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बगडावत भारत कथा, बगडावत भारतै>ऋल्ममम्रथा अजमेर के राजा बीसलदेवजी के भाई, माण्डलजी नि होती हैं जो कि देवनारायण जी के पूर्वज थे। माण्डलजी, के बड़े भाई जञ बिसलदेवजी उन्हें घोड़े खरीदने के लिये मेवाड भेजते हैं।, मेवाड़ पहुँच कैर माण्डलजी कुछ घोड़े खरीदते हैं, मगर बहुत सारा पैसा वो, तालाब बनवाने में खर्च कर देते हैं और अपने भाई से और पैसे मंगवाते, हैं जो वो भेजते रहते हैं। बिसलदेवजी यह पता करने आते हैं कि माण्डल्नजी, इतने सारे पैसो (का क्या कर रहे हैं।माण्डल आते है । इस बात का पता, जब ्ग लगता है कि उनके बड़े भाई बिसलदेवजी आ रहे हैं,, तब वह जो ताल्नांब बनाया था उसमें घोड़े सहित उतर जाते हैं और जल्ल, समाधी ले लेते हैँ। बिसलदेवजी को यह जानकर बहुत दुख होता है और, वह माण्डलजी की याद में तालाब के बीच में एक विशाल्र छतरी और एक, विशाल मंदारे का निर्माण (कीर्ति स्तम्भ नुमा) करवाते हैं और उस गांव, का नाम माण्डलजी के नाम से माण्डल पड़ जाता है जो कि मेवाड़ के, नजदीक आज भी स्थित है।राजा बिसलदेव के राज्य में एक बार एक शेर, ने आतंक फैला रखा था। गांवों के छोटे-छोटे बच्चो को वह रात को चुपचाप, उठा कर ले जाता था। थकहार कर लोगों ने तय किया कि शेर का भोजन, बनने के लिए हर घर का एक सदस्य बारी-बारी से जाएगा। एक रात, माण्डलजी के पुत्र हरीरामजी जिन्हें शिकार खेलने का बहुत शौंक होता हैं, वहां से गुजरते हैं। रात बिताने के लिए वो एक बुढिया से उसके घर में, रहने की अनुमति मांगते हैं और बुढिया उन्हें अनुमति दे देती है। रात को
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जब बुढिया अपने बेटे को भोजन खिला रही होती है तो हरीरामजी देखते, हैं कि बुढिया अपने बेटे को बहुत प्यार से भोजन करा रही है और रोती, भी जा रही है। हरीरामजी बुढिया से उसके रोने का कारण पूछते हैं। बुढिया, उन्हें शेर के बारे में बताती हैं, और कहती हैं कि मेरे दो बेटे थे, एक बेटा, पहले ही शेर का भोजन बन चुका है और आज रात दूसरे बेटे की बारी है।, यह सुनकर हरीरामजी बुढिया को कहते हैं कि मां मैं आज तेरे बेटे की, जगह शेर का भोजन बनने के लिए चला जाता हूं। जंगल में जाकर, हरीरामजी आटे का एक पुतला बनाकर अपनी जगह रख देते हैं और खुद, पास की झाड़ी में छुप जाते हैं। जब शेर आटे के पुतले पर हमला करता, हैं तो हटीरामजी झाड़ी से बाहर आकर अपनी तलवार के एक ही वार से, शेर की गर्दन अलग कर देते हैं। इसके बाद शेर का कटा हुआ सिर हाथ, में लेकर अपनी खून से सनी तलवार को धोने के लिए पुष्कर घाट की, ओर जाते हैं। पुष्कर के रास्ते में लीला सेवड़ी नामक एक औरत रहती, थी और वो सुबह सेवेरे सबसे पहले उठकर पुष्कर घाट पर नहा धोकर, वराह भगवान की पूजा करने के लिये जाती थी। उसने यह प्रण ले रखा, था कि वराह भगवान की पूजा करने के बाद ही किसी इन्सान का मुँह, देखेगी। पुष्कर घाट पहुंचकर जब हरीरामजी तलवार को पानी से साफ, करके अपनी मयान में डालते हैं तो लीला सेवड़ी जो वराह भ्रगवान की, पूजा कर रही होती है, आहट सुनकर पीछे मुड़कर देखती है। हरीरामजी, डर के कारण शेर का कटा हुआ सिर आगे कर देते है जिससे लीला सेवड़ी, को सिर तो शेर का और धड़ इन्सान का दिखाई देता है। वह कहती है, कि यह तुमने क्या किया? अब मेरे जो सन्तान होगी वह ऐसी ही होगी,
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जिसका सिर तो शेर का होगा और शरीर आदमी का। अब लीला सेवड़ी, कहती है कि आपको मेरे साथ विवाह करना होगा। हरीरामजी सोचते है, कि ऐसी सती औरत कहाँ मिलेगी, वह विवाह के लिये तैयार हो जाते हैं।, कुछ समय पश्चात हरीरामजी और लीला सेवड़ी के यहां एक सन्तान पैदा, होती है, जिसका सिर तो शेर का और बाकि शरीर मनुष्य का होता है।, हरीरामजी उस बच्चे को लेकर एक बाग में बरगद के पेड़ की कोटर (खोल), में छिपा कर चले आते हैं। दूसरे दिन बाग का माली आता है और देखता, है कि बाग तो एक दम हरा भरा हो गया है। यह क्या चमत्कार है और, वह पूरे बाग में घूम फिर कर देखता है तो उसे बरगद की खोल में एक, नवजात शिशु के रोने की आवाज सुनाई देती है और बाग का माली दौड़, कर बरगद के पेड़ की खौँल में से बच्चे को उठा लेता है। वह यह देखकर, दंग रह जाता है कि बच्चे का मुँह शेर का और शरीर इन्सान का है। वह, बच्चे को राजा के पास लेकर जाता है। राजा बीसलदेव को जब हरीरामजी, से सारी बात का पता चलता है तो उस बच्चे के लालन-पालन का जिम्मा, वह स्वयं लेने के लिए तैयार हो जाते हैं। राजा बिसलदेव उस बच्चे का, नाम बाघ सिंह(बाघराव) रख देते हैं। बाघ सिंह की देख-रेख के लिए उस, बाग में एक ब्राहमण को नियुक्त कर देते हैं। बाघ सिंह उसी बाग में, खेलते कूदते बड़े होते हैं।, , बगडावत भारत कथा-2, , राजस्थान में यह प्रथा है कि सावन के महीने मे तीज के दिन कुंवारी, कन्याएं झूला झूलने के लिये बाग में जाती है। यही जानकर उस दिन