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[4928 | 928 मोती लाल नेहरु द्वारा “नेहरु रिपोर्ट” के माध्यम से की गयी., , , , , , , , , , , , , , 4927 कांग्रेस के मद्रास अधिवेशन में, , [7930 | 930 कराची अधिवेशन में इसके सम्बन्ध में प्रस्ताव पास किया गया., , [93 | 934 गाँधी जी ने दुसरे गोलमेज सम्मलेन में इसकी मांग की गयी., , [934 | 934 सरकार की संयुक्त संसदीय समिति ने इसे अस्वीकार कर दिया., , | | 935 भारत शासन अधिनियम (७50५ 07 ॥५0।8 #&07) 935 में इसे शामिल्र नही, किया गया., , 4946 संविधान निर्माण के समय संविधान सभा द्वारा मूल अधिकार तथा अल्पसंख्यक, , अधिकार के सम्बन्ध में परामर्श के लिए वल्लभभाई पटेल की अध्यक्षता में एक, परामर्श समिति का गठन हआ., , , , , , मूल अधिकार पर परामर्श हेतु एक उपसमिति का गठन “जे बी कृपलानी” की, अध्यक्षता में किया गया. और इनकी सिफारिश के आधार पर भारतीय संविधान, के भाग - 3 में मूल अधिकार सम्बन्धी प्रावधान किया गया., , , , , , फ्रांस और अमेरिका में इन अधिकारों को प्राकृतिक (॥४४7७॥२४।) और अप्रतिदेय(, ॥५४। ।६५।५५४७8। ८) अधिकारों के रूप में स्वीकार किया गया है., , भारत में मूलाधिकार संविधान द्वारा प्रदत्त विशेष अधिकार है. इसमें उन आधार भूत अधिकारों, का सम्वावेश किया गया है जो व्यक्ति के विकास के लिए नितांत आवश्यक है. इस प्रकार मूल, अधिकार वे अधिकार होते हैं जो व्यक्ति के जीवन के लिए मूलभूत तथा अपरिहार्य होने के कारण, संविधान द्वारा नागरिकों को प्रदान किये जाते हैं. समान्यता व्यक्ति के इन अधिकारों में राज्य, के द्वारा भी हस्तक्षेप नही किया जा सकता., , भाग - 3, , अनु. 42- 35 (कुल 27), , अमेरिकी संविधान के “बिल ऑफ़ राइट्स” से प्रेरित है., , मूलाधिकार व्यापक पर “४850। ६” नही है. इनमे बदवाल किया जा सकता है पर संविधान, के “889।0 58770070२६” को बिना छेड़े., , , , , , मूल अधिकार राज्य के विरुद्ध नागरिकों को * अनु.5(2): केवल धर्म, मूलवंश, जाति,, प्रदान किया जाता है, किन्तु कुछ मूलाधिकार लिंग, जन्म स्थल अथवा इनमे से, व्यक्तियों के विरुद्ध भी प्रदान किये जाते हैं. किसी आधार पर नागरिकों के मध्य, विभेद (४५४८०४॥॥०४०॥) करने से “राज्य, और व्यक्ति” दोनों को रोकता है.
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« इसमें संसद अनु. 368 के तहत ही संशोधन कर सकती है., , « युद्ध एवं बाहरी आक्रमण के आधार पर घोषित आपातकाल के दौरान अनु.9 द्वारा प्रदत्त, मौलिक अधिकार स्वत: निलंबित हो जाता है, परन्तु “सशस्त्र विद्रोह “ के आधार पर घोषित, आपात के दौरान अनु. 9 निलंबित नही होता है., , «» “बिश्वेसर नाथ वाद “ में उच्चतम न्यायालय ने स्पष्ट किया की कोई भी व्यक्ति अपने, मूलाधिकार को त्याग (४७४७) नहीं कर सकता है,क्युकी उसे केवल व्यक्तिगत हित नही वरन, लोक नीति के रूप में पुरे समाज के हित के लिए संविधान में शामिल किया गया है.