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कर्तव्य और सत्यता, , लेखक परिचय :, , मूर्धन्य साहित्यकार तथा भाषाविद् श्यामसंदर दास जी का जन्म 4875 ई. में काशी में हुआ। आपने, 4897 ई. में बी.ए. की उपाधि प्राप्त की। आपने हिन्दू स्कूल में अध्यापन कार्य किया। तदोपरांत लखनऊ के, कालीचरन स्कूल में हैड मास्टर रहे। आप 924 ई. में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में अध्यक्ष, पद पर नियकत हए। डॉ. दास में हिन्दी के प्रति अनन्य निष्ठा थी। आपने विद्यार्थी काल में ही अपने दो, सहयोगियों की सहायता से 6 जुलाई 4893 में नागरी प्रचारणी सभा की स्थापना की। आपने जिस निष्ठा से, हिन्दी के अभावों की पूर्ति के लिए लेखन कार्य किया और उसे कोश, इतिहास, काव्यशास्त्र, भाषाविज्ञान,, अनसंधान, पाठ्य पुस्तक और संपादित ग्रंथों से सजाकर इस योग्य बना दिया कि वह इतिहास के खंडहरों से, बाहर निकलकर विश्वविद्यात्रयों के भव्य भवनों तक पहुँची । आपकी साहित्य साधना की महत्ता को स्वीकारते, हुए हिन्दी साहित्य सम्मेलन ने 'साहित्य वाचस्पति' तथा काशी हिन्दू विश्वविद्यालय ने डी.लिट. की उपाधि से, गौरवान्वित किया। 945 ई. में आपका स्वर्गवास हुआ।, , , , , , , , , , , , , , मौलिक कृतियाँ : 'नागरी वर्णमाला', 'साहित्य त्रोचन', 'भाषा विज्ञान', 'हिन्दी भाषा का विकास', 'भारतेन्दु, हरिश्चन्द्र, 'हिन्दी भाषा और साहित्य', 'गोस्वामी तुलसीदास', 'भाषा रहस्य', 'मेरी आत्म कहानी' आदि।, , , , , , संपादन : 'चंद्रावली', 'रामचरितमानस', 'पृथ्वीराज रासो', 'हिन्दी वैज्ञानिक कोश', 'कबीर ग्रंथावली', 'सरस्वती', , आदि।, पाठ का आशय :, , प्रस्तुत निबंध डॉ. श्यामसुंदर दास द्वारा लिखित 'नीति-शिक्षा' नामक ग्रंथ से लिया गया है। इस निबंध में, लेखक ने हमें अपने कर्तव्यों के प्रति निष्ठावान बनने के लिए प्रेरित किया है। वे सत्यता को खुले रूप में, अपनाने का आग्रह करते हैं। झूठ बोलना, पाप कार्य करना, कायरता जैसे दुर्गुणों को छोड़कर सत्य मार्ग पर, चलने के लिए प्रेरित करते हैं। आपके विचार अत्यंत प्रेरणादायक हैं। विद्यार्थियों के मन में 'कर्तव्य और, सत्यता के प्रति जागरूकता लाने के उद्देश्य से इस पाठ का चयन किया गया है।, , , , , , , , कर्तव्य और सत्यता पाठ का सारांश :, , , कर्त्तव्य करना हम लोगों का परम धर्म है। कर्तव्य करने का आरंभ घर से ही शुरू होता है। कर्तव्य करना न्याय, पर निर्भर है। इससे हमारा सन्तोष और आदर बढ़ता है। घर के बाहर, समाज में भी मित्रों, पड़ोसियों, नागरिकों, के पररुपर कर्तव्यों को देखा जा सकता है। इस प्रकार संसार में मन॒ष्य का जीवन कर्ट व्यों से भरा पड़ा है।, मन॒ष्य समाज में रहता है। अतः आस-पास के लोगों के प्रति, समाज के प्रति और देश के प्रति हर एक के कई, कर्तव्य होते हैं। कर्तव्यों के पालन से चरित्र की शोभा बढ़ती है।, , , , , , , , मन की शक्ति हमें बुरे कर्मों से रोकती है और अच्छे कर्मों की ओर मोड़ती है। बुरे कर्मों से मन दुखी होता है और, पछतावा होता है। अतः इन चीजों से सदा बचते रहना चाहिए। कुछ लोग ठग विद्या को अपनाकर झूठ का, सहारा लेकर, चाट्कारिता को अपनाकर धन कमाते हैं। जीवन में आगे बढ़ते हैं और समाज में सम्मान पाते हैं।, बुराई से भरे इस मार्ग को नहीं अपनाना चाहिए। सन्मार्ग पर चलने वालों को समाधान होता है, उन्हें तप्ति, , है।, , , , , , , , हूं?) हम लोगों का परम धर्म क्या है?, उत्तर :- कर्तव्य निभाना हम लोगों का परम धर्म है।, , २) कर्तव्य करने का आरम्भ पहले कहाँ से शुरू होता
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है?, उत्तर :- कर्तव्य करने का आरंभ पहले घर से ही शुरू, होता है।, , 3) कर्त्तव्य करना किस पर निर्भर है?, उत्तर :- कर्त्तव्य करना न्याय पर निर्भर है।, , , , ४) कर्त्तव्य करने से क्या बढ़ता है?, उत्तर :- कर्तव्य करने से चरित्र की शोभा बढती है।, , ५) धर्म-पालन करने में सबसे अधिक बाधा क्या है?, , उत्तर :- धर्म पालन करने के मार्ग में सबसे अधिक बाधा, चित्त की चंचलता, उददेश्य की अस्थिरता और, मन की निर्बलता है।, , ६) मन ज्यादा देर तक दुविधा में पड़ा रहा तो क्या आ, घेरेगी?, उत्तर :- यदि मन कुछ काल तक दुविधा में पड़ा रहा, तो, स्वार्थपरता निश्चित रूप से आ घेरेगी।, , , , ७) झूठ बोलने का परिणाम क्या होगा?, उत्तर :- झूठ बोलने का परिणाम यह होगा कि काम नहीं, , होगा और दुःख भोगना पड़ेगा।, , ८) किसे सबसे ऊँचा स्थान देना उचित है?, उत्तर :- सत्यता को सबसे ऊँचा स्थान देना उचित है।, , , , ९) जो मनुष्य सत्य बोलता है, वह किससे दूर भागता, है?, उत्तर :- जो मनुष्य सत्य बोलता है, वह आडइंबर से दूर, भागता है और उसे दिखावा नहीं रुचता है।, , १०) किनसे सभी घृणा करते हैं?, उत्तर :- झूठे से हर कोई घृणा करते हैं।, , अतिरिक्त प्रश्न :, , १) कर्तव्य पालन और सत्यता में कैसा संबंध है?, उत्तर :- कर्तव्य पालन और सत्यता में बड़ा घनिष्ठ संबंध, है।, , २) बहत-से लोग नीति और आवश्यकता के बहाने किस, की रक्षा करते हैं?, उत्तर :- बहत-से लोग नीति और आवश्यकता के बहाने, , झूठ की रक्षा करते हैं।, ॥. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
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१) घर और समाज में मनुष्य का जीवन किन-किन के, , प्रति कर्तव्यों से भरा पड़ा है?, उत्तर :- प्रारंभ में कर्तव्य की शुरुआत घर से ही होती है क्योंकि माता-पिता की ओर माता पिता का कर्तव्य बच्चों, के ओर दिख पड़ता है। इसके अलावा पति पत्नी, स्वामी-सेवक और स्त्री-पुरुष के परस्पर अनेक कर्तव्य होते है।, घर के बाहर मित्रों, पड़ोसियों और अन्य समाज में रहनेवालों के प्रति भी हमारे कर्तव्य होते हैं। हमारे कर्तव्य घर, के प्रति, घरवालों के प्रति और समाज में रहनेवाले लोगों के प्रति अगर हम न करे तो हम लोगों की दृष्टि से गिर, जाते हैं। बड़ों का आदर, गरुजनों का सम्मान सबकी मदद जैसे घर के कर्तव्य है वैसे ही रास्ते पर न थूकना,, सबसे सभ्य व्यवहार रखना आदि सामाजिक कर्टव्य होते हैं।, , , , , , , , , , २)मन की शक्ति कैसी है?, , उत्तर :-'कर्त्तव्य और सत्यता' निबन्ध में डॉ. श्यामसुंदर दास कहते हैं कि हम लोगों के मन में एक ऐसी शक्ति है, जो हमें सभी बरे कामों को करने से रोकती है और अच्छे कामों की ओर हमारी प्रवत्ति को झकाती है। यह बहधा, देखा गया है कि जब कोई बरा काम करता है तब बिना किसी के कहे आप ही लजाता है और मन में दुःखी होता, है। इसलिए हमारा यह धर्म है कि हमारी आत्मा हमें जो कहे, उसके अनुसार हम करें। हमारा मन किसी काम, को करने से हिचकिचाए और दूर भागे तब कभी उस काम को नहीं करना चाहिए। इृढ़विश्वास और साहस से, मन को धर्म-पालन करने की ओर लगाना चाहिए।, , , , , , , , 3) धर्म-पालन करने के मार्ग में क्या-क्या अड़चनें आती, , हैं?, उत्तर :- धर्मपालन करने के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा चित्त की चंचलता, उद्देश्य की अस्थिरता और मन की, निर्बल्रता पड़ती है। मनुष्य के कर्तव्य-मार्ग में एक ओर तो आत्मा के भल्ने और बुरे कामों का ज्ञान और दूसरी, ओर आलस्य और स्वार्थपरता रहती है। मनुष्य इन दोनों के बीच पड़ा रहता है। अगर उसका मन पक्का हुआ, तो वह आत्मा की आज्ञा मानकर अपने धर्म का पालन करता है। अगर स्वार्थ में पड़कर दुविधा में पड़ जाएगा, तो वह धर्म-पालन के विरुद्ध काम करेगा। इसलिए आत्मा जिस बात को करने की प्रवत्ति दे, हम वही काम, करे।, , , , , , , , ४) अंग्रेज़ी-जहाज बीच सम॒द्र में ड्बते समय परुषों ने, , कैसे अपना धर्म निभाया?, उत्तर :- अंग्रेजी जहाज़ में छेद होने के कारण जब जहाज डूबने लगा, तो जहाज पर के पुरुषों ने जितनी भी औरतें, और बच्चे थे उन सब को नाव पर चढ़ाकर बिदा कर दिया। बाकी सारे पुरुष छत पर इकट्ठा होकर भगवान की, प्रार्थना करते ज्यों कि त्यों खड़े रहे और नाव डूब गई। वे मर गए लेकिन उन्होंने अपना कर्तव्य निभाया। उन्होंने, अपना यह धर्म समझा कि खुद का प्राण देकर स्त्रियों और बच्चों के प्राण उन्होंने बचाए।, , , , ५) झूठ की उत्पत्ति और उसके कई रुपों के बारे में, , लिखिए।, उत्तर :- झूठ की उत्पत्ति पाप, कटिलता और कायरता के कारण होती है। ग _त से लोग नीति और आवश्यकता के, अन॒सार झूठ बोलने का बहाना बनाते हैं। संसार में बहत से ऐसे नीच लोग है जो झूठ बोलकर अपने को बचा, लेते हैं। लेकिन यह सब सच नहीं झूठ बोलना पाप को ही काम है और उससे कोई काम भी नहीं होता। झूठ, बोलना और भी कई रूपों में देख पड़ता है। जैसे चुप रहना, किसी बात को बढ़ाकर कहना, किसी बात को, छिपाना, भेद बदलना, दूसरों के हाँ में हाँ मित्रानां, वचन देकर पूरा न करना आदि।, , , , , , , , , , , , ६) मनुष्य का परम धर्म क्या है? उसकी रक्षा कैसे करनी, , चाहिए?, उत्तर :- मन॒ष्य का परम धर्म है - 'सत्यता के साथ कर्त्तव्य पालन करना।' सत्य बोलने को सबसे श्रेष्ठ मानना, चाहिए और कभी झूठ नहीं बोलना चाहिए, चाहे उससे कितनी ही अधिक हानि क्यों न होती हो। सत्य बोलने से, ही समाज में हमारा सम्मान हो सकेगा और हम आनंदपूर्वक अपना समय बिता सकेंगे क्योंकि सच्चे को सब, लोग चाहते हैं और झूठे से सभी घृणा करते हैं। यदि हम सदा सत्य बोलना अपना धर्म मानेंगे तो हमें अपने, कर्तव्य-पालन करने में कछ भी कष्ट न होगा और बिना किसी परिश्रम और कष्ट के हम अपने मन में संतृष्ट
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और सुखी बने रहेंगे। अपनी आत्मा के कहने के अनुसार इढ़ वेश्वास और साहस से काम लेकर सत्य की रक्षा, करनी चाहिए।, , , , ७) 'कर्तव्य पालन और सत्यता के बीच घनिष्ठ सम्बन्ध है।' कैसे? स्पष्ट कीजिए।, , उत्तर :- कर्तव्य पालन और सत्यता के बीच बड़ा घनिष्ठ सम्बन्ध है। उसका वर्णन करते हुए डॉ. श्यामसुंदर दास, कहते हैं - जो मनुष्य अपने कर्तव्य का पालन करता है, वह अपने कामों और वचनों में सत्यता का बर्ताव भी, रखता है। वह ठीक समय पर उचित रीति से अच्छे कामों को करता है। संसार में कोई काम झूठ बोलने से नहीं, चल सकता। यदि किसी घर के सब लोग झूठ बोलने लगें तो कोई काम न हो सकेगा और सब लोग बड़ा दुःख, भोगेंगे। अतएव सत्यता को सबसे ऊँचा स्थान देना उचित है।, , , , , , , , , , ॥. ससंदर्भ स्पष्टीकरण कीजिए :, , १) 'जिधर देखो उधर कर्तव्य ही कर्तव्य देख पड़ते हैं।', प्रसंग: प्रस्तुत गदयांश को 'कर्त्तव्य और सत्यता' नामक पाठ से लिया गया है जिसके लेखक डॉ. श्यामसुन्दर, दास है।, , , , संदर्भ : लेखक ने कर्त्तव्य के महत्व के बारे में बताते हुए इसे कहा है।, , स्पष्टीकरण : लेखक कहते हैं कि कर्तव्य करना हम, , लोगों का परम धर्म है और जिसके न करने से हम लोग औरों की दृष्टि में गिर जाते हैं। कर्तव्य करने का, आरम्भ पहले घर से ही होता है, क्योंकि यहाँ बच्चों का कर्त्तव्य माता-पिता की ओर और माता-पिता का कर्त्तव्य, लड़कों की ओर दिखाई पड़ता है। इसके अतिरिक्त पति-पत्नी, स्वामी-सेवक और स्त्री-पुरुष के पररुपर अनेक, कर्तव्य हैं। घर के बाहर हम मित्रों, पड़ोसियों और प्रजाओं के परस्पर कर्तव्यों को देखते हैं। इस तरह समाज में, जिधर देखों उधर कर्त्तव्य ही कर्त्तव्य दिखाई देते हैं।, , , , , , , , २) 'कर्तव्य करना न्याय पर निर्भर है।', प्रसंग : प्रस्तुत गद्यांश को 'कर्त्तवत्य और सत्यता' नामक पाठ से लिया गया है जिसके लेखक डॉ. श्यामसुन्दर, दास है।, , , , , , संदर्भ : कर्तव्य करने की महत्ता का वर्णन करते हुए लेखक इस वाक्य को पाठकों से कहते हैं।, , , , स्पष्टीकरण : डॉ. श्यामसुन्दर दास कहते हैं कि कर्त्तव्य करना हम लोगों का परम धर्म है। संसार में मनुष्य का, जीवन कर्तव्यों से भरा पड़ा है। घर में, पारिवारिक सदस्यों के बीच और समाज में मित्रों, पड़ोसियों और प्रजाओं, के बीच मनुष्य को अपना कर्तव्य निभाना पड़ता है। समाज के प्रति, देश के प्रति सच्चा कर्त्तव्य निभाने से हम, लोगों के चरित्र की शोभा बढ़ती है। कर्त्तव्य करना न्याय पर निर्भर है । ऐसे सामाजिक न्याय को समझने पर, हम लोग प्रेम के साथ कर्त्तव्य निभा सकते हैं।, , , , ३) 'इसलिए हमारा यह धर्म है कि हमारी आत्मा हमें जो कहे, उसके अनुसार हम करें।', , , , प्रसंग : प्रस्तुत गद्यांश को 'कर्त्तवत्य और सत्यता' नामक पाठ से लिया गया है जिसके लेखक डॉ. श्यामसुन्दर, दास हैं।, , , , संदर्भ : लेखक ने धर्म और आत्मा के बारे में कहा है। कि हमारी आत्मा जो कहती है उसका पालन करना ही, हमारा धर्म है।, , , , स्पष्टीकरण : लेखक धर्म और आत्मा के बारे में कहते हैं कि हमारी आत्मा हमें जो कहती है, वही कार्य करना, हमारा धर्म है। हमारा मन बड़ा विलक्षण है। यह हमें बुरे कर्म करने से रोकता है। चोरी करने के पश्चात् हमारा, मन हमें पश्चाताप के लिए मजबूर करता है। बुरा करनेवाला लज्जित हो जाता है।
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४) 'इसी प्रकार जो लोग स्वार्थी होकर अपने कर्तव्य पर ध्यान नहीं देते, वे संसार में लज्जित होते हैं और सब, लोग उनसे घृणा करते हैं।', , , , प्रसंग: प्रस्तुत गद्यांश को 'कर्तव्य और सत्यता' नामक पाठ से लिया गया है जिसके लेखक डॉ. श्यामसुन्दर, दास है।, , संदर्भ : प्रस्तुत वाक्य को लेखक ने स्वार्थी लोगों के स्वभाव के बारे में बताते हुए कहा हैं।, , स्पष्टीकरण : लेखक स्वार्थी लोगों के बारे में कह रहे हैं कि जो स्वार्थी लोग अपने कर्तव्यों की ओर ध्यान नहीं, देते, वे संसार में लज्जित भी होते हैं और लोग उनसे घृणा भी करते हैं।, , , , , , ५) 'सत्य बोलने से ही समाज में हमारा सम्मान हो सकेगा और हम आनंदपूर्वक हमारा समय बिता सकेंगे।, , , , प्रसंग : प्रस्तुत गदयांश को 'कर्त्तव्य और सत्यता' नामक पाठ से लिया गया है जिसके लेखक डॉ. श्यामसुन्दर, दास है।, , , , संदर्भ : लेखक सत्यता की महत्ता का वर्णन करते हुए यह वाक्य पाठकों से कहते हैं।, , , , स्पष्टीकरण : लेखक कर्तव्य और सत्यता के बारे में कहते हैं कि कर्तव्य करना हम लोगों का परम धर्म है।, कर्तव्य और सत्यता के बीच घना सम्बन्ध है। यदि हम सत्यता के साथ अपने कर्तव्य का पालन करेंगे तो, हमारे चरित्र की शोभा और बढ़ेगी। इसलिए हम सब लोगों का परम धर्म है कि सत्य बोलने को सबसे श्रेष्ठ मानें, और कभी झूठ न बोलें, चाहे उससे कितनी ही अधिक हानि क्यों न होती हो। सत्य बोलने से ही समाज में हमारा, सम्मान हो सकेगा और हम आनंद पूर्वक अपना समय बिता सकेंगे क्योंकि सच्चे को सब चाहते हैं और झूठे से, सभी घृणा करते हैं। अगर हम कर्तव्य पालन में सत्य मार्ग अपनाएँगे तो हम अपने मन में सदा संतुष्ट और, सुखी बने रहेंगे।, , , , , , , , , , , , ॥४. वाक्य शुद्ध कीजिए :, , १)मन में ऐसा शक्ति है।, उत्तर :- मन में ऐसी शक्ति है।, , २) तुम तुम्हारे धर्म का पालन करो।, उत्तर :- तुम अपने धर्म का पालन करो।, , 3) उसे दिखावा नहीं रुचती है।, उत्तर :- उसे दिखावा नहीं रुचता है।, , ४) लोगों ने झूठी चाटुकारी करके बड़े-बड़े नौकरियां पा, लीं।, उत्तर :- लोगों ने झूठी चाटुकारी करके बड़ी-बड़ी, नौकरियां पा ली।, , ५) मनुष्य के जीवन कर्त्तव्य से भरा पड़ा है।, उत्तर :- मनुष्य का जीवन कर्तव्य से भरा पड़ा है।, , ४ कोष्ठक में दिये गए उचित शब्दों से रिक्त स्थान, भरिए :