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करने का हृदय रखते हैं।, , मोहम्मद गौरी, तुमने ठीक सुना है। हम तुम्हें माफ़ कर सकते हैं लेकिन तुम्हें वच्, होगा कि आगे से आँख उठाकर भी हिंदुस्तान की तरफ़ नहीं देखोगे।, , - ख़ुदा की कसम सुलतान! मैं हिंदुस्तान को कभी हानि सोचिए और, , , , , , , , , , , , , , , , नहीं पहुँचाऊँगा। गोरी जाओ, हि डा (तभी दरबार में बैठे राजकवि चंदबरदाई सलाह देते हें।), . चंदबरदाई -- महाराज! मैं राजकवि के साथ-साथ आपका मित्र भी हूँ। मुझे लगता है कि गोरी, ह क्षमा नहीं बल्कि मृत्युदंड देना चाहिए!, , प्रथ्वीराज चौहान - चंदबरदाई! हम आपके सुझाव का सम्मान करते हैं लेकिन अपनी गलती सुधारने के, न लिए हर किसी को एक मौका तो मिलना ही चाहिए। अतः मैं गौरी को क्षमादान देता, पे (इस तरह क्षमादान पाकर मोहम्मद गौरी गजनी वापस लौट आता है लेकिन वह अब, अपनी हरकतों से बाज नहीं आता। वह दिल्ली के ख़ज़ाने को पाने के लिए षड़यत्र प, , षड्यंत्र रचता रहता है।), , (प्रथ्वीराज चौहान से ईर्ष्या करने वाले सिर्फ़ मोहम्मद गौरी जैसे विदेशी मुल्क के, सुलतान ही नहीं बल्कि हिंदुस्तान के राज्यों के सम्राट भी थे। कन्नौज के राजा जयचं, पृथ्वीराज की ख्याति देखकर उनसे ईर्ष्या करते और उनका अपमान करने का मोक, ह रहते थे।) ;, (यह कन्नौज के राजदरबार का दृश्य है जहाँ जयचंद सिंहासन पर विराजमान हैं।), _ हम चाहते हैं कि हम अपनी पुत्री संयोगिता के स्वयंवर का आयोजन करें। उस स्व, में पृथ्वीराज चौहान को छोड़कर हिंदुस्तान के सभी सम्राटों को निमंत्रण दिया जा
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(इधर कन्नौज के राजा जयचंद स्वयं, तैयारी में भी लगे हैं।) स्वयंवर के साथ पृथ्वीराज चौहान के अप्, , - मंत्री जी! पृथ्वीराज चौहान का, , , , , , एक पुतला बनवाकर स्वयंवर के द्वार पर खड़ा करा..., दीजिए ताकि सब पृथ्वीराज चौहान को हमारे दूवारपाल के रूप में देखें। ४, (आज कन्नौज के राजमहल में संयोगिता का स्वयंवर है। हिंदुस्तान के कई सम्राट, उपस्थित हैं। संयोगिता जयमाला लिए सभी सम्राटों को अस्वीकार कर आगे बढ़ती हैं, और पृथ्वीराज चौहान की प्रतिमा को देखकर रुक जाती हैं।), , संयोगिता - (मन-ही-मन) यह प्रतिमा तो मेरे प्रिय पृथ्वीराज चौहान की है जिन्हें मैं अपने वर के..., रूप में स्वीकार कर चुकी हूँ। ।, (यह सोचते हुए संयोगिता पृथ्वीराज चौहान की प्रतिमा को जयमाला पहनाती हैं। वहाँ, उपस्थित सभी सम्राट हैरानी से देखते हैं। तभी घोड़े की टापों की ध्वनि गूँजती है और, पृथ्वीराज घोड़े पर सवार वहाँ उपस्थित हो जाते हैं।), , पृथ्वीराज चोहान - जयचंद! संयोगिता ने मेरी प्रतिमा को जयमाला पहनाई। अतः ये मेरी पत्नी हुईं। इस, अधिकार से मैं इन्हें ले जा रहा हूँ। यदि किसी सम्राट में साहस है, तो मुझे रोक ले।, (यह कहते हुए घोड़े पर संयोगिता को सवार कर पृथ्वीराज चौहान चल पड़े, जो उनका, रास्ता रोकने के लिए आगे आया, उसे मुँह की खानी पडी।)
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सहायता कर सकता है। वह है गजनी, गौरी के साथ संधि कर पृथ्वीराज चौहान को नष्ट कर, प्रस्ताव गौरी तक पहुँचाइए। न, प्रस्ताव लेकर जयचंद का दूत मोहम्मद गौरी के पास जाता है।), सुलतान! कन्नौज के महाराज जयचंद आपकी ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाना चा, आप पृथ्वीराज चौहान पर आक्रमण करें। हमारी सेना आपके साथ है। सारी, आपकी होगी और दिल्ली का सिंहासन महाराज जयचंद का।, _ (प्रसन्न होकर) सम्राट जयचंद से कहना कि उनका प्रस्ताव हमें मंजूर है। वे, कूच की तैयारी करें। ४, (अत्यंत विशाल सेना के साथ जयचंद और गौरी मिलकर दिल्ली पर आक्रमण कर;, हैं। उनकी विशाल सेना ऐसे लग रही थी मानो वह दिल्ली को निगल जाएगी।), अज्तचर - (पृथ्वीराज से) महाराज! सूचना मिली है कि कन्नौज के राजा जयचंद से संधि कर गौ;, ने दिल्ली पर हमला बोल दिया है।, पृथ्वीराज चौहान - क्या! जयचंद ने गौरी से संधि कर ली! (आवेश में) हम बाहर के दुश्मन को तो एक, बार माफ़ कर सकते हैं लेकिन देशद्रोही को नहीं। जाओ, युदूध की तैयारी करो।.._, (४ (अब पृथ्वीराज तथा गौरी के बीच एक बार फिर घमासान युद्ध होता है। लेकिन इस, बार पृथ्वीराज चौहान को पराजय का सामना करना पड़ता है। मोहम्मद गौरी पृथ्वीराज, चौहान को बंदी बना लेता है।), , मोहम्मद गौरी - पृथ्वीराज चौहान! जिसके नाम से लोग काँपते हैं वह आज सोचिए, , हमारे सामने बंदी बना खड़ा है। हा555, मोहम्मद गौरी! हमने अपना वचन निभाया। अब तुम भी हमें दिल्ली का शासक, , अपना वचन पूरा करो।, मोहम्मद गौरी - जयचंद, तुम्हारी सहायता के बिना तो पृथ्वीराज चौहान को हराना असंभव था।, कं. | अवश्य इनाम दिया जाएगा। सैनिको! इस गद्दार जयचंद को बंदी बना लो।, _ (आश्चर्य से) गौरी! ये तुम क्या कह रहे हो! तुम्हें यह विजय मेरी वज़ह से ली, तुम इस तरह मुझे धोखा नहीं दे सकते। ।, , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , जयचंद न
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च्च्य्ण, , किए दिल्ली का सप्राट पृथ्वीराज चौहान! आज हमारे सामने जंजीरों में जब, खड़ा है। हा 555. पृथ्वीराज! मं तुम्हें माफ़ कर सकता हूँ यदि तुम मेरे गुलाम, - (आँखें तरेरकर) मैं पृथ्वीराज चौहान हूँ। गुलाम बनकर रहने से तो अच्छा है *, , को प्राप्त हो जाऊँ।!, , - (क्रोध से) तू बंदी बना खड़ा है फिर भी हमें आँखें दिखाता है। सैनिकों! जिन अ, यह हमें घूर रहा है उन आँखों को गरम सलाखों से फोड़ दो।, ( आज्ञानुसार गरम सलाखों से पृथ्वीराज की आँखें फोड़ दी जाती हैं।), मोहम्मद गोरी - हम इसे मृत्युदंड तो अवश्य देंगे लेकिन इतनी आसानी से नहीं। इसे बंदीगृह में डाल दो।, (इधर राजकवि चंदबरदाई अपने सम्राट की दुखभरी ख़बर सुनकर चिंतित होते हैं तथा, अपने मित्र की जीवन-रक्षा के लिए मोहम्मद गौरी के दरबार में जाते हैं।), चंदबरदाई - मोहम्मद गौरी! तुमने सम्राट पृथ्वीराज को बंदी बनाकर उनकी आँखें फोड़ दीं। क्या तुम, भूल गए कि इसी पृथ्वीराज ने तुम्हें माफ़ी की भीख दी थी भीख!, मोहम्मद गोरी - (क्रोधित होकर) तू पृथ्वीराज की तरफ़दारी करने आया है। सैनिकों! इसे भी बंदी, बनाकर इसके मित्र के साथ बंदीगृह में डाल दो।, (बंदीगृह में चंदबरदाई अपने मित्र की दुखद हालत देखकर बहुत दुखी होकर उनके गले, से लिपट जाते हैं।), _ मित्र! मैंने गौरी को क्षमादान देकर बहुत बड़ी गलती कौ। यदि अब भी मुझे एक अवसर हि, मिल जाए तो मैं मोहम्मद गौरी का वध कर दूँ।, (और जल्दी ही एक ऐसा अवसर पृथ्वीराज चौहान को मिल जाता है।) डक, (बंदीगृह के बाहर कुछ सिपाही बातें करते हुए) सुना है सुलतान तीरंदाज़ी के खेः का, आयोजन कर रहे हैं जिसमें अनेक धनुर्धारी हिस्सा लेंगे।