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दुख का अधिकार, , 1.किसी व्यक्ति की पोशाक को देखकर हमें क्या पता चलता है?, उ-किसी व्यक्ति की पोशाक देखकर हमें उसका दर्जा तथा उसके अधिकारों का ज्ञान होता है।, , 2[डरबूजे नैचनैवाली स्री से कोई खरूजे क्यों नहीं खरीद रहा था?, बेचने वाली अपने पुत्र की मौत का एक दिन बीते बिना खरबूजे बेचने आई थी। वाले घर के खरबूजे, डी लोगों का अपना धर्म भ्रष्ट होने का भय सता रहा था, इसलिए उससे कोई खरबूजे नहीं ख खरीद रहा था।, , अक ी की वटकाय मरते पर लेक क मन में व्यधा उठी वह उसके दुख को जानने के लिएक्किनह 7-7, , उ-उस स्त्री को फुटपाथ पर रोता देखकर लेखक के मन में व्यथा उठी। वह उसके दुःख को जानने के लिए बेचैन हो., उठा।, , 4.उस स्त्री के लड़के की मृत्यु का कारण क्या था?, उ-उसस्त्री के लड़के की मृत्यु का कारण था-साँप द्वारा डेंस लिया जाना। वह मुंह-अँधेरे खेत में खरबूजे तोड़ रहा था।, उसी समय उसका पैर एक साँप पर पड़ गया था।, , 5.बुढ़िया को कोई भी क्यों उधार नहीं देता?, उ्खीका। क्माऊ बेटा मर चुका था। अतः पैसे वापस न मिलने की आशंका के कारण कोई उसे इकन्नी-दुअन्नी भी, उधार गी।, , , , , , , , , निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30 शब्दों में) लिखिए, ४.मनुष्य के जीवन में पोशाक का क्या महत्त्व है?(* दे डे, 'मुतुष्य के जीवन में पोशाक का बहुत महत्त्व है। 4011 मनुष्य की सामाजिक और आर्थिक स्थिति दशर्ती हैं।, टीशक 'ही मनुष्य को मनुष्य में भेद करती है। पोशाक ही उसे आदर का पात्र बनाती है तथा नीचे झुकने से रोकती, 2.पोशाक हमारेलिए कबबंधन और अड़चन बन जाती है? (७ ___ _ _, उ-जब हम अपने से कम हैसियत रखने ५२०४ 1 मनुष्य के साथ बात करते हैं तो हमारी पोशाक हमें ऐसा नहीं करने, देती। की बड़ा मान बैठते हैं और सामने वाले को छोटा मानकर उसके साथ बैठने तथा बात करने में संकोच, अनुभव करते हैं।, , 3.लेखक उस स्त्री के रोने का कारण क्यों नहीं जान पाया?, उ-लेखक उस स्त्री के रोने का कारण इसलिए नहीं जान पाया क्योंकि रोती हुई स्त्री को देखकर लेखक के मन में एक, व्यथा उठी पर अपनी अच्छी और उच्चकोटि की पोशाक के कारण फुटपाथ पर नहीं बैठ सकता था।, , , , 4.भगवाना अपने परिवार का निर्वाह कैसे करता था? (*, , उ-भगवाना शहर के पास डेढ़ बीघा जमीन पर हरी तरकारियाँ तथा खरबूजे उगाया करता था। वह रोज ही उन्हें ५, सब्जी मंडी या फुटपाथ पर बैठकर बेचा करता था। इस प्रकार वह कछिआरी करके अपने परिवार का निर्वाह करता हि, था। ।, , 5.लड़के की मृत्यु के दूसरे ही दिन बुढ़िया खरबूजे बेचने क्यों चल पड़ी? (*), थ्।, , , , ] |, , लड़के की मृत्यु के दिन ही खरबूजे बेचने रिया की घोर विवशता थी। साँप के हँसे लड़के की झाड़-फेंक ___, “कराने नाग देवता की पूजा और मृत्यु के बाद अंत्येष्टि करने में हुए खर्च के कारण उसके घर में अनाज का दाना भी..., नबचा था।, , , , , , , , दिया न हे के देखकर लेयक को अपने पड़ोस की संत महिला की याद क्या आई वाक्मब ऑर, उन 7 के पुत्र शोक को देखा। उसने अनुभव किया कि इसे बेंचारी के पास रोने-धोने का भी समय और, अधिकार नहीं है। तभी चली आम में उसे अपने पड़ोस की संभ्रांत महिला की याद आ गई। वह महिला पुत्र शोक, , में ढाई महीने तक पलंग पर, , रही थी।, , निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60 शब्दों में) लिखिए, 1.बाज़ार के लोग खरबूजे बेचनेवाली स्त्री के बारे में क्या-क्या कह रहे थे? अपने शब्दों में लिखिए।, , उ-बाजार के लोग खरबूजे बेचने वाली महिला के बारे में तरह-तरह की बातें कहते हुए ताने दे रहे थे और धिक्कार रहे, , थे। उनमें से कोई कह रहा था कि बुढ़िया कितनी बेहया है जो अपने बेटे के मरने: के दिन ही खरबूजे बेचने चली, , आई दूसरे सज्जन कह रहे थे कि जैसी नीयत होती है अल्लाह वैसी ही बरकत देता है। सामने फुटबाथ टटपाथ पर, , दियासलाई से कान खुजलाते हुए एक आदमी कह रहा था, “अरे इन लोगों का क्या है? ये लोग रोटी के टुकड़े ], पर जान देते हैं। इनके लिए बेटा-बेटी खसम-लुगाई, ईमान-धर्म सब रोटी का टुकड़ा है। /, , , , ः दिन पहले सुबहपके हुए खरबूजे तोड़ रहा था कि उसका पैर एक साँप पर पड़ गया। साँप ने उसे डस लिया, जिससे उसकी मौत, गई। उसके मरने के बाद घर का गुजारा करने वाला कोई नहीं था। अतः मज़बूरी में उसे अगले ही दिन खरबूजे बेचने, के लिए बाज़ार में बैठना पड़ा।, , , , , क्या-क्या ४ उपाय किए 0, , बा लाई ओझा ने झाड़-फेंक की। नागदेवंता की पूज पूजा की की गई और घर का आटा, और अनाज दान-दक्षिणा के रूप में दे दिया गया। उसने अपने बेटे के पैर पकड़कर किया, पर विष के प्रभाव |, से शरीर काला पड़ गया और वह मृत्यु को प्राप्त कर गया। ५, , , , , , , लेखक ने बुिया के दुख का अदा न वैसे लगाया३ (ने पड़ोस में रहने वोर्ली एक स्रोत महिला को योदे 7", उलेखक ने बुढ़िया के दु:ख का अंदाजा लगाने के लिए अपने पड़ोस में रहने वाली एक संभ्रोत महिला को याद ह, किया। उस महिला का पुत्र पिछले वर्ष चल बसा था। तब वह महिला ढाई मास तक पलंग पर पड़ी रही थी। उसे 1, की याद में मूर्छा आ जाती थी। वह हर पंद्रह मिनट बाद मूर्छित हो जाती थी। दो-दो डॉक्टर हमेशा उसके ॒, सिरहाने बैठ रहा करते थे। उसके माथे पर हमेशा बर्फ की पट रखी रहती थी। पुत्र शोक मनाने के सिवाय उसे कोई, होश-हवास नहीं था, न ही कोई जिम्मेवारी थी। उस महिला के दुःख की तुलना करते हुए उसे अंदाजा हुआ कि इस ], गरीब बुढ़िया का दुःख भी कितना बड़ा होगा।, , कप शत लक कप ज्यादा मा होता है उन दुख 7", उ-दुख का अधिकार कहानी को पढ़कर ऐसा लगता है कि संभ्रांत व्यक्तियों का दुख ज्यादा भारी होता हैं।, , व्यक्त करने का अधिकार है। उनके दुख को देखकर आसपास के लोग भी दुखी ही बल्कि उनके, , सहानुभूति दर्शाते हैं। ठीक उसी प्रकार के दुख से जब कोई गरीब दुखी होता है तो लोग उसका उपहास ही नहीं ५, , , , , , ] |, उड़ाते है बल्कि उससे घृणा भी प्रकट करते हैं। वे तरह की बातें बनाकर उस पर कटाक्ष करते हैं, मानो गरीब को दुख, खा विकार ही नहीं है। इस पाठ की पूरी कहानी इसी दुख के आसपास घूमती है अतः यह शीर्षक, पूर्णतया सार्थक है।