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जो दिए के तेल की वजह से जलता रहता है । भगवान मोती हैं तो भक्त धागा। धागे में मोती पडने से ही उसका, मल्, ू य बढ़ जाता है । भगवान सह, ु ागा है तो भक्त सोना। सह, ु ागे के साथ रहने से ही सोने की चमक हमेशा बनी, रहती है । रै दास यह भी कहते हैं कि भगवान स्वामी हैं और भक्त उनका दास ।, इस प्रकार रै दास जी भगवान को चंदन,दीपक,मोती और स्वामी मानते हुए अपने आप को पानी,बाती,धागा और, दास माना है ।, इससे रै दास जी का भगवान के प्रति दास्यभाव प्रकट होता है ।, २) परिश्रम के महत्व के प्रति रै दास के क्या विचार हैं?, उत्तर : रै दास जी भक्ति काल के प्रसिद्ध निर्गुण संत थे। आपकी भक्ति सरल और सहज है । उसमें न तो योग, मार्ग की जटिलता है और न भक्ति का शास्त्रीय विधान। आपकी वाणी में भक्ति भावना, समाज का व्यापक, हित,मानव प्रेम आदि को स्थान मिला है ।, परिश्रम के महत्व के प्रति रै दास जी कहते हैं कि संसार के हर मनष्ु य को सदा प्रयत्नशील रहना चाहिए।, उनके अनस, ु ार श्रम,लगन,निष्ठा व ईमान से किया गया प्रत्येक कार्य श्रेष्ठ व फलदायक होता है । मांगकर खाने, की जगह परिश्रम की कमाई पर निर्भर रहना चाहिए। जो मनष्ु य मेहनत करे गा,पसीना बहाएगा उसका, परिणाम सदा अच्छा ही होगा। इस प्रकार की नेक कमाई कभी निष्फल नहीं होगी। इसी प्रकार जो समाज में, रहता है उसी को ही गौरव प्राप्त होता है ।, रै दास जी यहां सभी को आलसी या कामचोर न बन के जीने के लिए संदेश दे ते हैं।, ३) रै दास ने किस प्रकार के राज्य का वर्णन किया है ?, उत्तर : रै दास जी भक्ति काल के प्रसिद्ध निर्गुण संत थे। आपकी भक्ति सरल और सहज है । उसमें न तो योग, मार्ग की जटिलता है और न भक्ति का शास्त्रीय विधान। आपकी वाणी में भक्ति भावना, समाज का व्यापक, हित, मानव प्रेम आदि को स्थान मिला है ।, कवि संत रै दास ऐसे राज्य की कामना करते हैं जहां सभी सख, ु ी हो। जहां सभी को अन्य मिले। जहां कोई, भख, ा-प्यासा, न, रहे, ।, जहां, कोई, छोटा-बड़ा, ,ऊ, ं, च-नीच,अमीर-गरीब, इस, प्रकार का भेदभाव न हो। जहां सभी को, ू, समान समझा जाए। यदि ऐसा राज अथवा समाज होगा तो उस समाज में सभी प्रसन्न रहें गे। उस समाज में, शांति रहे गी क्योंकि वहां कोई दख, ु ी या असंतष्ु ट नहीं होगा।, इससे रै दास जी का समाज के प्रति प्रेम भावना प्रकट होता है ।, संदर्भ भाव स्पष्ट कीजिए : "अब कैसे……….. बास समानी।"(भावार्थ / सारांश दे खिए )