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धनी थे। गणित के सवाल हल करना इन्हें विशेष, रूप से अच्छा लगता था। बड़े-बड़े प्रश्न भी ज़बानी, हल कर लेते थे। कोलकाता के हिंदू कॉलेज से शिक्षा, पूर्ण कर इन्होंने प्रेसिडेंसी कॉलेज में दाखिला लिया।, दोनों ही विद्यालयों में इन्होंने अधिकतम अंक प्राप्त, किए। यहाँ पर ही ये श्री जगदीश चंद्र बसु और श्री, प्रफुल्लचंद्र रॉय जैसे शिक्षकों के संपर्क में आए।, “जीवन के लक्ष्य को सदा ऊँचा रखो' -- यह शिक्षा, इनको इन्हीं गुरुओं से मिली। 1916 से 1921 तक, ये कोलकाता विश्वविद्यालय में भौतिक विज्ञान के |, प्राध्यापक रहे। उसके बाद 1921 में, नए बने ढाका, विश्वविद्यालय (अब बाँग्लादेश में) में ये प्राध्यापक ', के पद पर चले गए।, , , , , , , , , , , , , , , , , , ; 1924 में दो वर्ष के लिए डॉ. बोस यूरोप गए जहाँ इन्होंने मैडम क्यूरी और अलबर्ट, ._ आइंस्टाइन के साथ काम किया। 1926 में ये फिर ढाका लौट आए। अब ये भौतिकी विभाग, के अध्यक्ष बनाए गए जहाँ इन्होंने 1945 तक कार्य किया। भौतिकी के विविध विषयों पर, सत्येंद्र नाथ के लिखे हुए 24 पेपर छपे। नाभिकीय भौतिकी (४४८८८/ 79529) में बोस ने, महत्त्वपूर्ण खोजें की हैं। सांख्यिकी में प्रयुक्त कणों को 'बोसोन' नाम इनके नाम के आधार, , ४ ट पर ही दिया गया है। विज्ञान की पुस्तकों का बाँग्ला में अनुवाद करके इन्होंने उस ज्ञान को, जन जय के लिए सुलभ बनाया।, , भारत के युवा वैज्ञानिकों को आगे बढ़ाने में बोस ने महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की। 1954, .. में रॉयल सोसाइटी ऑफ लंदन ने इन्हें अपना 'फेलो' बनाया। भारत सरकार ने भी बोस, महोदय को “पद्मविभूषण' से सम्मानित किया। खाना-पीना और सोना तक भूलकर पढ़ने, ._ की लगनवाले पुत्र की सफलता और प्रसिद्धि पर उनकी माँ कितनी प्रसन्न हुई होंगी!, , 4 फरवरी, 1974 को वे इस संसार से विदा हो गए, किंतु विज्ञान के क्षेत्र में दिए अपने, दान के रूप में वे आज भी अमर हैं।