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164 | मानव विकास की प्रगति का अध्ययन का, ८010) - रहें 1, , का प्रत्यय ((०००ए( रण ।, , अच्छा बह वह है जो अपने माता-पिता का सा शा ओ आना, है, है, उन्हें प्सन रखता है, उनके साथ सहयोग करता हैं, 2348 सच, [लक 3 | में किस मरकार के अत्ययों का निर्माण, , अपनी-अपनी भूमिकाओं के सावन, हम बारे पर निर्भर करता है कि बालके के प्रति अभिभावक के क्या पल हैं। जे, , नं पारिवारिक निर्णयों 'में यह, अभिभावक बालक को परिवार का महत्वपूर्ण अंग समझकर पा 35100", दिशा जाने का प्रयल करते हैं तो बालक भी परिवार के उत्तरदायित्वपूर्ण सदस्य की गे, , अपना लेता है।, , भाषा का विकास, , मनोवैज्ञानिकों के अनुसार, भाषा विकास बालक के रोने और चिल्लाने के साथ, प्रारम्भ हो जाता है। एक कहावत हे कि बच्चा प्यार की भाषा समझता है । कुशाम्र बुद्धि वात, बालक अतिशीष्र बोलता है और दूसरों की बातों का जल्दी ही अनुकरण कराता है। माँ,प्रम, बाबा, बुआ अक्सर ये शब्द बालक की आवाजों में स्वतः ही सुनाई पड़ने लगते हैं। बालक, ज्यादातर चीजें भाषा के माध्यम से ही सीखता है। वह अपने माता-पिता के मुख का अध्य, बहुत बारौकी से करता है और स्वयं भी वैसा ही अनुकरण करना चाहता है। एक शिशु क॑, अपनी मौलिक व पृथक भाषा होती है। कष्ट में रोकर तो खुशी में मुस्कुराकर वह अपनी वाद, कह देता है। चार-पाँच महीने का शिशु कुछ ध्वनियाँ निकालता है जो अस्पष्ट सी होती हैं। मं, की लोरी उसे काफी जल्दी समझ में आने लगती है। धीरे-धीरे वह कुछ निरर्थक शब्द बोलना, प्रारम्भ कर देता है। फिर वह कई शब्दों को जिनको वह अपने आस-पास सुनता है उनके, दोहराने लगता है। भाषा के विकास में अनुकरण बहुत महत्व रखता है । ब्रुक्स का कहना है, “बालक अपने भाषा-विकास के काल में बड़ों की उन ध्वनियों को कभी नहीं दुहराता कि, उसने स्वयं अपनी स्वाभाविक ध्वनियों के अन्तर्गत दोहरा लिया हो ।” पहले वह अपने द्वाग, बोली गई ध्वनियों को ही दोहराता है और फिर बड़ों की नकल करना शुरू करता है। भाषा के, , प्रयोग का कारण बड़ों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करना होता है। पियाजे तर, बालकों की भाषा सदा आत्मभिमान से ४ होती है। कई आकर्षक गेगरितो अर हस, बालक को बात करने के लिए उकसाते हैं। शिशु सबसे दा बातें दर, क्योंकि उम्से वह अस्त में आने के तुस्त बाद से ५ बातें अपनी माँ से करा है, वह खुद को सुरधित महसूस करता है । दो वर्ष तक पहुंचते पहुंचे ता है और उसके सानिध्य मे, तक पहुँचते-पहुँचते बालक लगभग पूरा वाक्य, , बोलना सीख जाता लड़कियाँ, पा है। यह भी पाया गया है कि लड़कियाँ लड़कों से जल्दी बोलना सी, , वाणी एवं भाषा का विकास, (21 : : ४। है।। | 1ब्राएप४४९ ए0१श०्शा), , हि. मानव को अन्य प्राणियों से, बिका साल न, पर भी अपना प्रभाव डालता है। सामाजिक का विकास विशेष रप बे नए, , से जुड़े हुए हैं। भाषा वरजुत;, मील अभिव्यक्ति का माध्यम है.तथा अभिव्यक्ति की इच्छा मनुष्य
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नवजात काल | 165, (59००० 100ए0७0०एगथा), , वाणी (9/०००॥) एक प्रकार की भाषा है, जिसमें, किया जाता है। बालक द्वारा उच्चतर हर ध्वनि वाणी के के माध्यम से अर्थ, सः नियन्रण नहीं नहीं आती है। जब तक, रे ल्ायुपेशीय तन्र का. नियन्नण विकसित नहीं करता है, जिससे कि स्पष्ट तथा नियन्त्रित, धरतिं उपल हो सके, उसके शाब्दिक उच्चारण केवल ध्वनि मात्र रहते हैं जिन्हें वाणी नहीं कहा, आ सकता है। निम्न दो शर्तें पूरी होने पर ही ध्वनि को वाणी कहा जा सकता है-, 1) जिन शब्दों का उच्चारण बालक करता है, उसका अर्थ उसे चाहिए, , बिन ; कस के लिए शब्दों का उच्चारण किया गया है उनसे पा करने की, चाहिए। यद्यपि बालक आरम्भ में पा-पा ध्वनि का उच्चारण करता है परन्तु जब, , तक मा ध्वनि पिता के सन्दर्भ में उच्चरित नहीं की जाती है वह वाणी नहीं कही जा, , की है।, , | (2) बालक शब्दों का उच्चारण इस प्रकार करे कि अन्य व्यक्ति उन्हें आसानी से समझ, , : झकें। ऐसी ध्वनियाँ जो केवल बालक के निकट सम्पर्क में रहने वाला व्यक्ति ही समझ सके,, , « वाणी नहीं कहा जा सकता है ।, , वास्तविक वाणी तथा भाषा का प्रारम्भ किस समय हुआ यह कहना कठिन होता है ।, , 1, वाणी का महत्व (00106 5966०), वाणी के द्वारा मानव तथा अन्य प्राणियों में महत्वपूर्ण अन्तर स्थापित किया जाता है।, मानव के लिए वाणी अत्यन्त महत्वपूर्ण हे। यह कहना कठिन है कि किस भ्रकार के कार्य, अथवा किस क्षेत्र के कार्य वाणी के बिना किए जा सकते हैं। फिर भी निम्नलिखित क्षेत्रों में, वाणी का विकास अत्यन्त महत्वपूर्ण है-(1) सामाजिक सम्बन्धों के लिए--अंन्तवैक्तिक सम्बन्धों की बनाने तथा कक ह का अंग, बनने के लिए, समूह के सदस्यों के साथ अभिव्यक्ति की योग्यता आवश्यक हैं। एलिस, (81, 1967) के अनुसार--“वाणी वह प्राथमिक माध्यम है, जिसके द्वारा व्यक्ति अपने, . समाज को प्रभावित करता है तथा समाज से प्रभावित होता है, सामाजिक अभियोजन के लिए वाणी अत्यन्त 88 है। जो शिशु बहरे होते हें, ः उनकी सामाजिक अभियोजन की स्थिति को देखकर हम इसके महत्व को सरलता से समझ, . सकते हैं। बहरे बालक समाज से कट जाते हैं।, जो शिशु अपने विचारों की अभिव्यक्ति में निषुण होते हैं,वे सामाजिक अभियोजन में, भी उन शिशुओं की अपेक्षा अधिक अच्छे रहते हैं, जिनमें वैचारिक अभिव्यक्ति की निपुणता, , . कम होती है अथवा नहीं होती है।..*, , बालक में नेतृत्व के विकास के लिए वाणी की निपुणता भी आवश्यक होतीं है।, तथा चुप बालक समूह का नेतृत्व नहीं कर सकता है।, , ब (2) सामाजिक मूल्यांकन के लिए--बालक जो कुछ बात करते हैं तथा किस प्रकार बातें, करते हैं,इसी के आधार पर उनका सामाजिक मूल्यांकन किया जाता है। बालक के व्यक्तित्व, , 4 के मूल्यांकन के लिए व्यक्ति वाणी की को सर्वाधिक महत्व देते हैं। समाज, , 1 का मूल्यांकन किस प्रकार क्रता है, इसी के आधार पर बालक अपने स्व-प्रत्यय, , ; कर शुषा) का निर्माण करता है। बालक अपनी वाणी के प्रभाव को स्पष्टतया अनुभव, , ।
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166 | मानव विकास की प्रगति का अध्ययन, , वाणी तथा लेख द्वार बालक की अभिव्यक्ति, उपलब्धि के लिए तथा कै, धो ए श उसकी शैक्षणिक शाम आकर बहा हे, प्रभाव डालता है | * ता है, ५३०३२7४-४ प्रकार से अभिव्यक्ति में आगे रहता है, जिससे उसकी शत्ता कं, , सफलता प्रभावित होती है ।, , ४ अभिव्यक्ति के प्रकार, 2 है प्रयोग की योग्यता बालक को लाबी तथा जटिल ५३४ न प्राण हे, है परन्तु जब तक बालक वाणी की योग्यता प्राप्त नहीं कर लेता अभिव्य रे अन्य भा ४००, के द्वारा अपने भाव तथा आवश्यकताओं को समझने का प्रयास करता है। रो भन, अभिव्यक्तियों के द्वारा वह अपनी असहायता को काफी अंशों में कम कर पातः है |, , प्रथम माहों में शिशु इन्हीं वाणी पूर्व अभिव्यक्तियों- के माध्यम से स्वयं को प्रगर का, है। ये अभिव्यक्तियाँ निम्न रूप में दिखाई देती हैं-, (1) रोना, (2) कूकना तथा बबलाना, (3) हावभाव |, , रोना-रोना बालक की प्रधम बहुउ््देशीय भाषा है। जन्म के पश्चात् ही रोने की क्रिया, , आरम्भ हो जाती है। प्रथम 2 सप्ताह में रोना पर्याप्त अनियमित होता है । तीसरे सप्ताह में गेने, , में कमी आ जाती है तथा 3-4 माह में रात का रोना तथा रात को नींद से उठना कम हो जाता, | बालक 1 माह का होने तक उसके रोते समय ऑसू नहीं आते हैं।, , रोने के कारण-7 सप्ताह तक बालक का रोना मुख्यतया भूख लगने पर होता है।, , इसके अतिरिक्त पेट में दर्द के कारण कारण भी बच्चा रोता है। प्रथम 3 माह तक रोने का, , मुख्य कारण पेट का दर्द होता है। आयु वृद्धि के साथ-साथ रोने के कारणों में भी वृद्धि होती, , जाती है। बड़े शिशु पीड़ा, तीव्र प्रकाश, तीबू ध्वनि, असुविधाजनक शारीरिक स्थिति, नींद में, या पड़ना, थकान, भूख, बस्धों द्वारा उत्पन बाधाओं के कारण शरीर की हलचल रुक जाना,, , ; सम्पर्क हट जाने के कारण रोते हैं।, भोजन तथा नींद के पूर्व शिशु का रोना अत्यन्त समान है।, , 3 माह तक बालक को यह अच्छी तरह समझ में आ जाता है कि रोने के द्वार, वह निश्चय ही अन्य व्यक्तियों का उन अपनी ओर आकर्षित कर सकता है-। यदि कोई, हम बन्द कर लि श्ग का बालक रोकर अपना विरोध प्रगट करता, , आकर बालक की ओर रोम लग, | यदि वयस्क किसी दूसरे बालक की ओर ध्यान न दे तो 5 माह का बालक रोने लगता, , होता है तो 9 माह का बालक रोने, लगता है। 1 वर्ष में गेने का कारण भय, अपरिचित परिस्थिति, गोद में उठाने का असामान्य, , सामाजिक प्रतिक्रियायें--शिशु की आयु अनुसार प्रतिक्रिया, लिए कल होगा हर तथा भला को पा पाए ने केजति गिर, जाती है। इस स्थिति में कक का माध्यम समझकर शिशु के रोने की अपेक्षा की, तक वह रोता नहीं है। हे आकार पपनी की | उस समय तक नहीं की जाती, जब., जाता है। 'पनी आवश्यकताओं की के लिए बालक रोना सीख
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नवजात काल | 167, , विकास के पश्चात् आवश्यकता की पूर्ति के लिए रोना वॉछनीय नहीं माना, , है।, 5५ सामान्य रोना शिशु के लिए व्यायाम की तरह कार्य करता है। यह व्यायाम माँसपेशियों, के वृद्धि तथा संचालन के लिए आवश्यक है तथा भूख भी जागृत होती है। रोने के द्वार शिशु, , संवेगों के ग्रकट होने का मार्ग मिल जाता है परन्तु बहुत अधिक समय तक बहुत जोर से, हा खास्थ्य के लिए हानिप्रद होता है । रोना आदत के रूप में नहीं होना चाहिए।, जब शिशु भाषा का प्रयोग करना आरम्भ कर देता है तो उसके सोने की भाषा कम हो, जाती है। आदत बन जाने पर वाणी के विकास के बाद भी रोने में कमी नहीं आती है परन्तु, सस्य शारीरिक तथा मनोवैज्ञानिक विकास के लिए वाणी विकास के साथ रोने की मात्रा कम, होगा आवश्यक है। 5 वर्ष तक बालक का रोना पूर्णतया बन्द हो जाना चाहिए।, , _.. कूकना तथा वबलाना-अथम माह में ही बालक रोने के अतिरिक्त अन्य ध्वनि, 6 तरिकालना भी सीख जाता है। प्रथम माह में ही शिशु के मुँह में अचानक रोने के अतिरिक्त, . अ्ष्य ध्वनि निकल जाती है । शिशु फिर इस प्रकार की ध्वनि बार-बार उत्पन करने का प्रयल, . करा है। यह ध्वनि कूकन (20०गष्ट) कहलाती हे । इस ध्वनि से शिशु को प्रसन्ता प्राप्त, होती है तथा खेलने के लिए वह इस ध्वनि का उपयोग करता है । कूछ कूकने की ध्वनियाँ शीघ्र, ही समाप्त हो जाती हैं तथा कुछ अन्य ध्वनियाँ वबलाने में परिवर्तित हो जाती हैं।, , बबलाना--धरे-धीरे शिशु अनेक प्रकार की ध्वनि निकालना सीख जाता है।' उसके, ख़यं की मॉसपेशियों का इतना विकास हो जाता है कि वह कुछ ध्वनियाँ ऐच्छिक रूप से, . निकालने के योग्य हो जाता है | पहिले स्वरों को व्यंजनों से मिलाकर ध्वनि उत्पन्न की जाती, है,जेसे दा _.. दा,मा ..... मा आदि इन्हीं के बाद में वाणी का सही स्वरूप विकसित होता है ।, स्स्यन्र पर कुछ मात्रा में नियन्त्रण के विकास के फलस्वरूप शिशु एक ही प्रकार की घ्वनि, को बार-वार उत्पन कर पाता है।, , कुछ शिशु 2 माह में ही वबलाना आरम्भ कर देते हैं। इसके पश्चात् वबलाने में निरन्तर, , वृद्धि होती जाती है तथा 6 से 8 माह में वह अपनी चरम सीमा पर पहुँच जाता है। वबलाना, एक प्रकार की खेल भाषा' है । शिशु जब पूरी सन्तुष्टि अनुभव करता है तो वबलाना को खेल, की तरह उपयोग करता है। इससे केवल शिशु के प्रसन्नता तथा सन्तुष्टि के भाव की, , ग होती है, किसी अन्य भाव अथवा विचार की अभिव्यक्ति वबलाने में नहीं, होती है।, , , . बबलाने का कोई तात्कालिक मूल्य नहीं होता है। भाषा के विकास में इसका महत्वपूर्ण, दीर्धावधि प्रभाव होता है। वबलाने के द्वारा शिशु अपने स्वर-यन््र को व्यायाम प्रदान करता है, ते वाणी के लिए स्वर-यन््र का नियन््रण करने का अभ्यास करता है। वबलाना ही अन्ततः, भाषा का झूप ले लेता है। वबलाने के द्वारा शिशु विंभिन्ल प्रकार की ध्वनि निकालना सीखता, है। इन्हीं अर्थहीन ध्वनि को कभी-कभी वयस्क अर्थ प्रदान कर देते हैं तथा शिशु के सामने, वाश्वार दुहाते हैं। इस प्रकार वही शिशु का प्रथम शब्द बन जाता है।, थे हावभाव--अभिव्यक्ति का तीसरा प्राथमिक स्वरूप हावभाव का भ्रदर्शन है। शरीर, , “वा हाथ-पाँव की हलचलों से भाषा को प्रतिस्थापित करना अथवा भाषा की पूर्ति करना, दैवभाव' कहलाता है । वाणी के प्रतिस्थापन के रूप में शिशु अपने विचारों की अभिव्यक्ति
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प्रगति का अध्ययन, 168 | मानव विकास की अफागे, हावभाव द्वाग करता है। जब हावभाव वाणी के पूरक के रूप में अपनाये जाते है तो वे विष, , महत्व देने का कार्य करते हैं|, विशेष पा किये जाने वाले अधिकांश हावभावों को कम होता है। जे, द्वारा बालक अपने विचारों को सफलता सा, 5 की क्यो, द्वारा विचार प्रदर्शित कः ५,, रा मय नहीं होती है कि उसके समस्त भावों को प्रदर्शित कर सके |, , के अभाव में, , के जीवन में हावभावों का महत्वपूर्ण स्थान है ४. इन हावभावों शिशु, अपनी बा सम्बन्धी जानकारी वयस्कों को नहीं दे सकते । वाणी विकास के मा, हावभावों में सामान्यतया कमी आती जाती है परन्तु ये पूर्णतया समाप्त नहीं होते हैं।, , भाषा विकास (1,018028० 106ए6०फगथा), , बालक के प्रथम शब्द होलोफ्रेसस (101091745८७) कहलाते हैं। इन एक शब्दों में, भार है सम्पूर्ण वाक्य निहित होता है। दो शब्दीय वाक्यों के निर्माण के साथ, भाषा विकास आरम्भ माना जा सकता है। दो विभिन शब्दों को विभिन्न अकार से जोड़कर वह, अपने विभिन विचारों को प्रदर्शित करता है। 2 वर्ष के पश्चात् 3-4 शर्ब्दों के वाक्यों का, * विकास होता है। धीरे-धीरे भाषा का विकास होता रहता है जब बालक पूर्ण वयस्क रूप से, भाषा का उपयोग करना सीख जाता है । बालक व्याकरण का प्रयोग करना आरम्भ कर देता है।, सबसे पहले प्रश्नवाचक तथा नकारात्मक कार्यों का प्रयोग प्रारम्भ होता है।, , (अ) शब्दावली, , 1 वर्ष की आयु में बालक की शब्दावली में 3 शब्द रहते हैं। इसके बाद से शब्दावली, , कौ तीब् वृद्धि प्रारम्भ हो जाती है। स्मिथ (5, 1926) ने बालकों के शब्दावली वृद्धि का, >ध्ययन कर निम्न वृद्धि क्रम प्राप्त किया है-लय कल, , , , , , , , ह ०-5, आयु शब्द संख्या वृद्धि, 0-8 05, 0-10, 1-0 *, 1-3 10 पं, 1-6 72, 2 वाह 96, 28 * 22 55 154, ३-0 किक हे 174, ३-6 26 450, 4-0 222 326, 4-6 अप 318, 5-0 1,870 अं), 5६ 2,072 22, 6. 2,289, ९ 2.562, 273