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भक्तिकाल ( पूर्व मध्यकाल ), विक्रमी संवत् 1400 से 1700 तक, , सामान्य परिचय-हिन्दी साहित्य के इतिहास में 'भक्ति-काल' को हिन्दी, साहित्य का 'स्वर्ण काल' भी कहा जाता है। इसका कारण यह है कि भक्ति-काल, में जो कालजयी अमर रचनाएं रची गईं वे हिन्दी भाषा और साहित्य की ऐसी, अनुपम निधि हैं जिनसे हिन्दी साहित्य को गौरव की अनुभूति होती रहेगी। महात्मा, कबीर की वाणी का संग्रह (बीजक), भक्त तुलसीदास द्वारा रचित 'रामचरित, मानस*, “कवितावली ', *गीतावली', *दोहावली' तथा 'विनयपत्रिका', भक्त सूरदास, द्वारा रचित 'सूरसागर' तथा अष्टछाप के कृष्णभक्तों द्वारा रचित भक्ति तथा, , नीतिपरक साहित्य, सूफी संत मलिक मुहम्मद मसला द्वारा रचित 'पदमावत' तथा, अन्य सूफी कवियों द्वारा रचित सूफी साहित्य एवं मीराबाई को “पदावली”' आदि, ग्रंथों से हिन्दी साहित्य की जो श्री-वृद्धि हुई, उससे मानवीय भावों की पुष्टि होती, है, तथा भक्ति रस की ऐसी अविच्छन्न धारा प्रवाहित होती है, जो सही आर्थों में, मानव को मानव बनाने में योगदान देती है। मानवीय भावों को समुचित रूप से, उद्बोधित करने तथा आनन्दित करने में भक्तिकालीन साहित्य निश्चित रूप से, अद्वितीय है। भक्तिकालीन कवियों, सन्तों तथा महात्माओं ने अपने साहित्य की, रचना प्रमुख रूप से तो लोक-कल्याण के लिए ही की, परन्तु गौण रूप से, भक्ति-साहित्य से लोगों का मनोरंजन भी किया जाता रहा। सत्य कहा जाए तो, मानना पड़ेगा कि हिन्दी साहित्य से भक्तिकालीन साहित्य को निकाल लेने पर ऐसा, कुछ शेष बचता ही नहीं जिस पर हिन्दी-भाषी लोग गर्व कर सकें। भक्तिकाल की, आरम्भ में दो धाराएं स्पष्ट रूप से हो गईं थीं जिन्हें निर्गुण भक्ति धारा तथा सगुण, भक्ति धारा के नाम से जाना जा सकता है। आगे चलकर इन दोनों धाराओं की भी, पुनः दो-दो शाखाएं हो गईं जो इस प्रकार जानी जा सकती हैं कि निर्गुण भक्ति, धारा में से 'ज्ञानाश्रयी” शाखा तथा प्रेमाश्रयी शाखा प्रस्फुटित हुईं तथा सगुण भक्ति, धारा में से 'राम भक्ति शाखा' तथा ' कृष्ण भक्ति शाखा! प्रस्फुटित हुईं।, भक्तिकालीन साहित्य का अध्ययन एवं मनन हिन्दी प्रेमियों के लिए आवश्यक ही, नहीं अपितु अनिवार्य भी है जिसकी चर्चा आगे के पृष्ठों में की जायेगी।, , 32 : हिन्दी साहित्य का इतिहास
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भक्तिकाल का उद्भव एवं विकास-हिन्दी साहित्य के इतिहास में, भक्तिकाल के उद्भव को लेकर दिद्वानों में पर्याप्त मतभेद रहा जिसे संक्षेप में, प्रस्तुत किया जाता है।, , रामचन्द्रे शुक्ल का नाम प्रमुख है। शुक्ल जी ने भक्ति के उद्भव को भारतवर्ष पर, इस्लामी आक्रमण को ही कारण मानते हुए लिखा है, दिस देश में मुसलमानों का राज्य हि, प्रतिष्ठित हो जाने पर हिन्दू जनता के हृदय में गौरव, उत्साह के लिए वह, अवकाश न रह गया-अपने पौरुष से हताश जाति के लिए भगवान की शक्ति और, करुणा की ओर ध्यान ले जाने के अतिरिक्त दूसरा मार्ग ही क्या था ?! इस प्रकार, आचार्य रामचन्द्र शुक्ल भक्ति-काल के उदय को हारी हुई हिन्दू जाति की मानसिक, मजबूरी मानते हैं) इसी से मिलता-जुलता मत बाबू गुलाब राय ने कस करते हुए, लिखा है,(यह एक मनोवैज्ञानिक तथ्य है कि हार को मनोवृत्ति में दो हो बातें होती, हैं-या तो मनुष्य उन बातों में प्रवृत्त हो जिनमें उसकी श्रेष्ठता अक्षुण्ण बनी रहे। एक, ओर की श्रेष्ठता दूससा ओर की गिरावट की क््षतिपूर्ति कर देती है। ऐसी, परिस्थितियों में दूसरी प्रवृत्ति यह होती है कि विजित, विजेताओं के हास-विलास, में शामिल होकर उनके सहवास में एक प्रकार की समता का अनुभव कर, अपने, खोये हुए स्वाभिमान को भूल जायें अथवा स्वतन्त्र रूप से हास-विलास की, मादकता में अपने पराजयजन्य दुःख को विलीन कर दें।' भारतीयों ने प्रथम प्रवृत्ति, को भक्ति-काल में तथा दूसरी प्रवृत्ति को .रीविकाल में अपन अपनाया। 2, हिन्दी साहित्य में भक्ति के उद्भव को पूर्ण रूप से समझने तथा कारण, , अन्वेषण करने वालों में डॉ हजारीप्रसाद् द्विवेदी का नाम सर्वोपरि है। उन्होंने अपनी, प्रसिद्ध पुस्तक ' कारण को करत जर्थत कर हु शुक्ल तथा बाबू गुलाब राय, द्वारा बताये कारणों को तकंपूर्वक खण्डित करते हुए स्पष्ट लिखा है कि यदि, , (इस्लाम का आक्रमण * का आक्रमण भारत पर न हुआ होता तब भी हिन्दी साहित्य का बारह आने, साहित्य वही होता जो इस्लाम के आक्रमण के बाद हुआ।' डॉ० हजारीप्रसाद द्विवेदी, ने भक्तिकाल को एक धार्मिक तथा सांस्कृतिक आन्दोलन सिद्ध करते हुए, बताया-है-कि जिस समय में हिन्दी के भक्ति साहित्य की रचना आरम्भ हुई उसको., प्रेरित करने वाले तत्वों में भारत की तत्कॉलीन धार्मिक एवं सांस्कृतिक परिस्थितियों, ही नहीं बल्कि भारतवर्ष कौ वह चिन्तन धारा भी सहायक हुई जो बैदिक त्था, पौराणिक काल से किसी न किसी रूप में चली आ रही की वर ० द्विवेदी ने भक्ति, आन्दोलन की पृष्ठभूमि को स्पष्ट करते हुए लिखा है, , को मानचित्र द्वारा समझने से ये तथ्य सामने आते हैं कि भारत के पूर्व में, धर्म के विकृत सम्प्रदायों अर्थात् महायान, हीनयान तथा वज़यान ओदि से तो बौद्ध, , ७+२३-६०वव......., , सिद्धों आदि के चमत्कारों तथा वामाचारों, विकृतियों- तथा पर, साधारण लोगों के मन में ऐसी भावना ज़ाग्रंत हो रही थी जिससे झा से, , 1, #/ 9७"7/ भक्तिमालि मानव के शुद्ध