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?| | शा पर मय या, , राजनीतिक सिद्धान्त : प्रकृति और महत्व, , [?01.11081 1#5018४ : 48४1 ७७६ 8|10 5611710॥1108], , , , , , “राजनीतिक सिद्धान्न एक राजनीतिक चेतना चाहता है। यह उन लोगों के लिए नहीं है, जो, अपने रहने वाले विश्व के बारे में गहराई से सोचने में असमर्थ हैं।'” -हैकर, , , , सामाजिक विज्ञानों का उद्देश्य मानवीय जीवन के विभिन आयामों की व्याख्या करना है। मानवीय जीवन, के विभिन आयामों की व्याख्या करने वाले सामाजिक विज्ञानों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण नाम राजनीति-विज्ञान का, है, जिसे प्राचीन यूनानी विचारक व राजनीति-विज्ञान के जनक अस्त ने सर्वोच्च विज्ञान (880९7 30०॥८०), कह्च है।, , राजनीति विज्ञान जैसे सर्वोच्च सामाजिक विज्ञान में राजनीति सिद्धान्त सर्वाधिक महत्वपूर्ण विषय है,, जिसका सम्बन्ध मानवीय चेतना से है। मानव में जैसे-जैसे चेतना की अभिवृद्धि होती गई, ठीक उसी तरह, सिद्धान्तों के प्रतिपिदन का सिलसिला भी जारी रहा। हर युग में राजनीतिक विचारकों ने मानवीय गतिविधियों, एवं आवश्यकताओं के प्रति एक दृष्टिकोण रखा। मानव जीवन के राजनीतिक पक्ष से सम्बन्धित विचारकों के, दृष्टिकोण को ही राजनीतिक सिद्धान्त का नाम दिया जाता है। >, , सामान्यतः राजनीति विज्ञान के कुछ विद्यार्थियों द्वार राजनीतिक चिन्तन, राजनीतिक विचारधारा, राजनीतिक, सिद्धान्त, राजनीतिक विश्लेषण और राजनीतिक विज्ञान को पर्यायवाची समझने की भूल की जाती है, जबकि, ये सभी पर्यायवाची नहीं है। निश्चित रूप से इनके बीच समानताएँ हैं, पर्तु बहुत हद तक असमानताएँ भी, है। ऐसी स्थिति में सभी को एक नहीं माना जा सकता है।, , राजनीतिक चिन्तन और राजनीतिक सिद्धान्त में कुछ समानताएँ हैं, जैसे दोनों में राज्य को केद्धीय विषय, बनाया गया है; दोनों में विचारकों के दृष्टिकोण की प्रधानता है, लेकिन फिर भी इन्हें एक नहीं माना जाना, चाहिए। राज्य की उत्पत्ति, विकास, प्रकृति या स्वरूप और उपलब्धि से सम्बन्धित रोचक, आदर्शात्मक,, ऐतिहासिक, वार्किक, काल्पनिक, मूल्य सापेक्ष, व्यक्तिपरक वर्णन या विवेचन को राजनीतिक चिन्तन (?019व्थ, ग॥०पष्टा।) कहा जाता है, जबकि राजनीतिक सिद्धान्त राज्य के दार्शनिक या चिन्तन के पक्ष के अतिरित, राज्य के व्यावहारिक क्रियाकलाप और राज्य मानव सम्बन्ध को भी अध्ययन का विषय बनाता है। दूसरे शब्दों, में, राजनीतिक सिद्धान्त में प्राचीन राज्य के स्वरूप व कार्य से लेकर वर्तमान राज्य के स्वरूप व कार्य तक, का अध्ययन किया जाता है, अर्थात् राजनीतिक सिद्धान्त का दायरा व्यापक है; जबकि राजनीतिक चिन्तन का, दायर राजनीतिक सिद्धान्त की तुलना में कम है, क्योंकि यह तो राज्य के परम्परागत स्वरूप के वर्णन तक, ही सीमित है। राजनीतिक चिन्तन का दायरा उस समय राजनीतिक सिद्धान्त से बहुत व्यापक हो जाता है; जब, इसका सम्बन्ध अध्यात्म और दर्शन जैसे आदर्शवादी यूल्यों से हो जाता है। जब राजनीतिक चिन्तन में आदर्शवादी, मूल्यों का समावेश होता है, तो उस समुय उसका दायरा भले ही व्यापक हो जाता है, लेकिन उसके स्वरूप, में अस्पष्टता व अव्यवस्था दिखाई देने लगती है। यहाँ यह उल्लेखनीय है कि राजनीतिक चिन्तन में आदर्शवादी, मूल्यों के इसी समावेश के कारण इसे राजनीतिक दर्शन (201०8) [%11050009) भी कहा जाता है।, राजनीतिक सिद्धान्त में आध्यात्मिक व-दार्शनिक मूल्यों का समावेश नहीं होता है, इसलिए इसके स्वरूप में, अस्ष्टता दृष्टिगोचर होने का सवाल ही नहीं उठता। राजनीतिक सिद्धान्त में तो राज्य के विविध पक्षों का, व्यवस्थित अध्ययन किया जाता है। ः हा, , (3 5८9॥॥86 जांती 01(शा 5८116