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कुओं तथा गहराई में स्थित झीलों व जल-कुण्डॉं से, (Doon), रहट (Persian wheel), पवन चक्की (Wind, नलकूपों से पानी निकालने के लिये पम्पों का प्रयोग किया, [6] - इकाई - 1 - पॉलिटैक्निकसिंचाई इंजीनियरिंग, |, |, (०) जलाशय सिंचाई (Reservoir or Storage, irrigation), वर्णन निम्नलिखित हैं-, पानी ऊपर उठाने की अनेक विधियों पुराने समय से अपनाई, की रही हैं, जैसे ढेंकली (Dhenkli), चरस (Charas), दून, (a) बारहमासी सिंचाई: इस प्रकार की सिंचाई के, लिये नहरों में पूरे वर्ष पानी उपलब्ध रहता है। यह नहरें उन, नदियों से निकाली जाती हैं जिनसे वर्ष भर पानी प्राप्त होता, है। हिमालय पर्वत की श्रृंखलाओं से निकलने वाली नदियों में, वर्ष भर पानी रहता है। नदी के आर-पार ऊँची दीवार, जिसे, वीयर (Weir) अथवा बैराज (Barrage) कहते हैं, का, निर्माण करके पानी की धारा को नहर की ओर मोड़ दिया, जाता है, जिसमें बहता हुआ यह खेतों में पहुँच जाता है। नहर, की तली को उपयुक्त ढाल दी जाती है।, (b) मौसमी सिंचाई: बरसाती नदियों में, वर्ष ऋतु के, mill) इत्यादि, परन्तु इन ठेपायों से केवल सीमित क्षेत्र में ह, सिंचाई सम्भव होती है। बड़े पैमाने पर लिफ्ट सिंचाई करने ें, लिये, अब यान्त्रिक विधि अपनायी जाती है। गहरे कूआं तथा, जाता है। लिफ्ट सिंचाई पर प्रवाह सिंचाई की तुलना में, पश्चात् पानी की मात्रा बहुत की कम हो जाती है अथवा, बिल्कुल सूख जाती है, जिसके फलस्वरूप इनसे निकाली, गयी नहरों में केवल वर्षा काल में ही सिंचाई के लिये पानी, उपलब्ध रहता है। यह पानी केवल एक फसल के लिये ही, पर्याप्त हो पाता है। ऐसी नहरों को मौसमी नहरें (Seasonal, Canals) कहते हैं। मध्य तथा दक्षिण भारत की नोंदिया सिंचाई अन्य सिंचाइयों से उत्तम, परन्तु अधिक खर्चीली है।, बरसाती नदियाँ हैं, जिनमें वर्षा होने पर ही पानी दिखाई देता, है।, अधिक व्यय आता है।, (in छिड़काव या प्रोक्षित सिंचाई: यह एक प्रकार, की कृत्रिम वर्षा है, जिसमें पानी कुछ ऊँचाई से सीधा पौधों, पर बुंदों की भाँति गिराया जाता है। इस प्रकार की सिंचाई के, लिये खेतों में पाइप बिछाये जाते हैं, जिनके ऊपर नोजलें लगी, रहती हैं। पाइपों में दाब पर पानी भेजा है, जो उपरोक्त नोजलों, से निकलकर बौछार के रूप में फसलों पर पडता है।, इस विधि से पौधों को वांछित मात्रा में पानी मिलता है, और भूमि जल ग्रसन का शिकार नहीं होने पाती है। प्रोक्षित, प्रश्न 2. सिंचाई की आवश्यकता क्यों पडती है? वर्णन, कीजिए।, उत्तर-सिंचाई की आवश्यकता (Necessity of, Irrigation): फसलों को बीजों के अंकुरण से लेकर पौधों, की उत्पत्ति, बढ़ोत्तरी तथा पकने तक निश्चित अन्तराल पर, उचित मात्रा में पानी की आवश्यकता पड़ती है। यदि फसलों, को सुनिश्चित ढंग से पानी नहीं मिल पाता है, तो खेती सूख, जाती है।, (1998, 2000, 14), (c) जलाशय सिंचाई: इस सिंचाई के अन्तर्गत प्राकृतिक, झीलों से, जो ऊँचाई पर स्थित है तथा जिसमें वर्ष भर पानी, उपलब्ध रहता है, पानी लिया जाता है अथवा नदी के, आर-पार बाँध (Dam) बनाकर, इसके प्रतिप्रवाह में एक, कृत्रिम झील बना ली जाती है, जिसमें बहकर आता हुआ वर्षा, का जल एकत्रित होता रहता है, जो सिंचाई के काम आता है।, प्राय: बाँध ऊँचाई पर बनाये जाते हैं और जलाशय से पानी, गुरुत्व प्रवाह से खेतों तक पहुँचाया जाता है।, जलाशयों से सिंचाई पूरे वर्ष की जा सकती है, क्योंकि, इनमें वर्षा ऋतु में पानी का पर्याप्त भण्डारण कर लिया जाता, है। बड़े जलाशयों से पानी, क्षेत्र में सूखा पड़ने पर भी, भारत वर्ष विभिन्न स्थलाकृति, जलवायु तथा वानस्पतिक, वाला एक विशाल देश है। इसकी कुल जनसंख्या का, दो-तिहाई भाग जीवन-यापन के लिए प्रत्यक्ष रूप से खेती-बाड़ी, पर निर्भर रहता है। देश में पर्याप्त कृषि योग्य भूमि उपलब्ध, उपलब्ध रहता है।, है, और पानी की भी कोई कमी नहीं है,, परन्तु प्राकृतिक, विषमताओं के कारण देश के एक भाग में सूखा पड़ता है तो, (i) उद्वाहन या लिफ्ट सिंचाई: जब जल-स्रोत खेतों दसरे भाग में बाढ़ आती है। अतः वर्षा पर पूर्णतया निर्भर, के सामान्य तल से नीचे स्थित होता है तो पानी गुरुत्व प्रवाह, से फसलों तक नहीं पहुँच सकता। ऐसी स्थिति में पानी को, हस्त विधि या यान्त्रिक विधि (पम्पों) से ऊपर उठाना पड़ता, है। इसको उद्वाहन सिंचाई (Lift Irigation) कहते हैं।, रहकर खेती-बाड़ी करना लाभप्रद नहीं है। वर्षा समय पर, तथा पर्याप्त मात्रा में होने की कोई गारन्टी नहीं है । वर्षा, मुख्यत: जून से सितम्बर तक चार महीनों में ही होती है तथा, वर्ष का शेष भाग सूखा रहता है।, Scanned by CamScanner
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.पॉलिटैक्निक, सिंचाई इंजीनियरिंग, [0] - इकाई -1-, |, (iv) नहरें जो नदियों, तालाबों, झीलों से निकाली जाती हैं।, नहरों से पानी बहता हुआ खेतों तक आता है।, अनक काम-धंधे के अवसर प्राप्त होते हैं, जिससे ग्रामीणों, की आर्थिक स्थिति सुदृढ होती है और लोगों की गाँव, छोड़कर शहरों की तरफ भागने की प्रवृत्ति कम हो जाती है।, (v) कुएं तथा नलकूपों से, जिनके द्वारा भौम जल ऊपा, खींच लिया जाता है।, (B) हानि: () जल ग्रस्तता: जिन क्षेत्रों में लम्बे समय, तक अधिक सिंचाई की जाती है, वहाँ पर लगातार रिसन के, कारण भौम जल स्तर भूमितल के समीप आ जाता है, जिससे, समुद्र का पानी अत्यधिक खारा होता है। यह इस रूप में, सिंचाई के काम नहीं आ सकता है।, पूरा क्षेत्र जलग्रस्त हो जाता है। जलग्रस्तता के कारण फसलों, पर बुरा प्रभाव पड़ता है।, (ii) जल-निकासी में बाधा: लापरवाही अथवा बिना, सोच-विचार के बनायी गयी सिंचाई नहरें उस क्षेत्र की, प्राकृतिक जल-निकासी में बाधा सिद्ध होती हैं, जिससे, निचले क्षेत्रों में पानी भर जाता है और भूमि दलदली हो जाती, है।, प्रश्न 5. भारत में सिंचाई का विकास कैसे हुआ है?, संक्षेप में लिखिए ।, उत्तर-भारत,, मिस्र और चीन में पुराने समय से ही लोगों को, फसलों की सिंचाई का ज्ञान था। भारतवासी प्राचीन काल से, ही फसलों की सिंचाई करते आ रहे हैं। भारतवासी सिंचाई, की महत्ता एवं सिंचाई के तरीकों को बहुत पुराने समय से, जानते थे। इसका प्रमाण यह है कि हमारे हजारों वर्ष प्राचीन, ग्रन्थों जैसे वेदों, महाभारत तथा रामायण आदि में भी सिंचाई, की महत्ता तथा तत्कालीन विधियों का उल्लेख मिलता है।, पुराने समय में तालाबों व नहरों का निर्माण शासकों का जनता, के प्रति महत्वपूर्ण कर्तव्य माना जाता था। शुरू में जब, जनसंख्या काफी कम थी, कृषि भी काफी सीमित थी और, किसान सिंचाई के लिये वर्षा. पर ही निर्भर करते थे । जैसे-जैसे, जनसंख्या बढ़ती गई कृषि पर दबाव बढ़ता गया जिसके, फलस्वरूप सिंचाई के कृत्रिम साधनों की खोज शुरू हुई,, क्योंकि भारतवर्ष में वर्षा का प्रारूप इस प्रकार का है कि यहाँ, पर बिना सिंचाई साधनों के अच्छी उपज प्राप्त करना सम्भव, नहीं है। पहले नदियों एवं झरनों के किनारों के आस-पास के, क्षेत्रों की सिंचाई, उनसे पानी को देशी तरीकों से उठाकर शुरू, की गयी।, (ii) मच्छरों की उत्पत्ति: सिंचाई जल का लापरवाही, से प्रयोग करने पर खेतों तथा गाँवों के आस - पास गड्ढ़ों में, पानी भर जाता है, जो मच्छरों के उत्पत्ति- र्रोत बन जाते हैं।, ये मच्छर मलेरिया फैलाने का कारण बनते हैं।, (iv) सीलन के कारण स्वास्थ्य पर कुप्रभावः अत्यधिक, सिंचाई से क्षेत्र की जलवायु नम व ठण्डी हो जाती है और, गाँवों में नमी रहने के कारण लोगों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल, प्रभाव पड़ता है।, (৮) महंगी प्रणालीः सिंचाई नहरों के निर्माण पर बहुत, अधिक लागत आती है, जिसका भार कृषकों पर ही पड़ता है।, और उन्हें अधिक कर देकर पूरा करना पड़ता, है।, प्रश्न 4. सिंचाई जल के स्त्रोत कौन-कौन से हैं? स्पष्ट, कीजिए।, उत्तर-इस पृथ्वी पर सभी पानी का स्रोत वर्षा है। जल, धाराओं, जल-, की तपन से वाष्प बनकर ऊँचाई पर पहुँचकर, बादलों का, रूप ले लेता है और अनुकूल वायुमण्डलीय प्रभाव पाकर वर्षा, और हिम के रूप में पुनः भूमि पर गिर पड़ता है। प्रकृति का, यह चक्र अनन्त काल से इस ग्रह पर चल रहा है। प्रकृति का, यह अलीय चक्र ही सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध कराता है।, अत: सिंचाई जल के स्रोत निम्न हैं-, (i) वर्षा जो सीधी खेतों पर पड़ती है ।, (ii) प्राकृतिक झीलें, जल कुण्ड, तालाब, पोखर इत्यादि।, इनसे पानी खींचकर निकाला जाता है।, (iii) नदी-नालों तथा इन पर बनाये गये जलाशयों से।, (2014), डेल्टा क्षेत्रों में बाढ़ के समय नदी का जल - स्तर भूमि -तल, से ऊँचा उठ जाता है। ऐसे स्थानों पर नदियों को काट कर, बाढ़ नहरें बनायी गयीं। इन नहरों पर कोई नियन्त्रण नहीं रहता, जिसके कारण कभी-कभी उल्टा नुकसान भी हो जाता, था। इन नहरों से सिंचाई केवल बाढ़ के समय ही की जा, सकती थी। जब इन नहरों में पानी आता था तो काफी क्षेत्र, सिंचित हो जाता था लेकिन पानी की उपलब्धि की कोई, निश्चितता नहीं थी। इन नहरों का निर्माण मुख्यत: मुगल, काल में हुआ। सिंचाई के क्षेत्र में विकास के फलस्वरूप अब, लगभग सभी बाढ़ नहरों को वारहमासी नहरों में बदल दिया, गया है।, -कुण्डों, झीलों, सागरों का पानी सूर्य की किरणों, था,, बाढ़ नहरों के उपरोक्त दोषों को दूर करने के लिये नहरों, के शीर्ष पर हेड रेगुलेटर लगाये गये, जिससे नहरों में आने, Scanned by CamScanner