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|०॥॥ २०७॥|५'५ 116019५ ० ]५५४८९ (जॉन रॉल्स का, न्याय सिद्धांत) , रॉल्स ने अपना संपूर्ण जीवन न्याय-सिद्धांत की स्थापना में, खपा दिये। वे अपने न्याय-सिद्धांत को खड़ा करने के लिए, अपने पूर्व के विचारकों के विचारों को अध्ययन करने का, प्रयास किया। वे अरस्तु, जॉन लॉक और जैक जीन रूसों जैसे, महान विचारकों के रचनाओं का अध्ययन किया। उन्होंने, 'कॉण्ट' को भी पढ़ा। लेकिन समझौतावादी रूसो का प्रभाव, अधिक दिखा। उनके कई अन्य विचारकों को पढ़ने का उद्देश्य, था कि अपने न्याय-सिद्धांत को मजबूत करना। रॉल्स ने अपने, सिद्धांत को समझौतावादियों के विचारों पर आधारित करते, हुए, उपयोगितावादियों के विचारों का खंडन किया। उन्होंने, अपने न्याय-सिद्धांत को नैतिक आधार प्रदान करते हुए, 'कॉण्ट' के विचार को स्वीकार किया। कॉण्ट के नैतिक विचार, का सहारा लेकर उपयोगितावाद का प्रभावी विकल्प पेश करने, की कोशिश की। रॉल्स ने अपने न्याय-सिद्धांत को सबल, बनाने के लिए अपने समकक्ष विचारकों के विचारों का भी, अध्ययन किया था।, , रॉल्स अपने न्याय-सिद्धांत को सबल क्यों बनाना चाहते थे?, वह कौन-सी परिस्थितियाँ थी, जो उन्हें ऐसा करने के लिए, प्रेरित कर रही थी?, , 1950 व 1960 के दशक में कई विद्वानों द्वारा शंका व्यक्त, की जाने लगी थी। कि 'राजनीतिक सिद्धांत' ही समाप्त हो, गया हैं। एक विद्वान इसैया बर्लिन ने 1961 में यहाँ तक कहा, कि अमेरिका और इंग्लैंड में यह मान्यता बनने लगी कि, 'राजनीतिक सिद्धांत व दर्शन' की मृत्यु हो गई हैं। ऐसी, मान्यता बनने का मूल कारण था कि 20वीं शताब्दी में, 'राजनीतिक दर्शन' में कोई गंभीर रचना प्रकाशित नहीं, लेकिन इस धारणा को जॉन रॉल्स ने 1971 में अपनी पुस्तक
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1950 व 1960 के दशक में कर्ड विद्वानों द्वारा शंका व्यक्त, की जाने लगी थी। कि 'राजनीतिक सिद्धांत' ही समाप्त हो, गया हैं। एक विद्वान इसैया बर्लिन ने 1961 में यहाँ तक कहा, कि अमेरिका और इंग्लैंड में यह मान्यता बनने लगी कि, 'राजनीतिक सिद्धांत व दर्शन' की मृत्यु हो गई हैं। ऐसी, मान्यता बनने का मूल कारण था कि 20वीं शताब्दी में, 'राजनीतिक दर्शन' में कोई गंभीर रचना प्रकाशित नहीं हुई।, लेकिन इस धारणा को जॉन रॉल्स ने 1971 में अपनी पुस्तक, '0 11९०५ 01|५५॥८९७' के प्रकाशन से तोड़ा और, राजनीतिक चिंतन के पुनर्योदय का जनक होने का गौरव प्राप्त, किये।, , रॉल्स सामाजिक विषमता का उन्मूलन चाहते थे। इसी, सामाजिक विषमता के उन्मूलन खातिर सामाजिक न्याय की, वकालत करते थे। इसी को इसके मुकाम तक पहुंचाने के लिए, रॉल्स ने '8७ 11160/५ ०1 |५५॥८७' में विस्तृत व्याख्या किया, हैं। जिससे हम नीचे अध्ययन करेंगे, रॉल्स के न्याय-सिद्धांत की अवधारणा राजनीतिक दर्शन की, एक महत्वपूर्ण अवधारणा हैं। रॉल्स ने इसे नए ढंग से प्रस्तुत, किया। वैसे तो न्याय की समस्या का इतिहास बहुत पुराना है।, लेकिन हर काल में न्याय की मांग होती रही है। लोग हमेशा से, और हर काल में अपने सामाजिक जीवन को लेकर चिंतित, रहते हैं। वे चाहते हैं कि सामाजिक जीवन विषमता रहित हो,, किसी प्रकार भेदभाव सामाजिक स्तर पर न हो। इसी, सामाजिक विषमता का उन्मूलन रॉल्स चाहते हैं। इसी, सामाजिक विषमता का उन्मूलन के लिए जिस न्याय-सिद्धांत, का प्रतिपादन किया। उसमें उन्हे ख्याति भी मिली। जिसका, वर्णन अपनी पुस्तक '8॥ 1॥#९079५ 01 |प50४८९' में किया।, , रॉल्स का न्याय-सिद्धांत 'समाज के विभिन्न वर्गों, व्यक्तियों, और समूह के बीच विभिन्न वस्तुओं, सेवाओं, अवसरों, लाभों, फजयाएणण ध चल को आवंटित करने का नैतिक व न्यायसंगत आ', हो' पर आधारित हैं। इस समस्या को हल करने के लिए
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रॉल्स का न्याय-सिद्धांत 'समाज के विभिन्न वर्गा, व्यक्तियों, और समूह के बीच विभिन्न वस्तुओं, सेवाओं, अवसरों, लाभों, आदि को आवंटित करने का नैतिक व न्यायसंगत आधार क्या, हो' पर आधारित हैं। इस समस्या को हल करने के लिए कई, चिंतकों ने अपने-अपने ढंग से विचारों का प्रतिपादन किया हैं।, उन्हीं विचारकों व चिंतकों में से एक जॉन रॉल्स भी हैं। रॉबर्ट, एमडूर ने कहा है कि रॉल्स का उद्देश्य ऐसे सिद्धांत विकसित, करना है जो हमें समाज के मूल ढांचे को समझने में मदद करें।, , रॉल्स ने अपने न्याय-सिद्धांत को प्रस्तुत करते हुए सबसे, पहले उपयोगितावादी विचारों का खंडन किया और अपने, न्याय-सिद्धांत को प्रकार्यात्मक आधार प्रदान किए। रॉल्स ने, न्यास को उचितता के रूप में परिभाषित करके न्याय-सिद्धांत, की परंपरागत समझौतावादी अवधारणा को उच्च स्तर पर मूर्त, रूप प्रदान किये। रॉल्स ने न्यास की समस्या का ध्यान में रखते, हुए, पाया कि प्राथमिक वस्तुओं और सेवाओं के न्यायपूर्ण व, उचित वितरण की समस्या हैं। ये प्राथमिक वस्तुएँ-अधिकार, और स्वतंत्रताएँ, शक्तियाँ व अवसर, आय और संपत्ति तथा, आत्म सम्मान के साधन हैं। रॉल्स ने इन्हें शुद्ध प्रक्रियात्मक, न्याय का नाम दिया हैं। रॉलस का मानना है कि जब तक, वस्तुओं और सेवाओं आदि प्राथमिक वस्तुओं का न्यायपूर्ण, वितरण नहीं होगा तब तक सामाजिक न्याय की कल्पना, करना व्यर्थ हैं।, , जेरेमी बेंथम के उपयोगितावाद का सिद्धांत 'अधिकतम, व्यक्तियों का अधिकतम सुख' (57280€५( |190[011855, 0117/6 5/९3/९5 |५५॥॥४०९॥) की बात करता है। बेंथम, के इस विचार के संबंध में जॉन रॉल्स का कहना है कि यह, सिद्धांत प्राथमिक वस्तुओं के न्यायपूर्ण वितरण में बाधा, डालता हैं। बेंथम अधिकतम व्यक्तियों के अधिकतम सुख, पहचानने के चक्कर में यह बताना भूल जाते हैं कि इससे, व्यक्ति विशेष को कितनी हानि हो रही है। अतः बेंथम के इस, सिद्धांत की आलोचना करते हुए कहा कि "सुखी ।दर्वाँ्, , सुख को कितना भी क्यों न बढ़ा दिया जाय, उससे, , के टख का हिसाब बराबर नहीं किया जा सकता।" रॉल्स ने