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भारतीय दंड संहिता, 1860, (1860 का अधिनियम सं. 45), , , , , , विषय- सूची, धारा विषय, अध्याय- 1 प्रारंभिक, अध्याय 1, प्रस्तावना, , 5 संहिता का नाम और उसके प्रवर्तन का विस्तार, 2: भारत के भीतर किए गए अपराधों का दंड, 3. भारत से परे किए गए किन्तु उसके भीतर विधि के अनुसार विचारणीय अपराधों का दंड, 4. राज्य क्षेत्रातीय अपराधों पर संहिता का विस्तार, 5. कुछ विधियों पर इस अधिनियम द्वारा प्रभाव न डाला जाना, , अध्याय 2, , साधारण स्पष्टीकरण, , 6. संहिता में की परिभाषाओं का अपवादों के अध्यधीन समझा जाना, मर एक बार स्पष्टीकृत पद का भाव, 8. लिंग, 9. वचन, 10. “पुरुष” “स्त्री”, 11. “व्यक्ति, 12. “लोक”, 13. “क्वीन”, 14. “सरकार का सेवक”, 15. “ब्रिटिश इंडिया”, 16. “भारत सरकार”, व. “सरकार”, 18. “भारत”, 19. “न्यायाधीश”, 20. “न्यायालय”, 21. “लोकसेवक”, 22. “जंगम संपत्ति”, , 7298९ 101 161
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23., 24., 25., 26., 27., 28., 29., 29(क), 30., 31., 32., 33., 34., 35., 36., 37., 38., 39., 40., 41., 42., 43., 44,, 45., 46., व., 48., 49., 50., 54., 52., , 52(क), , "सदोष अभिलाभ”, , “बेईमानी से”, , “कपटपूर्वक”, , “विश्वास करने का कारण”, , “पत्नी, लिपिक या सेवक के कब्जे में संपत्ति”, , “कूटकरण”, , “दस्तावेज”, , इलेक्ट्रानिक अभिलेख, , “मूल्यवान प्रतिभूति", , नविल्ल", , कार्यो का निर्देश करने वाले शब्दों के अंतर्गत अवैध लोप आता है, , “कार्य”, “लोप”, , सामान्य आशय को अग्रसर करने में कई व्यक्तियों द्वारा किए गए कार्य, जबकि ऐसा कार्य इस कारण आपराधिक है कि वह आपराधिक ज्ञान या आशय से किया गया है, अंशत: कार्य द्वारा या अंशत: ल्रोप द्वारा कारित परिणाम, , , , , , किसी अपराध को गठित करने वाले कई कार्यो में से किसी एक को करके सहयोग करना, आपराधिक कार्य में संपृक्त व्यक्ति विभिन्न अपराधों के दोषी हो सकेंगे, “स्वेच्छया”, , “अपराध”, , “विशेष विधि”, , “स्थानीय विधि”, , “अवैध”, “करने के लिए वैध रुप से आबदूध”, , क्षति”, , “जीवन”, , मृत्यु", , “जीवजन्तु”, , “जलयान”, , “वर्ष मास”, , “धारा”, , “शपथ”, , “सदभावपूर्वक”, , “संश्रय”, , 7298९ 20161
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53., 53(क), , 54., 55., , 55(क), , 56., 57., 58., 59., 60., , 61., 62., 63., 64., 65., , 66., 67., 68., 69., 70., , 71., हा, , 73., 74., , अध्याय ३, दण्डों के विषय में, ब्द्ण्ड”, , निर्वासन के प्रति निर्देश का अर्थ त्रगाना, , मृत्यु दण्डादेश का लघुकरण, आजीवन कारावास के दंडादेश का लघुकरण, , “समुचित सरकार” की परिभाषा, , [निरस्त..., दंडाविधियों की भिन्ने, (***लुप्त), , , , (### लुप्त) त्त' ), , , , दंडादिष्ट करावास के कतिपय मामलों में संपूर्ण कारावास या उसका कोई भाग कठिन या सादा हो, सकेगा, , [***निरस्त की गई], , [***निरस्त की गई], , जुर्माने की रकम, , जुर्माना न देने पर कारावास का दण्डादेश, , , , जबकि कारावास और जुर्माना दोनों आदिष्ट किये जा सकते हैं, तब जुर्माना न देने पर कारावास की, अवधि, जुर्माना न देने पर किस भांति का कारावास दिया जाय, , , , , , जुर्माना न देने पर कारावास,जबकि अपराध केवल जुर्माने से दण्डनीय हो, जुर्माना देने पर कारावास का पर्यवसान हो जाना, जुर्माने के आनुपातिक भाग के दिये जाने की दशा में कारावास का पर्यवसान, , , , जुर्माने का छह वर्ष के भीतर या कारावास के दौरान में उदग्रहणीय होना- सम्पत्ति को दायित्व से, मृत्यु उन्मुक्त नहीं करती, , कई अपराधों से मिल्रकर बने अपराध के लिये दण्ड की अवधि, , कई अपराधों में से एक के दोषी व्यक्ति के लिये दण्ड जबकि निर्णय में यह कथित है कि यह, सन्देह है कि वह किस अपराध का दोषी है, , एकान्त परिरोध, , एकान्त परिरोध की अवधि, , 7298९ 3 01161
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75., , 76., , 7, 78., 79., , 80., 81., , 82., 83., 84., 85., , 86., , 87., , 88., , 89., , 90., 91., 92., 93., 94., 95., , पूर्व दोषसिद्धि के पश्चात् अध्याय 12 या अध्याय 17 के अधीन कतिपय अपराधों के लिये वर्धित, दण्ड, , अध्याय 4, , साधारण अपवाद, विधि द्वारा आबद्ध या तथ्य की भूत्र के कारण अपने आपको विधि द्वारा आबदूध होने का, , विश्वास करने वाले व्यक्ति द्वारा किया गया कार्य, , न्यायिकत: कार्य करने हेतु न्यायाधीश का कार्य, , न्यायालय के निर्णय या आदेश के अनुसरण में किया गया कार्य, , विधि द्वारा न्यायानुमत या तथ्य की भूल से अपने को विधि द्वारा न्यायानुमत होने का विश्वास, करने वाले व्यक्ति द्वारा किया गया कार्य, , विधिपूर्ण कार्य करने में दुर्घटना, , कार्य, जिससे अपहानि कारित होना सम्भाव्य है, किन्तु जो आपराधिक आशय के बिना और अन्य, , अपहानि के निवारण के लिये किया गया है, , सात वर्ष से कम आयु के शिशु का कार्य, , सात वर्ष से ऊपर किन्तु बारह वर्ष से कम आयु के अपरिपक्व समझ के शिशु का कार्य, , विकृत्त चित्त व्यक्ति का कार्य, , ऐसे व्यक्ति का कार्य जो अपनी इच्छा के विरुद्ध मत्तता में होने के कारण निर्णय पर पहुंचने में, असमर्थ है, , , , किसी व्यक्ति द्वारा, जो मत्तता में है, किया गया अपराध जिसमें विशेष आशय या ज्ञान का होना, अपेक्षित है, , सम्मति से किया गया कार्य जिसमें मृत्यु या घोर उपहति कारित करने का आशय न हो और न, उसकी सम्भाव्यता का ज्ञान हो, , किसी व्यक्ति के फायदे के लिये सम्मति से सद्भावनापूर्वक किया गया कार्य जिससे मृत्यु कारित, करने का आशय नहीं है, , संरक्षक द्वारा या उसकी सम्मति से शिशु या उन्मत्त व्यक्ति के फायदे के लिये सदभाव-पूर्वक, किया गया कार्य, , सम्मति, जिसके सम्बन्ध में यह जात हो कि वह भय या भ्रम के अधीन दी गई है, ऐसे कार्यों का अपवर्जन जो कारित अपहानि के बिना भी स्वत: अपराध है, , सम्मति के बिना किसी व्यक्ति के फायदे के लिये सदूभावनापूर्वक किया गया कार्य, सदभावपूर्वक दी गई संसूचना, , वह कार्य जिसको करने के लिये कोई व्यक्ति धमकियों द्वारा विवश किया गया है, तुच्छ अपहानि कारित करने वाल्ला कार्य, , , , , , , , 7298९ 40161
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96., 97., 98., 99., 100., 101., 102., 103., 104., 105., 106., , 107., 108., 108क., , 109., , 110., 111., 112., 113., , 114., 115., 116., 117., 118., 119., , 120., , प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार के विषय में, प्राइवेट प्रतिरक्षा में की गई बातें, शरीर तथा सम्पत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार, ऐसे व्यक्ति के कार्य के विरुद्ध प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार जो विकृतचित्त आदि हो, कार्य, जिनके विरुद्ध प्राइवेट प्रतिरक्षा का कोई अधिकार नहीं है, शरीर की प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का विस्तार मृत्युकारित करने पर कब होता है, कब ऐसे अधिकार का विस्तार मृत्यु से भिन्न कोई अपहानि कारित करने तक होता है, शरीर की प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का प्रारम्भ और बना रहना, कब सम्पत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का विस्तार मृत्युकारित करने तक का होता है, ऐसे अधिकार का विस्तार मृत्यु से भिन्न कोई अपहानि कारित करने तक का कब होता है, सम्पत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का प्रारम्भ और बना रहना, , घातक हमले के विरुद्ध प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार जबकि निर्दोष व्यक्ति को अपहानि होने की, जोखिम है, , , , , , , , अध्याय 5, दुष्प्रेरण के विषय में, , किसी बात का दुष्प्रेरण, दुष्प्रेरक, भारत से बाहर के अपराधों का भारत में दुष्प्रेरण, दुष्प्रेरण का दंड, यदि दुष्प्रेरित कार्य उसके परिणामस्वरुप किया जाए, और जहां कि उस दंड के, लिए अभिव्यक्त उंपबंध नहीं है, दुष्प्रेरण का दंड, यदि दुष्प्रेरित व्यक्ति दुष्प्रेरक के आशय से भिन्न आशय से कार्य करता है, दुष्प्रेक का दायित्व जब एक कार्य का दुष्प्रेरण किया गया है और उससे भिन्न कार्य किया गया है, दुष्प्रेरक कब दुष्प्रेरित कार्य के लिए और किए गए कार्य के लिए आकल्ित दंड से दंडनीय है, दुष्प्रेरित कार्य से कारित उस प्रभाव के लिए दुष्प्रेरक का दायित्व जो दुष्प्रेरक दवारा आशयित से, भिन्न हो, अपराध किए जाते समय दुष्प्रेरक की उपस्थिति, मृत्यु या आजीवन कारावास से दंडनीय अपराध का दुष्प्रेरण यदि अपराध नहीं किया जाता, कारावास से दंडनीय अपराध का दुष्प्रेरण, यदि अपराध न किया जाए, लोक साधारण द्वारा या दस से अधिक व्यक्तियों द्वारा अपराध किए जाने का दुष्प्रेरण, मृत्यु या आजीवन कारावास से दंडनीय अपराध करने की परिकल्पना को छिपाना, , , , , , , , किसी ऐसे अपराध के किए जाने की परिकल्पना का लोक-सेवक द्वारा छिपाया जाना, जिसका, निवारण करना उसका कर्तव्य है, कारावास से दंडनीय अपराध करने की परिकल्पना को छिपाना, , , , 298९ 5 01161