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0॥०[/०॥ 5 पर्वत प्रदेश में..., पावस, , पान्यपुस्तक के प्रश्न-अभ्यास, , (क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए, प्रश्न 1., , पावस ऋतु में प्रकृति में कौन-कौन से परिवर्तन आते हैं?, कविता के आधार पर स्पष्ट कीजिए।, , उत्तर, पावस ऋतु में प्रकृति में बहुत-से मनोहारी परिवर्तन आते हैं।, जैसे, 1. पर्वत, पहाड़, ताल, झरने आदि भी मनुष्यों की ही, भाँति भावनाओं से ओत-प्रोत दिखाई देते हैं।, , 2. पर्वत ताल के जल में अपना महाकार देखकर हैरानसे दिखाई देते हैं।, , 3. पर्वतों से बहते हुए झरने मोतियों की लड़ियों से, प्रतीत होते हैं।, , 4. बादलों की ओट में छिपे पर्वत मानों पंख लगाकर, कहीं उड़ गए हों तथा तालाबों में से उठता हुआ, कोहरा धुएँ। की भाँति प्रतीत होता है।
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प्रश्न 2., , 'मेखलाकार' शब्द का क्या अर्थ है? कवि ने इस शब्द का, प्रयोग यहाँ क्यों किया है?, , उत्तर, 'मेखलाकार' शब्द का अर्थ है-मंडलाकार करधनी के आकार, के समान। यह कटि भाग में पहनी जाती है। पर्वत भी, मेखलाकार की तरह लग रहा था जैसे इसने पूरी पृथ्वी को, अपने घेरे में ले लिया है। कवि ने इस शब्द का प्रयोग पर्वत, की विशालता और फैलाव दिखाने के लिए किया है।, , प्रश्न 3., , 'सहस्र दृग-सुमन' से क्या तात्पर्य है? कवि ने इस पद का, प्रयोग किसके लिए किया होगा?, , उत्तर, पर्वत अपने चरणों में स्थित तालाब में अपने हजारों सुमन, रूपी नेत्रों से अपने ही बिंब को निहारते हुए-से प्रतीत होते, हैं। पर्वतों पर खिले सहस्र फूलों का पर्वतों के नेत्र के रूप में, मानवीकरण किया गया है। इस तरह से स्पष्ट हो जाता है कि, कवि ने इस पद का प्रयोग पर्वतों का मानवीकरण करने के, , लिए किया होगा।
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प्रश्न 4., , कवि ने तालाब की समानता किसके साथ दिखाई है और, क्यों?, , उत्तर, कवि ने तालाब की समानता दर्पण के साथ दिखाई है। कवि, ने ऐसी समानता इसलिए की है क्योंकि तालाब का जल, अत्यंत स्वच्छ व निर्मल है। वह प्रतिबिंब दिखाने में सक्षम है।, दोनों ही पारदर्शी, दोनों में ही व्यक्ति अपना प्रतिबिंब देख, सकता है। तालाब के जल में पर्वत और उस पर लगे हुए, फूलों का प्रतिबिंब स्पष्ट दिखाई दे रहा था। इसलिए कवि, द्वारा तालाब की समानता दर्पण के साथ करना अत्यंत, उपयुक्त है।, , प्रश्न 5., , पर्वत के हृदय से उठकर ऊँचे-ऊँचे वृक्ष आकाश की ओर, क्यों देख रहे थे और वे किस बात को प्रतिबिंबित करते हैं?, उत्तर, पर्वत के हृदय से उठकर ऊँचे-ऊँचे वृक्ष आकाश की ओर, अपनी उच्चाकांक्षाओं को प्रकट करने के लिए देख रहे हैं,, अर्थात् आकाश को पाना चाहते हैं। ये वृक्ष इस बात को, प्रतिबिंबित करते हैं कि मानों ये गंभीर चिंतन में लीन हों और, अपलक देखते हुए अपनी उच्चाकांक्षाओं को पूर्ण करने के, लिए निहार रहे हों।
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प्रश्न 6., , शाल के वृक्ष भयभीत होकर धरती में क्यों धंस गए?, उत्तर, कवि के अनुसार वर्षा इतनी तेज और मूसलाधार थी कि, ऐसा लगता था मानो आकाश धरती पर टूट पड़ा हो। चारों, तरफ धुआँ-सा उठता प्रतीत होता है। ऐसा लगता है मानो, तालाब में आग लग गई हो। चारों ओर कोहरा छा जाता है,, पर्वत, झरने आदि सब अदृश्य हो जाते हैं। वर्षा के ऐसे, भयंकर रूप को देखकर ही शाल के वृक्ष भयभीत होकर, धरती में फँसे हुए प्रतीत होते हैं।, , प्रश्न 7., , झरने किसके गौरव का गान कर रहे हैं? बहते हुए झरने की, तुलना किससे की गई है?, , उत्तर, पर्वतों की ऊँची चोटियों से 'सर-सर करते बहते झरने, देखकर ऐसा प्रतीत होता है, मानों वे पर्वतों की उच्चता व, महानता की गौरव-गाथा गा रहे हों। जहाँ तक बहते हुए, झरने की तुलना का संबंध है तो बहते हुए झरने की तुलना, मोती रूपी लड़ियों से की गई है।
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(ख) निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए, प्रश्न 1., , है टूट पड़ा भू पर अंबर!, , उत्तर, इसका भाव है कि जब आकाश में चारों तरफ़ असंख्य, बादल छा जाते हैं, तो वातावरण धुंधभय हो जाता है और, केवल झरनों की झर-झर ही सुनाई देती है, तब ऐसा प्रतीत, होता है कि मानों धरती पर आकाश टूट पड़ा हो।, , प्रश्न 2., , यों जलद-यान में विचर-विचर, , था इंद्र खेलता इंद्रजाल।, , उत्तर, पर्वतीय प्रदेश में वर्षा ऋतु में पल-पल प्रकृति के रूप में, परिवर्तन आ जाता है। कभी गहरा बादल, कभी तेज़ वर्षा व, तालाबों से उठता धुआँ। ऐसे वातावरण को देखकर लगता है, मानो वर्षा का देवता इंद्र बादल रूपी यान पर बैठकर जादू, का खेल दिखा रहा हो। आकाश में उमड़ते-घुमड़ते बादलों, को देखकर ऐसा लगता था जैसे बड़े-बड़े पहाड़ अपने पंखों, को फड़फड़ाते हुए उड़ रहे हों। बादलों का उड़ना, चारों ओर, धुआँ होना और मूसलाधार वर्षा का होना ये सब जादू के, खेल के समान दिखाई दे रहे थे।