Page 1 :
इकाई 15 कार्ल मार्क्स, , इकाई की रूपरेखा, 15.4. प्रस्तावना, 15.2 जीवन और काल, , 15.2.4 बौद्धिक यात्रा का आरंभ, 15.3 अलगाव का सिद्धांत, 15.4. इंद्ववाद, 15.5 ऐतिहासिक भौतिकवाद का सिद्धांत, 15.6 वर्ग युद्ध का सिद्धांत, 15.7. अधिशेष मूल्य का सिद्धांत, 15.8 क्रांति का सिद्धांत, 15.9 सर्वहारा वर्ग की तानाशाही, 15.10 साम्यवादी समाज का दर्शन, 15.14 सामान्य मूल्यांकन, 15.12 सारांश, 15.13 अभ्यास, , , , 15.1 अस्तावना, , राजनीतिक चिंतन के प्रभाव और समालोचना सहित उसके संपूर्ण इतिहास में बहुत कम राजनीतिक, सिद्धांतवादी कार्ल हेनरिख मार्क्स की समानता कर सकते हैं। इंगलैंड के विक्टोरियाकालीन आशावाद, (शंतणांभा णगगांआ) की पृष्ठभूमि में समकालीन विश्व के बारे में विचार करते हुए मार्क्स को, मानवीय स्वाधीनता के प्रति पूर्ण विश्वास था। मार्क्स ने फ्रेडरिख एंगेल्स (1820-95) के साथ मिलकर, उननीसवीं शताब्दी के पूँजीवाद का वैज्ञानिक समाजवाद के रुप में विश्लेषण किया। इसका प्रमुख, उद्देश्य ओवेन (07७), फूरियर (70प्रपंथ) और सेंट साइमन (था 8100) के पूर्ववर्ती समाजवाद, से (जिसे वे अव्यावहारिक समाजवाद कहते थे) स्वयं को दूर रखना था।, , हेगेल की तरह, मार्क्स के लिए भी इतिहास का अध्ययन विशेष रूप से महत्वपूर्ण था। मार्क्स ने हीगल, के 'इंद्वात्मक आदर्शवाद' को अस्वीकार करके “ंद्वात्मक भौतिकवाद' का प्रस्ताव किया। इसमें जीवन, के भौतिक साधनों के उत्पादन की पद्धतियों की प्रमुखता पर बल दिया गया था। ये मानवीय संबंधों के, संदर्भ में मानव जीवन के अस्तित्व को सर्वोपरि प्रभावित करते हैं। आधार के रूप में (जिसमें उत्पादन, की पद्धति और संबंध सम्मिलित हैं) तथा उसके ऊपर ढाँचे की दृष्टि से (जिसमें राजनीतिक,, सांस्कृतिक और बौद्धिक आयाम भी शामिल हैं) वास्तविकता को समझते हुए मार्क्स ने अनुभव किया, कि वैयक्तिक चेतना का निर्धारण समाजीय प्रक्रिया के द्वारा होता है। मार्क्स ने संपूर्ण इतिह/स को वर्गसंघर्ष के इतिहास के रूप में प्रस्तुत किया। मार्क्स के अनुसार सामाजिक विकास की पाँच भिन्न-भिन्न, , 230, , , , 1 2 -०-५--०-८०
Page 2 :
अवस्थाएँ हैं। ये हैं - (क) आदिम साम्यवाद, (#)्लासता, (ग) सामंतवाद, (घ) पूँजीवाद; और (च), साम्यवाद। मार्क्स के ध्यान का प्रमुख केंद्र समकालीन पूँजीवाद का विश्लेषण था प्रथम तीन मुद्दों में, उसकी विशेष रुचि नहीं थी और उसने भावी साम्यवादी समाज की रूपरेखा प्रस्तुत करने का भी प्रयास, नहीं किया। मार्क्स ने केवल उसकी (अर्थात् भावी साम्यवाद की) मोटी रूपरेखा-भर प्रस्तुत की। उसने, पूँजीवाद का तार्किक दृष्टि से विश्लेषण किया और उत्पादन के साधनों को विकसित करने के कार्य, की प्रशंसा की। वहीं, दूसरी ओर मार्क्स ने इसकी असमानताओं, बरबादी और लोगों के शोषण की निंदा, की। लेकिन उसकी यह धारणा गलत थी कि एपूँजीवाद के दिन समाप्त होने जा रहे हैं। बहुत-से, , श्व्याख्याकारों का विश्वास है कि मार्क्स को सबसे अच्छी तरह से समझने के लिए उसे उन्नीसवीं, शताब्दी के पूँजीवाद के समालोचक के रूप में देखना होगा!, , , , 15.2 जीवन और काल, , मार्क्स का जन्म राइनलैंड (प्रशिया) के ट्रायर नामक स्थान पर एक यहूदी परिवार में हुआ था। बचपन, में ही उसने ईसाई धर्म को स्वीकार कर लिया। उसने बॉन, बर्लिन और जेना में इतिहास, कानून और, दर्शन का अध्ययन किया। उसने जेना विश्वविद्यालय से दर्शन में डॉक्टरेट (पी-एच.डी) की उपाधि प्राप्त, की। अपने विद्यार्थी जीवन में वह समाजवाद की ओर आकृष्ट हुआ। यह (समाजवाद) ऐसा सिद्धांत था, जिसे तत्कालीन शासकों द्वारा बहुत खतरनाक समझा जाता था। मार्क्स की समाजवादी विचारधारा और, उग्र राज्य-विरोधी विचारों के कारण उसे प्रशिया से निष्कासित कर दिया गया। और तब उसे फ्रांस, तथा बेल्जियम में शरण लेनी पड़ी। जब वह फ्रांस में था तब भी उसने जर्मनी में कार्यरत मज़दूरों को, संगठित करने का काम जारी रखा। इसके परिणामस्वरूप फ्रांसीसी सरकार ने प्रशिया की सरकार के, दबाव के कारण उसे फ्रांस से निष्कासित कर दिया। सन 1849 में वह इंगलैंड में जाकर बस गया और, 1883 तक मृत्यु-पर्यत वहीं रहा।, , 145.2.1 बौद्धिक यात्रा का आरंभ, , मार्क्स ने दर्शन, अर्थशास्त्र, राजनीति और समाज से संबंधित विभिन्न विषयों पर विस्तार से लिखा है।, उसने बहुत व्यापक स्तर पर विभिन्न विषयों पर लिखा है। इस कारण उसके इतने व्यापक और, संश्ल्िष्ट विचारों पर इस पाठ के सीमित पृष्ठों में चर्चा करना संभव नहीं है। इसलिए उसे किसी मत, या संप्रदाय में रखना भी उतना ही कठिन है। अपने विद्यार्थी जीवन के दौरान मार्क्स हीगल के, आदर्शवाद की ओर आकृष्ट हुआ। लेकिन शीघ्र ही उसकी रुचि मानववाद और अंततः वैज्ञानिक, समाजवाद की ओर हो गई। वह अपने समय के प्रमुख आंदोलनों और घटनाओं से भी प्रभावित हुआ।, उसके जीवन के रचनात्मक वर्षों में वहाँ किसी न किसी रूप में विकासवाद का विचार पर्याप्त प्रचलन, में था| इनमें से विकास के एक रूप का प्रवर्तन हेगेल ने (:ए०ए॥स्०ा ० 405०प९10९३ ० $फांगो', के द्वारा) किया तो दूसरे रूप का प्रतिपावन डार्विन ने ((0परज्ञाए1 57९तं९७' मैं) किया। यद्यपि मार्क्स, ने कुछ समकालीन विषयों को स्वीकार किया जबकि कुछ अन्य विषयों को उसने अस्वीकार कर दिया।, उसका सबसे प्रारंभिक योगदान ऐतिहासिक विकास के वैकल्पिक सिद्धांत के प्रतिपादन में था जिसे, “इंद्वात्तक ऐतिहासिक भौतिकवाद' (9ग९लांटव परांञरणांट१ ४३९1गांआ) का सिद्धांत कहा जाता, है। इस सिद्धांत के द्वारा उसने हेगेल और डार्विन के सिद्धांत को अस्वीकृत कर दिया और मानवीय, इतिहास की दिशा की व्याख्या के रूप में अपने सिद्धांत की स्थापना की। मार्क्स ने अपने बहुत-से, , ल््श्ञा
Page 3 :
समकालीन विद्वानों, विशेष रूप से प्रौधान (श०0०॥०7) और बकुनिन (800४0) तथा बहुत-से यूरोप, के समाजवादी समूहों के साथ वाद-विवाद और तर्क-वितर्क भी किया।, , 15.3 अलगाव का सिद्धांत त॒॥०ण३ णैलैंशा॥10) 7 सिद्धांत (९००१ ए 310शा॥॥10॥), , मार्क्स का सबसे मौलिक योगदान उसके अलगाव या अन्य संक्रमण के सिद्धांत में है। इस का का, उल्लेख उसकी बहुत आरंभिक पुस्तक (80०1०्रांए क्ाव एफ०5०फ08| ४क्माप5टा1015) में हुआ जिसे, मार्क्स ने 1843 में लिखा था लेकिन उसकी खोज उसकी मृत्यु के पचास वर्ष बाद हुई। इन, पांडुलिपियों (०105०) से पता चलता है कि 'आरंभिक मार्क्स' की रुचि मुख्य रूप से अलगाव, की समस्याओं में थी।, मार्क्स के अलगाव के सिद्धांत को समझने के लिए हीगल के अलगाव संबंधी विचारों को समझना, महत्वपूर्ण है| इसका कारण यह है कि मार्क्स ने अलगाव के विचार को हीगल से लिया है। उसने इसे, तब ग्रहण किया जब वह हीगल के दृश्य घटना विज्ञान (शात्राणाआा० 0०९५) के विचार का अध्ययन, कर रहा था। हीगल के अनुसार अलगाव चेतना की उस अवस्था को कहते हैं, जिसमें मनुष्य बाहरी, विश्व के उस रूप से परिचित होता है जिसमें उसे बाहरी वस्तुएँ अन्यदेशीय प्रतीत होती हैं। प्रकृति, आत्मा/निरपेक्ष मान से स्वतः पृथक (अन्यदेशीकृत) है। मनुष्य स्वयं अलगाव/वि-अन्यवेशीकृत, (0०-41०॥॥०) करने की प्रक्रिया में स्वतः अलगाव आत्मा/ईश्वर है। फ्यूअरबाख (20८७४०॥) की, स्थिति ठीक इसके विपरीत है यानी मनुष्य स्वतः अलगाव/अन्यदेशीकृत ईश्वर नहीं है, इराके बजाय, ईश्वर स्वतः अलगाव/अन्यदेशीकृत मनुष्य है। हेगेल के अनुसार चेतना को जिन वस्तुओं का अस्तित्व, बाहर प्रतीत होता है वे (वस्तुएँ) वास्तव में केवल चेतना की प्रातिभासिक (परथाणग्रआा।) अभिव्यक्ति, हैं। इस प्रकार चेतना स्वयं को अलगाव के द्वारा विमुक्त करती है। दूसरे शब्दों में, यह चेतना द्वारा की, गई पहचान है कि वस्तुएँ यहाँ केवल अलगाव या चेतना के मूर्त रूप में दिखाई देती हैं। मार्क्स इस बात, . के लिए हेगेल की कटु आलोचना करता है कि वह वस्तुओं के अस्तित्व की पहचान अलगाव के रूप, में करता है जो इस वस्तु जगत को माया के रूप में देखता है। मार्क्स ऐसा इंद्रिय 'विषयीकरण', (०श००४१०४॥०) और 'अलगाव' (॥ा॥४०0) के बीच अंतर करके करता है। इंद्रिय विषयीकरण, वस्तुओं के भौतिक अस्तित्व पर आधारित है जबकि अलगाव चेतना की एक अवस्था है जो मनुष्यों और, वस्तुओं के बीच विशिष्ट प्रकार के संबंध का परिणाम है। ऐसे संबंध स्वैर-कल्पना फंलासी (थिप/9)), या माया पर आधारित नहीं हो सकते क्योंकि वस्तुओं की वास्तविक सत्ता है।, , चूँकि मार्क्स वस्तुओं की स्वायत्त सत्ता को स्वीकार करता है इसलिए “वस्तुओं के निर्माण की, अवस्थाओं' में परिवर्तन लाकर ही अलगाव से पार पाया जा सकता है। संक्षेप मैं, जहाँ हेगेल का, अलगाव चेतना की एक अवस्था है (जिसे चेतना की दूसरी अवस्था द्वारा दूर किया जा सकता हैं), वहाँ, मार्क्स के अलगाव का संबंध वास्तविक अस्तित्व वाली वस्तुओं से है और उस पर नियंत्रण क्स्तु से, संबंधित गतिविधियों के वास्तविक क्षेत्र में ही किया जा सकता है।, , मार्क्स की दृष्टि में हेगेल मत की इस स्थिति का एक परिणाम तो यह है कि संपूर्ण इतिहास चिंतन, का कार्य बन कर रह गया है, क्योंकि हेगेल सभी मूर्त घटनाओं को केवल विचार या जात्मा की, अभिव्यक्ति मानता है। चूँकि हेगेल की दृष्टि में अलगाव की समाप्ति केवल चेतना के स्तर पर होती, है इसलिए वास्तविक अलगाव को समाप्त करना असंभव हो जाता है। इसलिए मनुष्यों को अपनी, , 232
Page 4 :
दासता का वैधीकरण करना पड़ता है। दूसरे, मार्क्स के अनुसार अलगाव ऐतिहासिक स्थिति और, इसके परिणामों में बद्धमूल है। पूँजीवादी समाज में वस्तुओं का उत्पादन मनुष्य को अपनी वास्तविक, #षमता प्राप्त करने में सहायक नहीं होता। मनुष्य जब वस्तुओं के उत्पादन में संलग्न होता है तब उसकी, अपनी क्षमता को प्राप्त करने में असमर्थता अलगाव का कारण बनती है। इसलिए जब वरतुओं के, उत्पादन से मानव की संभावनाएँ प्रकट होती हैं तब अलगाव को नियंत्रित किया जा सकता।, , , , पूँजीवाद में अलगाव की स्थितियों में उत्पादन होता है जिसके परिणामस्वरूप वस्तुओं के उत्पादन से, अमानवीकरण (त९ाणगरभां5॥1०7) होता है। किसी श्रमिक द्वारा अपने श्रम से उत्पादन वस्तु (उत्पाद), अब स्वयं उसके विरुद्ध अन्यदेशीय हो जाती है क्योंकि वह उस श्रमिक के अधिकार में न रहकर उससे, स्वतंत्र हो जाती है। सारांश यह है कि श्रम स्वयं में एक वस्तु बन जाता है। उसके श्रम से उत्पादित, वस्तु उस श्रमिक की नहीं हो जाती, वह वस्तु अब उसकी नहीं है। वह किसी और की होती है , जाता है, वह अमानवीकृत हो जाती है। इस प्रकार श्राप कह सकते हैं कि मार्क्स के अनुसार श्रम एक, अमानवीकारक कार्य होता है, जबकि यह स्वैच्छिक कार्य न होकर मजबूरी 4 किया जाने वाला काम, होता है। यहाँ ऐसी क्या बात है जो श्रम को मजबूरी का कार्य बना देती है। यह श्रमिक के श्रम की, प्रकृति नहीं है बल्कि यह ऐतिहासिक आवर्थाएँ हैं जिनमें श्रमिक द्वारा श्रम या मजदूरी की जाती है।, इसलिए जो समाज अलगाव को समाप्त करेगा वह श्रम को समाप्त नहीं करेगा; वह केवल उन, अलगावकारी परिस्थितियों को समाप्त करेगा जिनमें श्रम किया जाता है। दूसरे शब्दों 4 श्रम, समाजवादी और साम्यवादी समाज में भी रहेगा लेकिन यह अवपीड़क (मजबूरी में की जाने वाली), गतिविधि नहीं होगा। एक महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि क्या कार्य उस श्रमिक के अस्तित्व का साधन है, या वह उसके जीवन का एक हिस्सा बन जाता है। इसका अभिप्राय है कि साम्यवादी सरकार के, अंतर्गत भी व्यक्ति के श्रम से वस्तुओं का उत्पादन जारी रहेगा लेकिन अलगाव नहीं होगा।, , , , ऊपर दिए गए विवरण में आपने देखा होगा कि पूँजीवादी समाज में जिस रूप में अलगाव विद्यमान है, इसके कई आयाम हैं। लेकिन इनमें से तीन आयाम प्रमुख हैं - () मनुष्य का प्रकृति से अलगाव (7), मानव समुदाय या सहकर्मियों से अलगाव: और (9) स्वयं से अलगाव | प्रकृति से अलगाव का मतलब, है - अमिक का अपनी योग्यता और विश्व को निर्माण करने की क्षयता से अलगाव क्योंकि उसे यह, विश्व उसके मालिक के रूप में दिखाई देवा है। दूसरे अलगा कारण यह है कि श्रमिक अपने, श्रम से पैदा की गई वस्तुओं का मालिक गहीं हो सकता क्योंकि वे किसी दूसरे की होती हैं। इतना ही, नहीं, उसके द्वारा किया गया श्रम भी उसका अपना नहीं होता उसने उसे किसी दूसरे को बेच, दिया होता है। इसके अलावा, उसके श्रम रे पैदा होने वाली वस्तु का जो मूर्त रूप है वह भी उसका, नहीं है। इस प्रकार वह अपने श्रम से पैदा की गई वस्तु से अन्यवेशीकृत हो जाता है। उसने जिस वस्तु, का उत्प्रादन किया है वह बाहरी अस्तित्व ग्रहण कर लेती है। उस वस्तु का उसके बाहर रचतंत्र अस्तित्व, है और वह उसे पराई लगती है। वह वस्तु स्वायत्त शक्ति के रूप में उसके विरोध में स्थित होती है।, तीसरे, अलगाव इस कारण से भी होता है क्योंकि श्रमिक के लिए वह कार्य स्वैच्छिक नहीं होता बल्कि, वह उस पर जबरन थोपा जाता है। यह एक प्रकार की जबरन मजदूरी है जो उसे करनी पड़ती है। यह, कार्य उसकी अपनी आवश्यकताओं की संतुष्टि के लिए नहीं होता, बल्कि दूसरों की आवश्यकताओं, की पूर्ति के लिए होता है। इसलिए उसका यह काम उसके लिए नीरस मज़दूरी होती है जो ऊबाऊ और, थकाने वाली होती है। बारह घंटे तक वह श्रमिक बुनाई और कताई करता है, वह मशीन छेद सकता, करता है, वह मकान बनाता है, बेलचे से मिट॒टी फेंकता है, पत्थर तोड़ता है, सिए पर, , , , , , , , , , , , 233
Page 5 :
बोझा ढोता है - उसे मालूम नहीं होता कि वह ये सब काम क्यों कर रहा है। अलगाव का एक और, पहलू है - जीवित श्रमिक के श्रम के ऊपर मृत, वस्तु निर्माणकारी मशीनी श्रम का वर्चस्व। इस प्रक्रिया, में कामगार या श्रमिक मशीन का उपांग बन जाता है। उसका उत्पाद और उसकी मशीनें उसके, वास्तविक मालिक बन जाते हैं। वह स्वयं से पराया हो जाता है। इस कारण से मनुष्य स्वयं को केवल, जैव कार्यों (जैसे खाना, पीना, बच्चे पैदा करना आदि) में ही स्वतंत्र अनुभव करता है जबकि उसके, मानवीय कार्यों में उसकी स्थिति जानवरों जैसी हो जाती है। उसके भीतर का जानवर इनसान बन, जाता है, उसके अंदर का मानव जानवर के समान हो जाता है। मार्क्स आगे इसकी व्याख्या करते हुए, कहता है कि :, , “जितना कम तुम खाओगे, पियोगे, पुस्तकें खरीदोगे, सिनेमा देखोगे, मयखाने या सभाओं, में जाओगे और जितना तुम सोचोगे, प्यार करोगे, नाचों-गाओगे, चित्र बनाओगे आदि, उतना ही तुम अधिक बचत कर सकोगे, और उतना ही अधिक तुम्हारा खजाना बढ़ेगा,, जिसे न तो कीड़े खाएँगे और न ही जंग उसे खराब करेगा - यह तुम्हारी पूँजी है। तुम्हारा, निजी अस्तित्व जितना कम होगा उतना ही कम तुम अपने जीवन को अभिव्यक्त करोगे।, जितनी अधिक धन-संपत्ति तुम्हारे पास होगी उतना ही तुम्हारा जीवन अलगाव/अन्यदेशीकृत, होगा और उतनी ही अधिक तुम्हारी अलगाव/अन्यदेशीकृत व्यक्तित्व की बचत होगी।, , उपर्युक्त उद्धरण से पता चलता है कि मार्क्स के लिए संपत्ति की प्राप्ति व्यक्ति के उद्देश्य की सिद्धि, नहीं है अपितु संपत्ति का निषेध उसके लक्ष्य की प्राप्ति में सहायक है। इसलिए, न केवल संपत्तिहीन, (अमिक) अलगाव/अन्यवेशीकृत हैं अपितु वे" भी अन्यदेशीकृत हैं जिनके पास संपत्ति है (अर्थात्, पूँजीपतिं)| एक व्यक्ति के पास संपत्ति के होने से अनिवार्य रूप से दूसरे क॑ पास संपत्ति के न होने की, बात स्वाभाविक है। मार्क्स के मत में अलगाव की समस्या का समाधान सबके पास संपत्ति को, , सुनिश्चित करने से नहीं हो सकता (जो एकदम असंभव है)| वह केवल संपत्ति से संबंधित सभी संबंधों., , को समाप्त करने से ही हो सकता है। इसलिए अलगाव के उन्मूत्नन के लिए पूँजीवाद को समाप्त करना, पूर्व-आवश्यकता है। पूँजीवाद की परिभाषा में ही अलगाव अनिवार्य है।, , मार्क्स के अनुसार, साम्यवाद न केवल निजी संपत्ति के सकारात्मक उन्मूलन के पक्ष में है बल्कि वह, मानव के आत्म-अलगाव के उन्मूलन के भी पक्ष में है। इसलिए, यह मनुष्य की अपनी ओर एक, सामाजिक के रूप में यानी वास्तव में मनुष्य के रूप में वापसी है। दूसरे, मार्क्स ने अपनी रचना 'दि, जर्मन आइडियोलॉजी' में कहा है कि अलगाव का मुख्य कारण क्रियाकलापों का निर्धारण है, जिसके कारण हम जिस वस्तु का भी उत्पादन करते हैं वह हमारे ऊपर एक वस्तुपरक शक्ति बन जाती, है जो हमारे नियंत्रण से बाहर हो जाती है, वह हमारी अपेक्षाओं में रुकावट बन जाती है और अंतत्तः, हमारे आकलनों को बिगाड़ देती है| साम्यवादी समाज में मनुष्य अलगाव से निस्तार पा जाएगा क्योंकि, किसी के भी क्रियाकलापों का कोई एकमात्र क्षेत्र नहीं होगा और प्रत्येक व्यक्ति अपनी इच्छानुसार, किसी भी शाखा में प्रवीणता पा सकता है। वहाँ मेरे लिए यह संभव होगा कि मैं आज एक काम करूँ, और कल दूसरा, मैं सुबह शिकार के लिए जा सकता हूँ और दोपहर को मछली पकड़ सकता ज, शाम को पशुपालन कर सकता हूँ, रात के खाने के बाद आलोचना कर सकता हूँ। यानी मैं ऐसा कोई, भी काम कर सकता हूँ जिससे मुझे खुशी मिले, चाहे मैं कभी शिकारी, मछुआरा, पशुपालक या, समालोचक न रहा होऊँ। मनुष्य के लिए अलगाव और शोषण से मुक्ति की यह वास्तविक अवस्था, , होगी।, , 234