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ः “क्यों भैया, बच्चों को धूप न लगती होगी?", , । का ध्यान इस तकलीफ़ की तरफ़ न गया था। बोला, ", की तड़पते होंगे। ऊपर छाया भी तो कोई नहीं।" |, यही फ़ैसला हुआ कि घोंसले के ऊपर कपडे की ., , ही गा] $ को छत बना देनी चाहिए। पानी की प्याली और थोडे _, , के, , हैः, , |, , ज़रूर तकलीफ़ हो रही होगी।, , दोनों बच्चे बड़े चाव से काम करने लगे। श्यामा माँ की आँख बचाकर मटके से चावल निकाल लाई।, दी का हि हु चुपके से ज़मीन पर गिरा दिया और उसे खूब साफ़ करके उसमें पानी भरा।, , क् गर्मी के का थे। बाबू जी ऑफ़िस गए हुए थे। अम्माँ दोनों बच्चों को कमरे में सुलाकर खुद सो गई थीं।, तेकरित बच्चों की आँखों में आज नींद कहाँ! अम्माँ जी को बहलाने के लिए दोनों दम रोके , आँखें बंद किए,, मौके का इंतजार कर रहे थे। ज्यों ही मालूम हुआ कि अम्माँ जी अच्छी तरह से सो गई, दोनों चुपके से उठे और, बहुत धीरे से हज की मद का खोलकर बाहर निकल आए। अंडों की हिफ़ाज़त की तैयारियाँ ३, होने लगीं। केशव कमरे से एक स्टूल उठा लाया, लेकिन जब उससे काम न चला तो नहाने /, की चौकी लाकर स्टूल के नीचे रखी और डरते-डरते स्टूल पर चढा|,, , केशव ने ज्यों ही कार्निस पर हाथ रखा, दोनों चिडियाँ उड़ गई। केशव ने देखा,, कार्निस पर थोड़े से तिनके बिछे हुए हैं और उन पर तीन अंडे पड़े हैं। जैसे घोंसले, उसने पेड़ों पर देखे थे, वैसा कोई घोंसला नहीं है। श्यामा ने नीचे से पूछा , “कितने, बच्चे हैं, मैया? ”, केशव- “तीन अंडे हैं, अभी बच्चे नहीं निकले।”, श्यामा- “ज़रा हमें दिखा दो, भैया, कितने बड़े हैं?", केशव- “दिखा दूँगा, पहले ज़रा चिथड़े ले आ, नीचे बिछा ला, बेचारे अंडे तिनकों पर पड़े हैं। 2.०, श्यामा दौड़कर पुरानी धोती फाडुकर एक ढुकड़ा लाई। केशव, ने झुककर कपड़ा ले लिया, उसकी कई तह करके उसने एक, , गद्दी बनाई और उसे तिनकों पर बिछाकर तीनों अंडे धीरे, से उस पर रख दिए।, श्यामा ने फिर कहा, “हमको भी दिखा दो, भैया।” ५, केशव- “दिखा दूँगा, पहले ज़रा वह टोकरी तो, , दे दो, ऊपर छाया कर दूँ।”, श्यामा ने टोकरी नीचे से थमा दी और बोली,, , भर तुम उतर आओ, मैं भी तो देखूँ। ", , , , 04/021202 20517
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व ताक महा 5 सर २ 78 10001 0 उतर पर परम इज नमी, , केशव ने टोकरी को एक टहनी से टिकाकर कहा, “जाओ, , दाना और पानी की प्याली ले आओ ४: हर जा, , आऊ तो तुम्हें दिखा दूँगा।, श्यामा प्याली और चावल ले आई। केशव ने टोकरी के नीचे दोनों चीजें रख दीं और आहिस्ता से उतर आया, , श्यामा ने गिड़गिड़ाकर कहा, " अब हमको भी चढ़ा दो, भैया।, केशव- “न भैया, कहीं तुम गिर-गिरा गई तो अम्माँ जी मेरी चटनी ही बना डालेंगी। अब अंडे बड़े आग, , से हैं। जब बच्चे निकलेंगे, तो उनको पालेंगे। ", दोनों चिड़ियाँ बार-बार कार्निस पर आती थीं और बगैर बैठे ही उड़ जाती थीं। केशव ने सोचा, “हम लोग, के डर से नहीं बैठतीं। " वह स्टूल उठाकर कमरे में रख आया, चौकी जहाँ की थी, वहाँ रख दी।, इतने में कोठरी का दरवाज़ा खुला और माँ ने धूप से आँखों को बचाते हुए कहा, “तुम दोनों बाहर कब, निकल आए? मैंने कहा था कि दोपहर को न निकलना। किसने किवाड् खोला?, केशव दिल में काँप रहा था कि कहीं श्यामा कह न दे। अंडे न दिखाए थे, इससे अब उसको श्यामा प्, विश्वास न था। श्यामा सिर्फ़ मुहब्बत के मारे चुप थी या इस कुसूर में हिस्सेदार, होने की वजह से, इसका फ़ैसला नहीं किया जा सकता। शायद दोनों ही बातें थीं। सोचिए और बताइए, माँ ने दोनों को डॉँट-डपटकर फिर कमरे में बंद कर दिया और आप शा अडों में से चिडियी के, धीरे-धीरे पंखा झलने लगीं। अब दोनों बच्चों को नींद आ गई थी। बह आ॥।, चार बजे एकाएक श्यामा की नींद खुली। किवाड खुले हुए थे। वह दौड़ी हुई कार्निस के पास आई और, ऊपर की तरफ़ ताकने लगी। टोकरी का पता न था। संयोग से उसकी नज़र नीचे गई और वह उलटे पाँव दौड़ती, हुई कमरे में जाकर ज़ोर-से बोली, “ भैया, अंडे तो नीचे पड़े हैं, बच्चे उड़ गए।”, केशव घबराकर उठा और दौड़ा हुआ बाहर आया तो क्या देखता है कि तीनों अंडे नीचे टूटे पड़े हैं और, उनसे कोई चूने की-सी चीज़ बाहर निकल आई है। पानी की प्याली भी एक तरफ़ टूटी पड़ी है।, उसके चेहरे का रंग उड़ गया। सहमी हुई आँखों से ज़मीन की तरफ़ देखने लगा।, श्यामा ने पूछा, “बच्चे कहाँ उड़ गए, भैया? ”, केशव ने करुण स्वर में कहा /“अंडे तो फूट गए।”, श्यामा- “और बच्चे कहाँ गए? ”, केशव-- “तुम्हारे सिर में। देखती नहीं है अंडों में से उजला-उजला पानी निकल आया है। वही तो दो-चार, दिनों में बच्चे बन जाते। ”, , माँ सोंटी हाथ में लिए हुए बाहर आई और पूछा, “तुम दोनों वहाँ धूप में क्या कर रहे हो?", श्यामा ने कहा, “अम्माँ जी, चिड़िया के अंडे टूटे पड़े हैं।", , , , , , , , बे 7