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अध्याय 1, जीव जगत, , अध्याय 2, , जीव जगत का वर्गीकरण, अध्याय 3, , वनस्पति जगत, , अध्याय 4, प्राणि जगत, , , , इकाई 'एके, जीव जगत में विविधता, , जीव विज्ञान सभी प्रकार के जीवन रचना एवं जैव प्रक्रमों का विज्ञान है। जीव जगत कौतुहल, जैव विविधताओं से परिपूर्ण है। आदि मान्नव आसानीपूर्वक निर्जीव पदार्थ एवं सजीवों के बीच, अंतर कर सकता था। आदि मानव ने कुछेक निर्जीव पदार्थों (जैसे वायु, समुंद्र, आग आदि), तथा कुछ सजीव प्राणियों एवं पोधों में भेद किया था। इन सभी प्रकार के जीवित एवं जीवहीन, स्वरूप में, उन्होंने जो सर्वसामान्य विशिष्टताएं पाई, वे उनके द्वारा भय या दूर भागने के भाव, 'पर आधारित थी। सजीवों का वर्णन, जिसमें मानव भी शामिल था, मानव इतिहास में काफी, बाद में प्रारंभ हुआ जो समाज (जीव विज्ञान की दृष्टि से) मानवोद्भव विज्ञान में संलग्न थें।, वे जैव वैज्ञानिक ज्ञान में सीमित प्रगति दर्ज कर सके।, , जीव स्वरूप के वर्गिकी विज्ञान एवं स्मारकीय विवरण ने विस्तृत पहचान प्रणाली, नाम-पद्धति तथा वर्गीकरण पद्धति की आवश्यकता प्रदान की है। इस प्रकार के अध्ययनों का, सबसे बड़ा प्रचक्रण सजीवों द्वारा ऊर्ध्वाधर एवं क्षेतिज, दोनों ही समानताओं के भागीदारी को, मान्यता देना था। वर्तमान के सभी जीवों के परस्पर संबद्ध और साथ ही पृथ्वी पर आदिकाल, वाले सभी जीव के साथ उनके संवादों का रहस्योद्घाटन मानवीय अहंकार और जैव विविधता, के संरक्षण के लिए एक सांस्कृतिक आंदोलन के कारण थे। इस इकाई के अनुगामी अध्यायों, में आप वर्गीकरण-परिप्रेस्य वैज्ञानिक प्राणियों एवं पादपों के वर्गीकरण सहित वर्णन के बारे, में पढ़ेंगे।, , 2020-21
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एरनस्ट मेयर, (1904 - 2004), , , , एर्नस्ट मेयर का जन्म 5 जुलाई, 1904 में केंपटन, जर्मनी में हुआ था। आप हावर्ड, विश्वविद्यालय के विकासपरक जीव वैज्ञानिक थे, जिन्हें (20वीं शती का डार्विन', कहा गया। आप अब तक के 100 महान वैज्ञानिकों में से एक थे। मेयर ने सन्, 1953 में हावर्ड विश्वविद्यालय की कला एवं विज्ञान संकाय में नौकरी प्राप्त की, और 1975 मे एलेक्जेंडर अगासीज प्रोफेसर ऑफ जुलोजी एमीरिटस की पदवी के, साथ अवकाश प्राप्त किया। अपने 80 सालों के कार्य जीवन में आपका, पक्षी-विज्ञान, वर्गीकरण-विज्ञान, प्राणि-भूगोल, विकास, वर्गिकी तथा जीव विज्ञान, के इतिहास एवं दर्शन आदि पर अनुसंधान केंद्रित रहा। आप ने लगभग अकेले ही, विकासीय जीव विज्ञान के केंद्रीय प्रश्न जाति विविधता की उत्पत्ति को खड़ा, किया, जो कि आज सच है। इसके साथ ही आपने हाल ही में स्वीकृत जीव, वैज्ञानिक जाति वर्गिकी की परिभाषा की अगुवाई की। मेयर को तीन पुरस्कार दिए, गए, जिन्हें व्यापक तौर पर जीव विज्ञान के तीन ताजों की संज्ञा दी जाती है: 1983, में बालजॉन प्राइज, 1998 में जीव विज्ञान के लिए इंटरनेशनल प्राइज और 1999, में क्राफूर्ड प्राइज। मेयर ने 100 वर्ष की आयु में 2004 को स्वर्गवासी हुए।, , 2020-21
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“जीव! क्या है?, , जीव जगत में, विविधता, , वर्गिकी संवर्ग, , वर्गिकी सहायता, साधन, , , , वा०्हातमण, , अध्याय 1, जीव जगत, , जीव जगत कैसा निराला है? जीवों के विस्तृत प्रकारों की श्रृंखला विस्मयकारी है।, असाधारण वास स्थान चाहे वे ठंडे पर्वत, पर्णपाती वन, महासागर, अलवणीय (मीठा), जलीय झीलें, मरूस्थल अथवा गरम झरनों जिनमें जीव रहते हैं, वे हमें आश्चर्यचकित कर, देते हैं। सरपट दौड़ते घोड़े, प्रवासी पक्षियों, घाटियों में खिलते फूल अथवा आक्रमणकारी, शार्क की सुंदरता विस्मय तथा चमत्कार का आहवान करती है। पारिस्थितिक विरोध, तथा, समष्टि के सदस्यों तथा समष्टि और समुदाय में सहयोग अथवा यहां तक कि कोशिका, में आण्विक गतिविधि से पता चलता है कि वास्तव में जीवन क्या है ? इस प्रश्न में दो, निर्विवाद प्रश्न हैं। पहला तकनीकी है जो जीव तथा निर्जीव क्या हैं, इसका उत्तर खोजने, का प्रयल करता है, तथा दूसरा प्रश्न दार्शनिक है जो यह जानने का प्रयत्न करता है कि, जीवन का उद्देश्य क्या है। वैज्ञानिक होने के नाते हम दूसरे प्रश्न का उत्तर देने का प्रयास, नहीं करेंगे। हम इस विषय पर चिंतन करेंगे कि जीव क्या है?, , 11 “जीव' क्या है?, , जब हम जीवन को पारिभाषित करने का प्रयत्न करते हैं, तब हम प्राय: जीवों के सुस्पष्ट, अभिलक्षणों को देखते हैं। वृद्धि, जनन, पर्यावरण के प्रति संवेदना का पता लगाना और, उसके अनुकूल क्रिया करना, ये सब हमारे मस्तिष्क में तुरंत आते हैं कि ये अद्भुत, लक्षण जीवों के हैं। आप इस सूची में उपापचय, स्वयं की प्रतिलिपि बनाना, स्वयं को, संगठित करना, प्रतिक्रिया करना तथा उद्गमन आदि को भी जोड़ सकते हैं। आओ, हम, इन सबको विस्तार से समझने का प्रयत्न करें।, , 2020-21
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सभी जीव वृद्धि करते हैं। जीवों के भार तथा संख्या में वृद्धि होना, ये दोनों वृद्धि, के द्वियुग्मी अभिलक्षण हैं। बहुकोशिक जीव कोशिका विभाजन द्वारा वृद्धि करते हैं।, पौधों में यह वृद्धि जीवन पर्यत कोशिका विभाजन द्वारा संपन्न होती रहती है। प्राणियों में,, यह वृद्धि कुछ आयु तक होती है। लेकिन कोशिका विभाजन विशिष्ट ऊतकों में होता है, ताकि विलुप्त कोशिकाओं के स्थान पर नई कोशिकायें आ सकें। एककोशिक जीव भी, कोशिका विभाजन द्वारा वृद्धि करते हैं। बड़ी सरलता से कोई भी इसे पात्रे संवर्धन में, सूक्ष्मदर्शी (माइक्रोस्कोप) से देखकर कोशिकाओं की संख्या गिन सकता है। अधिकांश, उच्चकोटि के प्राणियों तथा पादपों में वृद्धि तथा जनन पारस्परिक विशिष्ट घटनाएं हैं। हमें, याद रखना चाहिए कि जीव के भार में वृद्धि होने को भी वृद्धि समझा जाता है। यदि हम, भार को वृद्धि का अभिलक्षण मानते हैं तो निर्जीवों के भार में भी वृद्धि होती है। पर्वत,, गोलाश्म तथा रेत के टीले भी वृद्धि करते हैं। लेकिन निर्जीवों में इस प्रकार की वृद्धि, उनकी सतह पर पदार्थों के एकत्र होने के कारण होती हैं। जीवों में यह वृद्धि अंदर की, ओर से होती है। इसलिए वृद्धि को जीवों का एक विशिष्ट गुण नहीं मान सकते हैं। जीवों, में यह लक्षण जिन परिस्थितियों में परिलक्षित होता है; उनका विवेचना करके ही यह, समझना चाहिए कि यह जीव तंत्र के लक्षण हैं।, , इस प्रकार जनन भी जीवों का अभिलक्षण है। वृद्द्धि के संदर्भ में इस तथ्य की, व्याख्या हो जाती है। बहुकोशिक जीवों में जनन का अर्थ अपनी संतति उत्पन्न करना, है जिसके अभिलक्षण लगभग उसे अपने माता-पिता से मिलते हैं। निर्विवाद रूप से हम, लैंगिक जनन के विषय में चर्चा कर रहे हैं। जीव अलैंगिक जनन भी करते हैं। फेजाई, (कवक) लाखों अलैंगिक बीजाणुओं द्वारा गुणन करती है और सरलता से फैल जाती है।, निम्न कोटि के जीवों जैसे यीस्ट तथा हाइड़ा में मुकुलन द्वारा जनन होता है। प्लैनेरिया, (चपटा कृमि) में वास्तविक पुनर्जनन होता है अर्थात् एक खंडित जीव अपने शरीर के, लुप्त अंग को पुनः प्राप्त (जीवित) कर लेता है और इस प्रकार एक नया जीव बन जाता, है। फेजाई, तंतुमयी शैवाल, मॉस का प्रथम तंतु सभी विखंडन विधि द्वारा गुणन करते हैं।, जब हम एककोशिक जीवों जैसे जीवाणु (बैक्टीरिया), एककोशिक शैवाल अथवा अमीबा, के विषय में चर्चा करते हैं तब जनन की वृद्धि पर्यायवाची है अर्थात् कोशिकाओं की, संख्या में वृद्धि होती है। हम पहले ही कोशिकाओं की संख्या अथवा भार में वृद्धि होने, को वृद्धि के रूप में पारिभाषित कर चुके हैं। अब तक, हमने देखा है कि एककोशिक, जीवों में वृद्धि तथा जनन इन दोनों शब्दों के उपयोग के विषय में सुस्पष्ट नहीं है। कुछ, ऐसे भी जीव हैं जो जनन नहीं करते (खेसर या खच्चर, बंध्य कामगार मधुमक्खी, अनुर्वर, मानव युगल आदि)। इस प्रकार जनन भी जीवों का समग्र विशिष्ट लक्षण नहीं हो सकता।, यद्यपि, कोई भी निर्जीव वस्तु जनन अथवा अपनी प्रतिलिपि बनाने में अक्षम है।, , जीवों का दूसरा लक्षण उपापचयन है। सभी जीव रसायनों से बने होते हैं। ये, रसायन छोटे, बड़े, विभिन्न वर्ग, माप, क्रिया आदि वाले होते हैं जो अनवरत जैव अणुओं, में बदलते और उनका निर्माण करते हैं। ये परिवर्तन रासायनिक अथवा उपापचयी क्रियाएं, हैं। सभी जीवों, चाहें वे बहुकोशिक हो अथवा एककोशिक हों, में हजारों उपापचयी क्रियाएं
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/््--जखजखजख््रः छ, , साथ-साथ चलती रहती हैं। सभी पौधों, प्राणियों, कवकों (फेजाई) तथा सूक्ष्म जीवों में, उपापचयी क्रियाएं होती हैं। हमारे शरीर में होने वाली सभी रासायनिक क्रियाएं उपापचयी, क्रियाएं हैं। किसी भी निर्जीव में उपापचयी क्रियाएं नहीं होती। शरीर के बाहर कोशिका, मुक्त तंत्र में उपापचयी क्रियाएं प्रदर्शित हो सकती हैं। जीव के शरीर से बाहर परखनली, में की गई उपापचयी क्रियाएं न तो जैव हैं और न ही निर्जीव। अत: उपापचयी क्रियाएं, निरापवाद जीवों के विशिष्ट गुण के रूप में पारिभाषित हैं जबकि पात्रे में एकाकी, उपापचयी क्रियाएं जैविक नहीं है यद्यपि ये निश्चित ही जीवित क्रियाएं हैं। अत: शरीर, का कोशिकीय संगठन जीवन स्वरूप का सुस्पष्ट अभिलक्षण हें।, , शायद , सभी जीवों का सबसे स्पष्ट परंतु पेंचीदा अभिलक्षण अपने आस-पास, या पर्यावरण के उद्दीपनों, जो भौतिक, रासायनिक अथवा जैविक हो सकती हैं,, के प्रति संवेदनशीलता तथा प्रतिक्रिया करना है। हम अपने संवेदी अंगों द्वार अपने, पर्यावरण से अवगत होते हैं। पौधे प्रकाश, पानी, ताप, अन्य जीवों, प्रदूषकों आदि जैसे, बाह्य कारकों के प्रति प्रतिक्रिया दिखाते हैं। प्रोकेरिऑट से लेकर जटिलतम यूकेरिऑट, तक सभी जीव पर्यावरण संकेतों के प्रति संवदेना एवं प्रतिक्रिया दिखा सकते हैं। पादप, तथा प्राणियों दोनों में दीप्ति काल मौसमी प्रजनकों के जनन को प्रभावित करता है।, इसलिए सभी जीव अपने पर्यावरण से अवगत रहते हैं। मानव ही केवल ऐसा जीव है जो, स्वयं से अवगत अर्थात् स्वचेतन है। इसलिए चेतना जीवों को पारिभाषित करने के लिए, अभिलक्षण हो जाती है।, , जब हम मानव के विषय में चर्चा करते हैं तब जीवों को पारिभाषित करना और भी, कठिन हो जाता है। हम रोगी को अस्पताल में अचेत अवस्था में लेटे रहते हुए देखते हैं, जिसके हृदय तथा फुप्फुस को चालू रखने के लिए मशीनें लगाई गई होती हैं। रोगी का, मस्तिष्क मृतसम होता है। रोगी में स्वचेतना नहीं होती। ऐसे रोगी जो कभी भी अपने, सामान्य जीवन में वापस नहीं आ पाते, तो क्या हम इन्हें जीव अथवा निर्जीव, कहेंगे?, , उच्चस्तरीय अध्ययन में जीव विज्ञान पृथ्वी पर जैव विकास की कथा है आपको पता, लगेगा कि सभी जीव घटनाएं उसमें अंतर्निहित प्रतिक्रियाओं के कारण होती हैं। ऊतकों, के गुण कोशिका में स्थित कारकों के कारण नहीं हैं, बल्कि घटक कोशिकाओं की, पारस्परिक प्रतिक्रिया के कारण है। इसी प्रकार कोशिकीय अंगकों के लक्षण अंगकों में, स्थित आण्विक घटकों के कारण नहीं बल्कि अंगकों में स्थित आण्विक घटकों के आपस, में क्रिया करने के कारण हैं। उच्च स्तरीय संगठन उद््गामी गुणधर्म इन प्रतिक्रियाओं के, परिणामस्वरूप होते हैं। सभी स्तरों पर संगठनात्मक जटिलता की पदानुक्रम में यह अद्भुत, घटना यथार्थ है। अतः हम कह सकते हैं कि जीव स्वप्रतिकृति, विकासशील तथा, स्वनियमनकारी पारस्पारिक क्रियाशील तंत्र है जो बाह्य उद्दीपन के प्रति अनुक्रिया की, क्षमता रखते हैं। जीव विज्ञान पृथ्वी पर जीवन की कहानी है। वर्तमान, भूत एवं भविष्य, के सभी जीव एक दूसरे से सर्वनिष्ठ आनुवंशिक पदार्थ की साझेदारी द्वारा संबद्ध है, परंतु, यह पदार्थ सबमें विविध अंशों में होते हैं।