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8., यह सबसे कठिन समय नहीं, 0846CH08, FRT, oublighed, नहीं, यह सबसे कठिन समय नहीं!, अभी भी दबा है चिड़िया की, चोंच में तिनका, और वह उड़ने की तैयारी में है!, अभी भी झरती हुई पत्ती, 2021-22
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46, वसंत भाग 3, थामने को बैठा है हाथ एक, अभी भी भीड़ है स्टेशन पर, अभी भी एक रेलगाड़ी जाती है।, गंतव्य तक, जहाँ कोई कर रहा होगा प्रतीक्षा, अभी भी कहता है कोई किसी को, जल्दी आ जाओ कि अब, सूरज डूबने का वक्त हो गया, अभी कहा जाता है, उस कथा का आखिरी हिस्सा, जो बूढ़ी नानी सुना रही सदियों, दुनिया के तमाम बच्चों को, अभी आती है एक बस, अंतरिक्ष के पार की, लाएगी बचे हुए लोगों की खबर!, नहीं, यह सबसे कठिन समय नहीं।, -जया जादवानी, प्रश्न- अभ्यास, पाठ से, कठिन समय नहीं है? " यह बताने के लिए कविता में कौन-कौन से, तर्क प्रस्तुत किए गए हैं? स्पष्ट कीजिए ।, 2. चिड़िया चोंच में तिनका दबाकर उड़ने की तैयारी में क्यों है? वह तिनकों, का क्या करती होगी? लिखिए।, 3. कविता में कई बार 'अभी भी' का प्रयोग करके बातें रखी गई हैं, अभी भी, का प्रयोग करते हुए तीन वाक्य बनाइए और देखिए उनमें लगातार, निरंतर,, बिना रुके चलनेवाले किसी कार्य का भाव निकल रहा है या नहीं?, 2021-22, t to beveuBlished
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पर कल्पना कीजिए कि वह बस कैसी होगी, वे बचे हुए लोग खतरों से।, यह सबसे कठिन समय नहीं, 47, 4. "नहीं" और "अभी भी" को एक साथ प्रयोग करके तीन वाक्य लिखिए, और देखिए 'नहीं 'अभी भी' के पीछे कौन -कौन से भाव छिपे हो, सकते हैं?, कविता से आगे, 1. घर के बड़े-बूढ़ों द्वारा बच्चों को सुनाई जानेवाली किसी ऐसी कथा की, जानकारी प्राप्त कीजिए जिसके आखिरी हिस्से में कठिन परिस्थितियों से, जीतने का संदेश हो।, 2. आप जब भी घर से स्कूल जाते हैं कोई आपकी प्रतीक्षा कर रहा होता है ।, सूरज डूबने का समय भी आपको खेल के मैदान से घर लौट चलने की, सूचना देता है कि घर में कोई आपकी प्रतीक्षा कर रहा है - प्रतीक्षा करनेवाले, व्यक्ति के विषय में आप क्या सोचते हैं? अपने विचार लिखिए।, CER, ublish, अनुमान और कल्पना, अंतरिक्ष के पार की दुनिया से क्या सचमुच कोई बस आती है जिससे खतरों, के बाद भी बचे हुए लोगों की खबर मिलती है? आपकी राय में यह झूठ, है या सच? यदि झूठ है तो कविता, लगाइए यदि सच लगता है तो किसी अंतरिक्ष संबंधी विज्ञान कथा के आधार, ऐसा क्यों लिखा गया? अनुमान, क्यों घिर गए होंगे? इस संदर्भ को लेकर कोई कथा बना सकें तो बनाइए।, 2021-22, not to
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केवल पढ़ने के लिए, पहाड़ से ऊँचा आदमी, तीन सौ साठ फीट लंबा और तीस फीट चौड़ा पहाड़ काटने के, लिए कितना वक्त लग सकता है? निश्चित ही टैक्नोलॉजी के इस, युग में इस सवाल का जवाब इस बात पर निर्भर करेगा कि आप, पहाड़ का सीना चीरने के लिए किस मशीन का इस्तेमाल कर रहे, हैं, लेकिन अगर यह पूछा, जाए कि इसी काम को, एक ही शख्स को अंजाम, देना हो तो कितना वक्त, repuBrst, लगेगा?, शॉयद, गा लेकिन, बिहार के गया ज़िले के, गेलौर गाँव में एक मज़दूर, परिवार में जन्मे एक शख्स, देनेवाला सवाल, इसका जवाब अपने बाजुओं, और अपनी मेहनत से दिया। पहाड़ को हिला देनेवाले उन दशरथ मॉझी, ने राजधानी दिल्ली में 2007 में अंतिम साँस ली। उनका जन्म 1934, में हुआ था।, वर्ष 1966 की किसी अलसुबह जब छेनी हथौड़ा लेकर दशरथ, माँझी अपने गाँव के पास स्थित पहाड़ के पास पहुँचे तो बहुत कम, लोगों को इस बात का पता था कि इस शख्स ने अपने दिल में क्या, ठान लिया है। मज़दूरी और कभी कभार इधर -उधर काम करनेवाले, 2021-22
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49, पहाड़ से ऊँचा आदमी, दशरथ माँझी ने जब पहाड़ पर छेनी हथौड़ा चलाना शुरू किया तो, आने-जाने वाले राहगीरों के लिए ही नहीं, गाँव के लोगों के लिए भी, वह एक हँसी के पात्र बन गए थे।, जीवन संगिनी फागुनी देवी का समय पर इलाज न करा पाने से उसे, खो चुके दशरथ माँझी को इससे कोई फर्क नहीं पड़ा। धुन के पक्के, दशरथ की अथक मेहनत बाईस साल बाद तब रंग लाई जब उस पहाड़, से एक रास्ता दूसरे गाँव तक निकल आया।, आखिर ऐसी क्या बात हुई कि दशरथ को पहाड़ चीरने की धुन, सवार हुई। दरअसल पहाड़ को जब तक चीरा नहीं गया था तब, तक दशरथ के गाँव से सबसे नज़दीकी वजीरगंज अस्पताल 90, किलोमीटर पड़ता था। दशरथ की पत्नी की तबीयत खराब होने पर, उसे वहाँ ले जाने के दौरान ही उसने दम तोड़ दिया था। उन्हें लगा, कि पहाड़ से कोई रास्ता होता तो मैं अपनी पत्नी को वक्त, अस्पताल ले जाता और उसका इलाज करा पाता।, सर्वेश्वरदयाल सक्सेना की एक कविता, : 'दुख तुम्हें क्या, तोड़ेगा तुम दुख को तोड़ दो। बस अपनी आँखें औरों के सपनों से, जोड़ दो।, जिंदगी का तीसवाँ वसंत पार कर चुके दशरथ माझी ने शायद, शेष गाँव के निवासियों के मन में दबी इस छोटी-सी हसरत को, अपनी जिंदगी का मिशन बना डाला। और अपनी पत्नी की असामयिक, मौत से उपजे प्रचंड दुख को एक नयी संकल्प शक्ति में तब्दील, कर दिया। पाँच-छह साल तक दशरथ अकेले ही मेहनत करते रहे ।, धीरे-धीरे और लोग भी जुड़ते चले गए। वहाँ एक दानपात्र भी रखा, गया था जिसमें लोग चंदा डाल देते थे। कई लोग अपने घर से, अनाज भी देते, आज की तारीख में आप कह सकते हैं कि गेलौर से वजीरगंज, जाने की अस्सी किलोमीटर की दूरी को 13 किलोमीटर ला देने, वाला यह रास्ता एक श्रमिक के प्यार की निशानी है| एक अंग्रेज़, पत्रकार ने लिखा : 'पूअरमैंस ताजमहल ।', कुछ साल पहले एक पत्रकार उनसे मिलने गया, तब एक फक्कड़, कबीरपंथी की तरह यायावरी कर रहे दशरथ माँझी ने उन्हें अपनी, 2021-22, Ohshed