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प्रश्न 6., रहीम किसे बावरी कहते हैं?, , उत्तर:, , रहीम जिह्ला अथवा जीभ को बावरी कहते हैं।, , प्रश्न 7., , रहीम किसे धन्य मानते हैं?, , उत्तर:, , रहीम कीचड़ में रहनेवाले थोड़े-से पानी को धन्य मानते हैं।, , अतिरिक्त प्रश्न :, , प्रश्न 4., चिंता किसे जलाती है?, उत्तर:, , चिंता जीवित को जलाती है।, , प्रश्न 2., रहीम के अनुसार अपने हाथ में क्या है?, उत्तर:, , रहीम के अनुसार अपने हाथ में पांसे है।, , प्रश्न 3., , रहीम के अनुसार जहाँ अहं होता है, वहाँ किसका वास नहीं होता?, उत्तर:, , रहीम के अनुसार जहाँ अहं होता है, वहाँ ईश्वर का वास नहीं होता है।, , प्रश्न 4., , जूती किसे खानी पड़ती है?, उत्तर:, , जूती सिर को खानी पड़ती है।
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प्रश्न 5., , जगत कहाँ से प्यासा लौट जाता है?, उत्तर:, , जगत सागर से प्यासा लौट जाता है।, , प्रश्न 6., , रहीम किसे सींचने के लिए कहते हैं?, , उत्तर:, , रहीम मूल को (जड़ को) सींचने के लिए कहते हैं।, , ॥. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखिए :, , प्रश्न ., , रहीम जी ने मनुष्य की प्रतिष्ठा के संबंध में क्या कहा है?, , उत्तर:, , रहीम मनुष्य की प्रतिष्ठा के बारे में कहते हैं कि यदि मनुष्य विद्या-बुद्धि न हासिल करे, दान-धर्म न करे तो इस पृथ्वी पर, उसका जन्म लेना व्यर्थ है। वह उस पशु के समान है जिसकी सींग और पूँछ नहीं। विद्या-बुद्धि और दान-धर्म से ही मनुष्य, की प्रतिष्ठा बढ़ती है, यश मिलता है। आत्मसम्मान के बिना सब शून्य है। प्रतिष्ठा के बिना मनुष्य की शोभा नहीं बढ़ती है।, , प्रश्न 2., , रहीम जी ने चिता और चिंता के अंतर को कैसे समझाया है? स्पष्ट कीजिए।, , उत्तर:, , रहीम जी चिता और चिन्ता के अंतर स्पष्ट करते हुए कहते हैं कि चिता केवल निर्जीव को जलाती है लेकिन चिंता जीवित, मनुष्य को निरंतर जलाती रहती है। चिंता चिता से भी ज्यादा दुःख देती है। चिन्ता चिता से अधिक विनाशकारी होती है।, इसीलिए चिंता का धैर्य से सामना कर उसे दूर करने का प्रयत्न करना चाहिए।, , प्रश्न 3., , कर्मयोग के स्वरूप के बारे में रहीम के क्या विचार हैं?, , उत्तर:, , रहीम के अनुसार मनुष्य को आलसी न होकर सदा कर्म में लगे रहना चाहिए। कर्म करते रहना चाहिए, फल की इच्छा, नहीं करनी चाहिए। क्योंकि फल तो भाग्य या भगवान देनेवाला है। उदाहरण देकर रहीम कहते हैं कि पाँसे अपने हाथ में, जरूर हैं, पर खेल का दाँव अपने हाथ में नहीं है।
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प्रश्न 4., अहंकार के संबंध में रहीम के विचार व्यक्त कीजिए।, , उत्तर:, , रहीम कहते हैं कि ईश्वर की भक्ति बिना अहंकार के करनी चाहिए। क्योंकि जब तक हममें अहंकार रहेगा, तब तक ईश्वर, प्रसन्न नहीं होंगे। जब अहंकार छोड़ देंगे, तो ईश्वर की कृपा हो जाएगी। जहाँ अहंकार है, वहाँ भगवान नहीं और जहाँ, भगवान है, वहाँ अहंकार नहीं।, , प्रश्न 5., वाणी को क्यों संयत रखना चाहिए?, , उत्तर:, , रहीम कहते हैं कि वाणी को नियंत्रण में रखना चाहिए। क्योंकि वाणी ही रिश्ते बनाती है और वाणी ही बिगाड़ती है। वाणी, का सा जीभ से होता है और जीभ दुनिया भर की बातें कहकर खुद तो अन्दर चली जाती है, लेकिन जूते सिर को खाने, पड़ते है।, , प्रश्न 6., भगवान की अनन्य भक्ति के बारे में रहीम क्या कहते हैं?, , उत्तर:, , रहीम भगवान की अनन्य भक्ति के बारे में कहते हैं कि भले ही कीचड़ का पानी थोड़ा ही क्यों न हो, पर वह पीने लायक, होता है और समुद्र का पानी बहुत-सारा होता है, पर वह खारा होने के कारण पीने लायक नहीं होता। व्यर्थ की बड़ाई किस, काम की? एक-एक काम से सभी पूर्ण हो सकते हैं, सभी साथ में करेंगे, तो एक भी पूरा न होगा। अतः एक ही भगवत्भक्ति में लग जाना चाहिए।, , , , अतिरिक्त प्रश्न :, , प्रश्न 4., रहीम के अनुसार भू पर किस प्रकार के लोगों का जन्म लेना व्यर्थ है?, , उत्तर:, , रहीम के अनुसार जिसके पास न विद्या है, न बुद्धि है, न धर्म-कर्म है और न यश है, जिन्होने कभी दान नहीं दिया है, ऐसे, लोगों का भू पर जन्म लेना व्यर्थ है।, , ॥. ससंदर्भ भाव स्पष्ट कीजिए :, , प्रश्न ., रहिमन पानी राखिये, बिनु पानी सब सून।, , पानी गए न ऊबरे, मोती, मानुष, चून।।, , उत्तर:, , प्रसंग : प्रस्तुत दोहा हमारी पाठ्य पुस्तक 'साहित्य गौरव' के 'रहीम के दोहे' से लिया गया है, जिसके रचयिता रहीम जी हैं।
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संदर्भ : प्रस्तुत दोहे में कवि रहीम ने मनुष्य की प्रतिष्ठा के संबंध में विचार प्रकट किया है।, , भाव स्पष्टीकरण : रहीम इसमें पानी के तीन अर्थ बताते हुए उसका महत्व प्रतिपादित करते हैं। जिस प्रकार पानी के बिना, चूना, और पानी (चमक) के बिना मोती का मूल्य नहीं है, उसी प्रकार बिना पानी के अर्थात् बिना इज्जत या मर्यादा के मनुष्य, की भी कोई कीमत नहीं है। अतः पानी को बचाये रखना चाहिए।, , विशेष : श्लेष अलंकार है। भाषा ब्रज और अवधी।, , प्रश्न 2., , धनि रहीम जल पंक को, लघु जिय पिअत अघाय।, , उदधि बड़ाई कौन है, जगत पिआसो जाय॥, , उत्तर:, , प्रसंग : प्रस्तुत दोहा हमारी पाठ्य पुस्तक 'साहित्य गौरव' के 'रहीम के दोहे' से लिया गया है, जिसके रचयिता रहीम जी हैं।, , संदर्भ: प्रस्तुत दोहे में कवि रहीम ने मनुष्य जन्म की सार्थकता मनुष्य मात्र के कल्याण में समझा रहे हैं।, , भाव स्पष्टीकरण : इसमें रहीम एक नीति की बात कहते हैं कि किसी के बड़े या विशाल होने का कोई महत्व नहीं होता,, बल्कि छोटा होते हुए भी उसका उपयोग संसार को होना चाहिए। उदाहरण देकर कवि रहीम कहते हैं कि वह कीचड़ का, थोड़ा-सा पानी भी धन्य है, जिसे कीड़े-मकोड़े पीकर तृप्त हैं, जीवित हैं। सागर में पानी तो बहुत-सा रहता है, पर वह क्या, काम कः? खारा होने के कारण सारा संसार प्यासा ही रहता है; फिर समुद्र किस बात को लेकर अपनी बड़ाई कर सकता, है? अर्थात्, चीज कितनी ही छोटी क्यों न हो मगर जो दूसरों की मदद करता है, वही धन्य होता है। जो दूसरों की सहायता, नहीं करता है उसका जीवन व्यर्थ है।, , प्रश्न 3., , रहीमन गली है साँकरी, दूजो ना ठहराहिं।, , आपु अहै तो हरि नहीं, हरि तो आपुन नाहि ॥, , उत्तर:, , प्रसंग : प्रस्तुत दोहा हमारी पाठ्य पुस्तक 'साहित्य गौरव' के 'रहीम के दोहे' से लिया गया है जिसके रचयिता रहीम जी हैं।, , संदर्भ : प्रेम मार्ग या भक्ति मार्ग की संकीर्णता एवं सुगमता का परिचय इसमें मिलता है।, , भाव स्पष्टीकरण : भगवान को पाने का मार्ग अथवा भक्तिसाधना के मार्ग का वर्णन करते हुए रहीम जी कहते हैं कि, प्रेममार्ग बहुत ही कठिन है। उस रास्ते में भक्ति के अलावा दूसरे के लिए स्थान नहीं है। सांसारिक 'विषयों' से ग्रस्त व्यक्ति, भगवान को प्राप्त नहीं कर सकता। भगवान की प्राप्ति के लिए कठिन साधना एवं एकनिष्ठता अनिवार्य है जहाँ 'अहं' के, लिए स्थान ही नहीं है। अर्थात् अहंकारी व्यक्ति भगवान के प्रेम को नहीं पा सकते।, , विशेष : एकेश्वर 'ईश्वर' की प्रधानता।, भाषा - अवधी, ब्रज और खड़ीबोली।