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संख्या पद्धति, , (रप्रा00 $98४शा), , , , अंकगणित संख्याओं (अंकों) का विज्ञान है, अत: जरूरी है कि, , हम अंकगणित के अध्ययन की शुरुआत करते समय संख्या के गुणधर्म, विभाज्यता, संख्याओं के व्यवहार, संख्याओं के वर्गीकरण इत्यादि, से परिचित हो लें। ये सभी जानकारियां संख्या पद्धति अध्याय के, अंतर्गत प्रस्तुत किये जाने की परंपरा है। इसीलिए अंकगणित्त की, प्रत्येक पुस्तक में यह अध्याय सर्वप्रथम प्रस्तुत किया जाता है।, , यहां हम इस बात का उल्लेख करना परम आवश्यक समझते हैं, कि संख्या पद्धति के तहत संख्याओं की परिभाषा, गुण-धर्म, दर्गीकरण, इत्यादि जानने की बात सर्वप्रथम तो हो सकती है और यह उचित एवं, जरूरी भी है किंतु यह आवश्यक नहीं है कि इस अध्याय पर आधारित, सभी प्रश्नों को हल करने की क्षमता प्रारंभ में ही अर्जित कर लिया, जाए। इसका कारण यह है कि इस अध्याय के अंतर्गत बहुत से ऐसे, प्रश्न होते हैं जिसमें अंकगणित के दूसरे अध्यायों से संबंधित व्यवहार, की जानकारी अपेक्षित होती है। संख्याओं के व्यवहार से यहां आशय, यह है कि औसत, अनुपात-समानुपात, प्रतिशत, मिन्न तथा घातांक, इत्यादि के प्रश्नों में संख्याएं किस प्रकार व्यवहार करती हैं?, , संख्या पद्धति के अंतर्गत बहुत से प्रश्न अंकगणित के इन्हीं, अध्यायों से संयुक्त करके पूछा जाता है।, ७ उदाहरण के लिए निम्न प्रश्न को देखेंप्रश्न: तीन संख्याओं का औसत 48 है यदि उनमें अनुपात 2: 5: 9 है तो, , संख्याएं ज्ञात कीजिए।, , प्रथम दृष्टया इस प्रश्न को संख्या पद्धति अध्याय का प्रश्न कहा जा, सकता है लेकिन इसको हल करने की क्षमता विकसित करने के लिए औसत, एवं अनुपात अध्याय की जानकारी आवश्यक है, , अंकगणित पुस्तक की परंपरा के अनुरूप हम भी यहां संख्या पद्धति, अध्याय सर्वप्रथम प्रस्तुत कर रहे हैं। लेकिन हो सकता है कि इनमें से कुछ, प्रश्न ऋष्याव के अध्ययन के तुरंत बाद आप हल करने में सक्षम न हो सकें, तो इसका कारण यही होगा कि उस प्रश्न के हल हेतु अंकगणित के जिस, संबंधित अध्याय की जानकारी अपेक्षित है उसका अध्ययन अभी आपने, नहीं किया है।, (1 दाशमिक प्रणाली (002॥ $)#भा), , हमारे दैनिक कार्यों में जिस संख्या पद्धति का प्रयोग होता है उसे, लिखने के लिए हम 0, 1, 2, 3, 4; 5, 6, 7, 8, 9 का प्रयोग करते, हैं। इसलिए इस संख्या पद्धति को 'दाशमिक संख्या प्रणाली” कहते हैं, , इसे 'हिन्दू-अरैबिक प्रणाली' भी कहते हैं।, लेखपाल मर्ती परीक्षा, , #* दाशमिक प्रणाली की विशेषताएँ-दाशमिक प्रशाली की, निम्नलिखित प्रमुख विशेषताएं हैं, (1) इसमें संख्याओं को लिखने के लिए दस प्रतीकों का प्रयोग, होता है (0, ।, 2, 3, 4, 5, 6,7,8, १), , (10 इसमें संख्याओं को लिखने के लिए दाईं से वाई और क्रमश, इकाई, दहाई, सैकड़ा, हजार, दस हजार, लाख इत्यादि स्थान होते हैं।, 4 5 6 3 0, * $ $ + $. $, लाख दस हजार हजार सैकढ़ा दहाई इकाई, , दाईं से बाई और, , # दाईं ओर से पहला स्थान अर्थात इकाई का अंक 0, , ७ दाई ओर से दूसरा स्थान अर्थात दहाई का अंक 5 7, [अंकों के मान, , किसी भी संख्या में प्रयुक्त प्रत्येक अंक के कुल दो मान होते हैं() वास्तविक मान एवं (1) त्थानीय मान, , (0 वास्तविक मान--जो कमी नहीं बदलता है। किसी मी संख्या, का वास्तविक मान हमेशा स्थिर होता है। इसे “जातीय मान' या, "अंकित मान' अथवा “शुद्ध मान' भी कहा जाता है।, , जैसे-संख्या 8168 में अंक '8' के दोनों स्थानों का वास्तविक, , मान 8 होगा।, [ परीक्षा-प्रश्न |, , 1. तीन संख्याओं का योगफल 392 है। पहली तथा दूसरी संख्या का, अनुपात 2: 3 है और दूसरी तथा तीसरी संख्या का अनुपात 5, : $ है, तो पहली संख्या है- ।, , , , , , (0) 120 छ) ७, (७ 100 (0) 9, , राजस्व लेखपाल परीक्षा, 2015 (1-पाली, --(0), , पहली, दूसरी एवं तीसरी संख्याएं क्रमशः 3, 0 एवं ८ हैं।, प्रश्नानुसार |, 8:0०2:3, कि], ७:०२5:४, 8:0:0७10:15 : 24, । आनुपातिक योग 10 + 15 + 24 549, , | अत्तः पहली संख्या अर्थात संख्या (७), |. 368 ४४३10 ७8),५४६० ८३६ #1/65| रूहै# 10 -२ 80, , , , , , प्रारंभिक गणित