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पड |०, .. साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में उन्हें किस उपाधि से विभूषित किया गया?, , सेठ गोविंददास भारत के स्वतंत्रता सेनानी, सांसद तथा हिंदी के साहित्यकार थे। उन्हें साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में सन्, 1961 ई.में पट्मभूषण की उपाधि से सम्मानित किया गया। भारत की राजभाषा के रूप में वे हिंदी के प्रबल समर्थक थे।, सेठ गोविंददास हिंदी के कला मर्मज्ञ एवं विपुल मात्रा में साहित्य रचना करने वाले नाटककार ही नहीं थे अपितु, सार्वजनिक जीवन में अत्यंत स्वच्छ, नीति-व्यवहार में सुलझे हुए सेवाभावी राजनातिज्ञ थे।, , . 'सेठ गोविंददास हिंदी के प्रबल समर्थक थे ' स्पष्ट कीजिए।, , हिंदी भाषा की हित चिंता में तन-मन-घन से लीन सेठ गोविंददास हिंदी साहित्य सम्मेलन के अत्यंत सफल सभापति सिद्ध, हुए। हिंदी के प्रश्न पर सेठजी ने कांग्रेस की नीति से हटकर संसद में दृढ़ता से हिंदी का पक्ष लिया। वह हिंदी के प्रबल, पक्षधर और भारतीय संस्कृति के संवाहक थे। हिंदी को भारत की राष्ट्रभाषा का दर्जा दिलाने के लिए ये जीवनपर्य॑त, प्रयलशील रहे और कालांतर में आपके प्रयासों से हिंदी राष्ट्रभाषा बनी भी। निष्कर्ष रूप से कहा जा सकता है कि सेठ, गोविंददास साहित्य और स्वदेश दोनों के एकनिष्ठ सेवक थे तथा हिंदी के प्रबल समर्थक थे।, , . “व्यवहार ' एकांकी के आधार पर नर्मदाशंकर का चरित्र-चित्रण कीजिए।, , नर्मदाशंकर जमींदार रघुराजसिंह के स्टेट का मैनेजर है, जिसको आयु लगभग 65 वर्ष है। वह 40 वर्षों से रघुराजसिंह के, , स्टेट का मैनेजर हैं। जमींदार का हित सोचना ही उसका परम कर्तव्य है। नर्मदाशंकर के चरित्र की विशेषताएँ निम्नलिखित, , कै, , (अ) जमींदारी प्रथा का समर्थक- नर्मदाशंकर जमींदारी प्रथा का समर्थक है। वह जानता है कि इस प्रथा का अंत हो, जाने पर उसका महत्व खत्म हो जाएगा। इसलिए वह चाहता है कि जमींदार रघुराजसिंह व किसानों के बीच इंद्र, चलता रहे। तभी उसका महत्व बना रहेगा। इसीलिए वह रघुराजसिंह को किसानों के विरुद्ध भड़काने का प्रयास, करता है।, , (ब) जमींदार रघुराजसिंह का शुभचिंतक- नर्मदाशंकर जमोंदार रघुराजसिंह का शुभचिंतक है। वह रघुराजसिंह के, किसानों के हित में लिए गए फैसलों; कर्ज माफ करना, लगान कम करना, तथा बिना नजराना लिए जमीन देना का, विरोध करता है। जब रघुराजसिंह सभी किसानों को भोज पर परिवार सहित आमंत्रित करता है तो रघुराजसिंह की, , आर्थिक हानि की ओर इशारा करते हुए वह कहता है-“किसानों का भोज खर्च का नहीं, आमदनी का कारण, होता था,वह अब खर्च का कारण हो जाएगा।'', , (स) किसानों का विरोधी- नर्मदाशंकर किसानों का प्रबल विरोधी है। रघुराजसिंह किसानों के हित की जो बात, सोचता है उसका वह विरोघ करता है तथा उनके लिए ऐसे शब्दों का प्रयोग करता है जिससे रघुराजसिंह के हृदय, में उनके लिए दुर्भावना पैदा हो और किसानों के हितों के लिए रघुराजसिंह द्वारा किए गए कार्यों को अनुचित बताते, हुए कहता है-“चोर-चौर मौसेरे भाई , राजा साहब। ””, , (द) अहंकारी- नर्मदाशंकर एक अहंकारी व्यक्ति है। वह किसानों को हेय दृष्टि से देखता है। किसानों द्वारा भोज, बहिष्कार का निर्णय लेने पर वह रघुराजसिंह से कहता है--''इन दो कौड़ी के किसानों की यह मजाल! इनकी, यह हिम्मत! इनका यह साहस , इनकी यह हिमाकत! '', निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि नर्मदाशंकर एक अहंकारी, किसानों का विरोधो और जमींदारी प्रथा का, समर्थक है। उसके हृदय में दया, करुणा, सहानुभूति जैसी कोमल भावनाएँ नहीं हैं। उसमें वे सभी गुण विद्यमान हैं, जो शोषण करने वाले व्यक्तियों के सहयोगी में होने चाहिए।, , रघुराजसिंह किस प्रकार किसानों का सच्चा हित कर सकता है?, रघुराजसिंह को किसानों का सच्चा हित करने के लिए अपने पूर्वजों के द्वारा अपनाई जाने वाली शोषणपूर्ण कार्य पद्धति को, त्यागकर किसानों के हित के लिए कार्य करने होंगे और किसानों को यह विश्वास दिलाना होगा कि वह उनका शत्रु नहीं,, बल्कि शुभचिंतक है। किसानों के प्रति उसके पूर्वजों द्वारा किए गए अत्याचारों को उसे समाप्त करना होगा व किसानों के, विकास के लिए कार्य करने होंगे। उसे किसानों को यह विश्वास दिलाना होगा कि उसके द्वारा किए जाने वाले कार्य स्वयं, की स्वार्थ सिद्धि के लिए नहीं, अपितु किसानों के हित के लिए हैं। उसे जमींदारी की तौक को गले से उतारकर किसानों के, हित के लिए उनके जैसा बनकर रहना होगा व किसानों को समानता का अधिकार देना होगा और किसानों के हित में, निरंतर प्रथलशील रहना होगा, जिससे किसान उस पर विश्वास कर सकें।
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हे “व्यवहार ' एकांकी के आधार पर क्रांतिचंद्र के चरित्र की विशेषताएँ बताइए।, , उ०- क्रांतिचंद्र चूरामन किसान का पुत्र व एक शिक्षित नवयुवक है। वह जमींदारों द्वारा किसानों के शोषण से भली-भाँति, परिचित है। ग्रामीण किसानों का शोषण देखते रहना उसके लिए असहनीय है। इसलिए वह उन्हें मुक्त कराना चाहता है।, उसके चरित्र में निम्नलिखित विशेषताएँ हैं, (अ) साहसी व शिक्षित युवा- क्रांतिचंद्र 22-23 वर्ष का अत्यंत साहसी व शिक्षित युवक है। शिक्षित होने के कारण, बह अपना व गाँव का हित-अहित भली प्रकार जानता है और समझता है। वह शिक्षित होने के कारण जमींदारों, द्वारा किए जाने वाले अत्याचारों को रोकने का साहस करता है तथा ग्रामीण किसान उसके नेतृत्व को स्वीकार, करते हैं और उसकी बातों से सहमत हो जाते हैं।, , (ब) स्वतंत्रता का पोषक- क्रांतिचंद्र को किसी के अधीन रहना पसंद नहीं है इसलिए वह अपने नाम के साथ “प्रसाद!, व “दास' जैसे उपनाम भी नहीं लगाता है। यही कारण है जब उसका पिता उसे रेवाप्रसाद' कहकर पुकारता है तो, बह क्रोधित हो जाता है व अपने पिता से कहता है- “मेरा नाम रेवाप्रसाद नहीं है, पिताजी मैंने कई बार आपसे, 'कह दिया, मैं न किसी का प्रसाद हूँ, न किसी का दास।'” वह सभी किसानों को भी अज्ञान के अंधकार से, निकालकर प्रकाश में लाकर, उन्हें जमींदार के शोषण से मुक्त कराना चाहता है तभी वह कहता है- “अंधकार में, रहने वाले व्यक्ति को यदि प्रकाश में ले आया जाए तो प्रकाश में लाने वाला कोई भूल नहीं करता।'”, , (स) नेतृत्व की क्षमता- शिक्षित होने के कारण क्रांतिचंद्र में किसानों का नेतृत्व करने की क्षमता हैं। जो किसान, रघुराजसिंह को अपना हितेषी समझते थे, उन्हें वह समझाता है कि रघुराजसिंह उन्हें धोखा दे रहा है। वह सभी, किसानों को अपने तर्कों द्वारा भोज के बहिष्कार के लिए सहमत कर लेता है।, , (द) भूलोंसे सीखने वाला- क्रांतिचंद्र भूतकाल में की गई भूलों से सीख लेने वाला युवा है, उसका मानना है कि जो, लोग भूलों से सीख नहीं लेते, वे अंत में दुर्दशा को प्राप्त होते हैं। वह किसानों को समझाते हुए कहता है कि-“पर, भूल और उस पर भी भूल, भूलों की झड़ियों ने ही तो हमारी यह दशा कर दी है। भूल की बातों में भूल होना, सबसे बड़ी भूल है।'”, , (य) मानवतावादी- क्रांतिचंद्र मानवता का पोषक है। वह स्वार्थी न होकर परार्थी है। जमींदार द्वारा गरीब किसानों के, शोषण को वह सहन नहों कर पाता। स्पष्ट है कि वह मानवता और समानता में विश्वास रखने वाला है।, , (२) निर्भीक- क्रांतिचंद्र एक निर्भीक युवा है। वह सत्य को सत्य कहने में बिल्कुल नहीं डरता है। वह अपने पिता से, भी कहता है--“' पिताजी मैं डरता नहीं हूँ, भय से अधिक बुरी वस्तु मै संसार में और कोई नहीं मानता।'' वह, जमींदार को डाकू व लुटेरा तक कहता है तथा उसे भेजे जाने वाले पत्र में कठोर भाषा का प्रयोग करता है।, , (ल) बुद्धिमान- क्रांतिचंद्र एक बुद्धिमान युवक है। वह जमींदार के द्वारा किसानों के हित में किए जाने वाले कार्यो;, जैसे- कर्ज माफ करना, लगान कम देना, बिना नजराना लिए जमीन देना आदि को केवल उसकी स्वार्थसिद्धि का, कारण बताता है कि कैसे इन उपायों से जमींदार की आय में वृद्धि हुई है तथा जमींदार द्वारा दिए जाने वाले भोज के, बदले दिए जाने वाले व्यवहार से किसानों की आर्थिक क्षति से उन्हें अवगत कराता है।, इस प्रकार क्रांतिचंद्र साहसी, निर्भीक, शिक्षित, बुद्धिमान युवा है जो किसानों को जमींदार के अत्याचारों से मुक्त, कराना चाहता है तथा भोज का बहिष्कार कर जमींदार के विरुद्ध संघर्ष को शुरूआत करता है तथा जमींदार को, सही मार्ग पर ले आता है। देश को आज ऐसे ही युवकों को आवश्यकता है, जो शोषणमुक्त समाज को स्थापना के, लिए स्वयं को आगे ला सकें।