Page 1 :
मुड़ती-मुड़ाती नदी अंत में, , (ः आखिर मेरी यात्रा समाप्त मर तक पहुँच गई। बिंदु ने शांति की साँस लेते हुए. कहा,, पाऊकँगी जिसके “माप हो ही गई। अब मैं ज्ञानी और पुरातन समुद्र से अवश्य मिल, पा सके बारे में मैंने न जाने 'क्रितनी बातें सुनी हैं ।'' ;, | | | भ्रेज गे का तो ज्ञानी था और न ही दयालु | उसने अपनी ऊँची-कँँची लहरों को, ५ हो थी - कोलाहल मचाती नदी को निगलने आगे बढ़ीं। वे चिल्ला-चिल्लाकर, | ऐ, ॥। लहरें कितनी, ॥ पा ओ नदिया, तुम्हारी लहरें कितनी छोटी हैं और देखो, हमारी तरंगें कितनी शक्तिशाली, | हैं। ओह क्षुद्र नदी! हक, ५ बेचारी नदी भय से काँप रही थी। वह मुड़कर वहाँ से भागना चाहती थी कि फिर से, , जा सके अपने पिता पर्वत के पास पर यह तो संभव था ही नहीं। समुद्र ने नदी की घबराहट, , को समझ अपनी सबसे बड़ी हवेल और सबसे भयंकर शार्क मत्स्य को आगे कर दिया।, उनके शरीर चिकने थे और पूँछें शक्तिशाली।, , “' तुम्हारे कछुए, केकड़े और मछलियाँ हमारे सामने कितने छोटे हैं और तुम भी कितनी, कमज़ोर हो। हम हैं शक्तिशाली समुद्र के प्राणी।'' वे चिल्ला रहे थे।, , नदी घबराई हुई तो थी ही, इन प्राणियों की घमंडभरी बातें सुनकर रोने-रोने को हो, , आईं। समुद्र दुंभ से भरा अपनी प्रशंसा के गीत गा रहा था। उसने अपने तल से कुछ रंगीन, मूँगे ऊपर उछाले और पूछा -- है तुम्हारे पास कुछ ऐसा! नदी इतनी भयभीत हो गई कि, उसके मुँह से एक शब्द भी न निकला। अचानक लहरों से झाँकती हुई बिंदु ऊपर आई और, , ँ बोली -- इन उछलती लहरों, शार्क मछलियों और अपने मूँगों के बल पर ही, , तुम बहुत बड़े बन रहे हो!, , का फैलाव, अपनी गहराई, अपने रंगों के बल पर तुम बड़े हो ना!, 1 हा | ध् वह है जो मेरी इस छोटी नदी के पास है?, , | ५“ ओ छोटी-सी बूँद, तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मुझसे प्रश्न करने की? क्या तुम नहीं, नती मैं कौन हूँ? मैं शक्तिशाली विशाल समुद्र हूँ! मुझमें कोई कमी नहीं है'', समुद्र, बधित होकर चिललाया।, “हाँ है, कमी है, भारी कमी है,'' बूँद ने पलटकर उत्तर दिया। “नदी के पास मैं हूँ,, , 117