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कजज्स््रुरल्ल्ज्क््क्फ्र्रलफसत, , के सामने अपनी शान बघार, , , , ल्जज्ल्ज़्ल्ल्ल्ल्, , मनोभावों बच्चों, कर रहने वाले दादा के मनोभावों का सुंदर चित्रण किया गया है।, , , , प्रस्तुत पाठ में बच्चों के साथ घुल-मिल, को उनके सामने अपनी हार स्वीकार नहीं है। माध्यम से बच्चे इस पाठ को रोचक एवं प्रभावशाली ढंग से, , कक्षा में स्मार्ट बोर्ड पर कॉरडोवा स्मार्ट क्लास सॉफ्टवेयर का प्रयोग करें, जिसके, , #8७॥/63 9 0949 ५4१0 10५89 (० 06 #व# 0/#0/७॥7. 0949 ५10 0085(5 9, 8, , 46 ॥#6 क//0॥ /25500, 078 5.9 0290#6७/ ०8//०/०/ रण (#, 60#०080, ॥9५/8/9008७/(5 ॥1$ 0४/९०/0९/०/8 ॥॥0॥7. 4990 (67135 85507 ॥#7 907 ॥७/७:, 18002 लगन ठाख 25 30 001 06 8027 0027 0 049 0 ०770/202 77 1० *8(॥, #7]/853/6 #भाएश, जगतदादा मुहल्ले में 'दादा' के नाम से ही जाने जाते थे। किसी को कभी भी कोई ज़रूरत पड़ती तो, जगतदादा मदद के लिए हाज़िर। जगतदादा अच्छे नामी पहलवान ठहरे। होते भी क्यों न! पहलवान के पुत्र थे|, बचपन से अखाड़े में ही खेल-कूद कर बड़े हुए। रोज़ पहलवानी का अभ्यास करने के कारण उनका शरीर, मज़बूत एवं ताकतवर बन गया था। वे बच्चों से बहुत प्यार करते थे। हर रविवार को बच्चों की बैठक दादा ।, , उ, , साथ जमती थी।, , जब से “वर्ल्ड कप' क्रिकेट की बात चली, चारों ओर का माहौल ही जैसे क्रिकेट के रंग में रँग गया। ह्, गली-मुहल्ले में बच्चे टीम बनाकर खेलते नज़र आते।, “इस बार वर्ल्ड कप कौन जीतेगा? ”
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“अरे, अपना सचिन चल जाए तो समझो वर्ल्ड कप हमारा हो गया।", “हाय! अगर भारत जीत जाए तो मैं सवा रुपए का प्रसाद चढाऊँ।", , अब जब माहौल में ही क्रिकेट छा गया हो तो जगतदादा उससे कैसे दूर रहते! दादा को क्रिकेट का शौक, जगा। रही-सही कमी बच्चों ने पूरी कर दी।, , , , एक दिन रविवार को पूरे मुहल्ले की बच्चा पार्टी दादा के पास इकटठी हो गई। दादा बच्चों से क्रिकेट मैच, , के बारे में पूछ रहें थ। बच्च भी खुश होकर क्रिकेट के बारे में बता रहे थे। अचानक रोहित ने पूछा, “दादा, आपने कभी क्रिकेट खेला हे?”, , “हाँ दादा, आपको कभी क्रिकेट खेलते नहीं देखा।" नन््हें विशाल ने सोचते हुए कहा।, बच्चों के सामने यह कहना कि “नहीं आता” दादा का स्वाभिमान आडे आ गया। झट से बोले , “ अरे, जब, मैं तुम लागा क बराबर था ता खाली अपन मुहल्ले का ही नहीं, बल्कि पूरे शहर का चैंपियन था।”, , 30, , “सच्चो ? नन््ह विशाल न हेरानी से पूछा।, , “ओर क्या? जब में बल्ला पकड़ता था तो दूसरी टीम डर जाती थी।” गर्व से दादा ने कहा।, , “दादा! फिर तो आज मंच हो जाए। देखें, हम में से कौन आपको आउट कर पाता है।” रोहित ने कहा।, “आज तुम सब मुझे तंग करने के लिए आए हो क्या?” दादा ने सब बच्चों को देखते हुए कहा।, , “तंग कहाँ कर रहे हैं, दादा! हम तो केवल आपसे मैच खेलने के लिए कह रहे हैं।” भोला बनता हुआ नमन बोला।, “हाँ दादा, आज हम लोग आपके साथ क्रिकेट मैच खेलेंगे। ".., , “ल... लेकिन यह तो मेरे कसरत का टाइम हे। ” दादा ने बहाना बनाया। सोचिए और बताइए“ये सब कुछ नहीं दादा, आज कसरत बंद।” सब बच्चे एक साथ बोले। दादा बहाने क्यों बना रहे हैं?, “लेकिन...।” दादा ने कुछ कहना चाहा।, , , , , , “अब लेकिन-वेकिन कुछ नहीं। अब तो मैच होगा।” बच्चे दादा के चारों ओर कूदने लगे।, , “ठीक है, ठीक है। आज मैं तुम लोगों के छक्के छुड़ा दूँगा। फिर मत कहना कि हम तो छोटे हैं, आपने हरा, क्यों दिया!” बच्चों की जिद के आगे दादा के सारे बहाने फौके पड़ गए और अंत में वे बच्चों के साथ मैदान, में पहुँच ही गए। “ अब भी मौका है। सोच लो तुम लोग! एक बार मुझे बैट पकड़ा दोगे तो शाम तक बस गेंद ही, फेंकते रहोगे।” मुसकराने की कोशिश करते हुए दादा बोले।, , [१८७ के लए शा, , # पाठ को प्रभावशाली ढंग से तथा आनंद भाव से पढ़ाएँ। हैह. 1०3०1॥8 90911 21108591५8 ४3, श0 ५४ 8 एक 1, बच्चों को बातची ँ ॥७ 08110 19007 108 0७ ०1७ ||, &# बच्चों को बातचीत की शैली में पा कितना हैह.. 5150 12॥ ०1001 ॥ 001५९७31018| 391 पु, जाए, उसके मन ला 3५ ४ दा हि हे मु हे डा पा०४5७७॥ 8018 ०णाश्ष ० ०1७'91॥10, ७1॥॥1000 8४9) 8089..., * 'बचपना हमेशा विद्यमान रहता है।, , श्र #8. 10॥ जा।ताशा 300016)(20958 810 00879 0॥०५/५ 189, बच्चों को व्यायाम व नियम पालन के बारे में भी बताएँ। ;, नम 1:55
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हट पढ दादा, आप मेरी बॉलिंग को कम मत समझिएगा। गोली की तरह तेज़ आती है। एकदम:, , तरह! ” रोहित बोला।, , “ये शोएब अख्तर कौन है?” दादा ने पूछा।, | “क्या दादा! इतना भी नहीं पता? पाकिस्तान का खिलाड़ी शोएब अख्तर, दुनिया का सबसे, , है।” नमन ने बताया।, | “मैं तो तुम्हारी परीक्षा ले रहा था।” दादा हो-हो करके हँस दिए।, , || “चलिए... चलिए दादा, ये लीजिए बैट।” रोहित ने बैट दादा के हाथ में पकड़ा दिया।, , | “कहाँ जाऊँ? ” दादा ने पूछा।, “ओह हो! दादा, क्यों परेशान कर रहे हैं? वहाँ विकेट के पास जाइए न।” विशाल को खेलने की जल्दी, | “गेंद फेंको! मैं तैयार हूँ।” दादा बोले। म, “क्या फेंको! पहले बैट तो सीधा पकडिए।” नमन उनका बैट घुमाते हुए बोला। दादा मुसकराते हुए, ', , | फेंको। मैं तो तुम्हें चिढ़ा रहा था।”, , | पहले ओवर की पहली गेंद पर दादा बोल्ड हो गए। मैदान बच्चों की तालियों से गूँज उठा। भय, । “नहीं-नहीं, मैं ये नहीं मानता। ये... ये गेंद तो बाहर की तरफ़ जा रही थी, अचानक अंदर कैसे आ गई, तो बेईमानी है।” दादा झगड़ा करने लगे।
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१ “अरे दादा, ये तो “स्पिन बॉल' (फिरकी गेंद) थी। वह तो ऐसी ही आती है। इसमें कैसी बेईमानी?" रोहित, ने पूछा।, , “स्पिन-विन मैं नहीं जानता। हम लोग, , ऐसी बॉल नहीं खेलते थे। जितनी मरज़ी तेज़ फेंको, लेकिन ये, टेढ़ी-मेढ़ी बॉल हमारे, , ज़माने में नहीं खेली जाती थी ।” दादा अड़॒ गए।, बेचारे बच्चे। दादा का जमाना उन्होंने कहाँ देखा था,, , “एक मौका आपको दे रहे हैं। अब हम अपने “फ़ास्ट बॉलर' (तेज़ गेंदबाज़) रोहित को भेज रहे हैं। अब, कोई बेईमानी नहीं चलेगी।” विशाल बोला।, , “हाँ-हाँ, तेज़ गेंद फेंको, वो चलेगी! ”, , आँखें बंद कर लीं और अदाज़ से तेज्ञी से, , सो मान गए।, , दादा ने कहा। जैसे ही रोहित ने गेंद फेंकी, ठीक उसी समय दादा ने, बैट घुमा दिया 122, “आपने पहले ही बैट क्यों घुमा दिया? इतनी बढ़िया बॉल थी।” नमन, , मन ने दादा से पूछा।, “वो... वो तो मैं कसरत करने लगा था।”, , दादा ने बहाना बनाया।, “ये कसरत का समय नहीं है। दादा, आप ठीक से खेलिए न! ” रोहित ने नाराज़गी जताई।, “ अच्छा-अच्छा भाई ठीक से खेलूँगा। चलो, अगली गेंद फेंको।” दादा ने बच्चों से कहा।, , दादा इस बार पूरी तरह तैयार थे। रोहित दौड़कर आया। उसने गेंद फेंकी , लेकिन जब तक दादा गेंद, समझकर कुछ करते, वह बल्ले से टकराकर ' बाउंड्री ' की ओर चल दी।, , द्नविना - विशपदत, “चौका! ... चौका!” बच्चे खुशी से चिल्लाए और ताली बजाने लगे।, , फार्ठे 5 सेहत, “वाह! क्या स्टाइल है, दादा! बिना बैट घुमाए चौका।” विकेटकीपिंग करता नमन बोला।, “अपना तो यही स्टाइल है। ” घमंड से दादा मुसकराए।, , रोहित अपने रनअप पर मुड़ा। इस बार दादा और अधिक आत्मविश्वास के साथ बैट पकड़कर खड़े हो, गए। गेंद रोहित के हाथ से छूटी और पलक झपकते ही दादा के माथे पर जा लगी। सोचिए और बताइए डर के मारे बच्चों की हालत बुरी थी। दादा ने खुद को सँभाला। बच्चे उन्हें घेरकर अब दादा क्या करेंगे?, खड़े थे।, “अरे! परेशान क्यों हो? ऐसी चोटें तो हमने बहुत खाई हैं।” दादा ने फिर गप्प मारी।, “तो क्या अगले इतवार को फिर क्रिकेट का मैच रख लें, दादा? ” दादा का लाडुला नमन बोला।, , “न बाबा! मुझे तो मेरी पहलवानी मुबारक और तुम्हें तुम्हारा क्रिकेट!” दादा अपने कान पर हाथ, , लगाकर बोले। नमन ने जोड़ा, “जिसका काम उसी को साजे।” दादा के साथ सभी खिलखिलाकर हँस पड़े।, , -नीलम शक्रेश, , , , सीख : व्यायाम, नियम पालन, प्रसनचित्त रहना।, ॥०३। : &:(४०७७, ०9९,॥६ 101०5, ऐश