीजें सचमुच नष्ट हो गई हैं, तो फिर बचा ही क्या है इस, दुनिया में ? ये तो बहुत भयानक है | तत्पश्चात्, कवि कहते हैं, कि इससे भी भयानक तो तब हो जाती है, जब बच्चों के, खेलने-कूदने, पढ़ने-लिखने की सारी चीजें यथावत् रहती हैं,, फिर भी कुछ बच्चे इन चीजों से दरकिनार नजर आते हैं | ऐसे, बच्चों को देखकर कवि हताश और निराश 1 जाते हैं | कवि, सोचते हैं कि बच्चों के आनंद और पढ़ाई की सारी चीजें, मौजूद रहने पर भी उन दुनिया की हज़ारों सड़कों से गुज़रते, हुए अपने-अपने काम पर जाना पड़ रहा _ | वे काम पर न भी, जाना चाहें, तो उनकी विवशता उन्हें जबर्दस्ती ले जा रही है |