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E:\Share\Sushil\29-11-2021\EG_Hindi-10B_Term-2 (29-11-2021)\Open_Files\2-Part B (60-99) AC\Chaps (23x36x8) 60-99 (Proof-4) 60-99, \ 29-Nov-2021, Sushil, Proof-4, Reader's Sign, Date, खंड 'ख' - लेखन, 1, अनुच्छेद-लेखन, अनुच्छेद-लेखन गद्य की लघु विधा है । इसमें किसी वाक्य - विचार, अनुभव या दृश्य को कम-से-कम शब्दों में व्यक्त करना होता है।, छोटे-छोटे वाक्य और विचारों में क्रमबद्धता अनुच्छेद-लेखन की महत्वपूर्ण विशेषता है । यह बच्चों की सृजनात्मक क्षमता को बढ़ाने, का बहुत ही अच्छा माध्यम है।, अनुच्छेद लिखते समय निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखना आवश्यक है -, दिए गए विषय को 10 से 15 वाक्यों या 100 से 150 शब्दों में व्यक्त करना होता है।, वाक्य छोटे-छोटे तथा एक-दूसरे से जुड़े होते हैं।, लेखन का आरंभ सीधे विषय से होता है। किसी भूमिका या परिचय की आवश्यकता नहीं होती है।, विचारों का प्रवाह स्पष्ट होना चाहिए।, उदाहरण का संकेत ही पर्याप्त होता है ।, भाषा सरल, स्पष्ट तथा मुहावरे युक्त होनी चाहिए।, विषय के अनावश्यक विस्तार से बचना चाहिए ।, रोचकता बनाए रखना अनुच्छेद-लेखन की विशेषता होती है।, अनुच्छेद के अंत में निष्कर्ष समझ में आ जाना चाहिए यानी विषय समझ में आ जाना चाहिए।, यदि अनुच्छेद-लेखन के संकेत बिंदु दिए गए हैं तो उन्हीं के आधार पर विषय का क्रम तैयार करना चाहिए ।, अनुच्छेद की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-, अनुच्छेद किसी एक भाव या विचार या तथ्य को एक बार, एक ही स्थान पर व्यक्त करता है । इसमें अन्य विचार नहीं रहते।, अनुच्छेद के वाक्य-समूह में उद्देश्य की एकता रहती है। अप्रासंगिक बातों को हटा दिया जाता है।, अनुच्छेद के सभी वाक्य एक-दूसरे से संबद्ध होते हैं।, अनुच्छेद एक स्वतंत्र और पूर्ण रचना है, जिसका कोई भी वाक्य अनावश्यक नहीं होता।, उच्च कोटि के अनुच्छेद-लेखन में विचारों को इस क्रम में रखा जाता है कि उनका आरंभ, मध्य और अंत आसानी से व्यक्त, हो जाए।, अनुच्छेद सामान्यत: छोटा होता है, किंतु इसकी लघुता या विस्तार विषयवस्तु पर निर्भर करता है ।, विभिन्न विषयों पर अनुच्छेद-लेखन के कुछ उदाहरण इस प्रकार हैं-, 1. मन के हारे हार है, मन के जीते जीत, (CBSE 2018), संकेत बिंदु-, निराशा अभिशाप ।, दृष्टिकोण-परिवर्तनसकारात्मक सोच।, मन की ताकत का अंदाज़ा लगाना बहुत कठिन है । यह सच है कि यह हमसे महान से महान कार्य करवा सकता है तो जघन्य-से-जघन्य, अपराध करने के लिए भी मजबूर कर सकता है। इसे बहुत ही चंचल माना जाता है। यदि जीवन में सफल होना है तो हमें मन के, वश में नहीं, अपितु मन को अपने वश में करना आना चाहिए। मन को एकाग्र करके ही सफलता प्राप्त की जा सकती है और यदि, कभी किसी कार्य में असफलता या हार का सामना करना पड़ता है तो मन को निराशा के चंगुल से बचाना चाहिए, क्योंकि निराशावादी, मन हार मानकर बैठने पर मजबूर कर देता है । मन की स्थिति हमारे दृष्टिकोण को, हमारे बल व निश्चय को बदलने की ताकत रखती, है। मन से हारा हुआ व्यक्ति कभी प्रयास नहीं कर सकता और यदि वह नकारात्मक विचारों के साथ प्रयास करता भी है तो उसकी, जीत की संभावना नहीं रहती । वहीं दूसरी ओर जब तक मन से हार नहीं माना जाए तथा सकारात्मक दृष्टिकोण से प्रयास किया जाए,
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E:\Share\Sushil\29-11-2021\EG_Hindi-10B_Term-2_(29-11-2021)\Open_Files\2-Part B (60-99) AC\Chaps (23x36x8) 60-99 (Proof-4) 60-99, \ 29-Nov-2021, Sushil, Proof-4, Reader's Sign, Date, तो जीत हासिल होकर ही रहती है। अतः हमारे जीवन की सफलता - असफलता, हार-जीत हमारी मनःस्थिति पर निर्भर करती है। मन, से आशावान बने रहेंगे तो अन्य परिस्थितियाँ व वातावरण भी हमारे अनुकूल होकर हमें लक्ष्य-प्राप्ति में सहायक हो जाएँगे।, 2. भारतीय किसान के कष्ट, (CBSE 2018), संकेत बिंदु-, अन्नदाता की कठिनाइयाँ कठोर दिनचर्या, सुधार के उपाय।, अपने देश की धरती को मातृभूमि का नाम दिया जाता है, क्योंकि उसमें जन्म लेकर, उसका अन्न-जल ग्रहण करके हम जीवन व्यतीत, करते हैं, किंतु मातृभूमि की कोख से अन्न पैदा करने की मेहनत जो किसान करता है, वह भी समान रूप से पूजनीय है । अनाज, उगाने के लिए किसान को किन कष्टों को सहना पड़ता है, हम उसकी कल्पना भी नहीं कर सकते । वह कठोर दिनचर्या का पालन, करता है। उसके लिए धूप-छाँव, सरदी-गरमी में कोई अंतर नहीं । उसे हर हाल में निरंतर मेहनत करनी होती है। अपना खून-पसीना, एक करके वह फसलें उगाता है। बीज बोने से लेकर फसल काटने तथा बाज़ार में पहुँचाने तक उसका जीवन पिसता ही रहता है ।, यही कारण है कि हर वर्ष बड़ी संख्या में किसानों की आत्महत्या के समाचार सुनने को मिलते रहते हैं । बेचारा गरीब किसान कर्ज़, लेकर खेती करता है और यदि कुछ हाथ न लगे तो परिवार का निर्वाह करना भी उसके लिए असंभव, के लिए उचित नीतियाँ बननी चाहिए तथा उन पर सख्ती से अमल भी होना चाहिए। सरकार द्वारा उसे अच्छे बीज, खाद व अन्य, सुविधाओं के अतिरिक्त फसल बीमा योजना भी दी जानी चाहिए ताकि वह निश्चित होकर अपना जीवन-निर्वाह कर सके।, जाता है। ऐसे में किसानों, 3. स्वच्छता स्वास्थ्य की जननी है।, (CBSE 2018), संकेत बिंदु-, * स्वच्छता आंदोलन।, स्वच्छता के अभाव में स्वास्थ्य की कल्पना भी नहीं की जा सकती। जिस पर्यावरण में हम साँस लेते हैं, उठते-बैठते हैं, उसका प्रभाव, क्यों, * बदलाव . हमारा उत्तरदायित्व, हमारे शरीर व मन-मस्तिष्क पर निश्चत ही पड़ता है। वातावरण स्वच्छ होगा तो शरीर के साथ-साथ मन को भी प्रसन्न व कार्यशील, बनाएगा, जबकि अस्वच्छ वातावारण से तन-मन रोगी महसूस करने लगेंगे । गंदगी में पनपने वाले हजारों अदृश्य कीटाणु शरीर को रोगी, बनाते हैं। अत: मन-मस्तिष्क व स्वास्थ्य के लिए शरीर का स्वस्थ रहना व शरीर के स्वास्थ्य के लिए वातावरण को स्वच्छ रखना, बेहद ज़रूरी है। हमारे आदरणीय प्रधानमंत्री जी के प्रतिनिधित्व में जब से स्वच्छता आंदोलन चला है, वातावरण में भले ही बहुत, बदलाव न आया हो, किंतु लोग सचेत अवश्य हो गए हैं । बच्चा- बच्चा आज स्वच्छता को महत्वपूर्ण मानता है । वहीं गंदगी फैलाने को, बुरा माना जाने लगा है । अनेक क्षेत्रों में अनगिनत लोग व संस्थाएँ इस आंदोलन को जारी रखे हुए हैं । जैसे-जैसे लोगों में जागरूकता, बढ़ेगी, सब स्वच्छता के प्रति अपनी ज़़िम्मेदारी समझेंगे, वैसे-वैसे वातावरण में सुधार भी दिखाई देने लगेगा । किसी भी बड़े परिवर्तन, की शुरुआत छोटे स्तर से ही होती है और वह हो चुका है । अब आवश्यकता है सभी को अपना उत्तरदायित्व समझने व निभाने की, ताकि हम अपने भारत को प्रदूषण मुक्त बनाकर रोग मुक्ति की ओर कदम बढ़ा सकें।, 4. व्यायाम का महत्व, संकेत बिंदु-, आवश्यकता, लाभ चयन।, कहावत है कि स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन का वास होता है। स्वस्थ मन में अच्छे विचार आते हैं, जिन्हें अपनाकर हम सकारात्मक, रह सकते हैं। जैसे सुबह टहलने से शरीर में चुस्ती -फुर्ती आती है । इसी तरह हमें थोड़ा व्यायाम ज़रूर करना चाहिए, लेकिन ध्यान, रखें कि खाना खाने के बाद व्यायाम नहीं करना है। छोटे बच्चों को थोड़ा टहलना चाहिए । समय पर खाना पीना चाहिए। सभी काम, समय पर करके व्यक्ति स्वस्थ रह सकता है। व्यायाम करने से धमनियाँ सही काम करती हैं और शरीर के सभी अंग ठीक रहते हैं, तथा सही काम करते हैं। सुबह पार्क में टहलने से आँखों की ज्योति बढ़ती है। इस प्रकार हमें स्वस्थ और खुश रहना चाहिए। व्यायाम, के अनेक प्रकार हैं। अपने शरीर की आवश्यकता के अनुसार हमें ऐसा व्यायाम चुनना चाहिए जो हमारी शारीरिक आवश्यकता पूर्ण, करने के अलावा हमारी पहुँच में हो और साथ ही यदि यह हमारे लिए रुचिकर भी हो तो सोने पे सुहागा होगा।, 5. प्रदूषण की समस्या, संकेत बिंदु- प्रदूषण एक अभिशाप हानियाँ संदेश।, आधुनिक काल में प्रदूषण की समस्या सबसे बड़ा अभिशाप है। पर्यावरण में मुख्य रूप, इनके बढ़ते स्तर से संपूर्ण विश्व प्रभावित हो रहा है । जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण और ध्वनि प्रदूषण का खतरा दिन - प्रतिदिन बढ़ता, तीन प्रकार के प्रदूषण फैल रहे हैं और
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E:\Share\Sushil\29-11-2021\EG_Hindi-10B_Term-2_(29-11-2021)\Open_Files\2-Part B (60-99) AC\Chaps (23x36x8) 60-99 (Proof-4) 60-99, \ 29-Nov-2021, Sushil, Proof-4, Reader's Sign, Date, ही जा रहा है। कल-कारखानों से निकलने वाला औद्योगिक कचरा नदियों और सागरों के हवाले होकर जल प्रदूषण का कारण बन, जाता है। नतीजा यह होता है कि नदियों का पानी पीने के लायक नहीं रह जाता है। इस पानी से यदि फसलों की सिंचाई होती है।, तो रासायनिक अपशिष्ट फसलों में प्रविष्ट होकर खाद्य पदार्थों को स्वास्थ्य के लिए हानिकारक बना देते हैं । जलचरों का जीवन भी, संकट में पड़ जाता है। मोटर-गाड़ियों तथा कारखानों की चिमनियों से उठने वाला धुआँ वायु प्रदूषण का कारण बनता है। इसके जरिए, धुआँ में कार्बन डाइ-ऑक्साइड, कार्बन मोनो-ऑक्साइड, सल्फर और लेड जैसे हानिकारक तत्व हवा में घुलकर वातावरण को विषैला, बना देते हैं। जो साँस के साथ हमारे शरीर में जाते हैं और हमारे शरीर को बीमार कर देते हैं । फलतः हमें अस्थमा जैसी बीमारियाँ, हो जाती हैं। बारिश के पानी में घुलकर ये फसलों और वनस्पतियों को भी नुकसान पहुँचाते हैं । इससे मिट्टी की उर्वरता समाप्त हो, जाती है और वह बंजर हो जाती है । वायुयान, कल-कारखाने, मोटर-गाड़ियाँ, गाड़ियों के हॉन्न तथा शादी - पार्टियों में लगने वाले डीजे, आदि के शोर-शराबे से ध्वनि प्रदूषण होता है, जिससे उच्च रक्तचाप, बहरापन आदि रोग हो जाते हैं। कैंसर, ब्रोन्काइटिस तथा हृदय, के खतरनाक रोगों का कारण बनने वाले प्रदूषण के खिलाफ संपूर्ण विश्व-समुदाय को एकजुट होकर संघर्ष करना चाहिए।, 6. वृक्षारोपण का महत्व, (CBSE 2019), संकेत बिंदु-, वृक्ष बिना जीवन बेकार उपयोगिता सहायता ।, सुझाव।, वृक्षों के बिना धरती कैसी होगी, यह हम किसी मरुस्थलीय प्रदेश के दर्शन करके सहज ही समझ सकते हैं । वृक्ष हमारे लिए अनेक, प्रकार से लाभदायक हैं। गरमी की तपती दोपहर में वृक्षों की शीतल छाया का सुख तो केवल वृक्षों से ही प्राप्त हो सकता है। छाया, के अलावा वृक्षों से हमें फल-फूल, जड़ी-बूटी, इमारती लकड़ी एवं ईंधन आदि अनेक आवश्यक सामग्रियाँ प्राप्त होती हैं । वृक्षों से, वायु प्रदूषण के खिलाफ लड़ाई लड़ने में मदद मिलती है। वनों से मानसून का चक्र भी नियमित होता है तथा मृदा के क्षरण पर भी, रोक लगती है और जल संरक्षण भी संभव होता है। बेल और पीपल जैसे वृक्षों को पवित्र माना जाता है । लोग पवित्र वृक्षों की पूजा, करते हैं। बाढ़ की विभीषिका को रोकने तथा मिट्टी को उर्वर बनाए रखने में वृक्षों का अमूल्य योगदान है। वृक्षों के इस व्यापक महत्व, को देखते हुए सरकार द्वारा हर वर्ष वन महोत्सव का आयोजन किया जाता है। इस मौके पर स्कूलों तथा कॉलेजों में भी वृक्षारोपण, कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है। हमें भी अधिक -से-अधिक पेड़-पौधे लगाने चाहिए और इन वृक्षों से प्राकृतिक सौंदर्य तथा, स्वास्थ्य का उपहार प्राप्त करना चाहिए।, 7. खेलों का महत्व, (CBSE 2011), संकेत बिंदु- उपयोगिता, * प्रकार लाभ नैतिक मूल्यों में वृद्धि निष्कर्ष ।, 'जैसा तन वैसा मन' यह कहावत जानते तो सभी हैं, परंतु जो इसका पालन करते हैं, वे शारीरिक स्वास्थ्य पर भी ध्यान देते हैं। खेलों, का महत्व और उपयोगिता आधुनिक जीवन में और भी अधिक बढ़ गई है । स्कूलों तथा कॉलेजों में भी अब खेलों पर अधिक ध्यान, दिया जाने लगा है। खेल कई प्रकार के होते हैं। कुछ खेल घर में भी खेले जा सकते हैं तो कुछ ऐसे हैं, जिनको खेलने के लिए, मैदान की आवश्यकता होती है। वैसे छात्रों के लिए तो मैदान में खेले जाने वाले खेल ही अधिक लाभदायक होते हैं। कबड्डी, हॉकी,, क्रिकेट, बैडमिंटन, खो-खो, बॉस्केटबॉल आदि ऐसे ही खेल हैं। इन्हें खेलने से मनोरंजन भी होता है और साथ-ही- साथ व्यायाम भी ।, खेल हमारे शरीर को स्वस्थ बनाए रखने के साथ-साथ हमारे भीतर कई अच्छे और आवश्यक गुणों का भी विकास करते हैं। खेलों से, प्रतियोगिता तथा संघर्ष की भावना सहज ही सीखी जा सकती है। सामूहिक ज़िम्मेदारी, सहयोग और अनुशासन की भावना का कोषागार, खेलों में ही छिपा है। जो देश खेलों में अव्वल होते हैं, वे विकास की दौड़ में भी अग्रणी रहते हैं। ओलंपिक तथा राष्ट्रमंडलीय खेल, स्पर्धाओं के द्वारा 'वसुधैव कुटुंबकम्' का मंत्र प्रत्यक्ष होता हुआ दिखता है।, ৪. मदिरापान : एक सामाजिक कलंक, संकेत बिंदु- भूमिका मदिरापान के दुष्परिणाम पक्ष में तर्क, मदिरापान सब व्यसनों की जड़ है। जब मदिरा भीतर जाती है तो हमारे सारे संस्कार, विचार, विवेक, सद्भाव बाहर निकल जाते हैं ।, किसी ने सच ही कहा है कि जहाँ शैतान स्वयं नहीं पहुँच पाता, वहाँ मदिरा को भेज देता है यानी मदिरा आदमी को शैतान बना, देती है। मदिरा का सबसे पहला हमला इसको पीने वाले पर होता है। उसके फेफड़े, गुर्दे, लीवर तथा मस्तिष्क शिथिल पड़ जाते, मदिरापान का विरोध ।
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E:\Share\Sushil\29-11-2021\EG_Hindi-10B_Term-2_(29-11-2021)\Open_Files\2-Part B (60-99) AC\Chaps (23x36x8) 60-99 (Proof-4) 60-99, \ 29-Nov-2021, Sushil, Proof-4, Reader's Sign, Date, हैं, जिससे उसे तरह-तरह की बीमारियाँ घेर लेती हैं। शराब पीने से घर में आर्थिक कठिनाइयाँ उत्पन्न होती हैं, जिससे घर में क्लेश, रहता है। पत्नी व बच्चों को भूखों रहने तक की नौबत आ जाती है। शराब पीने से व्यक्ति सही और गलत में फर्क नहीं कर पाता, है। अनेक अपराध शराब के नशे में ही किए जाते हैं। मदिरापान करने वाले अपने पक्ष में यह तर्क देते हैं कि इससे थकान दूर होती, है, तनाव से मुक्ति मिलती है, ध्यान केंद्रित रहता है और काम करने में मन भी लगता है। परंतु ये सभी बातें झूठी और तथ्यहीन, हैं। जिस शराब को पीने से हाथ-पैर लड़खड़ाते हों, भला उससे ध्यान कैसे केंद्रित रह सकता है? मदिरापान को केवल और केवल, आत्म-नियंत्रण से रोका जा सकता है।, 9. करत-करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान, संकेत बिंदु-, * अभ्यास की आवश्यकता महान लोगों के उदाहरण ।, नियम।, जिस प्रकार रस्सी के बार-बार आने-जाने से कठोर पत्थर पर भी निशान पड़ जाते हैं, उसी प्रकार बार - बार अभ्यास करने पर मूर्ख, व्यक्ति भी एक दिन कुशलता प्राप्त कर लेता है। सारांश यह है कि निरंतर अभ्यास कम कुशल व्यक्ति को भी पूर्णतया पारंगत, बना देता है। अभ्यास की आवश्यकता शारीरिक और मानसिक दोनों कार्यों में समान रूप से पड़ती है। लुहार, बढ़ई, सुनार, दर्जी ,, धोबी आदि का अभ्यास साध्य है। ये कलाएँ बार-बार अभ्यास करने से ही सीखी जा सकती हैं । दर्जी का बालक पहले ही दिन, बढ़िया कोट-पैंट नहीं सिल सकता। विद्या-प्राप्ति के विषय में भी यही बात सत्य है । डॉक्टर को रोगों के लक्षण और दवाओं के, नाम रटने पड़ते हैं। वकील को कानून की धाराएँ रटनी पड़ती हैं। जिस प्रकार रखे हुए शस्त्र की धार को जंग खा जाती है, उसी, प्रकार अभ्यास के अभाव में मनुष्य का ज्ञान कुंठित हो जाता है और विद्या नष्ट हो जाती है। इस बात के अनेक उदाहरण हैं कि, अभ्यास के बल पर मनुष्य ने विशेष सफलता पाई है। कालिदास वज्र मूर्ख थे , परंतु अभ्यास के बल पर संस्कृत के महान कवियों, की श्रेणी में विराजमान हुए । वाल्मीकि अभ्यास से 'आदि- कवि' बने। यह तो अब स्पष्ट हो ही चुका है कि अभ्यास सफलता की, कुंजी है, परंतु अभ्यास के कुछ नियम हैं। अभ्यास निरंतर नियमपूर्वक और समय-सीमा में होना चाहिए। यदि एक पहलवान एक, दिन में एक हजार दंड-बैठक करे और दस दिन तक एक भी दंड-बैठक न करे तो इससे कोई लाभ नहीं होगा। अभ्यास परिश्रम, के साथ-साथ धैर्य भी चाहता है।, 10. अब पछताए होत क्या जब चिड़ियाँ चुग गईं खेत, संकेत बिंदु-, अमूल्य उपहार महत्व . गया समय वापस नहीं आता . उदाहरण।, संसार में समय को सबसे अमूल्य वस्तु माना गया है। धन- संपत्ति खो जाने पर उसे परिश्रम करके दोबारा प्राप्त किया जा सकता है,, पर समय खो जाने पर उसे पुनः प्राप्त नहीं किया जा सकता है । वक्त निकल जाने और समझ आने पर व्यक्ति के पास हाथ मलने, के अलावा और कोई रास्ता नहीं रह जाता है। यहाँ ' अब पछताए होत क्या जब चिड़ियाँ चुग गईं खेत' कहकर समय के महत्व को, समझाया गया है तथा समय के सदुपयोग करने के महत्व को बताया गया है। इसके अलावा हमें सावधान करते हुए यह भी बताया, गया है कि यदि हम समय पर कर्म करने से चूक जाएँगे, समय का सदुपयोग नहीं करेंगे तो बाद में यह अभिशाप बन जाएगा। समय, का पंछी एक बार हाथ से छूट जाने के बाद दोबारा कभी भी पकड़ में नहीं आता। समय का सदुपयोग ही सफलता का प्रतीक है ।, समझदार व्यक्ति समय का एक पल भी बेकार नहीं करते। गांधी जी, अब्दुल कलाम जैसे महान पुरुष हमेशा समय के पाबंद रहते थे ।, वे कभी यह नहीं सोचते थे कि कल करेंगे। प्रकृति सदैव समय की पाबंद रहती है। यदि ऐसा न हो तो जीवन-चक्र बिगड़ जाएगा।, समय ही वास्तव में जीवन और कर्म है ।, 11. समाचार-पत्रों का महत्व, (CBSE 2005, 2017), संकेत बिंदु-, विश्व भर को जोड़ने का साधन लोकतंत्र का प्रहरी, * ज्ञान-वृद्धि और मनोरंजन का साधन उपसंहार ।, वर्तमान युग में प्रत्येक व्यक्ति देश- विदेश के समाचारों से अवगत रहना चाहता है। समाचार- पत्र एक ऐसा माध्यम है जो विश्व को, एक कड़ी के समान जोड़े रखता है। यह हमारी खबर लेने का सबसे सस्ता और सरल माध्यम है। समाचार-पत्र लोकतंत्र का सजग, प्रहरी है। यह लोकतंत्र तथा जनता के अधिकारों की रक्षा के लिए आवाज़ उठाता है। सरकार की सफलता के क्रिया-कलापों का, कच्चा-चिट्ठा खोलने में भी इसकी महत्वपूर्ण भूमिका रहती है। समाचार - पत्रों में समसामयिक विषयों पर लेख, चर्चाएँ, मनोरंजन जगत, की खबरें, विज्ञान की जानकारी, नए उत्पादों की जानकारी तथा खेल जगत के समाचारों की जानकारी आसानी से उपलब्ध हो जाती, है। समाचार-पत्र जनजीवन की गतिविधियों को जन - जन तक पहुँचाने का सस्ता और महत्वपूर्ण साधन है । इसकी इन्हीं खूबियों की, वजह से कहा जाता है कि समाचार- पत्र समाज का दर्पण है।
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E:\Share\Sushil\29-11-2021\EG_Hindi-10B_Term-2 (29-11-2021)\Open_Files\2-Part B (60-99) AC\Chaps (23x36x8) 60-99 (Proof-4) 60-99, \ 29-Nov-2021, Sushil, Proof-4, Reader's Sign, Date, 12. कंप्यूटर : आज की ज़रूरत, (CBSE 2010), संकेत बिंदु- बढ़ता प्रयोग विभिन्न क्षेत्रों में भूमिका, मनोरंजन एवं शिक्षा का माध्यम।, वर्तमान युग विज्ञान का युग है। वर्तमान समय में कंप्यूटर का स्थान विज्ञान के वरदानों में सर्वोपरि बनता चला जा रहा है । कंप्यूटर की, विभिन्न क्षेत्रों में विशेष भूमिका है। यह हमारे सभी कामों में सहायता करता है । आज चारों ओर इसकी चर्चा होती है । यह आज के, युग की ज़रूरत बन गया है । रेलवे, भवनों, मोटर-गाडियों आदि के डिज़ाइन तैयार करने में, कंप्यूटर ग्राफ़िक्स का व्यापक प्रयोग हो, रहा है। आज अंतरिक्ष विज्ञान क्षेत्र में, औद्योगिक क्षेत्र में, युद्ध के क्षेत्र में तथा अन्य अनेक क्षेत्रों में इसका प्रयोग होता है । मनोरंजन, के क्षेत्र में भी इसका योगदान कम नहीं है। बच्चों को भी तरह-तरह के खेल कंप्यूटर स्क्रीन पर खेलते देखा जा सकता है । बच्चे व, युवा अपनी शिक्षा संबंधी सूचनाएँ भी इस पर इंटरनेट के जरिए प्राप्त करते हैं ।, 13. पराधीन सपनेहुँ सुख नाहीं, (CBSE 2010), संकेत बिंदु- पराधीनता का स्वरूप पराधीनता का कलंक : स्वतंत्रता का महत्व ।, 'पराधीन सपनेहुँ सुख नाहीं' उक्ति का अर्थ है कि पराधीन व्यक्ति सपने में भी सुख का अनुभव नहीं कर सकता। पराधीन और परावलंबी, के लिए तो सुख बना ही नहीं। पराधीनता एक प्रकार का अभिशाप है। पराधीनता की अवस्था में मनुष्य तो क्या पशु-पक्षी तक छटपटाने, लगते हैं। पराधीन व्यक्ति अथवा जाति अपने आत्म- सम्मान को सुरक्षित नहीं रख सकता। पराधीनता की कहानी दुख एवं पीड़ा की कहानी, है जो किसी भी व्यक्ति, जाति अथवा देश की हो सकती है। जो व्यक्ति पराधीन होता है, उसका कोई अस्तित्व नहीं होता। उसका कोई, भी अपमान कर सकता है। पराधीनता की पीड़ा को वही बता सकता है, जिस पर प्रतिबंध लगा दिया गया हो । किसी बंदी से पूछो कि, पराधीनता का दुख क्या होता है? वह अपनी इच्छा से शुद्ध हवा में साँस तक नहीं ले सकता । भारत शताब्दियों तक पराधीनता की पीड़ा, सहन करता रहा। भारतवासियों ने अपनी आज़ादी के लिए तमाम प्रयास किए। अंत में उनके किए प्रयास सफल हुए और देश आज़ाद हो गया।, पराधीनता अगर अभिशाप है, तो स्वाधीनता वरदान |, इंटरनेट का उपयोग, (CBSE 2011, 2019), संकेत बिंदु- विज्ञान और तकनीक की देन जीवन के विविध क्षेत्रों में लाभ., अपेक्षा इंटरनेट पर निर्भर अपराधीकरण, हानियाँ: पुस्तकों और सोच-विचार की, कुछ सुझाव।, इंटरनेट जनसंचार का सबसे नया लेकिन लोकप्रिय माध्यम है । इस माध्यम में प्रिंट मीडिया, रेडियो, टेलीविज़न, पुस्तक, सिनेमा और पुस्तकालय, के सारे गुण हैं। इसकी पहुँच और गति आज दुनिया के किसी भी अख़बार या पत्रिका को हरा सकती है। इसमें पल - भर में अपने मतलब की, जानकारी खोजी जा सकती है। साथ ही हम किसी से बातचीत (चैट) भी कर सकते हैं। अपना ब्लॉग बनाकर पत्रकारिता की किसी भी बहस के, सूत्रधार बन सकते हैं। यूट्यूब से हम नृत्य-संगीत का आनंद ले सकते हैं । साथ ही खाना बनाने की प्रक्रिया भी सीख सकते हैं ।, इंटरनेट ने पढ़ने-लिखने वाले तथा शोधकर्ताओं के लिए संभावनाओं के नए आयाम गढ़ दिए हैं । इन विशेषताओं के साथ इसकी, खामियाँ भी हैं। इसमें अनेक अश्लील पन्ने भी भर दिए गए हैं, जिससे बच्चों के कोमल मस्तिष्क पर बुरा असर पड़ता है । युवा, भी इनकी चपेट में आकर असामाजिक और अश्लील हरकत करते रहते हैं । इसके दुरुपयोग को रोकने के लिए सरकार को इसकी, सामग्री की गुणवत्ता पर नज़र रखनी चाहिए। आपत्तिजनक साइटों और पन्नों पर प्रतिबंध लगाना चाहिए। इस कदम से इसके दुरुपयोग, को रोका जा सकता है।, 15. प्रकृति की रक्षा, मानव की सुरक्षा, (CBSE 2011), संकेत बिंदु- मनुष्य प्रकृति का अंग : प्रकृति से खिलवाड़ बढ़ता प्रदूषण, प्रकृति की रक्षा, मानव-जाति का कर्तव्य।, प्रकृति ईश्वर प्रदत्त एक बहुमूल्य भेंट है । प्रकृति ने मनुष्य को सदा दिया ही है । प्रकृति के बिना पृथ्वी पर रहने की कल्पना भी, नहीं की जा सकती। आज हमने आविष्कार किए, अद्भुत चीजों का निर्माण कर अपनी कल्पना को साकार किया। इससे मनुष्य ने, प्रगति तो कर ली, किंतु प्रकृति के साथ वह खिलवाड़ कर बैठा। वनों के अत्यधिक कटाव से बाढ़, भूकंप की समस्या तो आई ही,, दुर्लभ पशु-पक्षियों का अस्तित्व भी मिटने की कगार पर आ गया । रसायनों के अत्यधिक प्रयोग से भूमि की उर्वरता पर प्रभाव पड़ा