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बेगम हज़रत महल, , इस पाठ में लेखक ने नवाब वाजिद अली शाह की बेगम हज़रत महल की वीरता व ते, , युदृध करने की घटना का वर्णन किया है। बेगम हज़रत महल ने अग्रैज़ों की ईंट से ईंट बा हे ।, कसम खाते हुए अपनी सेना का हौसला बुलंद किया और चिनहर के पास अग्रेज़ौं को जिक्र: ४, अग्रेज़ों ने उनसे साधि करनी चाही, प्रतु बेगम ने स्वीकार नहीं किया। कुछ गददारों के कारण, को युद्ध भूमि छोड़कर अपने पुत्र के साथ नेपाल भागना पड़ा। उन्होंने अपनी हिग्पतत और हा, , से अग्रेज़्ी-सरकार की जड़ें हिला दी थीं।, , सती, , , , देश के प्रति हमेशा वफ़ादारी करनी चाहिए। -मार्क टन, , भा 'रत-भूमि की पावन धरती पर ऐसी अनगिनत महिलाओं ने जन्म लिया, जिन्होंने अपनी जान, की बाज़ी लगाकर अपने राज्य की स्वाधीनता की रक्षा की। ऐसी वीरांगनाएँ केवल राजपुत, और मराठा स्त्रियाँ ही नहीं थीं, मुगल स्त्रियाँ भी थीं, जिन्होंने भारत-भूमि को अपना ही देश समझा, और अंग्रेज़ी शासन की जड़ें हिलाने के लिए युद्ध की आग में कूद पड़ीं। अंग्रेजों की कूटनीति,, ताकत और षड्यंत्रों के सामने जहाँ बड़े-बड़े राजा महाराजा नतमस्तक हो गए थे, वहीं अवध की, बेगम हज़रत महल ने उन्हें युदूध की चुनौती देकर यह जता दिया कि हिंदुस्तान की जनता उनकी, हुकूमत नहीं चाहती है।, अवध के नवाब वाजिद अली शाह भी अस्वस्थ होने के कारण अंग्रेज़ों का विरोध करने में स्वयं, को असमर्थ समझ रहे थे। 6 फरवरी , 1856 को अंग्रेज़ हुक्मरानों ने अवध राज्य को ब्रिटिश राज्य, में मिलाने का हुक्म जारी किया। नवाब वाज़िद अली शाह के समर्पण कर देने पर उन्हें अवध से, कलकत्ता भेज दिया गया।
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औजों नै लोहा लिए बिना ही नवाब वाजिद अली शाह का, महल को नहीं सुहाया। उन्होंने अंग्रेज़ी हुकूमत की ईट से ईंट, -सत्ता को वे यूँ ही अंग्रेज़ों के हाथों नहीं सौंपना थीं। उन्होंने, हा न चाहती थीं। उन्होंने अपने पुत्र बिरजिस, क्षो नवाब वाजिद अली शाह का वारिस और अवध का भावी शासक बनाने का निर्णय कादर, अवध की जनता के प्रति मातृत्व का भाव रखने वाली बेगम हज़रत महल अद्वितीय | ग, ध्व संपन्न मुगल स्त्री थीं। उनके बचपन का नाम ' मुहम्मदी खानम! श्र । उनका जम बार, आ था। उनके अप्रतिम रूप-सौंदर्य को देखते हुए उन्हें 'महल परी' कहा गया। अवध के नवाब बे, वाज़िद अली शाह से निकाह होने के बाद वे 'बेगम हज़रत महल' कहलाई। बचपन से ही जिस धरती, पर वे खेलीं, बडी हुईं, अवध की बेगम बनीं, उस धरती को वे अंग्रेजों के हाथों भला कैसे सौंप, सकती थीं? उन्होंने अवध की सेना को ललकारते हुए कहा- “सैनिकों, अवध हमारा राज्य है। हम, यहाँ अंग्रेज़ी हुकूमत को हर्गिज्ञ बर्दाशत नहीं करेंगे।” बेगम के उत्साह ने सोए हुए अवध-सैनिकों के, स्वाभिमान को जगा दिया। अवध की जनता, वहाँ के किसान, व्यवसायी और सैनिक सभी बेगम के, विचारों से प्रभावित हुए। उनका हौसला बुलंद हो गया। देखते-ही-देखते बेगम ने एक बड़ी विद्रोही, । सेना तैयार कर ली। बेगम ने स्वयं घोड़े पर चढ़कर सेना का नेतृत्व किया।, | अवध की विद्रोही फ़ौज पूरी ताकत और तैयारी के साथ, | अंग्रेजों पर टूट पड़ी। अंग्रेज़ी सेना के कमांडर सर, [, हेनरी लॉरेंस ने बडी बहादुरी के साथ चिनहट, गी गाँव के पास विद्रोहियों को रोकने, फनी का प्रयास किया। घमासान, लड़ाई हुई और अवध के, बरय॑ देश-प्रेमी रणबाँकुरों &, जय के आगे अंग्रेज़ी फ़ोज ', [| से ने घुटने टेक दिए। हेनरी, लेरेंस को विवश होकर “, पीछे हटना पड़ा। उसने, लखनऊ को खाली कर, दिया। जीत का जश्न ,, को हुई अवध की, ही सेना ने लखनऊ पर कब्ज़ा कर लिया, , आत्मसमर्पण कर देना, बेगम है पड, बजा देने की कसम खाई। अवध की, , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , । चारों ओर बेगम की जय-जयकार होने लगी। इस, तह के बाद वज़ीरों ने एक मत होकर बेगम ।, , धर 1 लहर जगा दी। लखनऊ फ़ हु., विद्रोह की एक नई लहर जगा दी। बह धिकार दिया, परंतु बेगम ने इस थी, बिरज़िस कादर को अवध का नवाब घोषित, , बागडोर सँभालने, , ्वित जे महल को अवध के शासन की बा, मिर्जा, , को लेने से ड & ह, नने से इंकार करते हुए अपने दस वर्षीय पुत्र, , स्वयं को उसका सरपरस्त ही माना।, (129) 25
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|. लखनऊ नखनऊ फ़तह ने अवध के सैनिकों , जनता और किसानों के मन में बेगम के लिए सम्मान, की भावना जगा दी। बेगम ने भी कुशल सम्राज्ञी की भाँति घूम-घृमकर राज्य का दौरा किया ३, की समस्याएँ समझी और उन्हें दूर करने के उपाय किए। बेगम हज़रत महल की कार्यकुशलता एवं, प्रबंधन से अवध की जनता बहुत प्रभावित हुई। वह बेगम के इशारों पर उठने-बैठने लगी। इसके, पहले कोई भी शासक इतना लोकप्रिय नहीं हुआ था। अंग्रेज़ उनकी लोकप्रियता से जलने लगे।, अवध का शासन गँवाकर अंग्रेज़ चुप बैठने वाले नहीं थे। एक स्त्री के हाथों पराजय उन्हें सहन नहीं हो, रही थी। उन्होंने 1858 ई० में फिर अवध पर हमला किया। बेगम ने बड़ी हिम्मत के साथ अंग्रेजों का, मुकाबला किया, परंतु साधन-संपन्न अंग्रेज़ी सेना की तोपों के आगे अवध के सैनिक कुछ कमज़ोर, पड़ गए। बेगम ने कुछ विश्वस्त सैनिकों के साथ युद्ध भूमि से भागकर बहराइच के किले में शरण, ली और फिर से अंग्रेज़ों पर हमला करने के लिए सेना का संगठन करने लगीं। राजा जयलाल सिंह, ने इस कार्य में उनकी पूरी सहायता की।, , अंग्रेज़ों ने अवध पर कब्जा कर लिया। परंतु वे जानते थे कि जब तक बेगम हज़रत महल पकड़ी नहीं, जाती हैं, तब तक वे अवध में चैन से नहीं जी सकते। बेगम के इशारों पर चलने वाले अवध के लोग, आसानी से अंग्रेज़ी हुकूमत को स्वीकार नहीं करेंगे। अवध में रह-रहकर विद्रोह की चिंगारियाँ फूटती, रहेंगी। इसलिए उन्होंने बेगम के पास संधि-प्रस्ताव भेजा कि अंग्रेज सरकार अंग्रेज़ों के खिलाफ़ बगावत, करने के उनके गुनाह को माफ़ कर देगी, उनके गुज़ारे के लिए उन्हें पेंशन के रूप में अच्छी-खासी, रकम देगी और उनके बेटे की पढ़ाई-लिखाई का पूरा बंदोबस्त करेगी।, , बेगम हज़रत महल ने उनके प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया। उन्होंने संधि पत्र का जवाब देते हुए, कहा- “अवध की आज़ादी और हिफ़ाज़त के लिए मैं मैदान-ए-जंग में लड़॒ते-लड़ते कुर्बान हो, जाऊँगी , पर अवध की आज़ादी का सौदा नहीं करूँगी।”, , अंग्रेज़ों को ऐसे निर्भीक उत्तर की अपेक्षा नहीं थी। भारी लाव-लश्कर लेकर वे बहराइच किले पर टूट, 'पड़े। बेगम की फ़ौज के कुछ लोगों को ज्ागीर का लालच देकर अंग्रेजों ने अपनी ओर मिला लिया, था। बेगम की सेना ने पूरी हिम्मत और ताकत से अंग्रेज़ी सेना का मुकाबला किया, परंतु गद्दारों के, क्रारण बेगम की सेना के पैर उखड़ने लगे। है, मे हज़रत महल के सेनापति ने उन्हें समझाते हुए कहा - “बेगम साहिबा, हमारी फ़ौज अब ज़्यादा ->, देर अंग्रेज़ों के सामने टिक नहीं पाएगी। हमारी शिकस्त होगी। आप कुछ ईमानदार सिपाहियों के स, मैदान-ए-जंग से दूर चली जाएँ।”, , क्रोधभरी आँखों से सिपहसालार की ओर देखकर बोलीं - “हरगिज्ञ नहीं। मैं, दान-ए-जंग में अंग्रेज़ों का मुकाबला करूँगी।”
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ने उन्हें बहुत समझाया, पर बेगम हज़रत महल मानने को तैयार नहीं थीं। अं, , “अंग्रेजों से अवध की बागडोर हासिल करने के लिए बेगम साहिबा! आपका और जनाब, , कादर का महफ़ूज़ रहना ज़रूरी है इसलिए आप मैदान-ए-जंग से निकल फ़ौरन नेपाल., , नरेश की शरण लें। सोचने का वक्त नहीं है।”, , _हिबा को विवश होकर पुत्र के जीवन की रक्षा के लिए नेपाल जाना पड़ा। 1857 ई* में, अपनी पूरी ताकत से विद्रोहियों, क्रांतिकारियों को कुचल दिया। इरासे बेगम हज़रत महल, , टूट गईं। उन्होंने नेपाल में एक मामूली स्त्री के समान अपने बेटे की परवरिश करते हुए, , जीवन-यापन किया। 1879 ई० में उनकी मृत्यु हो गई।, , की याद में लखनऊ के एक विशाल पार्क को 'बेगम हज़रत महल पार्क ' का नाम दिया गया।, , ]5 अगस्त, 1962 को पुराने विक्टोरिया पार्क , हज़रतगंज में उन्हें श्रदृधांजलि देते हुए, उनकी 1857, , ई की क्रांतिकारी योजनाओं की चर्चा की गई। वहाँ उनकी संगमरमर की मूर्ति स्थापित की गई। 10, , मई, 1984 को भारत सरकार ने बेगम हज़रत महल के सम्मान में डाक टिकट जारी किया।, , इस प्रकार, अतीत के महान स्वाधीनता सेनानियों के बीच बेगम हज़रत महल का चरित्र उभरकर, , वर्तमान युग में कठिन परिश्रम , त्याग और बलिदान से प्राप्त की गई देश की स्वतंत्रता को बनाए रखने, , 'की प्रेरणा दे रहा है।, अभ्यास, शब्दार्थ, , अनगिनत-असंख्य; षड्यंत्र-साज़िश; हुकूमत-शासन; टूट पड़ी-हमला किया; रणबाँकुरों-युदूध, कला में निपुण वीर; कब्ज्ञा-अधिकार; फ्रतह-विजय; सरपरस्त-सरक्षिका; शिकस्त-हार;, महफ़ूज़-सुरक्षित, मुहावरे, जात की बाजी लगाना-जीवन को दाँव पर लगाना हौसला बुलंद होना-हिम्मत बढ़ जाना, ईंट से ईंट बजा देना-तहस-नहस करना पैर उखड्ना-दुश्मनों के सामने टिक न पाना, थुटने टेक देना-हार मान लेना लोहा >लेतानमुकाबता क जा थ, , टूट जाना-आशा समाप्त हो जाना, , शब्द / श्रुतलेख ४, * हौसला, समर्पण, सरपरस्त, विश्वस्त, '