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प्रिय विद््यार्थी मित्रो !, , प्रस्तावना, , आप सभी का ग्यारहवीं कक्षा में हृदयपूर्वक स्वागत ! युवकभारती हिंदी पाठ्यपुस्तक आपके हाथों में देते हुए, हमें बहुत हर्ष हो रहा है ।, भाषा और जीवन का अटूट संबंध है । देश की राजभाषा तथा संपर्क भाषा के रूप में हिंदी भाषा को हम अपने, बहुत समीप महसूस करते हैं । भाषा का व्यावहारिक उपयोग प्रभावी करने के लिए आपको हिंदी विषय की ओर, ‘भाषा’ की दृष्टि से देखना होगा । भाषाई कौशलों को अवगतकर समृद्ध बनाने के लिए यह पाठ्यपुस्तक आपके लिए, महत्त्वपूर्ण सिद्ध होगी । मूल्यमापन की दृष्टि से मुख्यत: पाँच विभाग किए गए हैं । गद्य -पद्य, विशेष विधा,, व्यावहारिक हिंदी और व्याकरण । अध्ययन अध्यापन की दृष्टि से यह रचना बहुत उपयुक्त होगी ।, जीवन की चुनौतियों को स्वीकारने की शक्ति देने की प्रेरणा साहित्य में निहित होती है । इस पाठ्यपुस्तक के, माध्यम से आप साहित्य की विभिन्न विधाओं की जानकारी के साथ पुराने तथा नए रचनाकारों तथा उनकी लेखन, शैली से परिचित होंगे । इनके द्वारा आप हिंदी भाषा का समृद्ध साहित्य तथा उसकी व्यापकता को समझ पाएँगे ।, विशेष साहित्य विधा के रूप में ‘नुक्कड़ नाटक’ का समावेश किया गया है । इस विधा का संक्षिप्त परिचय तथा, दो नुक्कड़ नाटकों का समावेश पाठ्य पुस्तक की विशेषता है । आप इस ‘दृक्-श्राव्य’ साहित्य विधा का अध्ययन, करेंगे । नुक्कड़ नाटक की विशेषता है कि उसे रंगमंच की आवश्यकता नहीं होती, चौराहे पर किसी भी समस्या को, प्रभावी ढंग से नुक्कड़ नाटक द्वारा प्रस्तुत किया जाता है । इसके लिए विशेष वेशभूषा अथवा रंगभूषा की आवश्यकता, नहीं होती । इस विधा का उपयोग आप भविष्य में आजीविका के लिए भी कर सकते हैं । नुक्कड़ नाटक आपकी, समाज के प्रति संवेदनशीलता को बढ़ाते हैं तथा नाट्य व्यवसाय की ओर उन्मुख भी करते हैं ।, व्यावहारिक व्याकरण पाठ्यपुस्तक का मूल उद्देश्य है जिसके कारण आप व्याकरण बहुत ही सहजता से समझ, पाएँगे । व्यावहारिक हिंदी की इकाई में समसामयिक विषयों तथा उभरते क्षेत्रों से संबधित, ं पाठों को समाविष्ट किया, गया है जिसके माध्यम से आप इन क्षेत्रों में व्यवसाय के अवसरों को पाएँगे ।, आपकी विचारशक्ति, कल्पनाशक्ति तथा सृजनात्मकता का विकास हो इसे ध्यान में रखते हुए अनेक प्रकार की, कृतियों का समावेश पाठ्यपुस्तक में किया गया है, जिसमें आप भी अपनी वैचारिक क्षमताओं को विकसित करते हुए, नई-नई कृतियाँ बना सकते हैं । इन कृतियों की सहायता से पाठ एवं उससे संबधित, ं विषयों को समझने में आपको, सहजता होगी । आप सरलता से विषय वस्तुओं को समझ पाएँगे तथा आपका भाषाकौशल विकसित, होगा । आपकी भाषा समृद्ध होगी और आप अपनी विशिष्ट शैली बनाएँगे । पाठ के मुद्दों से संबधित, ं अनेक उपयुक्त, संदर्भ क्यू. आर. कोड के माध्यम से आपको पढ़ने के लिए उपलब्ध होंगे ।, उच्च माध्यमिक स्तर पर ग्यारहवीं कक्षा में कृतिपत्रिका के माध्यम से आपके हिंदी विषय का मूल्यमापन होगा,, जिसके लिए आपको आकलन, रसास्वादन तथा अभिव्यक्ति आदि प्रश्नों पर ध्यान केंद्रित करना होगा । इसके लिए, प्रत्येक पाठ के बाद विविध कृतियाँ दी गई हैं जो आपका मार्गदर्शन करने में सहायक सिद्ध होंगी ।, ‘पढते रहें, लिखते रहें, अभिव्यक्त होते रहें ।’, आप सभी को उज्ज्वल भविष्य तथा यश प्राप्ति के लिए हार्दिक शुभकामनाएँ !, , पुणे, दिनांक ः २० जून २०१९, भारतीय सौर दिनांक ः ३० ज्येष्ठ १९4१, , डॉ. सुनिल मगर, संचालक, महाराष्ट्र राज्य पाठ्यपुस्तक निर्मिती व, अभ्यासक्रम संशोधन मंडळ, पुणे-०4
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इस विधा का अध्यापन रोचक तथा प्रभावी करने के लिए शिक्षक अपने, आस-पास की विविध समस्याओं से संबधित, ं छोटे-छोटे नुक्कड़ नाटक तैयारकर, उन्हें विद्यार्थियों द्वारा प्रस्तुत करा सकते हैं ।, पुस्तक में समाविष्ट गद्य, पद्य तथा व्यावहारिक हिंदी की सभी रचनाओं के, आरंभ में रचनाकार का परिचय, उनकी प्रमुख रचनाएँ तथा विविध जानकारी को, अतिरिक्त ज्ञान के रूप में विद्यार्थियों के सम्मुख प्रस्तुत किया है । प्रत्येक पाठ के, उपरांत परिपूर्ण तथा व्यापक अध्ययन की दृष्टि से स्वाध्याय के अंतर्गत शब्दार्थ,, अभिव्यक्ति कौशल, लघूत्तरी प्रश्न, भाषाई कौशल आदि को कलात्मक और, रोचक ढंग से तैयार किया गया है । आप अपने अनुभव तथा नवीन संकल्पनाओं का, आधार लेकर पाठ के आशय को अधिक प्रभावी ढंग से विद्यार्थियों तक पहुँचा, सकते हैं ।, व्यावहारिक व्याकरण के अंतर्गत नौवीं, दसवीं कक्षाओं में पढ़ाए जा चुके, व्याकरण के अतिरिक्त ‘रस’ और ‘अलंकार’ का परिचय कराया गया है । ‘रस’ के, नौ भेदों के अलावा वात्सल्य रस को दसवें रस के रूप में परिचित कराया है । ‘रस’, को ठीक ढंग से समझने के बाद कविता में व्याप्त विशिष्ट रस के भेद ढूँढ़ने को, विद्यार्थियों से कहा गया है । ‘अलंकार’ के अंतर्गत मुख्यत: शब्दालंकार के उपभेद, दिए गए हैं ।, आप पाठ्य पुस्तक के माध्यम से नैतिक मूल्यों, जीवन कौशलों, केंद्रीय तत्त्वों,, संवधै ानिक मूल्यों के विकास के अवसर विद्यार्थियों को अवश्य प्रदान करें ।, पाठ्यपुस्तक में अंतर्निहित प्रत्येक संदर्भ का सतत मूल्यमापन अपेक्षित है ।, आदर्श शिक्षक के लिए परिपूर,्ण प्रभावी तथा नवसंकल्पनाओं के साथ, अध्यापन कार्य करना अपने आप में एक मौलिक कार्य होता है । इस मौलिक कार्य, को इस पाठ्यपुस्तक के माध्यम से विद्यार्थियों तक पहुँचाने का दृढ़ संकल्प, निष्ठा, के साथ सभी शिक्षक करेंग;े ऐसा विश्वास है ।
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१. प्रेरणा, - त्रिपुरारि, कवि परिचय ः त्रिपुरारि जी का जन्म 5 दिसंबर १९88 को समस्तीपुर (बिहार) में हुआ । आपकी प्रारंभिक शिक्षा पटना से,, स्नातक शिक्षा दिल्ली से तथा स्नातकोत्तर शिक्षा हिसार से हुई । दिल्ली विश्वविद्यालय में अध्यापन कार्य करने के पश्चात, वर्तमान में आप फिल्म, दूरदर्शन के लिए लेखन कार्य कर रहे हैं । ‘त्रिवेणी’ के रचयिता के रूप में आपकी पहचान है । कल्पना, की भावभूमि पर यथार्थ के बीज बोते हुए उम्मीदों की फसल तैयार करना आपकी रचनाओं का उद्देश्य है ।, प्रमुख कृतियाँ ः ‘नींद की नदी’ (कविता संग्रह), नॉर्थ कैंपस (कहानी संग्रह), साँस के सिक्के (त्रिवेणी संग्रह) आदि ।, काव्य प्रकार ः ‘त्रिवेणी’ एक नए काव्य प्रकार के रूप में साहित्य क्षेत्र में तेजी से अपना स्थान बना रही है । त्रिवेणी तीन, पंक्तियों का मुक्त छंद है । मात्र इन तीन पंक्तियों में कल्पना तथा यथार्थ की अभिव्यक्ति होती है । इसकी पहली और दूसरी, पंक्ति में भाव और विचार स्पष्ट रूप से झलकते हैं और तीसरी पंक्ति पहली दो पंक्तियों में छिपे भाव को नये आयाम के साथ, अभिव्यक्त करती है । सामयिक स्थितियों, रिश्तों तथा जीवन के प्रति सकारात्मकता ‘त्रिवेणी’ के प्रमुख विषय हैं ।, काव्य परिचय ः प्रस्तुत त्रिवेणियों में कवि ने मनुष्य के जीवन में माँ के ममत्व और पिता की गरिमा को व्यक्त करने के साथ, ही ‘जिंदगी की आपाधापी में जुटे माता-पिता से बच्चों को स्नेह भी टुकड़ों में मिलता है’, इस सच्चाई को भी उजागर किया, है । निराशा के बादलों के बीच आशा का संचार करते हुए कवि कहते हैं कि ठोकर खाकर जीने की कला जो सीख लेता है,, दुनिया में उसी की जय-जयकार होती है । सुख-दुख की स्थिति में स्थिर रहना ही मनुष्य की सही पहचान है ।, मॉं मेरी बे-वजह ही रोती है, फोन पर जब भी बात होती है, फोन रखने पर मैं भी रोता हूँ ।, सख्त ऊपर से मगर दिल से बहुत नाजुक हैं, चोट लगती है मुझे और वह तड़प उठते हैं, हर पिता में ही कोई माँ भी छुपी होती है ।, मेरे ऑफिस में महीनों से मेरी दिन की शिफ्ट, तेरे ऑफिस में महीनों से तेरी रात की शिफ्ट, नन्हे बच्चों को तो टुकड़ों में मिले हैं माँ-बाप, उगते सूरज को सलामी तो सभी देते हैं, डूबते वक्त मगर उसको भुला मत देना, डूबना-उगना तो नजरों का महज धोखा है ।, चलते-चलते जो कभी गिर जाओ, खुद को सँभालो और फिर से चलो, चोट खाकर ही सीख मिलती है ।, , 1
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चाहे कितना भी हो घनघोर अंधेरा छाया, आस रखना कि किसी रोज उजाला होगा, रात की कोख ही से सुबह जनम लेती है ।, कर्ज लेकर उमर के लम्हों से, बो दिए मैंने बीज हसरत के, पास थी कुछ जमीं खयालों की ।, ये न सोचो कि जरा दूर दिखाई देगा, एक ही दीप से आगाज-ए-सफर कर लेना, रोशनी होगी जहाँ पर भी कदम रखोगे ।, अपनी आँखों में जब भी देखा है, एक बच्चा-सा खुद को पाया है, कौन कहता है उम्र बढ़ती है?, आँसू-खुशियाँ एक ही शय हैं, नाम अलग हैं इनके, पेड़ में जैसे बीज छुपा है, बीज में पेड़ है जैसे, एक में जिसने दूजा देखा, वह ही सच्चा ज्ञानी ।, चाहे कितनी ही मुश्किलें आएँ, छोड़ना मत उम्मीद का दामन, नाउम्मीदी तो मौत है प्यारे ।, (‘साँस के सिक्के’ त्रिवेणी संग्रह से), ०, , 2
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(आ) मुस्कुराती चोट, घर में बाबा बीमार थे । उनकी दवाई, राशन के लिए, पैसे चाहिए थे । माँ चार घर में चौका-बर्तन करके जितना, लाती वह सब बाबा की दवाई और घर में ही लग जाता ।, बबलू की पढ़ाई बीच में ही छूट गई । माँ को सहारा देने के, लिए बबलू ने घर-घर जाकर रद्दी इकट्ठा करना शुरू, कर दिया पर पढ़ाई के प्रति लालसा बनी हुई थी । उस दिन, भी तराजू पर रद्दी तौलते हुए बबलू की नजर लगातार, स्कूल की उन किताबों पर थी जिसे रद्दी में बेचा जा रहा, था । वह चाह रहा था कि वे किताबें उसे मिल जाएँ ।, ‘‘स्कूल नहीं जाता तू ? अजीब हैं तेरे माँ-बाप जो, तुझसे काम कराते हैं ।’’ घर की मालकिन ने तराजू के काँटे, पर नजर जमाए कहा । तभी उनकी कॉलेज के लिए तैयार, होती लड़की ने कहा - ‘‘माँ, बाल मजदूरी तो अपराध है, न ?’’ ‘‘हाँ बिल्कुल, पर अनपढ़ माँ-बाप समझें तब, न’’, बबलू को बुरा लगा । उससे अपशब्द सहे नहीं गए ।, ‘‘स्कूल बप्पा ने भेजा था मेमसाब पर उनके पास, किताबों के लिए पैसे न थे इसलिए पढ़ाई रुक गई ।’’, ‘‘माँ, इससे इन किताबों के पैसे मत लो । इसके काम, आएँगी । वह इनसे अपनी पढ़ाई कर लेगा ।’’, ‘‘कुछ नहीं होता इससे, हम फ्री में देंगे और यह रद्दी, पेपर के मालिक से किताबों के पैसे ले चाट-पकौड़ी में उड़ा, देगा । इनके बस का नहीं है पढ़ना ।’’, बबलू ने रद्दी के पैसे चुकाए और बोरा उठा सीधा घर, पहुँचा । उसने बोरे में से किताबें निकालकर अलग रख दीं ।, फिर बोरा लेकर वह रद्दी पेपर के दुकानदार के पास, पहुँचा । दुकानदार ने रद्दी तौल किनारे रखी ।, ‘‘पैसे तो बचे होंगे तेरे पास । जा, सामने के ठेले से, वड़ा-पाव और चाय ले आ फिर हिसाब कर ।’’ बबलू सिर, झुकाए खड़ा रहा । दुकानदार बार-बार बोलता रहा पर, बबलू टस-से-मस न हुआ । अब दुकानदार से रहा नहीं, गया । वह झल्ला उठा ।, , ‘‘अरे क्या हुआ ? जाता क्यों नहीं ?’’, ‘‘रुपये खर्च हो गए सेठ ।’’, ‘‘क्या ! तेरे पैसे थे जो खर्च कर दिए !’’ दुकानदार ने, उसको बुरी तरह से डाँट दिया । डाँट खाने के बावजूद वह, मुस्कुरा रहा था । अब वह स्कूल जा सकेगा । उसके पास भी, किताबें हैं । वह घर की ओर लौट पड़ा ।, पुस्तक लेकर घर से आते हुए रास्ते में वही सुबहवाली, मालकिन और उनकी लड़की मिल गई । उसके हाथ में, किताबें देख मालकिन के आश्चर्य का ठिकाना न रहा । उसे, सुबह कहे हुए अपने ही अपशब्द याद आ गए और अपने ही, शब्दों पर अपराध बोध हो आया । बबलू की पढ़ाई के प्रति, लालसा को देखकर उसने निश्चय किया कि अब उसकी, आगे की पढ़ाई का खर्चा वही उठाएगी । बबलू की खुशी, का ठिकाना न था ।, (‘फैसला’ लघुकथा संग्रह से), ०, , 6
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4. मेरा भला करने वालों से बचाएँ, - डॉ. राजेंद्र सहगल, , लेखक परिचय ः राजेंद्र सहगल जी का जन्म २4 अगस्त १९5३ को हुआ । आपने दिल्ली विश्वविद्यालय से एम.ए.,, पीएच.डी की उपाधि प्राप्त की । आप बैंक में उपप्रबंधक के रूप में कार्यरत रहें । आप आकाशवाणी से विभिन्न विषयों पर, वार्ताओं का प्रसारण करते हैं तथा सामयिक महत्त्व के विषयों पर फीचर लेखन भी करते हैं । स्तरीय पत्र पत्रिकाओं में आपके, लगभग पचास व्यंग्य लेख प्रकाशित हुए हैं ।, प्रमुख कृतियाँ ः ‘हिंदी उपन्यास’, ‘तीन दशक’ (शोध प्रबंध), ‘असत्य की तलाश’, ‘धर्म बिका बाजार में’ (व्यंग्य-संग्रह), विधा परिचय ः हिंदी गद्य की विभिन्न विधाओं में ‘व्यंग्य’ का प्रमुख स्थान है । अतिशयोक्ति, विडंबना, विसंगतियाँ,, अन्योक्ति तथा आक्रोश प्रदर्शन व्यंग्य के प्रमुख उपादान हैं । व्यक्ति का दोमुँहापन, दोगलापन, पाखंड, चालाकी, धूर्तता,, इतने परदों के पीछे छिपी रहती है कि केवल व्यंग्य रचनाकार ही अपनी पैनी नजर से उसे देख पाता है । वह व्यक्तिगत रागद्वेष से मुक्त होकर व्यक्ति के इस पाखंड को पकड़ता है । किसी व्यक्ति, समाज, राष्ट्र, वर्ग आदि का मजाक उड़ाना, व्यंग्यकार का उद्देश्य नहीं होता, बल्कि पाठकों को वह एक साफ-सुथरा दृष्टिकोण देना चाहता है । भावातिरेक के बजाय, भावों की तरलता ही व्यंग्य लेखक की वास्तविक कुंजी हो सकती है । श्रीलाल शुक्ल, हरिशंकर परसाई, के.पी. सक्सेना,, रवींद्रनाथ त्यागी, शरद जोशी, शंकर पुणतांबेकर आदि ने व्यंग्य साहित्य को अपनी लेखनी से समृद्ध किया है ।, पाठ परिचय ः प्रस्तुत व्यंग्य के माध्यम से व्यंग्यकार का मानना है कि झूठ को सच बताने में जो ताकत लगती है उसका सौंवा, हिस्सा भी सच को सच साबित करने में नहीं लगता परंतु झूठ को ही सही कहना आधुनिक काल का फैशन है आज ‘एक, चीज के ऊपर दूसरी चीज फ्री’ इस लालच में फँसे व्यक्ति की परेशानियाँ बताते हुए ‘मुफ्त’ के चक्कर में अपना भला करने, वाले हमारे आस-पास कई सारे लोग दिखाई देते हैं, उनसे ‘मुझे बचना है’ कहकर इस प्रवृत्ति पर व्यंग्य कसा है ।, इधर मैं कई दिनों से बड़ा परेशान चल रहा हूँ । सब, मेरा भला करना चाहते हैं । अखबार पढ़ने बैठता हूँ तो, समाचार पढ़ने से पहले ढेर सारे कागज साथ में आ जाते, हैं । कोई कहता है आपके द्वार पर आकर बैठे हैं । सभी, तरह के इलाज के लिए क्लीनिक खोल दिया है । आप मोटे, हैं तो पतला कर देंगे । पागल हैं तो ठीक कर देंगे । क्लीनिक, से हर स्लिमिंग सेंटरवाला कह रहा है, ‘बस ! आप आ, जाएँ, बाकी सब हम पर छोड़ दें । हलवाई की दुकानवाला, कह रहा है, ‘ऐसी मिठाई आपने कभी न खाई होगी । मीठा, खाएँ पर मीठे का असर न हो’, ऐसी चीनी का इस्तेमाल, करते हैं वे ।, क्रेडिट कार्डवाला फ्री डेबिट कार्ड दे रहा है । पैसे खर्च, करने या नकद खर्च की कोई जरूरत पहले नहीं है । आप, बेवजह पैसे के पीछे दौड़ रहे हैं । हम सामान आपके घर, लाना चाहते हैं, आप बस माल खरीदें ! गाड़ीवाला नई, गाड़ी के कागज दिए जा रहा है । साथ में लोन देने वाला, बैंक के कागज भी दिए जा रहा है । अखबार के साथ पैंफलेट, , इतने ज्यादा हैं कि उन्हें पढ़ने बैठ जाओ तो अखबार पढ़ने, के लिए वक्त नहीं बचेगा ।, जिसे देखो, वही हमारी चिंता कर रहा है । मुस्कुराती,, चहचहाती लड़कियों के झुंड के झुंड आपके पास किसी भी, प्रदर्शनी को देखते वक्त आ जाएँगे । आपको लगेगा, हमने, ऐसी क्या उपलब्धि पा ली है कि सभी हमारा आटोग्राफ, लेना चाहते हैं । वे फार्म भरवा रही हैं । इनाम के लालच में, फार्म के साथ कुछ उम्मीदें बँधाकर जा रही हैं । घर में बैठा, हूँ, कोई साफ पानी पीने के लिए वॉटर फिल्टर लगाना चाह, रहा है । पैसे की तो कोई बात ही नहीं करता, पैसे आते, रहेंगे । आप बस, फार्म भर दीजिए । सब कुछ आसान, किस्तों में है, पता ही नहीं चलेगा । क्रेडिट कार्डवाला, नियमित रूप से विवरण भेज रहा है । आप बस पेटरोल, ्, भरवाते रहें । साबुन माँगो तो कोई एक टिकिया देता ही, नहीं । सीधे कम-से-कम चार टिकियाँ पकड़ाएँगे जिसमें, एक मुफ्त ।, , 13
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हर जगह एक फ्री का इतना चलन है कि लगता है सब, जगह भाईचारा बढ़ गया है । कोई खाने की चीज छोटी नहीं, रही । सीधे ‘लार्जर दॅन लाइफ’ हो गई है । पहले ज्यादा, खाओ फिर पचाने के लिए पाचक गोलियाँ खाओ । इससे, पहले की है, किसी ने किसी की इतनी चिंता ! लोग कोसते, रहते हैं कि दुनिया से प्यार-मुहब्बत कम होती जा रही है ।, यह उनकी समझ की कमी है ? प्यार तो दोगुना-चौगुना, बढ़ा है ।, पार्क घूमने जाता हूँ तो योग संस्थानवाले घेर लेते, हैं । कहते हैं, सिर्फ घूमने से और सैर करने से क्या होगा । वे, मुझे ‘योगा’ के फायदे समझाते हैं । मैं उन्हें अपने वक्त की, समस्या और थोड़ा बहुत घर के कामकाज की समस्या, बताता हूँ । पर वे इसे दुनियादारी मानकर मुझे सीख देने, लगते हैं । वे हर जगह काँपीटिशन पैदा करना चाहते हैं । मैंने, अपना पक्ष रखते हुए उन्हें बताया कि मैं इस सैर से ही फिट, रहता हूँ । पर वे इसे मेरी नासमझी मान मुझे ‘योगा’ के फायदे, ही बताए जा रहे हैं । अगले दिन सैर करने के लिए मुझे दूसरा, पार्क देखना पड़ता है ।, मैं पिछले कुछ वक्त पहले इन ‘योगा’ वालों से, प्रभावित रहा पर अब मेरा मोह भंग हो गया है । हुआ यूँ कि, पार्क में घूमते-घूमते मैं इनके ठहाके सुनकर बड़ा अचंभित, हुआ, सोचता कि आज के इस वक्त में ठहाके लगाने के, लिए आखिर इनके पास नुस्खा क्या है । मैं भी कुछ सकुचाते, और घूमने का बहाना बना उनके दायरे में शामिल हो गया ।, वहाँ जाकर पता चला कि उनका ठहाका लगाने का आधार, था कि वे एक-दूसरे को चुटकुले सुनाते, जिस पर सभी, समवेत स्वर में ठहाका लगाकर हँसते । मुझे ठहाका न, लगाते देख और अपनी हँसी में योगदान न देते देख हैरान, , 1144, , होते । बाद में मुझे इन चुटकुलों की समझ न रखने वाला, मान माफ कर देते । मुझे जल्दी ही इन ठहाकों का राज समझ, में आ गया और मैं अपने रास्ते वापस आ गया ।, एक दिन दो युवा आए । कहने लगे, अखबार के, दफ्तर से आए हैं । फिल्में दिखाते हैं और आपकी राय के, लिए आपको आमंत्रित करेंगे । अच्छा लगा । उन्होंने फौरन, काम शुरू कर दिया । जैसे ही मुझे किसी काम में व्यस्त, देखा तो हस्ताक्षर के लिए कागज आगे कर दिया । पढ़ने को, वक्त की बर्बादी समझ उन्होंने हस्ताक्षरवाली जगह बताकर, मेरे हस्ताक्षर करवा लिए । वही हुआ था, जो होना था ।, थोड़े दिनों बाद एक चमचमाता क्रेडिट कार्ड आ गया । सारे, मामले की छानबीन करने पर पता चला कि वे देश के भावी, कर्णधार बेशक अखबार के ऑफिस से आए थे पर उनका, किसी विदेशी बैंक से काँट्रेक्ट था । इस काँटरेक् ्ट के चलते, उन्हें क्रेडिट कार्ड बनवाने का लक्ष्य पूरा करना था ।, फिल्म देखने जाता हूँ । टिकट के साथ खाने का, सामान शामिल कर लिया जाता है । मैं खाने की मनाही, करता हूँ । मुझे कुछ इस तरह से समझाया जाता है, ‘तीन, घंटे की फिल्म में कोई भूखा-प्यासा थोड़े ही बैठेगा फिर, खाने-पीने की लाइन में आपका लगना हमें अच्छा नहीं, लगेगा ।’ उसे पता है भूख तो लगेगी । वह दूरदर्शी है । उससे, दूसरे की भूख बरदाश्त नहीं होती । लाईन में लगने से कष्ट, होगा । पहले ही इंतजाम कर देता है । मेरे द्वारा कोई तर्क, करने से पहले ही तुरुप का पत्ता फेंकते हुए मुझे बताया, जाता है ‘श्रीमान टिकट के साथ तो हम आधे पैसे चार्ज, करते हैं । यह स्कीम आपके फायदे को ध्यान में रखकर ही, जन कल्याण के लिए कुछ दिन पहले ही लाई गई है ।’ मैं, जन कल्याण का फायदा उठाने के लिए और बहस नहीं, करता । १०/- के पॉपकॉर्न १००/- में खाकर उनका, एहसान मानने लगता हूँ ।, ‘मॉल’ में कपड़ों की सेल लगी है । माल बेचने वाला, चिल्ला-चिल्लाकर कह रहा है । ‘१5००/- की साड़ी, ३5०/- में, १०००/- का कुर्ता २००/- में ।’ मैं जिज्ञासा, वश पूछ बैठता हूँ ‘‘आप इतना सस्ता माल देकर अपना, दीवाला क्यूँ पिटवा रहे हो ।’’ वह झट से कहता है ‘‘मैं, भारत माँ का सपूत हूँ । मुझे अपने देशवासियों से प्यार है ।
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मैं इस धरती का कर्ज उतारना चाहता हूँ ।’’ दरअसल वह, सेकेंड का सस्ता माल बेचने के लिए अपने को धरती का, लाल कहता है । वह अपने बलिदान के लिए उतारू है । वह, व्यापारी है । हर चीज बेच लेता है । अपना कर्ज उतार रहा, है । मैं निरुत्तर हो जाता हूँ । मैं उस महान आत्मा के सामने, नतमस्तक हूँ ।, कोई दुकानवाला त्योहारों पर होने वाली छुटटि, ् यों की, अग्रिम सूचना दे रहा है । फलाँ-फलाँ तारीख को दुकान बंद, रहेगी । आज ही जरूरत का सामान जमा कर लो । हमें तो, आपकी बड़ी चिंता रहती है । हमें पता है, इसके बिना रह, नहीं पाओगे । दोगुनी कीमत में पाने के लिए दर-दर, भटकोगे । फिर लोग कहते हैं, मनुष्य में संवेदनशीलता, खत्म होती जा रही है । जब तक हम रहेंगे, मनुष्यता बची, रहेगी ।, बाजार की चिल्लपों से घबराकर घर आता हूँ ।, मनोरंजन के लिए टीवी ऑन करता हूँ । समाचार चैनल, खबरों के नाम पर डरा रहे हैं । मौसम का हाल जानना, चाहता हूँ तो 45 डिग्री के तापमान को कुछ इस तरह बताया, जा रहा है ‘गर्मी की तपिश से जनता बेहाल । आकाश से, आग की बरसात । आप अगर जीवित रहना चाहते हैं और, अपना भला चाहते हैं तो घर से बाहर न निकलें ।’ आपका, गर्मी से आया पसीना अब आपको पूरी तरह नहला देगा ।, इसी तरह सर्दी के खौफनाक वर्णन से आप रजाई में भी, कँपकँपी महसूस कर सकते हैं । असल बात दर्शकों का, मनोरंजन है । खबर भी पता चल जाए और मनोरंजन भी हो, जाए । यह तो सोने पे सुहागावाली बात हो गई । वह एक, खबर को दस बार अलग-अलग तरीके से फिर-फिर, दोहराएगा । वह सबका भला चाहता है । उसका साध्य, पवित्र है । साधन से समझौता कर ले पर साध्य साफ होना, चाहिए । दरअसल यह हमारा भला चाहने वाले हैं जिनकी, चिंता को हम ठीक से समझ नहीं पा रहे । गर्मी-सर्दी,, सूखा-बाढ़ के प्रकोप से आदमी बच भी जाए, इनकी भाषा, के मर्मांतक प्रहार से मरना लाजिमी है ।, मेरे मोहल्ले में ‘पुरुष ब्यूटी पार्लर’ खुल गया है । मुझे, अपने पैर के लंबे नाखून कटवाने हैं । वह मेरा ‘फेशियल’, करना चाहता है । उसका कहना है, नाखून तो जुराबों में, , छिप जाएँगे पर मुँह तो सबको नजर आएगा । वह मेरी ‘फेस, वेल्यू’ बढ़ाना चाहता है । मैं पैर के लंबे नाखून कटवाने पर, अड़ा हूँ । पता नहीं क्या सोच कर वह मेरी बात मान गया ।, उसने मेरे पैर पानी में रखवाए । फिर बड़ी देर तक मेरे पैरों के, नाखूनों को घिसता रहा । मुझे आज से पहले अपने नाखून, इतने महत्त्वपूर्ण कभी नहीं लगे । वह मेरे मुड़े नाखून को, सीधा करने लगा । बड़े तरीके से नये-नये औजारों से, घिसने लगा । लगा, कोई संगमरमर की मूर्ति तराश रहा है ।, मैंने एतराज किया तो उसने मेरे एतराज पर घोर एतराज, किया । उसने पैर के बड़े नाखून से होने वाली तकलीफों पर, व्याख्यान दिया । उसने इसे नाखून कटवाने की जगह, ‘पैडीक्योर’ नाम दिया । वह बड़ा लुभावना नाम था । मैं मान, गया । मैं उसके तर्कों से खुशी-खुशी हार गया । उसने नाखून, काटने के सिर्फ १०००/- लेकर मुझे मुक्त कर दिया ।, रास्ते से जा रहा था । एक लंबी कतार ने मेरा ध्यान, आकर्षित कर लिया । उस कतार में मैने झाँककर देखा, कतार मोबाइल खरीदने वालों की थी । चिल्ला-चिल्लाकर, स्पीकर पर सूचना दी जा रही थी । ‘‘मोबाइल खरीदो और, सिम कार्ड मुफ्त में पाओ, टॉक टाइम भी साथ में ले, जाओ’’। सुनकर मैं भी मोबाइल कतार का एक हिस्सा बन, गया और उस भीड़ में दिनभर खड़े होकर मोबाइल का, मालिक बन गया । उस दिन से जेब में घंटियाँ बजने की राह, देखता रहा ।, मैंने मोबाइल खरीदा है । स्विच ऑन किए बैठा हूँ ।, कोई फोन आ नहीं रहा । बीच-बीच में चेक कर लेता हूँ ।, कहीं कोई गलत बटन तो नहीं दबा बैठा । मेरे पास ही दो, प्रॉपर्टी डीलर और दो युवा लड़के बैठे हैं । उन्हें धड़ाधड़, फोन आ रहे हैं । दीवाली की शुभकामनाएँ आ रही हैं । ठीक, है जो हमारा शुभ कर पाए, उसे ही तो शुभकामनाएँ दी जानी, चाहिए । जो न कुछ दे सके, न फायदा कर सके, उसका, क्या शुभ और उसकी क्या शुभकामनाएँ ।, मैंने कुछ दोस्तों को निर्देश दिए हैं कि फोन मोबाइल, पर ही करना । ऑफिस का फोन ध्यान आकर्षित नहीं, करता । मोबाइल फोन ध्यान खींचता है । जब तक मोबाइल, दूसरे का ध्यान न बाँटे तब तक फोन का क्या मतलब है ।, जिंदगी में इतना कुछ करना है पर जिंदगी मुई छोटी है ।, , 1155
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अपनी और दूसरों की जिंदगी दाँव पर लगानी होती है ।, व्यस्तता का यह आलम है कि आदमी सड़क पर चलतेचलते फोन कर रहा है । पता नहीं कौन लोग हैं जो कहते हैं, भारत और अमेरिका का मुकाबला नहीं किया जा सकता ।, ‘सेल’ फोन से हम हीनता की ग्रंथि से मुक्त हुए हैं ।, सभी को साथी मिल गया है । एक-दूसरे से मिलकर बात, कम करें, फोन पर ज्यादा करें । फोन पर आम बात भी खास, लगती है । उसमें करेंट दौड़ जाता है । घर से ठीक-ठीक, निकला आदमी ऑफिस पहुँचकर अपने पहुँचने की खबर दे, रहा है । सब एकाएक एक-दूसरे के करीब हो गए हैं । मेरे, हाथ में भी मोबाइल आ गया, उस मोबाइल से मुझे भी प्यार, हो गया लेकिन कब से राह देख रहा हूँ मुफ्त में मिले सिम, कार्ड से मोबाइल पर घंटी क्यों नहीं बजती ।, याद रखें, घोषित तौर पर अपना नुकसान करने वालों, से फिर आप बच सकते हैं । कुछ अपनी सुरक्षा की तैयारी, कर सकते हैं पर इन फायदा करने वालों से बचने की ज्यादा, , जरूरत है । यह हर हालत में आपका ‘फायदा’ करके ही, मानेंगे । मैंने कई बार इन भला करने वालों को समझाया है, कि क्यों मेरे पीछे पड़े हो । मुझे अपना भला नहीं करवाना, है । ऐसे ही ठीक हूँ । भला करने वाला मेरी निष्क्रियता को, नजरअंदाज करते हुए मेरे फायदे के नुस्खे समझा रहा है, ‘‘यह ले लो, वो फ्री । वो ले लो, ये फ्री ।’’, पता नहीं वे कौन लोग हैं जो आए दिन ‘जमाना बुरा, है’ कहकर एक-दूसरे को परेशान करते रहते हैं । यहाँ तो, भला करने वाले परेशान करने की हद तक भला करने लगे, हैं । बुरा करने वालों से आदमी सीधे टकरा जाए या किसी, दूसरे की मदद माँग ले पर इन भला करने वालों को तो, पहचानना ही मुश्किल है । आप तो बस प्लीज, मुझे किसी, तरह इन भला करने वालों से बचाएँ ।, (‘झूठ बराबर तप नहीं’ व्यंग्य संग्रह से), ०, , छ, %, ट, ०, 5, , !, , !, , !, !!, , !, , , , सेल ! सल, े, ee, !, Fr, १ पर १ मु त, 16
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६. कलम का सिपाही, , (प्रेमचंद पर केंद्रित रेडियो रूपक), , - डॉ. सुनील केशव देवधर, , लेखक परिचय ः सुनील केशव देवधर जी का जन्म २१ जुलाई १९5६ को छतरपुर (मध्य प्रदेश) में हुआ । आपने, बी.सी.जे. (पत्रकारिता) एम.ए. (अर्थशास्त्र, हिंदी) तथा बुंदेलखंड विश्वविद्यालय से पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त की ।, रोचकता आपके रेडियो रूपक लेखन की विशेषता है । अभिनय तथा संवाद लेखन के रूप में आप फिल्मों से भी जुड़े हुए, हैं । आप ऐसे सृजनधर्मी हैं जो आकाशवाणी के कार्यक्रमों को साहित्यिक रूप देने की क्षमता रखते हैं ।, प्रमुख कृतियाँ ः ‘मत खींचो अंतर रेखाएँ’ (काव्य संग्रह), ‘मोहन से महात्मा’, ‘आकाश में घूमते शब्द’ (रूपक संग्रह), ‘संवाद अभी शेष हैं’, ‘संवादों के आईने में’ (साक्षात्कार) आदि ।, विधा परिचय ः ‘रेडियो रूपक’ एक विशेष विधा है, जिसका विकास नाटक से हुआ है । रेडियो रूपक का क्षेत्र विस्तृत, है । दृश्य-अदृश्य जगत के किसी भी विषय, वस्तु या घटना पर रूपक लिखा जा सकता है । इसके प्रस्तुतीकरण का ढंग सहज,, प्रवाही तथा संवादात्मक होता है । विकास की वास्तविकताओं को उजागर करते हुए जनमानस को इन गतिविधियों में, सहयोगी बनने की प्रेरणा देना रेडियो रूपक का उद्देश्य होता है । विष्णु प्रभाकर, लक्ष्मीनारायण लाल, रेखा अग्रवाल,, कन्हैयालाल नंदन, लोकनंदन, सोमदत्त शर्मा आदि ने रेडियो रूपक को समृद्ध करने में अपना योगदान दिया ।, पाठ परिचय ः प्रस्तुत ‘रेडियो रूपक’ उपन्यास सम्राट प्रेमचंद जी पर आधारित है । किसान और मजदूर वर्ग के मसीहा प्रेमचंद, जी की रचनाएँ आज भी प्रासंगिक हैं । साहित्य द्वारा प्रेमचंद जी ने जीवन के मूल तत्त्वों और सत्य को सामंजस्यपूर्ण दृष्टि, से प्रस्तुत किया है । सामाजिक और आर्थिक दृष्टि से समाज को विकास की दिशा प्रदान करना ही उनकी साहित्य रचनाओं, का उद्देश्य है । लेखक ने यहाँ साहित्यकार प्रेमचंद जी के व्यक्तित्व और कृतित्व को रोचक ढंग से प्रस्तुत किया है ।, , 27
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(लोकसंगीत के ध्वनि प्रभाव के साथ स्वर का उभरना ।), प्रथम स्वर, , : हिंदी के उपन्यास तथा कहानी की विकास यात्रा, सामयिक जीवन की विशालता, अभिव्यक्ति का, खरापन, पात्रों की विविधता, सामाजिक अन्याय का घोर विरोध, मानवीय मूल्यों से मित्रता और संवेदना,, साहित्य की साधना, धन का शत्रु और किसान वर्ग का मसीहा-यानी मुंशी प्रेमचंद !, द्वितीय स्वर : मुंशी प्रेमचंद जिन्होंने अपने युग की चुनौतियों को सामाजिक धरातल पर स्वीकारा और, नकारा । उन्होंने इन समस्याओं और मान्यताओं के जीते-जागते चित्र उपस्थित किए जो मध्यम वर्ग,, किसान, मजदूर, पूँजीपति, समाज के दलित और शोषित व्यक्तियों के जीवन को संचालित करती हैं ।, प्रथम स्वर : उनका साहित्य सृजन विपुल था लेकिन विपुलता ने उनके लेखन की गुणवत्ता को कभी ठेस नहीं पहुँचाई,, उपन्यास हो अथवा कहानी, उसमें कहीं भी कोई कमी नहीं आने दी ।, द्वितीय स्वर : समय की धड़कनों से जुड़े, सजग आदर्शवादी और साथ ही प्रामाणिकता के संवेग को अपने-आप में, धारण करने वाले, इस कलम के सिपाही के कृतित्व की स्थायी देन की ऐसी मुहावरेदार और सहज भाषा, है, जो पहले कभी नहीं थी । साथ ही, उनका लेखन आज भी प्रासंगिक लगता है ।, प्रथम स्वर : उनके साहित्य का मूल स्वर है - ‘डरो मत’ और जो साहित्यकार अपने युग को अभय नहीं देता, वह, किसी भी अन्याय से जूझने की शक्ति नहीं देता, और जो ऐसी शक्ति नहीं देता, वह युग जीवन का संगी, नहीं हो सकता । उन्होंने युग को जूझना सिखाया है, लड़ना सिखाया है ।, द्वितीय स्वर : लेकिन प्रेमचंद आज भी जीवन से जुड़े हुए हैं, वे युगजीवी हैं और युगांतर तक मानवसंगी दिखाई पड़ते हैं, - यही कारण है कि आज प्रेमचंद और उनका साहित्य सभी जगह परिसंवाद, परिचर्चा का विषय है ।, प्रथम स्वर : चाहे शिक्षा संबंधी अायोजन हो या विचार गोष्ठी अथवा संभाषण, प्रेमचंद की विचारधारा, उनके, साहित्य तथा प्रासंगिकता पर जरूर बात की जाती है । यही तो उनके साहित्य की विशेषता है ।, ध्वनि प्रभाव : .... (तालियाँ), प्रवक्ता , , : (वक्तव्य की शैली में) आज जब हम प्रेमचंद की बात करते हैं तो अपने-आप ही सामाजिक व्यवस्था, के कई पहलू भी हमारे सामने आ जाते हैं जो कि प्रेमचंद की प्रासंगिकता को उजागर करते हैं । प्रेमचंद, यदि आज भी प्रासंगिक और महान हैं तो वह इसलिए कि उन्होंने किसानों के मानसिक गठन और मध्यम, वर्ग तथा दलित और पिछड़े हुए लोगों के दृष्टिकोण को उस समय गहरे विश्वास और उत्साह के साथ, वाणी दी जिस समय इस देश के सामाजिक और राजनीतिक जीवन में इसकी आवश्यकता अनुभव की, जा रही थी और उथल-पुथल हो रही थी । वह तब का समय था लेकिन तब से आज तक लगातार हम, किसान, पिछड़े वर्ग और शाेषित वर्ग के कल्याण की जिम्मेदारी अनुभव कर रहे हैं तो क्या आज की, स्थिति पर प्रेमचंद पहले से ही विचार करते हुए नहीं दिखाई देते ! उनकी कृतियों में आर्थिक शोषण और, सामाजिक अन्याय के विरुद्ध कृषक वर्ग की घृणा और कटुता की झलक मिलती है ।, , प्रेमचंद का व्यक्तित्व तब सबसे अधिक विकसित होता है जब वह निम्न मध्यवर्ग और कृषक वर्ग का, चित्रण करते हुए अपने युग की प्रतिगामी शक्तियों का भी विरोध करते हैं और एक श्रेष्ठ विचारक और, समाज सुधारक के रूप में प्रकट होते हैं । इनका विचारक जिसे इनके साहित्यकार से अलग नहीं किया, जा सकता, बदलती परिस्थितियों के अनुरूप तथा निजी अनुभूतियों के कारण बदलता भी रहा है और, इसीलिए यह मूलतः सामाजिक होकर भी अपना कलेवर बदलता रहता है । प्रेमचंद का जीवन के प्रति जो, दृष्टिकोण है, वह ‘पूस की रात’ और ‘कफन’ कहानियों में एक नया मोड़ लेता है । उनकी संवेदना, , २288
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‘गोदान’ उपन्यास में नए साँचे में ढलने लगती है । प्रेमचंद ने कभी अपने को किसी सीमा में नहीं बाँधा ।, उनकी जीवन दृष्टि बदलती रही । इसीलिए कभी वे मानवतावादी, कभी वे सुधारवादी, कभी प्रगतिवादी,, तो कभी गाँधीवादी मालूम पड़ते हैं लेकिन सत्य यह है कि प्रेमचंद कभी किसी वाद को लेकर नहीं चले,, न तो वादी होकर जिए आैर न ही वादी होकर मरे । सच तो यह है कि वे सतत गतिशील रहे हैं । कहीं भी, चूकते नजर नहीं आते, निःशेष नहीं होते । इसीलिए वे हर काल में प्रासंगिक हैं ।, ......... (तालियाँ)........ संगीत प्रथम, , द्वितीय, प्रथम, , : प्रेमचंद उन सामाजिक परिस्थितियों और मानव वृत्तियों से बखूबी परिचित थे जो जीवन में सदैव ही घटित, होती रहती हैं । उन्होंने देखा था कि किस प्रकार गैरकानूनी तरीके से किसानों को उनके खेतों से बेदखल, किया जाता है ।, : ‘गोदान’ का होरी ऐसे ही किसान का चरित्र है जो भूख, बीमारी, उपेक्षा और मौत से लड़ता रहा है ।, : लेकिन दूसरी ओर अलोपीदीन जैसे कालाबाजारी, समाज के ठेकदे ार और दीनों के शोषक को गिरफ्तार, करने वाला नमक का दरोगा भी है जो किसी भी हाल में अपने ईमान को बेचता नहीं है और पुलिस महकमे, की सत्यनिष्ठा और दृढ़ता को उभारता है ।, , ध्वनि प्रभाव : (बैलगाड़ी-बैलों की घंटियाँ), अलोपीदीन : बाबू जी कहिए ! हमसे ऐसा कौन-सा अपराध हुआ जो गाड़ियाँ रोक दीं ।, वंशीधर, : ये सरकारी हुकुम है, गाड़ियाँ नहीं जाएँगी ।, अलोपीदीन : (हँसकर) हमारे सरकार तो आप हैं, यह तो घर की बात है भला । हम कभी आपसे बाहर हो सकते हैं ।, ऐसा कैसे संभव है कि हम इस घाट से गुजरें और देवता को कुछ न चढ़ाएँ । आपने व्यर्थ कष्ट किया, मैं, तो खुद ही आपके पास आ रहा था आपके लिए चढ़ावा लेकर ।, वंशीधर, : हम उनमें से नहीं जो कौड़ियों पर अपना ईमान बेच दें, आप मेरी हिरासत में हैं, आपका चालान होगा ।, अलोपीदीन : (गिड़गिड़ाकर) बाबू साहब, ऐसा मत कहिए, हम मिट जाएँगे । इज्जत माटी में मिल जाएगी, हमारा, अपमान करके आपको क्या मिल जाएगा ? मान जाइए ।, : (कठोर स्वर) मैं ऐसी कोई बात सुनना नहीं चाहता ।, वंशीधर, अलोपीदिन : (करुण स्वर) मुख्तार जी, १००० के नोट बाबू साहब को भेंट करो ।, वंशीधर, : (कड़ककर) सेठ अलोपीदीन, एक हजार नहीं, एक लाख भी मुझे सच्चे मार्ग से नहीं हटा सकते ।, अलोपीदीन : आपकी मर्जी, इससे ज्यादा का मेरा सामर्थ्य नहीं ।, वंशीधर, : बदलूसिंह ! तुम देखते क्या हो, हिरासत में लो ।, अलोपीदिन : बाबू साहब, ईश्वर के लिए मुझ पर दया कीजिए, मैं पच्चीस हजार पर निपटारा करने के लिए तैयार हूँ ।, वंशीधर, : मैंने कहा न, असंभव बात है ।, अलोपीदिन : तीस हजार ।, वंशीधर, : नहीं, नामुमकिन है ।, अलोपीदीन : क्या कहा हुजूर, चालीस पर भी नहीं ।, वंशीधर, : चालीस हजार नहीं, चालीस लाख पर भी नहीं, बदलूसिंह, इस आदमी को अभी हिरासत में, लो । मैं एक शब्द भी सुनना नहीं चाहता । यह समझता क्या है मुझे ।, , 29
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ध्वनिप्रभाव : (बैलगाड़ियों का), प्रथम स्वर, द्वितीय स्वर, प्रथम स्वर, , द्वितीय स्वर, , प्रथम स्वर, द्वितीय स्वर, , प्रथम स्वर, द्वितीय स्वर, , : तो ऐसा है, प्रेमचंद का पात्र, कहानी का नायक जिसे कोई भी प्रलोभन आकर्षित नहीं कर, पाता । क्या आज भी हम ऐसी दृढ़ता और ईमानदारी की अपेक्षा नहीं करते ?, : कहते हैं, साहित्यकार के साहित्य पर उसके व्यक्तित्व की छाप होती है । तो क्या प्रेमचंद अपने व्यक्तिगत, जीवन में इतने ही दृढ़ और सहज थे?, : निःसंदेह वे लेखक के नाते तो महान हैं ही मनुष्य के नाते तो वे और भी महान हैं । देखने में वे किसी भी, तरह बड़े नहीं मालूम पड़ते थे । उनकी दुबली-पतली साधारण-सी देह उनके द्वारा झेले गए कष्टों की, सूचना देती थी । भाग्य कभी उनके अनुकूल नहीं रहा ।, : दूसरों के हृदय को मोहने वाला उनका आचरण, सीधा-सादा ढंग, सहज बर्ताव इन सब बातों ने उनको, अपरिचित और परिचित की दृष्टि में उठा दिया था । उनमें सदैव बालकों-सा भोलापन और सरलता, थी ।, : प्रेमचंद की सबसे बड़ी विशेषता है उनकी कहानियों और नाटकों में व्याप्त मानवीय संवेदना ।, : अमर कथासाहित्य की रचना के साथ-साथ उन्होंने युग जीवन के सभी पक्षों पर अपनी नजर डाली । युग, चेतना के लिए ‘जागरण’ निकाला । विभिन्न भाषाओं के साहित्य को एक-दूसरे से परिचित कराने के, लिए ‘हंस’ का प्रकाशन किया । उनकी साहित्यिक महत्त्वाकांक्षाएँ सर्वोपरि थी ।, : उनका प्रगतिशील आंदोलन, विचारोत्तेजक निबंध, व्याख्यान आदि ने साहित्य भाषा और साहित्यकार, के दायित्व की ओर जनसाधारण का ध्यान आकर्षित किया और साथ ही संदर्भ और समाधान भी दिए ।, : और यही कारण है कि जहाँ कहीं भी साहित्य प्रेमी मिल बैठते हैं, वहाँ प्रेमचंद के व्यक्तित्व, कृतित्व,, प्रासंगिकता, उनके उपन्यास, कहानियों और पात्रों के अलावा उनकी विचारधारा, प्रगतिशीलता आदि, पर खुली बहस होती है । उनके उपन्यास व कहानियाँ ही नहीं, पात्र तक लोकप्रिय हुए हैं ।, (परिवर्तन संगीत), (परिचर्चा शैली में बातचीत), , सुधीर, , मधु, , संजय, मधु, सुधीर, , : जहाँ तक मैंने प्रेमचंद को पढ़ा है तो भाई मैं तो यही कहूँगा कि उन्होंने अपने साहित्य में किसी निरुद्देश्य, रूप का सृजन नहीं किया । अपनी प्रत्येक रचना में किसी-न-किसी समस्या को उठाया है और यहाँ तक, कि अपने विचार के अनुसार उसके समाधान की ओर भी इशारा किया है ।, : मैं आपके विचार से सहमत हूँ मगर एक बात मेरे देखने में आती है कि प्रेमचंद स्वयं देहात में पले, पैदा, हुए, गरीबी में जिए और उनके उपन्यासों में देहाती जीवन का ही चित्रण है चाहे, उनका उपन्यास ‘गोदान’, हो या कहानियों में ‘कफन’, ‘ईदगाह’ या ‘बूढ़ी काकी’ । कहिए संजय जी, आपका क्या ख्याल है: यह बात तो सच है कि मुख्य चित्रण तो ग्रामीण जीवन का ही है मगर ‘प्रतिज्ञा’, ‘निर्मला’ अौर ‘सेवासदन’, कुछ ऐसे उपन्यास भी हैं जो मुख्यत: शहरी जीवन को लेकर ही चलते हैं ।, : आपने ‘निर्मला’ उपन्यास का नाम लिया तो मुझे प्रेमचंद का नारी के प्रति क्या दृष्टिकोण है? वे उसे कैसा, प्रस्तुत करते हैं? इस बारे में भी थोड़ा ख्याल आ गया ।, : आपने ठीक कहा मधु जी, इस उपन्यास में हम भारतीय नारी की समस्या को मूर्त पाते हैं । निर्मला एक, ऐसी स्त्री है जो परंपराओं, रूढ़ियों, धर्म और कर्मकांडों में जकड़ी हुई है और वह किसी भी तरह अपनी, मुक्ति नहीं कर पाती ।, , 30
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मधु, संजय, , : और आज भी क्या भारतीय नारी उतनी स्वतंत्र है, जितनी समझी जाती है?, : लगता है, अब मधु जी अन्य बातों पर तो बोलने ही नहीं देगी । अच्छा मधु जी, आप ही बताइए क्या, प्रेमचंद को आप किसी वाद से जुड़ा पाती हैं ?, मधु, : जहाँ तक मैं सोचती हूँ कि कोई भी साहित्यकार अपने सामयिक वातावरण से प्रभावित होता अवश्य है, मगर प्रेमचंद किसी एक धारा या वाद में बँधकर नहीं चले ।, सुधीर, : इस संबंध में मैं तो यह कहूँगा कि वे वास्तविकता की ओर अग्रसर हो रहे थे । उनकी रचनाओं में, वास्तविकता की ओर क्रमिक यात्रा हम देख सकते हैं तो फिर उन्हें वस्तुवादी भी कहा जा सकता है ।, संजय, : हाँ यह तो ठीक ही है ।, (परिवर्तन सूचक ध्वनि प्रभाव), प्रथम स्वर : प्रेमचंद ने मनोरंजन या झूठे सपने संबंधी जिज्ञासा शांत करने के लिए उपन्यास, कहानियों की रचना नहीं, की ।, द्वितीय स्वर : कला के बारे में उनकी भावना उदात्त थी, जीवन की सामाजिक और आर्थिक समस्याओं के संबंध में, उनके जो विचार थे, उनको व्यक्त करने का साधन ही वह कला को मानते थे ।, प्रथम स्वर : वे सामाजिक और आर्थिक समस्याओं को प्रमुखता देते हैं और ये समस्याएँ उनके वर्णन, पात्र, कथावस्तु, या कहानी के अन्य तत्त्वों पर शासन करती हैं । वे सामाजिक जीवन के चितेरे हैं, उनका मूल उद्देश्य उस, समाज के क्रमिक विकास के दर्शन कराना है जो सामाजिक रूढ़ियों पर आधारित है ।, द्वितीय स्वर : वे एक ऐसी समाज व्यवस्था का निर्माण करना चाहते हैं जिसमें जरूरतें पूरी करने के अवसर होंगे और, विकास की सुविधाएँ । इसी सामाजिक उद्देश्य से उनका चिंतन प्रेरित था और कला अनुप्राणित थी ।, प्रथम स्वर : उन्होंने साहित्य, समाज और राजनीति के क्षेत्र में जो क्रांति का बीज बोया था, वह आज प्रस्फुटित हो, चुका है, जो आगे चलकर विशाल वटवृक्ष में परिणत होगा । जिसकी छाया में सुखी राष्ट्र का निर्माण, होगा । उनके साहित्य में जागृति की औषधि है, जिसकी नींव पर साहित्य का विशाल भवन खड़ा होगा ।, द्वितीय स्वर : प्रेमचंद का साहित्य ही कालजयी नहीं, वे स्वयं भी कालजयी हैं ।, (संगीत के ध्वनि प्रभाव से समाप्त), (‘मोहन से महात्मा तथा अन्य रूपक’ रेडियो रूपक संग्रह से), ०, कर्मभमि, ू, सेवा सदन, प्रेमाश्रम, गबन, गोदा, न, निर्म, ला, , रंगभ, , ूमि, , 31
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७. स्वागत है !, - शाम दानीश्वर, कवि परिचय ः शाम दानीश्वर जी का जन्म फरवरी १९4३ में हुआ । शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात आप हिंदी अध्यापक के, रूप में कार्यरत रहे । हिंदी के प्रति लगाव होने के कारण साहित्य रचना में रुचि जाग्रत हुई । प्रवासी साहित्य में माॅरिशस के कवि, के रूप में आपकी पहचान बनी । अपने परिजनों से विछोह का दुख, गुलामी का दंश और पीड़ा आपके काव्य में पूरी संवेदना, के साथ उभरी है । यथार्थ अंकन के साथ भविष्य के प्रति आशावादिता आपके काव्य की विशेषता है । प्रवासी भारतीय, साहित्य में आपका महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है । शाम दानीश्वर जी की मृत्यु २००६ में हुई ।, प्रमुख कृतियाँ ः ‘पागल’, ‘कमल कांड’ (उपन्यास), काव्य संग्रह आदि ।, काव्य प्रकार ः विदेशों में बसे भारतीयों द्वारा हिंदी में रचा गया साहित्य ‘प्रवासी भारतीय हिंदी साहित्य’ कहलाता है । इन, रचनाओं ने नीति-मूल्य, मिथक, इतिहास, सभ्यता के माध्यम से भारतीयता को सुरक्षित रखा है । प्रवासी साहित्य ने हिंदी, साहित्य को समृद्ध बनाने के साथ-साथ पाठकों को प्रवास की संस्कृति, संस्कार एवं उस भूभाग के लोगों की स्थिति से भी, अवगत कराया है । अभिमन्यु अनत, जोगिंदर सिंह कंवल, स्नेहा ठाकुर आदि अन्य प्रवासी साहित्यकार हैं ।, काव्य परिचय ः प्रस्तुत कविता में कवि प्रवासी भारतीयों को अपनी विगत दुखद स्मृतियाँ भुलाकर मॉरिशस आने के लिए, प्रेरित कर रहा है । अब माॅरिशस की भूमि नैहर के समान है, जहाँ परिजनों से मिलाप होगा । लघु भारत के आँगन में कवि सभी, का स्वागत कर रहा है । कवि ने गिरमिटियों के जीवन में आए सकारात्मक पहलुओं को उजागर किया है । गिरमिटियों की, पीढ़ियों के मन में स्थित भारतीयों की संवेदनाओं और उनकी सृजनात्मक प्रतिभाओं के दर्शन भी कराए हैं ।, , 3344
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स्वागत है !, स्वागत-स्वागत-स्वागत है ।, आओ, आओ, आओ !, ओ मेरे भाइयो !, बिखरे हुए मेरे परम दोस्तो !, आप सबों का सप्रेम स्वागत है, एक ही माँ के बालक हैं हम, और अनेक देशों में बिखरे हैं, आज मिलन हमारा हो रहा, कई युगों के बाद, तुम सब मॉरिशस की भूमि पर, पधार रहे हो आज, स्वागत है !, , हम सब जहाजिया भाई ठहरे, कोई इस जहाज पर चढ़ा था,, तो कोई उस जहाज पर, और जब जहाज पानी में बहने लगे,, तो एक ही देश में नहीं पाए गए, लंगर पड़ा जब समुद्र तट पर,, हक्का-बक्का ताकने लगे,, अरे ! कहाँ आ गए हम इतनी दूर !, अरे ! मेरे भाई-भतीजे कहाँ हैं?, इस जहाज में जगह नहीं थी, फिर उस जहाज पर तो चढ़े थे, स्वागत है !, , भूल जाओ वह पुरानी कथा, मेरे हृदय के टुकड़ो !, भूल जाओ वह जहाजी कारनामे, जो होना था प्रारब्ध में,, वही तो हुआ हम सबके साथ, अब रोना, रोने से क्या होगा?, जहाजी प्रणयन को सोचना क्या,, आज तो हम मिल ही रहे हैं,, युग-युगांतरों बाद, देखो, हम सब कैसे साथ हैं आज,, लघु भारत के प्रांगण में !, स्वागत है !, , 3355
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8. तत्सत, - जैनेंद्र कुमार, लेखक परिचय ः जैनेंद्र कुमार जी का जन्म २ जनवरी १९०5 को अलीगढ़ (उत्तर प्रदेश) में हुआ । प्रारंभिक शिक्षा ॠषभ, ब्रह्मचर्याश्रम, हस्तिनापुर में हुई । उच्च शिक्षा के लिए काशी हिंदू विश्वविद्य ालय में प्रवेश लिया था लेकिन १९२० में, असहयोग आंदोलन में सहभागी होने के कारण शिक्षा छोड़ दी । आप हिंदी उपन्यास के इतिहास में मनोविश्लेषणात्मक परंपरा, के प्रवर्तक माने जाते हैं । आपकी कहानियाँ किसी-ना-किसी ऐसे मूल विचार तत्त्व को जगाती हैं जो जीवन की समस्याओं, की अतलस्पर्शी गहराई में सोई रहती हैं । आप पद्मभूषण से सम्मानित हैं । जैनेंद्र जी की मृत्यु १९88 में हुई ।, प्रमुख कृतियाँ ः ‘त्यागपत्र’, ‘कल्याणी’ (उपन्यास), ‘पाजेब’, ‘वातायन’, ‘नीलम देश की राजकन्या’ (कहानी संग्रह), ‘पाप और प्रकाश’ (नाटक), ‘मेरे भटकाव’, ‘ये और वे’ (संस्मरण), ‘साहित्य और संस्कृति’ (आलोचना) आदि ।, विधा परिचय ः ‘कहानी’ गद्य साहित्य की रोचक तथा अन्यतम विधा मानी जाती है । मानवीय संवेदना की अभिव्यक्ति तथा, जीवन के यथार्थ का प्रस्तुतीकरण कहानी में होता है । मनोरंजन के साथ-साथ किसी-न-किसी घटना का चित्रण करना, कहानी की विशेषता है । जीवन की विभिन्न समस्याओं और उनके समाधानों को कहानियों में उजागर किया जाता है । समाज, में व्याप्त कुरीतियों, रूढ़ियों तथा आडंबरों को समाप्त कर श्रेष्ठ समाज की स्थापना करना कहानियों का उद्देश्य होता है ।, पाठ परिचय ः प्रस्तुत पाठ प्रतीकात्मक कहानी है । सृष्टि निर्माता के प्रतीक ‘वन’ में मौजूद जीव-जंतु तथा वनस्पति भी, विशिष्ट प्रवृत्तियों के द्य ोतक हैं । ‘बुद्धि’, ‘शक्ति’ तथा ‘ज्ञान’ के अहंकार में चूर मनुष्य स्वयं को सबसे श्रेष्ठ समझता, है । प्रस्तुत कहानी के माध्यम से लेखक बताना चाहते हैं कि प्रकृति द्वारा निर्मित पेड़-पौधे, पशु-पक्षी, इनसान, अपनी-अपनी जगह महत्त्वपूर्ण हैं । सभी का अस्तित्व इस सृष्टि के लिए अर्थपूर्ण है पर अंत में सभी को उस सर्वशक्तिमान, के अस्तित्व को स्वीकार करना ही पड़ता है । यही सृष्टि का अंतिम सत्य है ।, एक गहन वन में दो शिकारी पहुँचे । वे पुराने शिकारी, थे । शिकार की टोह में दूर-दूर घूमे थे, लेकिन ऐसा घना, जंगल उन्हें नहीं मिला था । देखते जी में दहशत होती थी ।, वहाँ एक बड़े पेड़ की छाँह में उन्होंने वास किया और आपस, में बातें करने लगे ।, एक ने कहा, ‘‘ओह, कैसा भयानक जंगल है !’’, दूसरे ने कहा, ‘‘और कितना घना !’’, कुछ देर बात कर विश्राम करके वे शिकारी आगे बढ़, गए । उनके चले जाने पर पास के शीशम के पेड़ ने बड़ से, कहा, ‘‘बड़ दादा, अभी तुम्हारी छाँह में ये कौन थे ? वे, गए?’’, बड़ ने कहा, ‘‘हाँ गए । तुम उन्हें नहीं जानते हो ?’’, शीशम ने कहा, ‘‘नहीं, वे बड़े अजब मालूम होते थे ।, कौन थे, दादा ? पहले कभी नहीं देखा उन्हें ।’’, दादा ने कहा, ‘‘जब छोटा था तब इन्हें देखा था ।, इन्हें आदमी कहते हैं । इनमें पत्ते नहीं होते, तना-ही-तना, , होता है । देखा, वे चलते कैसे हैं ? अपने तने की दो शाखों, पर ही चलते चले जाते हैं ।’’, शीशम ने कहा, ‘‘ये लोग इतने ही ओछे रहते हैं, ऊँचे, नहीं उठते ! क्यों दादा ?’’ दादा ने कहा, ‘‘हमारी-तुम्हारी, तरह इनमें जड़ें नहीं होतीं । बढ़े तो काहे पर? इससे वे, इधर-उधर चलते रहते हैं, ऊपर की ओर बढ़ना उन्हें नहीं, आता । बिना जड़ न जाने वे जीते किस तरह हैं ।’’, इतने में बबूल, जिसमें हवा साफ छनकर निकल जाती, थी, रुकती नहीं थी और जिसके तन पर काँटे थे, बोला,, ‘‘दादा, ओ दादा, तुमने बहुत दिन देखे हैं । यह बताओ कि, किसी वन को भी देखा है । ये आदमी किसी भयानक वन, की बात कर रहे थे । तुमने उस भयावने वन को देखा है ?’’, शीशम ने कहा, ‘‘दादा, हाँ सुना तो मैंने भी था । वह, वन क्या होता है ?’’, बड़ दादा ने कहा, ‘‘सच पूछो तो भाई, इतनी उमर, हुई, उस भयावने वन को तो मैंने भी नहीं देखा । सभी जानवर, , 39
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मैंने देखे हैं । शेर, चीता, भालू, हाथी, भेड़िया । पर वन, नामक जानवर को मैंने अब तक नहीं देखा ।’’ एक ने कहा,, ‘‘मालूम होता है, वह शेर-चीतों से भी डरावना होता है ।’’, बड़ दादा ने कहा, ‘‘डरावना जाने तुम किसे कहते, हो । हमारी तो सबसे प्रीति है ।’’, बबूल ने कहा, ‘‘दादा, प्रीति की बात नहीं है । मैं तो, अपने पास काँटे रखता हूँ । पर वे आदमी वन को भयावना, बताते थे । जरूर वह चीतों से बढ़कर होगा ।’’, दादा, ‘‘सो तो होता ही होगा । आदमी एक टूटी-सी टहनी, से आग की लपट छोड़कर शेर-चीतों को मार देता है । उन्हें, ऐसे मरते अपने सामने हमने देखा है । पर वन की लाश हमने, नहीं देखी । वह जरूर कोई बड़ा खौफनाक होगा ।’’, इसी तरह उनमें बातें होने लगीं । वन को उनमें से कोई, , 4400, , नहीं जानता था । आस-पास के पेड़, साल, सेमर, सिरस, उस बातचीत में हिस्सा लेने लगे । वन को कोई मानना नहीं, चाहता था । किसी को उसका कुछ पता नहीं था पर उसका, डर सबको था । इतने में पास ही जो बाँस खड़ा था और जो, जरा हवा पर खड़-खड़ करने लगता था, उसने अपनी जगह, से ही सीटी-सी आवाज देकर कहा, ‘‘मुझे बताओ ! क्या, बात है? मैं पोला हूँ । मैं बहुत जानता हूँ ।’’, बड़ दादा ने गंभीर वाणी से कहा, ‘‘तुम तीखा बोलते, हो । बात यह है कि बताओ, तुमने वन देखा है ? हम लोग, सब उसको जानना चाहते हैं ।’’, बाँस ने रीती आवाज से कहा, ‘‘मालूम होता है, हवा, मेरे भीतर के रिक्त में वन-वन-वन-वन ही कहती हुई, घूमती रहती है, पर ठहरती नहीं ।’’
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बड़ ने कहा, ‘‘वंश बाबू, तुम घने नहीं हो, सीधे-ही, सीधे हो । कुछ भरे होते तो झुकना जानते ।, बड़ दादा ने उधर से आँख हटाकर फिर और लोगों से, कहा कि हम सबको घास से इस विषय में पूछना चाहिए ।, उनकी पहुँच सब कहीं है । वह कितनी व्याप्त है और ऐसी, बिछी रहती है कि किसी को उससे शिकायत नहीं होती ।, तब सबने घास से पूछा, ‘‘तू वन को जानती है ?’’, घास ने कहा, ‘‘नहीं तो दादा, मैं उन्हें नहीं जानती ।, लोगों की जड़ों को ही मैं जानती हूँ । उनके फल मुझसे ऊँचे, रहते हैं । पद तल के स्पर्श से सबका परिचय मुझे मिलता, है । जब मेरे सिर पर चोट ज्यादा पड़ती है, समझती हूँ यह, ताकत का प्रमाण है । धीमे कदम से मालूम होता है, यह, कोई दुखियारा जा रहा है । दुख से मेरी बहुत बनती है,, दादा ! मैं उसी को चाहती हुई यहाँ-से-वहाँ तक बिछी, रहती हूँ । सभी कुछ मेरे ऊपर से निकलता है । पर वन को, मैंने अलग करके कभी नहीं पहचाना ।’’, दादा ने कहा, ‘‘तुम कुछ नहीं बतला सकती ?’’, घास ने कहा, ‘‘मैं बेचारी क्या बतला सकती हॅूं,, दादा !’’, तब बड़ी कठिनाई हुई । बुद्धिमती घास ने जवाब दे, दिया । वाग्मी वंश बाबू भी कुछ न बता सके और बड़ दादा, स्वयं अत्यंत जिज्ञासु थे । किसी की समझ में नहीं आया कि, वन नाम के भयानक जंतु को कहाँ से कैसे जाना जाए ।, इतने में पशुराज सिंह वहाँ आए । बड़ दादा ने पुकारकर, कहा, ‘‘ओ सिंह भाई, तुम बड़े पराक्रमी हो । जाने कहाँकहाँ छापा मारते हो । एक बात तो बताओ, भाई ।’’, शेर ने पानी पीकर गर्व से ऊपर को देखा । दहाड़कर, कहा, ‘‘कहो, क्या कहते हो ?’’, बड़ दादा ने कहा, ‘‘हमने सुना है कि कोई वन होता, है जो यहाँ आस-पास है और बड़ा भयानक है । हम तो, समझते थे कि तुम सबको जीत चुके हो । उस वन से कभी, तुम्हारा मुकाबला हुआ है ? बताओ, वह कैसा होता है ?’’, शेर ने दहाड़कर कहा, ‘‘लाओ सामने वह वन, जो, अभी मैं उसे फाड़-चीरकर न रख दूँ । मेरे सामने भला वह, क्या हो सकता है ?’’ बड़ दादा ने कहा, ‘‘तो वन से कभी, तुम्हारा सामना नहीं हुआ ?’’, , शेर ने कहा, ‘‘सामना होता तो क्या वह जीता बच, सकता था । मैं अभी दहाड़ देता हूँ । हो अगर वन तो आए, वह सामने । खुली चुनौती है । या वह है या मैं हूँ ।’’ ऐसा, कहकर उस वीर सिंह ने वह तुमुल घोर गर्जन किया कि, दिशाएँ काँपने लगीं । बड़ दादा के देह के पत्र खड़-खड़, करने लगे । उनके शरीर के कोटर में वास करते हुए शावक, चीं-चीं कर उठे । चहुँ ओर जैसे आतंक भर गया । पर वह, गर्जना गँूज बनकर रह गई । हुँकार का उत्तर कोई नहीं, आया । सिंह ने उस समय गर्व से कहा, ‘‘तुमने यह कैसे, जाना कि कोई वन है और वह आस-पास रहता है । आप, सब निर्भय रहिए कि वन कोई नहीं है, कहीं नहीं है, मैं हूँ,, तब किसी और का खटका आपको नहीं रखना चाहिए ।’’, बड़ दादा ने कहा, ‘‘आपकी बात सही है । मुझे यहाँ, सदियाँ हो गई हैं । वन होता तो दीखता अवश्य । फिर आप, हो, तब कोई और क्या होगा । पर वे दो शाख पर चलने वाले, जीव जो आदमी होते हैं, वे ही यहाँ मेरी छाँह में बैठकर उस, वन की बात कर रहे थे । ऐसा मालूम होता है कि ये बे-जड़, के आदमी हमसे ज्यादा जानते हैं ।’’, सिंह ने कहा, ‘‘आदमी को मैं खूब जानता हूँ । मैं उसे, खाना पसंद करता हूँ । उसका मांस मुलायम होता है लेकिन, वह चालाक जीव है । उसको मॅुंह मारकर खा डालो, तब तो, वह अच्छा है, नहीं तो उसका भरोसा नहीं करना चाहिए ।, उसकी गात-बात में धोखा है ।’’, बड़ दादा तो चुप रहे लेकिन औरों ने कहा कि सिंहराज,, तुम्हारे भय से बहुत-से जंतु छिपकर रहते हैं । वे मुँह नहीं, दिखाते । वन भी शायद छिपकर रहता हो । तुम्हारा दबदबा, कोई कम तो नहीं है । इससे जो साँप धरती में मुँह गाड़कर, रहता है, ऐसी भेद की बातें उससे पूछनी चाहिए । रहस्य कोई, जानता होगा तो अंधेरे में मुँह गाड़कर रहने वाला साँप जैसा, जानवर ही जानता होगा । हम पेड़ तो उजाले में सिर उठाए, खड़े रहते हैं । इसलिए हम बेचारे क्या जानें ।, शेर ने कहा, ‘‘जो मैं कहता हूँ, वही सच है । उसमें, शक करने की हिम्मत ठीक नहीं है । जब तक मैं हूँ, कोई डर, न करो । कैसा साँप ! क्या कोई मुझसे ज्यादा जानता है ?’’, बड़ दादा यह सुनकर भी कुछ नहीं बोले । औरों ने भी, कुछ नहीं कहा । बबूल के काँटे जरूर उस वक्त तनकर कुछ, , 4411
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उठ आए थे लेकिन फिर भी बबूल ने धीरज नहीं छोड़ा और, मुँह नहीं खोला । अंत में जम्हाई लेकर मंथर गति से सिंह, वहाँ से चला गया ।, भाग्य की बात कि साँझ का झुटपुटा होते-होते घास, में से जाते हुए दीख गए चमकीले देह के नागराज । बबूल की, निगाह तीखी थी, झट से बोला, ‘‘दादा ! ओ बड़ दादा, वह, जा रहे हैं सर्पराज । ज्ञानी जीव हैं । मेरा तो मुँह उनके सामने, कैसे खुल सकता है । आप पूछो तो जरा कि वन का ठौर, ठिकाना क्या उन्होंने देखा है ?’’, बड़ दादा शाम से ही मौन हो रहते हैं । यह उनकी, पुरानी आदत है । बोले, ‘‘संध्या आ रही है । इस समय, वाचालता नहीं चाहिए ।’’, बबूल झक्की ठहरे । बोले, ‘‘बड़ दादा, साँप धरती से, इतना चिपटकर रहते हैं कि सौभाग्य से हमारी आँखें उनपर, पड़ती हैं । वर्ण देखिए न, कैसा चमकता है ! यह सर्प, अतिशय श्याम है । इससे उतने ही ज्ञानी होंगे । अवसर खोना, नहीं चाहिए । इनसे कुछ रहस्य पा लेना चाहिए ।’’, बड़ दादा ने तब गंभीर वाणी से साँप को रोककर पूछा,, ‘‘हे नाग, हमें बताओ कि वन का वास कहाँ है और वह, स्वयं क्या है ?’’ साँप ने साश्चर्य कहा, ‘‘किसका वास ?, वह कौन जंतु है ? और उसका वास पाताल तक तो कहीं है, नहीं ।’’, बड़ दादा ने कहा - ‘‘हम कोई उसके संबंध में कुछ, नहीं जानते । तुमसे जानने की आशा रखते हैं । जहाँ जरा, छिद्र हो, वहाँ तुम्हारा प्रवेश है । टेढ़ा-मेढ़ापन तुमसे बाहर, नहीं है । इससे तुमसे पूछा है ।’’, साँप ने कहा, ‘‘मैं धरती के सारे गर्त जानता हूँ । वहाँ, ज्ञान की खान है । तुमको अब क्या बताऊँ । तुम नहीं, समझोगे । तुम्हारा वन, लेकिन कोई गहराई की सच्चाई नहीं, जान पड़ती । वह कोई बनावटी सतह की चीज है । मेरा वैसी, ऊपरी और उथली बातों से वास्ता नहीं रहता ।’’, बड़ दादा ने कहना चाहा कि ‘तो वन...’ साँप ने, कहा, ‘‘वह फर्जी है ।’’ यह कहकर वह आगे बढ़ गए ।, मतलब यह है कि जीव-जंतु और पेड़-पौधे आपस में, मिले और पूछ-ताछ करने लगे कि वन को कौन जानता है, वह कहाँ है, क्या है ? उनमें सबको ही अपना-अपना ज्ञान, , 4422, , था । अज्ञानी कोई नहीं था । पर वन का जानकार कोई नहीं, था । ऐसी चर्चा हुई, ऐसी चर्चा हुई कि विद्याओं पर विद्याएँ, उसमें से प्रस्तुत हो गईं । अंत में तय पाया कि दो टाँगोंवाला, आदमी ईमानदार जीव नहीं है । उसने तभी वन की बात, बनाकर कह दी है । वह बन गया है । सच में वह नहीं है ।, उस निश्चय के समय बड़ दादा ने कहा, ‘‘भाइयो, उन, आदमियों को फिर आने दो । इस बार साफ-साफ उनसे, पूछना है कि बताएँ, वन क्या है ? बताएँ तो बताएँ, नहीं तो, खामख्वाह झूठ बोलना छोड़ दें । लेकिन उनसे पूछने से, पहले उस वन से दुश्मनी ठानना हमारे लिए ठीक नहीं है ।, यह भयावना सुनते हैं । जाने वह और क्या हो ।’’, लेकिन बड़ दादा की वहाँ विशेष चली नहीं । जवानों, ने कहा कि ये बूढ़े हैं, उनके मन में तो डर बैठा है और जंगल, के न होने का फैसला पास हो गया ।, एक रोज आफत के मारे फिर वे शिकारी उस जगह, आए । उनका आना था कि जंगल जाग उठा । बहुत-से, जीव-जंतु, झाड़ी-पेड़ तरह-तरह की बोली बोलकर, अपना विरोध दरसाने लगे । आदमी बेचारों को अपनी जान, का संकट मालूम होने लगा । उन्होंने अपनी बंदूकें सँभालीं ।, बड़ दादा ने बीच में पड़कर कहा, ‘‘अरे, तुम लोग, अधीर क्यों होते हो । इन आदमियों के खतम हो जाने से, हमारा तुम्हारा फैसला निर्भ्रम नहीं कहलाएगा । जरा तो, ठहरो । गुस्से से कहीं ज्ञान हासिल होता है ? मैं खुद निपटारा, किए देता हूँ ।’’ यह कहकर बड़ दादा आदमियों को, मुखातिब करके बोले, ‘‘भाई आदमियो, तुम भी इन पोली, चीजों का मुँह नीचा करके रखो जिनमें तुम आग भरकर, लाते हो । डरो मत । अब यह बताओ कि वह वन क्या है, जिसकी तुम बात किया करते हो ? बताओ, वह कहाँ है ?’’, आदमियों ने अभय पाकर अपनी बंदूकें नीची कर लीं, और कहा, ‘‘यह वन ही तो है जहाँ हम सब हैं ।’’, उनका इतना कहना था कि चीं-चीं-कीं-कीं सवाल, पर सवाल होने लगे ।, ‘‘वन यहाँ कहाँ है ? कहीं नहीं है ।’’, ‘‘तुम हो । मैं हूँ । वह है । वन फिर हो कहाँ सकता, है?’’, ‘‘तुम झूठे हो ।’’
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‘‘धोखेबाज !’’, ‘‘स्वार्थी !’’, ‘‘खतम करो इनको ।’’, आदमी यह देखकर डर गए । बंदूकें सँभालना चाहते, थे कि बड़ दादा ने मामला सँभाला और पूछा, ‘‘सुनो, आदमियों, तुम झूठे साबित होंगे तभी तुम्हें मारा जाएगा, और अगर झूठे नहीं हो तो बताओ वन कहाँ है ?’’, उन दोनों आदमियों में से प्रमुख ने विस्मय से और भय, से कहा ‘‘हम सब जहाँ हैं वहीं तो वन है ।’’, बबूल ने अपने काँटे खड़े करके कहा, ‘‘बको मत,, वह सेमर है, वह सिरस है, वह साल है, वह घास है, वह, हमारे सिंहराज हैं, वह पानी है, वह धरती है । तुम जिनकी, छाँह में हो, वह हमारे बड़ दादा हैं । तब तुम्हारा वन कहाँ, है ? दिखाते क्यों नहीं ? तुम हमको धोखा नहीं दे सकते ।’’, प्रमुख पुरुष ने कहा, ‘‘यह सब कुछ ही वन है ।’’, इसपर गुस्से में भरे हुए कई जानवरों ने कहा, ‘‘बात से, बचो नहीं, ठीक बताओ, नहीं तो तुम्हारी खैर नहीं है ।’’, अब आदमी क्या कहें, परिस्थिति देखकर वे बेचारे, जान से निराश होने लगे । अपनी मानवी बोली (अब तक, प्राकृतिक बोली में बोल रहे थे) एक ने कहा, ‘‘यार ! कह, क्यों नहीं देते कि वन नहीं है । देखते नहीं, किनसे पाला पड़ा, है !’’ दूसरे ने कहा, ‘‘मुझसे तो कहा नहीं जाएगा ।’’, ‘‘तो क्या मरोगे ?’’, ‘‘सदा कौन जीया है । इसमें इन भोले प्राणियों को, भुलावे में कैसे रखूँ ?’’, यह कहकर प्रमुख पुरुष ने सबसे कहा, ‘‘भाइयो, वन, कहीं दूर या बाहर नहीं है । आप लोग सभी वह हो ।’’ इसपर, फिर गोलियों-सी सवालों की बौछार उनपर पड़ने लगी ।, ‘‘क्या कहा ? मैं वन हूँ ? तब बबूल कौन है ?’’, ‘‘झूठ ! क्या मैं यह मानूँ कि मैं बाँस नहीं, वन हूँ । मेरा, राेम-रोम कहता है, मैं बाँस हूँ ।’’, ‘‘और मैं घास !’’, ‘‘और मैं शेर !’’, ‘‘और मैं साँप !’’, , इस भाँति ऐसा शोर मचा कि उन बेचारे अादमियों की, अकल गुम होने को आ गई । बड़ दादा न हों तो आदमियों, का काम वहाँ तमाम था ।, उस समय आदमी और बड़ दादा में कुछ ऐसी धीमीधीमी बातचीत हुई कि वह कोई सुन नहीं सका । बातचीत, के बाद पुरुष उस विशाल बड़ के वृक्ष के उपर चढ़ता दिखाई, दिया । वहाँ दो नये-नये पत्तों की जोड़ी खुले आसमान की, तरफ मुस्कराती हुई देख रही थी । आदमी ने उन दोनों को, बड़े प्रेम से पुचकारा । पुचकारते समय ऐसा मालूम हुआ, जैसा मंत्र रूप में उन्हें कुछ संदेश भी दिया है ।, वन के प्राणी यह सब कुछ स्तब्ध भाव से देख रहे थे ।, उन्हें कुछ समझ में न अा रहा था । देखते-देखते पत्तों की, वह जोड़ी उद्ग्रीव हुई । मानो उनमें चैतन्य भर आया । उन्होंने, अपने आस-पास और नीचे देखा । जाने उन्हें क्या दिखा कि, वे काँपने लगे । उनके तन में लालिमा व्याप गई । कुछ क्षण, बाद मानो वे एक चमक से चमके । जैसे उन्होंने खंड को, कुल में देख लिया कि कुल है, खंड कहाँ है ।, वह आदमी अब नीचे उतर आया था और वनचरों के, समकक्ष खड़ा था । बड़ दादा ऐसे स्थिर-शांत थे, मानो, योगमग्न हो कि सहसा उनकी समाधि टूटी । वे जागे । मानो, उन्हें अपने चरमशीर्ष से कोई अनुभूति प्राप्त हुई हो ।, उस समय सब ओर सप्रश्न मौन व्याप्त था । उसे भग्न, करते हुए बड़ दादा ने कहा ‘‘वह है ।’’, कहकर वह चुप हो गए । साथियों ने दादा को संबोधित, करते हुए कहा, ‘‘दादा ! दादा !!’’..., दादा ने इतना ही कहा ‘‘वह है, वह है ।’’, ‘‘कहाँ है? कहाँ है ?’’, ‘‘सब कहीं है । सब कहीं है ।’’, ‘‘और हम ?’’, ‘‘हम नहीं, वह है ।’’, (‘जैनेंद्र की कहानियाँ’ तीसरे भाग से), ०, , 4433
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९. गजलें, , - डॉ. राहत इंदौरी, , कवि परिचय ः राहत इंदौरी जी का जन्म १ जनवरी १९5० को इंदौर (मध्य प्रदेश) में हुआ । उर्दू में एम.ए. और पीएच.डी., करने के बाद इंदौर विश्वविद्य ालय में सोलह वर्षों तक उर्दू साहित्य का अध्यापन किया । त्रैमासिक पत्रिका ‘शाखें’ के दस, वर्ष तक संपादक रहे । आप उन चंद शायरों में हैं जिनकी गजलों ने मुशायरों को साहित्यिक स्तर और सम्मान प्रदान किया, है । आपकी गजलों में आधुनिक प्रतीक और बिंब विद्यमान हैं, जो जीवन की वास्तविकता दर्शाते हैं ।, प्रमुख कृतियाँ ः ‘चाँद पागल है’, ‘रुत’, ‘मौजूद’, ‘धूप बहुत है’, ‘दो कदम और सही’ (गजल संग्रह) आदि ।, काव्य प्रकार ः ‘गजल’ एक विशेष प्रकार की काव्य विधा है । गजल के प्रारंभिक शेर को ‘मतला’ और अंतिम शेर को, ‘मकता’ कहते हैं । शेर में आए तुकांत शब्द को ‘काफिया’ और दोहराए जाने वाले शब्दों को ‘रदीफ’ कहते हैं । गजल में, अधिकांश रूप में प्रेम भावनाओं का चित्रण होता है । गजल की असली कसौटी उसकी प्रभावोत्पादकता है । गजल का हर, शेर स्वयंपूर्ण होता है । गुलजार, नीरज, दुष्यंत कुमार, कुँअर बेचैन, राजेश रेड्डी, रवींद्रनाथ त्यागी आदि प्रमुख गजलकार हैं ।, काव्य परिचय ः प्रस्तुत पहली गजल में कवि ने दोस्ती के अर्थ और उसके महत्त्व को दर्शाया है । दूसरी गजल में कवि ने, वर्तमान स्थिति का चित्रण किया है । लोग जो होते हैं, दिखाते नहीं हैं और जैसा दिखाते हैं वैसे वे होते नहीं हैं । मनुष्य के इसी, दोगलेपन पर गजलकार ने व्यंग्य किया है । प्रस्तुत गजलें नया हौसला निर्माण करने वाली, उत्साह दिलाने वाली, सकारात्मकता, तथा संवेदनशीलता को जगाने वाली हैं, जिसमें जिंदगी के अलग-अलग रंगों का खूबसूरत इजहार है ।, , (अ) दोस्ती, दोस्त है तो मेरा कहा भी मान, मुझसे शिकवा भी कर, बुरा भी मान, दिल को सबसे बड़ा हरीफ समझ, और इस संग को खुदा भी मान, मैं कभी सच भी बोल देता हूँ, गाहे-गाहे मेरा कहा भी मान, याद कर देवताओं के अवतार, हम फकीरों का सिलसिला भी मान, कागजों की खामोशियाँ भी पढ़, इक-इक हर्फ को सदा भी मान, आजमाइश में क्या बिगड़ता है, फर्ज कर और मुझे भला भी मान, मेरी बातों से कुछ सबक भी ले, मेरी बातों का कुछ बुरा भी मान, , (‘दो कदम और सही’ गजल संग्रह से), , गम से बचने की सोच कुछ तरकीब, और इस गम को आसरा भी मान, , ××, , 4466, , ××
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१०. महत्त्वाकांक्षा और लोभ, - पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी, लेखक परिचय ः पदुमलाल बख्शी जी का जन्म २७ मई १8९4 को खैरागढ़ (छत्तीसगढ़) में हुआ । बी.ए. के पश्चात आप, साहित्य क्षेत्र में आए । आपके निबंध जीवन की सच्चाइयों को बड़ी सरलता से व्यक्त करते हैं । नाटकों-सी रमणीयता तथा, कहानी-सी मनोरंजकता आपके निबंधों को विशिष्ट शैली प्रदान करती है । समसामयिक होते हुए भी निबंधों की प्रासंगिकता, आज भी बरकरार है । बख्शी जी की मृत्यु १९७१ में हुई ।, प्रमुख कृतियाँ ः ‘पंचपात्र’, ‘पद्य वन’, ‘कुछ’, ‘और कुछ’ (निबंध संग्रह), ‘कथा चक्र’ (उपन्यास), ‘हिंदी साहित्य, विमर्श’ और ‘विश्व साहित्य’ (समीक्षात्मक ग्रंथ) आदि ।, विधा परिचय ः ‘निबंध’ को गद्य की कसौटी कहा गया है । किसी विषय या वस्तु पर उसके स्वरूप, प्रकृति, गुण-दोष आदि, की दृष्टि से लेखक की गद्य ात्मक अभिव्यक्ति निबंध है । निबंध के लक्षणों में स्वच्छंदता, सरलता, आडंबरहीनता,, घनिष्ठता और आत्मीयता के साथ लेखक के व्यक्तिगत, आत्मनिष्ठ दृष्टिकोण का भी उल्लेख किया जाता है । आचार्य, रामचंद्र शुक्ल, आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी, कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’, विद्यानिवास मिश्र आदि प्रमुख निबंधकार हैं ।, पाठ परिचय ः प्रस्तुत वैचारिक निबंध अति महत्त्वाकांक्षा के साथ असंतोष, अति लालसा, स्वयं को सर्वशक्तिमान बना, लेने की उत्कट अभिलाषा तथा कृतघ्नता के दुष्परिणामों को इंगित करता है । प्राप्य के प्रति विरक्ति का भाव तथा अप्राप्य, की लालसा हमेशा मानव मन को लोभ के जाल में फँसाती रहती है । मछुवा-मछुवी की कहानी के माध्यम से मानव मन की, अनंत इच्छाओं के परिणाम का रोचक चित्रण इस निबंध में किया गया है । यह निबंध विचार करने के लिए प्रवृत्त करता है ।, बड़ों में जो महत्त्वाकांक्षा होती है, उसी को जब हम, क्षुद्रों में देखते हैं तो उसे हम लोभ कह देते हैं । उसी के संबंध, में आज एक पुरानी कथा कहता हूँ ।, एक था मछुवा, एक थी मछुवी । दोनों किसी झाड़ के, नीचे एक टूटी-फूटी झोंपड़ी में अपना जीवन व्यतीत कर रहे, थे । मछुवा दिन भर मछलियाँ पकड़ता, मछुवी दिन भर, दूसरा काम करती । तब कहीं रात में वे लोग खाने के लिए, पाते । ग्रीष्म हो या वर्षा, शरद हो या वसंत, उनके लिए वही, एक काम था, वही एक चिंता थी । वे भविष्य की बात नहीं, सोचते थे क्योंकि वर्तमान में ही वे व्यस्त रहते थे । उन्हें न, आशा थी, न कोई लालसा ।, पर एक दिन एक घटना हो गई । मछुवा अा रहा था, मछलियाँ पकड़ने । नदी के पास एक छोटा-सा गड्ढा था ।, उसमें कुछ पानी भरा था । उसी में एक कोने पर, लताओं में,, एक छोटी-सी मछली फँस गई थी । वह स्वयं किसी तरह, पानी में नहीं जा सकती थी । उसने मछुवे को देखा और, पुकारकर कहा -‘‘मछुवे, मछुवे, जरा इधर तो आ ।’’, मछुवा उसके पास जाकर बोला - ‘‘क्या है?’’, , 5500, , मछली ने कहा - ‘‘मैं छोटी मछली हूँ । अभी तैरना, अच्छी तरह नहीं जानती । यहाँ आकर फँस गई हूँ । मुझको, किसी तरह यहाँ से निकालकर पानी तक पहुँचा दे ।’’, मछुवे ने नीचे उतरकर लता से उसको अलग कर, दिया । मछली हँसती हुई पानी में तैरने लगी ।, कुछ दिनों के बाद उस मछली ने उसे फिर पुकारा ‘‘मछुवे, मछुवे, इधर तो आ ।’’ मछुवा उसके पास गया ।, मछली ने कहा - ‘‘सुनती हूँ, नदी में खूब पानी है । मुझे नदी, में पहुँचा दे । मैं तो तेरी तरह चल नहीं सकती । तू कोई ऐसा, उपाय कर कि मैं नदी तक पहुँच जाऊँ ।’’, ‘‘यह कौन बड़ी बात है ।’’ मछुवे ने यह कहकर एक, बर्तन निकाला और उसमें खूब पानी भर दिया । फिर उसने, उसी में उस मछली को रखकर नदी तक पहुँचा दिया ।, मछली नदी में सुरक्षित पहुँच गई और आनंद से तैरने लगी ।, कुछ दिनों के बाद उस मछली ने मछुवे को पुकारकर, कहा - ‘‘मछुवे, तू रोज यहाँ आकर एक घंटा बैठा कर ।, तेरे आने से मेरा मन बहल जाता है ।’’, मछुवे ने कहा - ‘‘अच्छा ।’’
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उस दिन से वह रोज वहीं आकर आधा घंटा बैठा, करता । कभी-कभी वह आटे की गोलियाँ बनाकर ले, जाता । मछली उन्हें खाकर उसपर और भी प्रसन्न होती ।, एक दिन मछुवी ने पूछा - ‘‘तुम रोज उसी एक घाट, पर क्यों जाते हो ?’’, मछुवे ने उसको उस छोटी मछली की कथा सुनाई ।, मछुवी सुनकर चकित हो गई । उसने मछुवे से कहा ‘‘तुम बड़े निर्बुद्धि हो ! वह क्या साधारण मछली है !, वह तो कोई देवी होगी, मछली के रूप में रहती है ।, जाओ, उससे कुछ माँगो। वह जरूर तुम्हारी इच्छा पूरी, करेगी ।’’, मछुवा नदी के तट पर पहुँचा । उसने मछली को, पुकारकर कहा - ‘‘मछली, मछली, इधर तो आ ।’’, मछली आ गई । उसने पूछा - ‘‘क्या है?’’, मछुवे ने कहा - ‘‘हम लोगों के लिए क्या तू एक, अच्छा घर नहीं बनवा देगी ?’’, मछली - ‘‘अच्छा जा ! तेरे लिए एक घर बन गया ।, तेरी मछुवी घर में बैठी है ।’’, मछुवे ने आकर देखा कि सचमुच उसका एक अच्छा, घर बन गया है । कुछ दिनों के बाद मछुवी ने कहा - ‘‘सिर्फ, घर होने से क्या हुआ? खाने-पीने की तो तकलीफ है ।, जाओ, मछली से कुछ धन माँगो ।’’, मछुवा फिर नदी तट पर गया । उसने मछली को, पुकारकर कहा -‘‘मछली, मछली ! इधर तो आ ।’’, मछली ने आकर पूछा - ‘‘क्या है ?’’, मछुवे ने कहा -‘‘सुन तो, क्या तू हमें धन देगी ?’’, मछली ने कहा - ‘‘जा, तेरे घर में धन हो गया ।’’, मछुवे ने आकर देखा कि सचमुच उसके घर में धन हो, गया है । कुछ दिनों के बाद मछुवी ने कहा - ‘‘इतने धन से, क्या होगा ? हमें तो राजकीय वैभव चाहिए । राजा की तरह, एक महल हो, उसमें बाग हो, नौकर-चाकर हो और, राजकीय शक्ति हो । जाओ, मछली से यही माँगो ।’’, मछुवी की यह बात सुनकर मछुवा कुछ हिचकिचाया ।, उसने कहा - ‘‘जो है, वही बहुत है ।’’ परंतु मछुवी ने उसकी, बात न सुनी । उसने स्वयं मछली की दिव्य शक्ति देख ली, थी । यही नहीं, एक बार जब वह मछली को आटे की, , गोलियाँ खिला रही थी, तब मछली से उसे आश्वासन भी, मिल गया था; इसी से उसने मछुवे को हठपूर्वक भेजा ।, मछुवा कुछ डरता हुआ मछली के पास पहँुचा । उसने, मछली को पुकारा और धीरे से कहा - ‘‘क्या तू मछुवी को, रानी बना देगी ?’’, मछली ने कहा - ‘‘अच्छा जा, तेरी मछुवी रानी, बनकर महल में अभी घूम रही है ।’’, मछुवे ने आकर देखा कि सचमुच उसके घर में, राजकीय वैभव हो गया है । उसकी मछुवी रानी होकर बैठी, है । कुछ दिनों के बाद मछुवी ने फिर कहा - ‘‘अगर सूर्य,, चंद्र, मेघ आदि सभी मेरी आज्ञा मानते तो कैसा होता ?’’, उसने पुन: मछुवे को उसकी इच्छा के विरुद्ध मछली के, पास भेजा ।, मछुवे की बात सुनकर मछली रुष्ट होकर बोली ‘‘जा-जा, अपनी उसी झोंपड़ी में रह ।’’, मछुवा और मछुवी दोनों फिर अपनी उसी टूटी-फूटी, झोंपड़ी में रहने लगे । यहीं कहानी का अंत हो जाता है ।, कहानी पुरानी है और घटना भी झूठी है । उसकी एक, भी बात सच नहीं है पर इसमें हम लोगों के मनोरथों की, सच्ची कथा है । आकांक्षाओं का कब अंत हुआ है ?, इच्छाओं की क्या कोई सीमा है? पर मछुवे के भाग्य, परिवर्तन पर कौन उसके साथ सहानुभूति प्रकट करेगा ?, सभी यह कहेंगे कि यह तो उसका ही दोष था । उसकी स्त्री, को संतोष ही नहीं था । यदि उसे संतोष हो जाता तो उसकी, यह दुर्गति क्यों होती ? मछुवे ने भी शायद यही कहकर, अपनी स्त्री को झिड़का होगा परंतु मैं स्त्री को निर्दोष समझता, , 5511
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हूँ । मेरी समझ में दोष मछली का ही है । यदि वह पहले ही, मछुवे को कह देती कि मुझमें सब कुछ करने की शक्ति नहीं, है तो मछुवे की स्त्री उससे ऐसी याचना ही क्यों करती ? यदि, मछुवे की स्त्री में संतोष ही रहता तो वह पहली बार ही अपने, पति को माँगने के लिए क्यों कहती ? मछली ने पहले तो, अपने वरदानों से यह बात प्रकट कर दी कि मानो वह सब, कुछ कर सकती है किंतु जब मछुवे की स्त्री ने कुछ ऐसी, याचना की जो उसकी शक्ति के बाहर थी, तब वह एकदम, क्रुद्ध होकर अभिशाप ही दे बैठी । उसने मछुवे के उपकार, का भी विचार नहीं किया । वह यह भूल गई कि मछुवे ने यदि, उस समय उसपर दया न की होती तो शायद उसका अस्तित्व, ही न रहता । उसने मछुवे से यह क्यों नहीं कहा -‘‘जा भैया,, मैं तेरे लिए बहुत कर चुकी । अब मैं कुछ नहीं कर सकती ।, अपनी रानी को समझा देना ।’’, हम सभी लोग अपने जीवन में यही भूल करते हैं । हम, लोग अपने दोषों को छिपाकर दूसरों पर ही दोषारोपण करते, हैं । हम दूसरों के कामों को महत्ता न देकर अपने ही कामों, को महत्त्व देते हैं । हम यह निस्संकोच कहते हैं कि हमने, किसी पर यह उपकार किया पर हम यह नहीं बतलाते कि, उसने हमारी क्या सेवा की, उससे हमें क्या लाभ हुआ । सच, तो यह है कि उपकार और सेवा एक बात है और यह, लेन-देन कुछ दूसरी बात है ।, मछुवे की स्त्री ने जो कुछ किया, वह ठीक ही किया, था । सभी लोग जानते हैं कि जब तक कोई वस्तु अप्राप्य, रहती है तभी तक उसके लिए बड़ी व्यग्रता रहती है । ज्योंही, , वह प्राप्त हो जाती है त्योंही हमें उससे विरक्ति हो जाती है, और हम किसी दूसरी वस्तु के लिए व्यग्र हो जाते हैं ।, अतएव मछुवे की स्त्री ने जो कुछ किया, वह मनुष्य, स्वभाव के अनुकूल किया परंतु मछली ने जो कुछ किया,, वह अपने दैवी स्वभाव के विरुद्ध किया । उसे तो मछुवे पर, दया करनी चाहिए थी । उसे उसके उपकार को न भूलना, था । राजा बनने के बाद उसे एकदम भिक्षुक बना देना कभी, उचित नहीं कहा जा सकता । यदि मैं मछुवा होता तो उससे, कहता - देवी, मैंने जब तुम्हें जल में छोड़ा था तब मैंने यह, नहीं सोचा था कि तुम मुझे राजा बनाओगी । मैंने तो वह, काम निस्वार्थ भाव से ही किया था । अपनी स्त्री के कहने, पर तुमको देवी समझकर मैंने याचना की । तुमने भी याचना, स्वीकृत की पर तुमने क्या मेरी स्त्री के हृदय में अभिलाषा, नहीं पैदा कर दी? क्या तुमने उसके मन में यह आशा नहीं, जगा दी कि तुम उसके लिए सब कुछ कर सकती हो? वह, तो पहले अपनी स्थिति से संतुष्ट थी । तुम्हारे ही कारण, उसके मन में और कई अभिलाषाएँ उत्पन्न हुईं । तुमने उनको, भी पूर्ण किया । उसे तुम्हारी शक्ति पर विश्वास हो गया ।, तभी तो उसने ऐसी इच्छा प्रकट कर दी जो तुम्हारे लिए, असंभव थी । तुमने जो कुछ दिया, उस सबको इसी एक, अपराध के कारण कैसे ले लिया ? तुम्हारे वरदान का अंत, अभिशाप में कैसे परिणत हो गया ? तुम्हें मेरी अौर मेरी, स्थिति पर विचार कर काम करना चाहिए था । तुम भले ही, देवी हो पर तुममें त्याग नहीं है, प्रेम नहीं है, उपकार की, भावना नहीं है, क्षमा नहीं है, दया नहीं है ।, (‘बख्शी ग्रंथावली’ खंड ७ से), ०, , 5522
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अध्यापक रत्नहास उठ खड़े हुए । उन्होंने दीवार पर टँगे, हुए भारतेंदु हरिश्चंद्र के विशाल चित्र को देखा और फिर, उपस्थित सज्जनों और स्त्रियों से कहा, ‘भाइयो और बहनो !, मैंने आपको आज एक विशेष कारण से निमंत्रित किया है ।’, अध्यापक की आँखों में चमक थी । आने वाले सभी, लोग उनसे परिचित थे । अतः सबमें कौतूहल जाग उठा था ।, श्रीमती अनुराधा ने कहा - ‘‘आज भारतेंदु हरिश्चंद्र, का जन्मदिवस है, हम लोग उनके प्रति अपनी श्रद्धा प्रकट, करने को ही तो यहाँ एकत्र हुए हैं ?’’, अध्यापक रत्नहास ने कहा, ‘‘अच्छा तो सुनिए ! यह, इस पुस्तक की भूमिका है - इसे सुनकर आपको लगेगा कि, सौ बरस पहले लोग अपने से सौ बरस बाद के युग के बारे, में क्या सोचते थे जिसमें हम रहते हैं । उसका प्रारंभ सौ बरस, पहले हुआ था और जिस युग में भारतेंदु की जीवनी लिखने, वाला लेखक था, उस युग का प्रारंभ स्वयं भारतेंदु हरिश्चंद्र, ने किया था । आज्ञा है ?’’, अध्यापक ने किताब उठाकर देखा और पढ़ने लगे..., भारतेंदु हरिश्चंद्र हिंदी के पिता माने जाते हैं । महाकवि, रत्नाकर ने उन्हें ‘भारती का सपूत’ कहा है ।, भारतेंदु भारतीय स्वतंत्रता के पहले संग्राम के समय, सात बरस के थे अर्थात १85० में उनका जन्म हुआ था ।, उनकी मृत्यु ३4 वर्ष 4 महीने की अवस्था में १885 में हुई, थी ।, भारतेंदु के जन्म के समय उच्च वर्गों का बहुत बड़ा, असर था । उच्च कुलों का ही सम्मान था । अत: भारतेंदु को, यदि उस समय इतना अधिक महत्त्व दिया गया था तो उसमें, कुछ अंश तक उनके कुल का भी प्रभाव था परंतु उनसे, अधिक धनी और उच्च कुल के लोग भी मौजूद थे । उनका, इतना नाम क्यों न हुआ ? यही बात स्पष्ट कर देती है कि, वह व्यक्ति कुल के कारण नहीं वरन् अपनी प्रतिभा और, महत्त्व के कारण प्रसिद्ध हो सका था । भारतेंदु ने अपने, साहित्य में कुल वर्ग का पोषण नहीं किया, यह उनके, व्यक्तित्व के विकासशील होने का बड़ा सशक्त प्रमाण है ।, भारतेंदु ने कुल के गर्व को दुहराने के बजाय देश के गर्व को, दुहराया है । भारतेंदु की बुद्धि काशी में प्रसिद्ध थी । मात्र, पाँच वर्ष की अवस्था में उन्होंने कविताएँ रचना शुरू कर, , 5566, , दिया था । तेरह वर्ष की अवस्था में भारतेंदु हरिश्चंद्र का, विवाह शिवाले के रईस लाला गुलाबराय की पुत्री मन्नोदेवी, से बड़ी धूमधाम के साथ हुआ । सत्रह वर्ष की उम्र में उन्होंने, नौजवानों का एक संघ बनाया और उसके दूसरे ही बरस एक, वाद-विवाद सभा (डिबेटिंग क्लब) स्थापित की । इस सभा, का उद्देश्य भाषा और समाज का सुधार करना था । अठारह, वर्ष की आयु में वे काशी नरेश की सभा बनारस इन्स्टिट्यूट, और ब्रह्मामृत वार्षिक सभा के प्रधान सहायक रहे । साथ ही, कविवचन - सुधा नामक पत्र निकालना प्रारंभ किया । इन्हीं, दिनों होम्योपैथिक चिकित्सालय खोला जिनमें मुफ्त दवा, बँटती थी । अध्यापक रत्नहास ने किताब पर से नजर हटाई, और कहा, ‘‘भारतेंदु तो फक्कड़ आदमी थे, निडर आदमी, थे । साहित्य में उनकी रुचि बचपन से ही जाग्रत हो गई, थी । पिता कविता करते थे । उसका असर उनपर भी पड़ा ।, अपनी कविताओं की धाक उन्होंने मात्र ६ वर्ष की अवस्था, से ही जमा ली थी ।’’, अध्यापक रत्नहास रुके और पूछा, ‘‘आगे पढूँ?’’, अध्यापक मुस्कुराए और पढ़ना शुरू किया ।, हरिश्चंद्र को इतना ही याद था कि पिता कुछ लिखते, रहते थे और बहुत-बहुत-सा लिखते थे । पिता ‘बलरामकथामृत’ लिख रहे थे । हरिश्चंद्र पास बैठा बड़े गौर से देख, रहा था । उसने हठात्कहा, ‘बाबू जी !’, ‘क्या है रे ।’ पिता चौंके ।, ‘बाबू जी मैं कविता बनाऊँगा । बनाऊँ ?’, पिता ने आश्चर्य से देखा आैर कहा, ‘तुम्हें अवश्य, ऐसा करना चाहिए ।’, हरिश्चंद्र की बाँछें खिल गईं । वह उठ खड़ा हुआ और, कुछ गाने लगा..., पिता ने सुना तो गद्गद्होकर रो उठे ।, छठवाँ वर्ष लग रहा था । पिता अपनी ‘कच्छपकथामृत’ सुना रहे थे, सोरठा पढ़ा करन चहत जस चारू, कछु कछुवा भगवान को ।, महफिल में इसके अर्थ को लेकर चर्चा चल पड़ी ।, हरिश्चंद्र सुनता रहा । हठात्वह बोल उठा ‘बाबू जी !’, ‘क्या है बेटा ।’
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सब चौंक पड़े ।, ‘बाबू जी हम इसका अर्थ बता दें ।’, ‘बताओ बेटा’ ! महफिल के लोगों में भी कुतूहल, जाग उठा । बालक ने आतुरता से कहा, ‘आप वह भगवान, का जो वर्णन करना चाहते हैं, जिसको आपने कछुक छुवा, है अर्थात जान लिया है ।’, ‘वाह-वाह !’ का कोलाहल हो उठा । ‘धन्य हो,, ‘धन्य हो !’ की आवाजें उठने लगीं ।, ××, ××, अध्यापक रत्नहास ने एक साँस ली और पढ़ना, छोड़कर कहा, ‘‘यहाँ भारतेंदु हरिश्चंद्र की जीवनी लिखने, वाले ने विस्तार से भारतेंदु की पत्नी के चिंतन को व्यक्त, किया है । आज्ञा हो तो पढ़ना शुरू करूँ ?’’, ‘‘अवश्य !’’ अनुराधा ने कहा ।, ‘‘अच्छी बात है’’ कहकर उन्होंने मन्नो बीबी का, चिंतन पढ़ना शुरू किया - मैं उनकी पत्नी हूँ । मैं उनके बारे, में कितना जानती हूँ, यह मैं बार-बार सोचने का प्रयत्न, करती हूँ किंतु मुझे लगता है कि मेरा पति उतना ही नहीं था, जितना वह दिखाई देता था । व्यक्ति के रूप में यदि अपने, तारतम्य से दूसरों का तादात्म्य नहीं कर पाते तो वे न अपने, आपको सुखी कर पाते हैं, न दूसरों को ही । उन्होंने, (हरिश्चंद्र) घर पर ही अंग्रेजी और हिंदी की पाठशाला, खोली थी । मैंने पूछा था - ‘क्यों ? आपको इसकी जरूरत, ही क्या थी ?’, उन्होंने कहा था, ‘मन्नो बीबी !’ फिर कुछ सोचने लगे, थे । ‘आप रुक क्यों गए ?’, ‘मैं नहीं जानता, तुम समझ सकोगी या नहीं ।, क्यों ?’, ‘क्योंकि हम लोगों के पास धन है और देश भूखा है,, गरीब है । सोचो तो अंग्रेजों के खोले हुए स्कूल हैं । मिशन के, स्कूल हैं । पर उनमें हमारी संस्कृति नहीं पढ़ाई जाती ।’, ‘तो क्या आप अंग्रेजी नहीं पढ़ाएँगे यहाँ ?’, पढ़ाऊँगा मन्नो बीबी ! पर इस मदरसे में एक भाषा को, ही तो पढ़ाया जाएगा । मुझे भारतीय संस्कृति चाहिए ताकि, अंग्रेजी पढ़कर लोग जान सकें कि अंग्रेज किन खूबियों की, वजह से हुकूमत करते हैं, न कि काले साहब बनकर दोगलों, , की तरह अपनों से ही नफरत करने में घमंड कर सकें । इस, देश को बहुत-बहुत पढ़े-लिखे लोगों की जरूरत है । इसके, लिए नये इनसानों की एक फसल खड़ी करनी होगी ।’, मैं उस सबको ठीक से समझ नहीं सकी थी परंतु उनके, मुख पर गहरी वेदना थी । पाँच विद्यार्थी से बढ़ते-बढ़ते, जब तीस विद्यार्थी हो गए तब देवर (गोकुलचंद्र) और वे, बातें करने लगे । दोनों स्वयं ही उस मदरसे में पढ़ाते थे और, उन्होंने निश्चित करके एक अध्यापक को पढ़ाने के लिए, वेतन देकर रख लिया । कुछ ही महीनों में विद्य ार्थियों की, संख्या इतनी बढ़ गई कि चौखंभा में स्कूल को बाबू, वेणीप्रसाद के घर में ले जाया गया । आधे से ज्यादा लड़के, बिना फीस दिए पढ़ते थे । किताबें और कलम मुफ्त बँटवाते, हुए जब मैं उन्हें देखती थी तब मुझे लगता था, वे बहुत, प्रसन्न हो जाते थे । लगता था, उनमें कोई उत्साह-सा था ।, फिर तो वे लड़कों को मुफ्त खाना भी बँटवाने लगे ।, कश्मीरी मास्टर विश्वेश्वरप्रसाद ने न जाने क्या आज्ञा, भंग की कि उन्होंने उसे निकाल दिया । वेणीप्रसाद भी उसी, से जा मिला और रातों-रात स्कूल घर पर ही उठवा लाए ।, शत्रुओं ने वही चाल चली कि वे चौखंभा में न दूसरा स्कूल, चलाएँ, न घर आकर धरना देने पर ही वे रोक सकें । इस, हलचल में मैंने देखा वे नितांत शांत थे । मैंने कहा था, वे, लोग नासमझ हैं । आप क्यों ऐसों के लिए सिर खपाते हैं ।, वे मुस्कराए । कहा था, ‘नासमझ नहीं हैं मन्नो बीबी !, वे अशिक्षित हैं । वे अपने स्वार्थों के परे सोचना नहीं, जानते । बीज जब धूल में मिल जाता है, तब ही वह वृक्ष बन, पाता है, वे यह नहीं समझना चाहते ।’ मुझे लगा था, वह, एक अहंकार था परंतु किसका अहं था ?, मैंने कहा, ‘पुरखों ने कमाकर रख दिया है न ? तभी, आपका हाथ इतना खुला है । उन लोगों को अपनी ही, मेहनत से धन कमाना पड़ता है । तभी वे लोग एक-एक पैसा, दाँत से पकड़कर चलते हैं । वे अक्लमंद हैं । आदमी जिस, पेड़ पर बैठा होता है, उसे ही तो नहीं काटता ।’, वे मेरी ओर देखते रह गए थे । उनकी घुँघराली लटें, कानों पर झूल रही थीं । उनकी लंबी पर पतली आँखों में, एक दूर तक डुबाे देने वाली स्याह गहराई दिखाई दे रही थी,, मानो मैं उनके सामने होकर भी नहीं थी ।, , 57
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वे मुझे ऐसे देख रहे थे, जैसे मैं काँच की बनी थी ।, व्यक्ति का जीवन वही तो नहीं है, जो उसके बाह्य से, झलकता है । कवि हृदय थे, अतः कविता लिखते थे ।, वैभव था इसलिए दान देते थे, सुलझे हुए थे अतः देशभक्त, थे और फिर शाहखर्ची थी इसलिए कि पिता की यह परंपरा, थी, प्रसिद्ध हो गए थे । अतः देश के बड़े-बड़े पदाधिकारी,, राजा और प्रसिद्ध लोग उनसे मिलते थे । वे नाटक करते थे,, लिखते थे, इतना तो अधिक नहीं है । जिये ही कितने ?, चौतीस बरस, चार महीने ।’, अध्यापक रत्नहास ने पुस्तक बंद करते हुए कहा,, ‘‘यह था भारतेंदु का वह उदय का समय जब वे तरुण हो, चुके थे । आपने देखा, वह एक साथ ही कितने काम करते, थे । वे लेखक थे, पत्रकार थे और इसके अतिरिक्त समाज, के दैनिक जीवन में उनकी कितनी दिलचस्पी थी ! उस समय, डिबेटिंग क्लब और यंग मेंस एसोसिएशन खोलकर उन्होंने, मूक हुए देश को वाणी और स्फूर्ति देने की चेष्टा की थी ।, दवाखाना खोलते समय उनके मन में देश की गरीब जनता, के प्रति वैसा ही प्रेम था जैसा विद्यार्थियों के प्रति था ।, उन्नीस वर्ष की आयु में उनको महत्त्वपूर्ण व्यक्ति मान लिया, गया था । इसी से उनकी मेधा स्पष्ट हो जाती है ।’’, अध्यापक रत्नहास ने कुछ पल रुककर पुस्तक उठाई, और पढ़ने लगे ‘बाबू साहब की कैसी तबीयत है ?’, ‘ठीक नहीं है ।’, मल्लिका मन-ही-मन काँप गई ।, भारतेंदु शय्या पर पड़े थे । मलिन रुग्ण ।, मल्लिका ने देखा तो आँखें फटी रह गईं । कहाँ गया, वह चपल रूप, वह दबंग उत्साह । यही तो था जो, उन्मुक्त-सा पथों पर गा उठता था । जिसमें अहंकार नहीं था, किंतु जागरूक स्वामी रक्तबीज की भाँति बार-बार उठता, था और जिसकी मुखरित चंचलता एक दिन काशी को, गुँजाया करती थी । यही था वह कुलीन, जो मनुष्य से प्रेम, करना जानता था । यही था वह धनी जो उन्मुक्त हाथों से, अपने वैभव को दरिद्र का आँचल भरने के लिए लुटाया, करता था । वह भक्त था, वैष्णव था और उसमें जीवन का, , सहज गर्व था । वह इतना प्रचंड था कि उसने अपना महत्त्व, विदेशियों के अधिकार को भी मनवा दिया था । वह निर्भीक, व्यक्ति देश में सुधार करता घूमता था । उसने अतीत के भव्य, गौरव का स्वप्न साकार कर दिया था । उसके प्रेम गीतों ने, सारे भारत को ढँक दिया था । यही था वह जो अपनी खाल, बेचने को तैयार था परंतु याचक से ना नहीं कर सकता था ।, मल्लिका को वाद्य ध्वनियों में झूमते भारतेंदु का रूप याद, आया । सारी रात्रि कविता की बातें करते निकल जाती थी, परंतु इस व्यक्ति ने कभी छोटी बात नहीं की, जैसे वह किसी, निम्नकोटि की बात के लिए नहीं जन्मा था । राजामहाराजा, पंडित सबने उसे भारतेंदु कहा था । क्यों? क्योंकि, वह नेता था । उन्होंने साहित्य, धर्म, देश, दारिद्रय मोचन, और कला और... और... अपमानिता नारी के उद्धार के, लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया था। क्या वह मनुष्य, था !, और आज ! आज वह मलिन-सा पड़ा है किंतु उसके, नेत्रों में वही चमक है । क्षीणकाय हो जाने पर भी होंठों पर, अब भी वही क्षमाभरी आशुतोष आैर अपराजित मुस्कराहट, है ।, मल्लिका चिल्ला पड़ी - ‘स्वामी !’ और दारुण वेदना, से भारतेंदु के पाँव पकड़कर फूट-फूटकर रोने लगी ।, ××, , ××, , अध्यापक रत्नहास ने देखा । लोगों की आँखें गीली हो, गई थीं । उसने कहा, ‘‘और उसके बाद...’’ किंतु एक, व्यक्ति उठ खड़ा हुआ । उसने धीरे से कहा, ‘‘उसके बाद, सब जानते हैं अध्यापक महोदय । भारतेंदु के जलाए दीपक, से असंख्य दीपक जल उठे । आइए, बाहर बाग में चलते, हैं । आज हमने इसी संबंध में भारतेंदु के जीवन से संबंधित, एक नाटक खेलने का आयोजन किया है । उसका नायक, हरिश्चंद्र ही है, हिंदी गद्य का पिता...... भारती का, सपूत !’’, , 5588, , (‘भारती का सपूत’ उपन्यास से), ०
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१२. सहर्ष स्वीकारा है, - गजानन माधव ‘मुक्तिबोध’, कवि परिचय ः गजानन माधव ‘मुक्तिबोध’ जी का जन्म १३ नवंबर १९१७ को मुरैना (मध्य प्रदेश) में हुआ ।, आपकी प्रारंभिक शिक्षा मध्य प्रदेश में तथा स्नातकोत्तर शिक्षा नागपुर में हुई । आपने अध्यापन कार्य के साथ ‘हंस’ तथा, ‘नया खून’ पत्रिका का संपादन भी किया । आप नई कविता के सर्वाधिक चर्चित कवि रहे हैं । प्रकृति प्रेम, सौंदर्य, कल्पनाप्रियता, के साथ सर्वहारा वर्ग के आक्रोश तथा विद्रोह के विविध रूपों का यथार्थ चित्रण आपके काव्य की विशेषता है ।, मुक्तिबोध जी की मृत्यु १९६4 में हुई ।, प्रमुख कृतियाँ ः ‘चाँद का मुँह टेढ़ा है’, ‘भूरी-भूरी खाक धूल’ प्रतिनिधि कविताएँ (काव्यसंग्रह), ‘सतह से उठता आदमी’, (कहानी संग्रह), ‘विपात्र’ (उपन्यास), ‘कामायनी-एक पुनर्विचार’ (आलोचना) आदि ।, काव्य प्रकार ः ‘नई कविता’ मानव विशिष्टता से उपजी उस मानव के लघु परिवेश को दर्शाती है जो आज की तिक्तता और, विषमता को भोग रहा है । इन सबके बीच वह अपने व्यक्तित्व को भी सुरक्षित रखना चाहता है । हिंदी साहित्य में समय के, अनुसार बदलाव आए और नई कविता प्रमुखता से लिखी जाने लगी । इन कविताओं में जीवन की विसंगतियों का चित्रण,, जीवन के संघर्ष, तत्कालीन समस्या को सशक्त रूप में अभिव्यक्त किया है ।, काव्य परिचय ः प्रस्तुत नई कविता में कवि ने जिंदगी में जो कुछ भी मिले उसे सानंद स्वीकारने की बात कही है । दुख, संघर्ष,, गरीबी, अभाव, अवसाद, संदिग्धता सभी को स्वीकार करने से ही व्यक्ति परिपक्व बनता है । आत्मीयता, भविष्य की चिंता,, ममता की कोमलता मनुष्य को कमजोर बनाती है, डराती है । इसलिए कवि कभी-कभी अंधकार में लुप्त होना चाहता है ।, प्रकृति को जो कुछ भी प्यारा है, वह उसने हमें सौंपा है । इसलिए जो कुछ भी मिला है या मिलने की संभावना है, उसे सहज, अपनाना चाहिए । आपकी परिष्कृत भाषा भावाभिव्यक्ति में सक्षम है ।, गरबीली गरीबी यह, ये गंभीर अनुभव सब, यह विचार-वैभव सब, दृढ़ता यह, भीतर की सरिता यह अभिनव सब, मौलिक है, मौलिक है, इसलिए कि पल-पल में, जो कुछ भी जाग्रत है, अपलक है संवेदन तुम्हारा है !!, जाने क्या रिश्ता है, जाने क्या नाता है, जितना भी उँड़ेलता हूँ, भर-भर फिर आता है, दिल में क्या झरना है?, मीठे पानी का सोता है, भीतर वह, ऊपर तुम, मुसकाता चाँद ज्यों धरती पर रात भर, मुझ पर त्यों तुम्हारा ही खिलता वह चेहरा है !, , जिंदगी में जो कुछ है, जो भी है, सहर्ष स्वीकारा है;, इसलिए कि जो कुछ भी मेरा है, वह तुम्हें प्यारा है ।, , 61
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सचमुच मुझे दंड दो कि भूलूँ मैं, भूलँू मैं, तुम्हें भूल जाने की, दक्षिण ध्रुवी अंधकार-अमावस्या, शरीर पर, चेहरे पर, अंतर में पा लूँ मैं, झेलूँ मैं, उसी में नहा लूँ मैं, इसलिए कि तुमसे ही परिवेष्टित, आच्छादित, रहने का रमणीय यह उजेला अब, सहा नहीं जाता है ।, ममता के बादल की मँड़राती कोमलताभीतर पिराती है, कमजोर और अक्षम अब हो गई है आत्मा यह, छटपटाती छाती को भवितव्यता डराती है, बहलाती-सहलाती आत्मीयता बरदाश्त नहीं होती है !!, सचमुच मुझे दंड दो कि हो जाऊँ, पाताली अँधेरे की गुहाओं में विवरों में, धुएँ के बादलों में, बिलकुल मैं लापता !!, लापता कि वहाँ भी तो तुम्हारा ही सहारा है !!, इसलिए कि जो कुछ भी मेरा है, या मेरा जो होता-सा लगता है, होता-सा संभव है, सभी वह तुम्हारे ही कारण के कार्यों का घेरा है, कार्यों का वैभव है, अब तक तो जिंदगी में जो कुछ था, जो कुछ है, सहर्ष स्वीकारा है;, इसलिए कि जो कुछ भी मेरा है, वह तुम्हें प्यारा है ।, (‘प्रतिनिधि कविताएँ’ संग्रह से), ०, , 62
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नुक्कड़ नाटक, विधा परिचय ः एक विशिष्ट नाट्यशैली के रूप में ‘नुक्कड़ नाटक’ आज अपनी पहचान बना रहा है । यह एक, ऐसी धारदार विधा है जो राजनीति, समाज और साहित्य में संतुलन बनाए रखती है । वास्तव में यह एक सांस्कृतिक, हथियार है जो जड़ मानसिकता को तोड़कर लोकशक्तियों की पहचान कराता है । सामान्य व्यक्ति की समस्याओं को, जनसाधारण की भाषा में सहजता और सरलता के साथ लोगों तक पहुँचाना इसका प्रमुख उद्देश्य है ।, ‘नुक्कड़’ से तात्पर्य है चौक या चौराहा । नुक्कड़ नाटक का प्रस्तुतीकरण सड़क के किनारे, किसी चौक, किसी, मैदान, बस्ती, हाउसिंग सोसाइटी के आँगन में कहीं भी हो सकता है । नुक्कड़ नाटक हमारे सामने एक आंदोलन के रूप, में उभरकर आया है । ये नाटक सामाजिक विसंगतियों, विडंबनाओं, रूढ़ियों, शोषण, सत्ता के स्वरूप और आम जनता, के संघर्ष को सहजता के साथ सीधे जनता तक पहुँचाते हैं । इस प्रकार यह नाट्यरूप हमारे सामने जनसंघर्षों तथा, आंदोलनों का एक सबल हथियार बनकर आया है । आज के जीवन की त्रासदी को झेलते हुए और संघर्ष के बीच से, गुजरते हुए तथा वहीं से विषय चुनकर नुक्कड़ नाटक और उसका रूप तथा कथ्य जन्म लेते हैं ।, ‘नुक्कड़ नाटक’ मूलत: आठवें दशक से लोकप्रिय हुआ । नुक्कड़ नाटक को अंग्रेजी में ‘स्ट्रीट प्ले’ (Street Play), के नाम से जाना जाता है । आम तौर पर इसको उसी रूप में प्रस्तुत किया जाता है जैसे सड़क पर मदारी अपना खेल, दिखाने के लिए भीड़ जुटाते हैं । नाट्य प्रस्तुति का यह रूप जनता से सीधे संवाद स्थापित करने में मदद करता है । नुक्कड़, नाटक आम तौर पर बेहद सटीक और संक्षिप्त होते हैं क्योंकि सड़क के किनारे स्वयं रुककर नाटक देखने वाले दर्शकों, को अधिक समय तक रोके रखना संभव नहीं होता । विख्यात रंगकर्मी स्वर्गीय सफदर हाश्मी ने नुक्कड़ नाटकों को, देशव्यापी पहचान दिलाने में सबसे महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई । उनका जन्मदिवस १२ अप्रैल को नुक्कड़ नाटक दिवस, के रूप में मनाया जाता है ।, नुक्कड़ नाटक में न तो अंक परिवर्तन होता है न ही दृश्य परिवर्तन । वेशभूषा भी बार-बार नहीं बदली जा सकती, और न ही नाटक को इतना लंबा किया जा सकता है कि सड़क या चौराहे पर खड़े या बैठे दर्शकों के लिए घंटों रुकना, मुश्किल हो जाए । इसलिए नुक्कड़ नाटक लंबे या दीर्घ नहीं होते । मूलत: मंचीय नाटक के लिए परदा, साज-सज्जा,, नेपथ्य, ध्वनि संयोजन, महँगा मंचसेट आदि के साथ इमारत के अंदर सभागार आवश्यक होता है परंतु नुक्कड़ नाटक, खुली जगह में बिना किसी साज-सज्जा के ही खेले जाते हैं । नुक्कड़ नाटक में नाट्य मंडली और दर्शकों में कोई दूरी, नहीं होती, बल्कि सारे अभिनेता दर्शक समुदाय के बीच गोलाकार रंगस्थल बनाकर अपना नुक्कड़ नाटक खेलते हैं ।, हिंदी नाटक साहित्य में नुक्कड़ नाटक प्रमुख रूप से लिखने वाले नाटककार और उनके नाटक इस प्रकार हैं सफदर हाश्मी, गुरुशरण सिंह, नरेंद्र मोहन, शिवराम, ब्रजमोहन, सुरेश वसिष्ठ, असगर वजाहत, राजेश कुमार आदि ।, नुक्कड़ नाटक समाज परिवर्तन हेतु सकारात्मक उद्देश्य को केंद्र में रखकर निरंतर प्रदर्शित करने वाली अनेक नाट्य, संस्थाएँ कार्यरत हैं ।, भारतीय जनजीवन के लिए आठवाँ दशक सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक तथा सांस्कृतिक दृष्टि से विभिन्न, समस्याओं से भरा था । बेरोजगारी, अशिक्षा, असुरक्षा, नैतिक मूल्यों का पतन, गलत रूढ़ियाँ, महँगाई, भ्रष्टाचार,, मौलिक अधिकारों का हनन, किसान-मजदूरों का शोषण आदि समस्याओं ने अकराल-विकराल रूप धारण किया, , 66
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था । ऐसी विकट समस्याओं से जुझने के लिए और लोगों को संगठित करके परिवर्तन लाने का कार्य नुक्कड़ नाटक ने, किया । समाज परिवर्तन, सामाजिक एकता, शोषणमुक्त समाज, स्त्री-पुरुष समानता, सर्वधर्म समभाव, राष्ट्रभक्ति,, बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ, पर्यावरण संवर्धन, जल साक्षरता आदि विषयों के बारे में लोगों में चेतना जगाने में नुक्कड़, नाटक ने अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है ।, आज नुक्कड़ नाटकों के विषय व्यापक होने लगे हैं । इन विषयों में घर से लेकर मोहल्ले, शहर-गाँव, महानगर के, ज्वलंत प्रश्न तक आने लगे हैं । प्रशासन भी कई महत्त्वपूर्ण सामाजिक संदेशों के प्रसारण के लिए नुक्कड़ नाटकों से, सहायता लेता है । जल की समस्या, रक्तदान को बढ़ावा देना, प्लास्टिक बंदी, प्रौढ़ साक्षरता, बेटी बचाओ-बेटी, पढ़ाओ आदि सामाजिक सरोकार बनाए रखने वाले प्रेरणाप्रद विषयों पर नुक्कड़ नाटक जनहितार्थ प्रस्तुत किए जाते, हैं । जन-जन तक अपनी बात सहजता से पहुँचाना इसका मुख्य उद्देश्य है ।, व्यक्ति को जब भीतर से किसी बात की चुभन अनुभव होती है तभी वह भीतर से बदलने को तैयार होता है । कथ्य, के स्तर पर जहाँ वर्तमान सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक समस्याओं से नुक्कड़ नाटक सीधे जुड़ा हुआ, है वहीं तकनीक के स्तर पर अपनी कुछ खास खूबियों को साथ लिये हुए हैं । पारंपरिक मंचीय नाटकों के विपरीत तथा, मंच और दर्शकों के बीच की दूरी पाटते हुए जनता से सीधे साक्षात्कार करना और तामझाम से उत्पन्न भ्रम को तोड़कर, आम जीवन से सीधे जुड़ना जैसे तत्त्व नुक्कड़ नाटकों के विकास में पोषक रहे हैं ।, भारत में नुक्कड़ नाटकों की शुरूआत सामाजिक आवश्यकता के रूप में हुई है । सामाजिक परिवर्तन की, आवश्यकता को देखते हुए अनिष्ट रूढ़ियों और परंपराओं पर चोट करने के लिए इसका उपयोग किया गया । अव्यवस्था, के प्रति असंतोष तथा जन सामान्य को अपने अधिकारों के प्रति सचेत करने के लिए भी नुक्कड़ नाटकों को माध्यम, बनाया गया । धीरे-धीरे नुक्कड़ नाटक कला की एक महत्त्वपूर्ण शैली के रूप में अपना स्थान बना चुका है ।, नुक्कड़ नाटक की विशेषताएँ :(१) तात्कालिकता : किसी भी घटना, समस्या का वर्तमान जीवन पर सीधे असर होता है । नुक्कड़ नाटक का लेखक, किसी तात्कालिक ज्वलंत समस्या को लिखकर उसकी प्रस्तुति करता है ताकि उस विषय के प्रति लोगों में, जागरूकता निर्माण हो ।, (२) गतिशीलता : नुक्कड़ नाटक के विषय का चयन करते हुए इस बात का ध्यान रखा जाता है कि इसकी प्रवाहमयी, धारा में विषय, पात्र तथा दर्शक तेजी से गंतव्य की ओर बढ़ें । नाटक के अंत तक किसी को कुछ सोचने का, अवकाश नहीं मिलता । इसमें कथ्य और शिल्प का फैलाव नहीं होता ।, (३) अचूक लक्ष्य : नुक्कड़ नाटक हथियार की तरह जड़ पारंपरिक रूढ़ियों द्वारा किए जा रहे शोषण, अनाचार को, खत्म कर वर्गहीन समाज की स्थापना के लिए काम करता है ।, (4) संक्षिप्तता : नुक्कड़ नाटक में संक्षिप्तता का तत्त्व अनिवार्य है । लंबे-लंबे संवाद या विषय का विस्तार इन, नाटकों को उबाऊ बना देते हैं । नुक्कड़ नाटक जितना संक्षिप्त होगा, उसका प्रभाव उतना ही अधिक होगा ।, (5) सहज भाषा और व्यंग्य शैली : नाटककार नुक्कड़ नाटक को प्राय: सहज भाषा और व्यंग्य शैली में प्रस्तुत, करता है । बीस-पच्चीस मिनट में किसी गंभीर समस्या का जनभाषा में प्रस्तुतीकरण नुक्कड़ नाटक की, स्वाभाविकता और रोचकता को बढ़ाता है ।, , 67
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(अ) मौसम, - अरविंद गौड़, लेखक परिचय ः अरविंद गौड़ जी का जन्म २ फरवरी १९६३ को शाहदरा (दिल्ली) में हुआ । दिल्ली के सरकारी स्कूल से, शिक्षा पूर्ण करके आपने (इलेक्ट्रॉनिक्स एंड कम्यूनिकेशन) इंजीनियरिंग में दाखिला लिया । वहाँ से आपका थियेटर और, पत्रकारिता की ओर रुझान हो गया । थियेटर से पहले इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में कार्य करने के बाद आप दिल्ली विश्वविद्यालय, में कुछ समय के लिए कार्यरत रहे । मजदूरों, किसानों, आदिवासियों के साथ विविध आंदोलनों में बुनियादी भूमिका अदा, करने वाले नुक्कड़ नाटककार के रूप में आप जाने जाते हैं । आपके नुक्कड़ नाटक देश-विदेश में भी मंचित हुए हैं ।, प्रमुख कृतियाँ ः ‘नुक्कड़ पर दस्तक’ (नुक्कड़ नाटक संग्रह), ‘अनटाइटल्ड ’, ‘आई विल नॉट क्राय’, अहसास (एकल, नाट्य) तथा कुछ पटकथाएँ । गौड़ जी निर्देशित नाटक ‘कोर्ट मार्शल’ का भारत में 45० से अधिक बार मंचन ।, पाठ परिचय ः अरविंद गौड़ जी ने ‘मौसम’ नुक्कड़ नाटक में मानव जीवन से जुड़ी विभिन्न सामयिक समस्याओं को उजागर, किया है । पानी की समस्या दिन-ब-दिन विकराल रूप धारण करती जा रही है । प्रकृति से छेड़छाड़ करने के कारण ॠतुचक्र, में अनियमितता आ गई है । नियत समय पर बारिश नहीं होती, होती भी है तो कहीं बहुत अधिक, कहीं बहुत कम । जल, संचय नहीं हो पा रहा । जहाँ संचय है वहाँ विभिन्न उद्य ोगों के कारण जल प्रदूषित होता जा रहा है । प्लास्टिक के अत्यधिक, उपयोग के कारण जल के बहाव में रुकावट आ रही है । सीवरों में कूड़े-कचरे के साथ प्लास्टिक जमा हो रहा है । प्रस्तुत, नुक्कड़ नाटक के माध्यम से लेखक ने इन समस्याओं का चित्रण कर सबका ध्यान इस ओर आकर्षित किया है ।, इस रचना में ९ दृश्य हैं जिनके माध्यम से बारिश की अनियमितता के कारण सामाजिक जीवन पर होनेवाले परिणामों, को उजागर किया है ।, , गीत-(१), देख ले ओ इनसान, तूने क्या कर दिया-२, आकर तू देख ले इस नाटक में-२, क्या है तेरी जिम्मेदारी, क्या तूने की वफादारी, क्या तूने लूट लिया इस संसार से,, हो हो हो, हो हो हो, हो हो हो हो-4, देख ले ओ इनसान, तूने क्या कर दिया-२, आकर तू देख ले इस नाटक में-२, क्या है तेरी जिम्मेदारी, क्या तूने की वफादारी, क्या तूने लूट लिया इस संसार से, हो हो हो, हो हो हो, हो हो हो हो-4, , दृश्य-१, आदमी-१ : यह देख !, आदमी-२ : भाई, कितना गंदा पानी है, इस पानी को पीलिया हो गया है क्या?, आदमी-१ : यही पानी हम सबके घरों में आता है और इस पानी की वजह से मेरा यह हाल हो गया ।, , 68, 68
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आदमी-२, आदमी-१, आदमी-२, आदमी-१, आदमी-२, , : यार ! तू तो गंजा हो गया एकदम !, : तेरे तो बहुत बाल हैं! तू कौन-सा पानी इस्तेमाल करता है?, : मेरे घर में भी ऐसा ही पानी आता है लेकिन हम मिनरल वाॅटर का बड़ावाला जार लेते हैं ।, : वह नब्वे रुपयेवाला?, : हाँ वही, मैं और मेरी बीवी उसी का पानी पीते हैं । उसी से नहाते हैं और जिस दिन वह जार न आए तो, मेरी बीवी नहाती ही नहीं ।, आदमी-१ : धत्-तेरे की ।, आदमी-२ : क्या करें? बीवी के लिए इतना तो करना ही पड़ता है ।, , दृश्य-२, आदमी-१ : भाई, अक्तूबर आ गया । अभी तक मानसून नहीं आया और ऊपर से इतनी गर्मी ।, आदमी-२ : लगता है, प्रकृति हमसे नाराज हो गई है । खुद ही देख लो, कहीं बाढ़ आ रही है, कहीं सूखा पड़ रहा है,, समझ नहीं आ रहा क्या हो रहा है?, आदमी-३ : भइया देखना ! दिसंबर-जनवरी में बारिश होगी, बेमौसम ।, आदमी-4 : पूरी दुनिया में कलयुग फैल गया है कलयुग और वह भी तुम जैसे पापियों की वजह से । कूड़ा-करकट, तुम फैलाओ, पोल्यूशन तुम करो, गंदगी तुम फैलाओ..., आदमी-१ : अच्छा जी भाई साहब और जो आपकी 4-4 फैक्ट्रियाँ हैं । उनका कूड़ा-कचरा कहाँ पर जाता है?, आदमी-4 : वहीं, जहाँ बाकी फैक्ट्रीज का जाता है । बोलो, सभी नदियों की..., : जय..., कोरस, आदमी-२ : बस इसलिए प्रकृति हमसे रुष्ट है ।, आदमी-4 : आपके कहने का मतलब है कि मेरे अकेले की फैक्ट्री की वजह से प्रकृति नाराज हो गई है ?, आदमी-३ : जी नहीं, हम सब की वजह से ।, , दृश्य-३, लड़की-१, लड़की-२, लड़की-१, लड़की-२, लड़की-१, लड़की-२, लड़की-१, लड़की-२, लड़की-१, , : चलो-चलो शॉपिंग के लिए चलते हैं ।, : लेकिन आपको खरीदना क्या है?, : मुझे चार-पाँच छाते खरीदने हैं ।, : आप छातों का क्या करोगी? बारिश तो इस बार हुई नहीं ।, : तुमने न्यूज नहीं देखी? कश्मीर में बाढ़ आ गई है, बादल फटने की वजह से ।, : लेकिन बाढ़ में छाते भी क्या कर लेंगे?, : तो एक काम करते हैं, स्विमिंग कॉस्ट्यूम ले लेते हैं ।, : लेकिन मुझे स्विमिंग नहीं आती ।, : चिंता न करें ! मेरे पास टायर ट्य ूब भी हैं । , , दृश्य-4, दोस्त-१, दोस्त-२, , : अपने ऑफिस में ए.सी. क्यों नहीं लगवा लेते, इतनी गर्मी हो रही है ।, : मैंने सुना है ए.सी. से गैस निकलती है और उससे वह परत होती है ना..... ओजोन परत, उसमें छेद हो, जाता है ।, , 69
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दोस्त-१, , : आपके एक ए.सी. की वजह से कोई छेद नहीं होने वाला । मेरे ऑफिस में छह-छह ए.सी. लगे हुए हैं ।, मेरी बीवी को तो सर्दी में भी ए.सी. चाहिए । ए.सी. चलाकर दो-दो कंबल ओढ़कर सोती है वह ।, , दृश्य-5, दोस्त-१, दोस्त-२, दोस्त-३, दोस्त-१, दोस्त-4, दोस्त-१, दोस्त-4, दोस्त-२, दोस्त-१, दोस्त-4, दोस्त-२, , : चलो-चलो वाॅटर पार्क चलते हैं ।, : मेरी भी तो सुन लो कोई! वाॅटर पार्क जाकर क्यों पैसा बर्बाद करते हो? दो दिन से लगातार बारिश हो रही, है, उससे पूरा शाहदरा स्विमिंग पुल बना हुआ है, वहीं चलते हैं ।, : हाँ, मिंटो ब्रिज का भी यही हाल है, पूरा डूबा हुआ है ।, : एक बात बताओ । ये 5-१० मिनट की बारिश से घुटने तक पानी भर जाता है, इसकी वजह क्या है?, : वजह मैं बताता हूँ । कल जो आप मोमोज खा रहे थे, चटनी लगा-लगाकर उसकी प्लेट कहाँ फेंकी थी?, : वहीं रोड पर ।, : और आप भाई साहब, दुकान से जो सामान लेते हो; उसकी प्लास्टिक थैलियाँ, खाली डिब्बे, बोतलें, कहाँ फेंकते हो?, : घर के सामने नाले में ।, : आपने हम दोनों को तो गिनवा दिया और खुद जो चबा रहे हो इसका पाउच कहाँ फेंकते हो?, बोलो-बोलो? आप भी वही करते हो न, जो सब करते हैं?, : मैं तुम लोगों से अलग थोड़े ही हूँ, मैं भी वहीं फेंक देता हूँ, रास्ते में या नाली में ।, : हाँ और यही थैली, डिब्बे और कचरा नालियों के रास्ते जाता है नालों में, सीवर में और ये कूड़ा-कचरा, और प्लास्टिक उसकी निकासी रोक देते हैं । तभी तो थोड़ी-सी बारिश हुई नहीं कि पूरा शहर स्विमिंग, पुल बन जाता है ।, , सूत्रधार, मौसम बदल रहा है । कभी बारिश होती है, कभी नहीं होती । प्रकृति से छेड़-छाड़ करके हमने पूरे, ॠतुचक्र को उलट दिया है । बचपन में हम स्कूल में पढ़ते थे कि सर्दी के बाद गर्मी आती है, गर्मी के बाद, बरसात आती है । लेकिन अब, सब कुछ बदल गया है । बसंत में बारिश हो जाती है, गर्मी में ओले पड़, जाते हैं और यह सब कुछ इसलिए हो रहा है क्योंकि हमने प्रकृति का दोहन किया है, उसे लूट लिया है;, अपने स्वार्थ के लिए, पैसे के लिए, विकास के लिए । विकास से हमारी अवधारणा क्या है?, इसी अवधारणा के चलते हम ऐसी चीजें करते हैं जिसका असर पड़ता है हाशिये पर खड़े आखिरी, आदमी पर ।, , गीत-(२), बंजर-सी जमीन, दूषित है हवा, पानी को भी हमने गंदा कर दिया,, बंजर-सी जमीन, दूषित है हवा, पानी को भी हमने गंदा कर दिया,, मौसम बदल रहा है, यहाँ यह हो गया,, कभी तुम कहते हो, वहाँ वह हो गया,, मौसम बदल रहा है, यहाँ यह हो गया,, कभी तुम कहते हो, वहाँ वह हो गया,, , 70
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बात समझ ले, समझ ले, बात समझ ले, समझ ले, बात समझ ले, समझ ले, बात समझ ले, समझ ले !!!, जो भी होता है, तू ही तो बीज होता है, जो भी होता है, हम ही तो बीज बोते हैं ।, , दृश्य-६, , एक : इतना परेशान क्यों लग रहा है?, दो : क्या बताऊँ, खेती करने के लिए मैंने अपना घर बेच दिया । उससे जो पैसे आए उन पैसों को लेकर शहर गया, और अच्छी फसल के लिए कीटनाशक दवाइयाँ लेकर आया लेकिन उससे भी कुछ फायदा नहीं हुआ । बारिश, तो समय पर आती नहीं । लगता है, कहीं गलत निर्णय तो नहीं ले लिया मैंने !, तीन : सुन, ट््यूबवेल क्यों नहीं लगवा लेता?, दो : ट्यूबवेल लगवा तो लूँ लेकिन बिजली आए तब न और पानी का स्तर भी तो कितना नीचे चला गया है ।, एक : तो क्या करेगा तू अब? और तेरे हाथ में ये छाले कैसे पड़ गए?, दो : मैंने सोच लिया है, मैं भी जल्दी फसल उगाने के लिए बाकी किसानों की तरह ज्यादा-से-ज्यादा कीटनाशक, डालूँगा अपनी फसल में । प्रयत्न करने में क्या हर्ज है ।, तीन : पागल मत बन ! भूल गया कमलेश को ! यही सब इस्तेमाल करने की वजह से उसके हाथ जल गए थे और, आर्थिक हालत भी खराब हो गई थी । कर्जा लिया, वक्त पर नहीं दे पाया तो तंग आकर उसने आत्महत्या कर, ली । जरा सोच अगर तुझे कुछ हो गया तो तेरे परिवार का क्या होगा? बच्चों का क्या होगा?, दो : लेकिन मैं करूँ तो करूँ क्या? कभी बाढ़ आ जाती है, कभी सूखा पड़ता है, कभी तूफान आ जाता है । अगर, यह बारिश समय पर हो जाए तो हमारी आधी मुश्किलें हल हो जाएँ ।, , गीत-(३), काले मेघा ! काले मेघा ! पानी तो बरसाओ,, काले मेघा ! काले मेघा ! पानी तो बरसाओ, , , दृश्य-७, पति : आज भी, एक भी मछली नहीं फँसी ।, पत्नी : ऐसा कब तक चलेगा? घर में एक पैसा जो नहीं है । आज भी बच्चों को सिर्फ पानी पिलाकर सुलाना पड़ा ।, पति : मैं क्या करूँ? जब से नदी के किनारे वह प्लांट लगा है, वे प्लांट सारा जहरीला कैमिकल पानी में बहा देते हैं,, जिसकी वजह से सारी मछलियाँ मर गईं ।, पत्नी : तो आप नदी के दूसरे पार क्यों नहीं चले जाते?, पति : वहाँ भी यही हाल है । वहाँ भी उद्योगों की वजह से मछलियाँ खत्म हो गई हैं और अगर किसी ने पकड़ लिया, तो अलग मुसीबत । (अपने भाई से) भाई साहब, हम दोनों आपके साथ आपके गाँव चलते हैं । हम जंगल में, काम कर लेंगे । कम-से-कम बच्चों को भूखा तो नहीं सुलाना पड़ेगा ।, भाई : कौन से जंगल? कैसे जंगल? हमने विकास के नाम पर सारे जंगल काट दिए, अब वहाँ कुछ नहीं बचा । जिन, पेड़ों के सहारे हम रहते थे; वे पेड़ ही नहीं रहे, जिन जानवरों पर हम खाने, कपड़े और दूध के लिए निर्भर थे, वे, जानवर नहीं रहे । हमारे खेत जला दिए, नदियाँ गंदी कर दीं । अब वहाँ कुछ नहीं बचा छोटे ! सिर्फ धुआँ है धुआँ,, फैक्ट्रियों के कारखानों से निकलता हुआ धुआँ जिसने पूरे परिसर को प्रदूषित कर रखा है ।, , 71
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दृश्य-8, मजदूर, डॉक्टर, मजदूर, डॉक्टर, मजदूर, डॉक्टर, मजदूर, डॉक्टर, , :, :, :, :, , डॉक्टर साहब, कल रात से मेरी आँखों में जलन हो रही है । हाथ पर भी लाल-लाल निशान पड़ गए हैं ।, आप काम कहाँ करते हैं?, यहीं पास में फैक्टरी बन रही है, मैं उसी में मजदूर हूँ ।, आपको धूप और धूल-मिट्टी की वजह से एलर्जी हो गई है । आप बाहर धूप में जाते समय चश्मा नहीं, लगाते?, : मैं एक मजदूर हूँ डॉक्टर साहब । मैं चश्मा कहाँ से लगाऊँ?, : ये दवाइयाँ खरीद लेना और पूरी बाँह के मोटे कपड़े और चश्मा पहनकर बाहर निकलना ।, : डॉक्टर साहब मैं मजदूर हूँ ! बाहर निकलकर काम तो करना ही पड़ेगा और यह सब मैं कहाँ से लाऊँगा?, : देखिए, अगर आप यह सब नहीं करेंगे तो आपको स्किन कैंसर हो सकता है ।, , दृश्य-९, आदमी-१ : अरे ! सब भाग क्यों रहे हैं, क्या हो गया?, आदमी-२ : ऊपर पहाड़ पर बादल फट गया है । नदी में भयंकर बाढ़ आ गई है । पानी सबको बहाता हुआ देखो कैसे, प्रलय मचा रहा है ? हम जैसे-तैसे जान बचाकर भागे और यहाँ तक पहुँचे हैं । तुम आगे मत जाना ।, महिला, : मेरा घर है वहाँ पर, मुझे अपने घर जाना है ।, आदमी-३ : क्यों अपनी जान खतरे में डाल रही हो? खेत-खलिहान सब डूब चुके हैं, कुछ भी नहीं बचा वहाँ पर ।, महिला, : पर मेरा बच्चा घर पर मेरा इंतजार कर रहा है ! मुझे उसके पास जाना है ।, आदमी-२ : अरे आगे मत जा ! अरे कोई रोको इसे !, रिपोर्टर, : जैसा कि आप देख सकते हैं, उत्तराखंड के इस जिले में बादल फटने से आई भयंकर बाढ़ से भीषण, तबाही हुई है ।, महिला, : मेरा बच्चा मेरा इंतजार कर रहा है ! मुझे उसके पास जाने दो! मेरा बच्चा, मेरा बच्चा, मेरा बच्चा!!!, (औरत दहाड़ें मार-मारकर रोती है ।), , सूत्रधार, मौसम के बदलने का लाखों लाेगों की जिंदगी पर प्रभाव पड़ रहा है । मौसम का बदलता चक्र,, कभी सर्दी, कभी गर्मी, कभी बरसात, कभी अकाल, कभी बाढ़, कभी सूखा, पिघलते हुए ग्लेशियर,, बढ़ती हुई ग्लोबल वार्मिंग, इन सबका असर पड़ता है हम सबकी जिंदगी पर । पोल्यूशन बढ़ रहा है, जल,, जमीन और जंगल लगातार दूषित होते जा रहे हैं । खेती की जमीन खत्म हो रही हैै, सब्जियों में कैमिकल, आ रहा है, लोग बीमार पड़ रहे हैं । जिसके जिम्मेदार हम ही हैं ।, हम पर्यावरण को बर्बाद कर रहे हैं, नतीजा ! मौसम अपना असर दिखा रहा है । जम्मू-कश्मीर,, उत्तराखंड, बिहार, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु, केरल और समुद्र किनारे के इलाकों में, हर जगह मौसम, अपना असर दिखा रहा है । अमीर आदमी, ताकतवर आदमी प्रकृति के संसाधनों का दोहन कर पर्यावरण, को खतरा पहुँचा रहे हैं । मरता कौन है? किसान, गरीब, आदिवासी, साधनविहीन आदमी जिसके पास, पैसा नहीं है । कभी सूखे से मरता है, कभी बाढ़ से मर जाता है तो कभी कर्ज में डूबकर मर जाता है ।, , 72
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प्रकृति के समीकरण बिगड़ने से पर्यावरण बर्बाद हो रहा है । कारखानों से निकलने वाला कैमिकल नदियों, का पानी दूषित कर रहा है । जंगल खत्म हो रहे हैं, कार्बन डाइऑक्साइड गैस की मात्रा लगातार बढ़ रही, है, ओजोन परत पर भी असर पड़ रहा है । शहरों में वाहनों की बेइंतहा तादाद भी बढ़ा दी है । नतीजा !, जहरीली गैस हमारी सेहत को बर्बाद कर रही है ।, , फिलर्स, प्रश्न-१, , : मैडम ! हमें क्यों बदनाम किया जा रहा है? यह जहर हमने फैलाया है क्या? पेट्रोल, डीजल यूज ना करो,, कोयला यूज ना करो तो गाड़ियाँ, ट्रेनें, कारखाने कैसे चलेंगे? और थोड़ी बहुत कार्बन डाइऑक्साइड हवा, में मिल भी गई तो इससे क्या अंतर पड़ता है?, आदमी-२ : ज्यादातर लोग यही कहते हैं कि क्या अंतर पड़ता है ? पर कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा इतनी बढ़ गई, है कि ओजोन की परत खत्म हो रही है । धीरे-धीरे उसमें छेद हो रहा है । मौसम बदल रहा है, खेती बर्बाद, हो रही है, जिंदगियाँ बर्बाद हो रही हैं । क्या वह असर नहीं है? पशु-पक्षी गायब हो रहे हैं । क्या यह असर, नहीं है? हमारी हवा में, हमारे पानी में, हमारी जमीन में, हमारे शरीर में जहरीली गैसें फैल रही हैं । क्या, यह असर नहीं है? यह सब कुछ जानते हुए भी हम शुतुरमुर्ग की तरह रेत में अपना मुँह गड़ाए हुए हैं ।, : खेत में अगर दवा न डालें, यूरिया न डालें, कीटनाशक न डालें, तो अच्छी फसल कैसे होगी? अपने, प्रश्न-२, बीवी-बच्चों का पेट भी तो पालना है ।, : कीजिए, पर इससे आपकी जमीन बंजर हो जाएगी । वहाँ कुछ नहीं उगेगा । यूरिया डालने की वजह से, उत्तर, सब्जियों में कैमिकल आ रहा है, लोग बीमार पड़ रहे हैं ।।, : मैडम जी ! अगर बड़े-बड़े कारखाने नहीं लगाएँगे तो विकास कैसे होगा?, प्रश्न-३, : किसने रोका है कारखाने लगाने से? विकास करने से? लेकिन जहाँ खेती होती है वहाँ कारखाने मत, उत्तर, लगाओ । वहाँ कारखाने लगाओगे तो पेड़ काटोगे, जंगल कटेगा तो ग्लोबल वार्मिंग होगी ।, : हमें क्या लेना ग्लोबल वार्मिंग से? अगर बाहर गर्मी पड़ती है तो मैं अपने घर में ए.सी. चला लूँगा । इससे, प्रश्न-4, कौन-सी मेरी भैंस की पूँछ उखड़ जाएगी? और अगर उखड़ भी गई तो मैं अपनी भैंस को भी ए.सी. में, बिठा लूँगा! मुझे क्या अंतर पड़ता है?, : ठीक कहा, तुम्हें क्या फर्क पड़ता है? आज नहीं पड़ता, लेकिन कल पड़ेगा । रेगिस्तान में बर्फ पड़ रही, उत्तर, है । कुछ साल पहले यूनायटेड अरब अमीरात में बर्फ पड़ी । ठीक है ! चला लो ए.सी. लेकिन याद, रखना, रहना इसी दुनिया में है, चाँद पर नहीं ।, प्रश्न-5, : फलाँ के घर में २०-२० ए.सी. हैं तो लोगों को क्या फर्क पड़ता है? वे अपने स्विमिंग पुल का पानी रोज, बदलते हैं । उनके घर में तीन-तीन गाड़ियाँ हैं, एक उनके लिए, एक उनकी बीवी के लिए और एक उनके, कुत्ते के लिए...पैसा है तो खर्च तो करेंगे ही ।, : आप ऐसा खर्च कर सकते हैं लेकिन नेचुरल रिसोर्सेस को खर्च करने का किसी को कोई हक नहीं, उत्तर, बनता । आपके पास पैसा है, इस्तेमाल कीजिए लेकिन नेचुरल रिसोर्सेस हम सबके हैं । किसानों के हैं,, गाँववालों के हैं, गरीबों के हैं, हम सबके हैं । उसे बर्बाद करने का किसी को कोई हक नहीं बनता । फर्क, पड़ता है साधनविहीन लोगों को, फर्क पड़ता है उनको जिनके पास कुछ नहीं है । ज्यादातर लोग ये, समझते हैं कि गैस, तेल, कोयला बहुत सारा है, कभी खत्म नहीं होगा पर गैस कितने साल चलेगी?, , 73
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कोयला कितने साल चलेगा? पेट्रोल-डीजल कितने साल चलेगा? आने वाली पीढ़ियों को हम सब, मिलकर अंधे युग में धकेल रहे हैं । क्या चाहते हो? लोग पानी के लिए युद्ध करें, ऑक्सीजन के सिलेंडर, साथ लेकर चलें, खाने के लिए एक-दूसरे को नोच डालें ? प्रकृति से खेलकर हम बर्बाद कर रहे हैं खुद, को और आने वाली पीढ़ियों को ।, प्रश्न-६, : मेरी फैक्ट्री है दवाइयों की । अब मैं अपनी फैक्ट्री का वेस्ट कहाँ डालूँगी? यह समुद्र बहुत बड़ा है । वहाँ, पर सब कुछ डाइल्यूट हो जाता है ।, उत्तर, : लाखों मछलियाँ मरती हैं, इस समुद्र के सहारे जीने वाले मछुआरे बेरोजगार हो जाते हैं, पशु-पक्षी मर रहे, हैं, गायब हो रहे हैं क्योंकि हम समुद्र को प्रदूषित कर रहे हैं, पेड़-पौधों को काट रहे हैं । आपको फर्क, नहीं पड़ता क्योंकि आपको कारखानों से पैसा मिलता है । उनको फर्क पड़ता है जो बेजुबान हैं, वह, जानवर जो बोल नहीं सकते ।, प्रश्न-७, : हाइड्रो प्लांट नहीं लगाएँगे तो बिजली कहाँ से पैदा होगी?, : हम शोर इसलिए मचाते हैं क्योंकि आप लोग बहरे हैं । हम लोग शोर मचाते हैं उन लोगों को सुनाने के, उत्तर, लिए जो लोग सुनना नहीं चाहते । क्यों हम सोलर प्लांट नहीं लगा सकते? सोलर प्लांट इतने महँगे क्यों, हैं? वे लोगों की पहुँच से परे क्यों हैं? जितनी कीमत में न्यूक्लियर प्लांट लगता है; उतनी कीमत में हजारों, विंडमिल लग सकते हैं जिससे करोड़ों लोगों को बिजली मिल सकती है । हम सब मिलकर इसे प्रोत्साहन, क्यों नहीं देते? इसपर रिसर्च क्यों नहीं करते? जिस तेजी से क्लाइमेट चेंज हो रहा है; क्या इसपर रिसर्च, की जरूरत नहीं है? उसके लिए एक्शन लेना क्या हम सबकी जिम्मेदारी नहीं है? श्रीनगर में जो हुआ,, उत्तराखंड, तमिलनाडु, केरल, भोपाल गैस कांड में जो हुआ, क्या यह सब चेतावनी नहीं है कि अब भी, सँभल जाओ, अगली बारी तुम्हारी है । जिसे हम आज बर्बाद कर रहे हैं, जल्द ही वह हमारी पूरी सभ्यता, को भी बर्बाद कर सकता है । वक्त है सँभलने का, सोचने का, एक्शन लेने का ।, , अरे ! रुक जा रे बंदे,, , अरे ! थम जा रे बंदे,, कि प्रकृति हँस पड़ेगी ।, ०, नुक्कड नाटक के कुछ विषय, (१) दहेज प्रथा, (२) कन्या भ्रूण हत्या , (३) पर्यावरण रक्षण, (4) महिला सशक्तीकरण, (5) जल संवर्धन, (६) व्यसन मुक्ति, , (७) स्वच्छता अभियान, (8) युवकों में बढ़ती असुरक्षा की भावना, (९) शरीर चंगा तो मन चंगा, (१०) मोबाइल के दुष्प्रभाव, (११) मानसिक स्वास्थ्य, (१२) सोशल मीडिया का बढ़ता प्रभाव, , 7744
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३, कोरस, : ट्रिंग ट्रिंग ट्रिंग ट्रिंग, अभिनेता-5 : यह क्या कर रहा है...?, अभिनेता-६ : यार, इन कंपनीवालों ने परेशान कर रखा है । ब्लड डोनेशन के मैसेज कर-कर के, उन्हीं को री-ट्वीट, कर रहा हूँ । काम का काम, टाइम पास का टाइम पास ।, अभिनेता-5 : इससे क्या होगा...?, अभिनेता-६ : सोशल वर्क और क्या...?, अभिनेता-5 : सोशल वर्क करने का इतना ही शौक है तो खुद ब्लड डोनेट करने क्यों नहीं चला जाता ।, अभिनेता-६ : अगर मैं ब्लड डोनेट करने जाऊँगा तो यह सोशल वर्क कौन करेगा...?, , सूत्रधार, , हमारे देश में ब्लड की रोजाना बहुत जरूरत पड़ती है । सड़कों पर एक्सीडेंट के बाद, हॉस्पिटल में, ऑपरेशन के दौरान, और डेंग्यू, मलेरिया जैसी कई तरह की गंभीर बीमारियों में ब्लड की सख्त जरूरत, पड़ती है । मरीज के रिश्तेदार ब्लड के लिए यहाँ-वहाँ दौड़ते भागते हैं, पर वक्त पर ब्लड का मिलना, बहुत मुश्किल होता है । हिंदुस्तान में हर एक घंटे में प्रसव के दौरान तीन मौतें होती हैं, इसका सबसे बड़ा, कारण है वक्त पर खून का ना मिलना!, ऑपरेशन के दौरान खून की सबसे ज्यादा जरूरत पड़ती है । क्या ये जरूरतें पूरी हो पाती हैं? क्या, ये जरूरतें ब्लड बैंक पूरी कर पा रही हैं? हमारे समाज में रक्तदान करने वाले लोग कम क्यों हैं?, क्या ब्लड डोनेट करना सिर्फ आर्मी, सीआरपीएफ के जवानों और कॉलेज के स्टूडेंट्स का ही काम, है...? हमारे समाज में ब्लड ना देने के बहुत-से विचित्र कारण होते हैं ।, , कट-टू-कट्स, , अभिनेता-१, अभिनेता-२, , : बीमारी, एचआईवी, ब्लड कैंसर... ना बाबा ना, मैं खून नहीं दूँगा...!, : (पुशअप्स मारते हुए) इतनी मुश्किल से तो जिम में जाकर बॉडी बनाई है, अब खून दे दूँगा तो मेरी, बॉडी कम नहीं हो जाएगी...!, अभिनेता-३, : हम खानदानी लोग हैं, हमारी रगों में शाही खून दौड़ता है । अब ऐसे कैसे किसी ऐरे-गैरे नत्थू खैरे, को दे दें अपना खानदानी खून...!, अभिनेता-4, : मैं खून दूँगा तो मुझे कौन देगा रे!, अभिनेता-5, : तू तो लड़की है । तेरा हिमोग्लोबिन तो पहले से ही कम है, तू कैसे खून दे सकती है?, : मैं खून देता नहीं, मैं खून लेता हूँ !, अभिनेता-६, लम्बा अभिनेता-७ : मैं खून दूँगा तो मेरी हाइट रुक नहीं जाएगी ?, कोरस, : और कितना लंबा होगा रे...?, अभिनेता-8, : मुझे तो ब्लड देखकर ही चक्कर आते हैं !, अभिनेता-९, : मुझे तो सुई से डर लगता है !, अभिनेता-१०, : रे-रे, मैं भी खून देवांगा ।, कोरस, : बैठ जा... मेरा पुत्तर पहले ही इन्ना कमजोर हेगा... खून देएगा ते होर कमजोर नहीं हो जाएगा?, , 76
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सूत्रधार, हमारे पास घूमने-फिरने के लिए टाइम है, फिल्म देखने के लिए टाइम है लेकिन ब्लड डोनेट करने, के लिए टाइम नहीं है! क्योंकि जागरूकता का अभाव है! अगर हम लोग दूसरों की जरूरत को अपनी, जरूरत नहीं समझेंगे ...अगर हम दूसरों की इमरजेंसी में खड़े नहीं होंगे तो हमारी इमरजेंसी में कौन खड़ा, होगा...?, अगर मेरे पड़ोस में किसी को ब्लड की जरूरत है और उस वक्त मैं उनकी मदद नहीं करता तो क्या, वे मेरी मदद करेंगे...? कौन-से मिथक हैं...? रक्तदान के बारे में कौन-सी गलतफहमियाँ हैं, कौन-सी, बातें हैं कि लोग मदद के लिए आगे नहीं आते?, , दृश्य-२ (हॉस्पिटल दृश्य), कंपाउंडर, , : पैर साइड कर, यह सरकारी अस्पताल है तुम्हारे घर का बेड नहीं...! इसके बाजू कौन ऊपर करेगा...?, मैं...! जल्दी कर..., डॉक्टर, : आपके बेटे को खून की जरूरत है, जल्द-से-जल्द कहीं से इंतजाम कीजिए..., माँ, : डॉक्टर साहब, आप मेरा खून ले लो ।, बहन, : डॉक्टर साहब, आप मेरा खून ले लीजिए ।, डॉक्टर, : जी नहीं, हम बच्ची का खून नहीं ले सकते और माता जी आप पहले ही ब्लड डोनेट कर चुकी हैं, आप, कहीं और से इंतजाम कीजिए ।, माँ, : डॉक्टर साहब हर जगह कोशिश कर ली, कहीं नहीं मिल रहा है..., कंपाउंडर : तो आप खरीद क्यों नहीं लेतीं...?, माँ, : कहाँ से खरीदें भाई साहब? लोगों के घर जाकर झाडू-बर्तन करती हूँ । उससे जो पैसे आते हैं; इसकी, दवाई में खर्च हो जाते हैं और जो बचता है, उसमें से स्कूल की फीस जाती है और बाकी बचता क्या है?, हम खाएँ क्या? पहनें क्या? भाई साहब ! अब आप ही कुछ मदद कीजिए, आप ही हमारा आखिरी, सहारा है, आप ही कुछ कीजिए ।, कंपाउंडर : पता भी है, एक खून की बोतल की कीमत क्या है? मैं कहाँ से इंतजाम करूँ...?, माँ, : भैया देखिए ना ! मेरे बेटे को क्या हो गया...? यह साँस नहीं ले रहा... डॉक्टर साहब को, बुलाइए ।, बहन, : माँ, भैया को क्या हो रहा है? डॉक्टर साहब... डॉक्टर साहब... देखिए भैया साँस नहीं..., डॉक्टर, : आई एम सॉरी...! आपका बेटा..., (माँ दहाड़ें मारकर रोती है ।), कोरस, : मैं सच बोलूँ तो पानी चाहिए,, बूँदें बेमानी चाहिए, इंसाँ समंदर अपना खोल दो, मैं सच बोलूँ तो पानी चाहिए,, (आलाप), हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो हो-२, , 7788
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सूत्रधार, , हजारों-लाखों लोग समय पर खून न मिलने की वजह से मरते हैं और पीछे रह जाते हैं, रोते-बिलखते, माँ-बाप, यतीम बच्चे और विधवा औरतें । ब्लड की माँग और आपूर्ति में इतना अंतर क्यों है? आज, भी ब्लड की जितनी जरूरत होती है, उसका सिर्फ ९ से १०% ही ब्लड मिल पाता है । हम ब्लड की, जरूरत को क्यों नहीं समझते? अगर हम खून के महत्त्व को समझेंगे तो शायद हम खुद जाकर ब्लड डोनेट, करेंगे और दूसरों को प्रोत्साहित भी करेंगे ।, , गीत-(5), , हाथ खाली हैं हमारे, जेब भी खाली-खाली है ।, अपनी जिंदगी हमने, इन गलियों में ही पाली है ।, कर सके गर भला किसी का तो खुद को इनसान कहे, वरना सारे रिश्ते-नाते, बस, इक खामख्याली है ।, ऑटो चालक-१, ऑटो चालक-२, ऑटो चालक-१, आदमी, ऑटो चालक-२, आदमी, ऑटो चालक-१, ऑटो चालक-२, ऑटो चालक-१, आदमी, , दृश्य-३ (ऑटो), , : भाई साहब आपको जाना कहाँ है? कभी यहाँ, कभी वहाँ, वहाँ से यहाँ, फिर यहाँ से वहाँ, पूरी, दिल्ली के दर्शन करा दिए आपने, आपको जाना कहाँ है? लो, मैंने ऑटो स्टैंड पर गाड़ी रोक दी,, आखिर आप चाहते क्या हैं?, : यार ! बुरा मत मानना । लगता है, इसकी नई-नई शादी हुई है और आज इसने बीवी को रामलीला, दिखाने जाने का वादा किया होगा, यह वक्त पर नहीं पहुँचा तो इसका लंका दहन हो जाएगा ।, : कुछ बोलेंगे भी क्या हुआ?, : मेरी माँ की तबीयत खराब है । उन्हें खून की सख्त जरूरत है । हर जगह खून के लिए भटक रहा, हूँ लेकिन कहीं नहीं मिल रहा ।, : आप तो ठीक-ठाक काम-धंधेवाले लगते हो, ब्लड खरीद क्यों नहीं लेते?, : कहाँ से खरीदें? जितना पैसा था, वह हम पहले ही लगा चुके हैं । जिन लोगों की हमने मदद की,, उन लोगों ने भी मुँह मोड़ लिया ।, : साहब, मैं दूँगा खून... चलिए! कहाँ जाना है..., : अरे पागल है क्या...? तू देगा खून...?, : क्यों नहीं दे सकता खून? माना कि मैं गरीब हूँ, एक ऑटो ड्राइवर हूँ तो क्या मैं खून नहीं दे, सकता?, : भाई साहब, मैं आपका अहसान कैसे भूलूँगा, मदद करना तो कोई आपसे सीखे । जब हमारे, अपनों ने मुँह मोड़ लिया तब पराये होकर भी आप हमारी मदद कर रहे हैं, आपका शुक्रिया...!, , गीत-(६), , बूँद-बूँद मिलने से, बनता एक दरिया है, बूँद-बूँद सागर है वरना यह सागर क्या है, समझो इस पहेली को, बूँद हो अकेली तो, एक बूँद जैसे कुछ भी नहीं,, हम औरों को छोड़ें तो, मुँह सबसे ही मोड़ें तो, तनहा रह ना जाएँ देखो हम भी कहीं, क्यों ना बहाएँ मिलकर हम धारा!, , 79
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सूत्रधार, , ब्लड डोनेशन का मतलब किसी की जिंदगी को बचाना है । जितनी जरूरत किसी की जान बचाने, के लिए ऑक्सीजन की है, उतनी ही जरूरत वक्त आने पर रक्त की भी होती है । अगर आप किसी को, नई जिंदगी देना चाहते हैं तो समय पर रक्तदान करें । रक्तदान सिर्फ दान नहीं, जीवन का दान है ।, , स्टोरीज, , अभिनेता-१ : मैं एक एथलीट हूँ । चार महीने पहले मैंने एक कैंसर पीड़ित तीन साल की बच्ची को रक्तदान किया ।, यकीन मानिए, उस वक्त जो खुशी और सुकून मुझे मिला, वह मेरे किसी भी अचीवमेंट और मेडल से, बढ़कर है ।, स्त्री अभिनेत्री : जब हमारे यहाँ ब्लड डोनेशन कैंप लगा था तो मैंने अपने पति के सम्मुख ब्लड डोनेट करने की इच्छा, जाहिर की । शुरूआत में वे इतने सपोर्टिव नहीं थे लेकिन मैंने उन्हें समझाया । मैंने रक्तदान किया, मन, को अच्छा लगा । जब पिछले महीने मेरे पति को डेंग्यू हुआ । उन्हें खून की जरूरत पड़ी, उस वक्त मेरा, ही डोनर कार्ड उनके काम आया ।, , सूत्रधार, , जब भी हमारे आस-पास ब्लड डोनेशन कैंप लगता है या ब्लड डोनेशन की बात आती है तो हम, बहाने बनाते हैं, डरते हैं । क्या यही डर हमारी जिंदगी की उम्मीदों की रीढ़ को नहीं तोड़ रहा...? क्या, हमें आगे बढ़कर इनसानियत के लिए, जिंदगी के लिए दूसरों की मदद नहीं करनी चाहिए...?, अभिनेता-१ : रीढ़ को सीधा करो, अभिनेता-२ : आँख से देखा करो, अभिनेता-३ : सुनने की आदत को बदलो, अभिनेता-२ : मुँह से कुछ बोला करो, , गीत-(७), , रीढ़ को सीधा करो, आँख से देखा करो, सुनने की आदत को बदलो, मुँह से कुछ बोला करो, रीढ़ को सीधा करो, आँख से देखा करो, सुनने की आदत को बदलो, मुँह से कुछ बोला करो, सब तुम्हारे बस में है, सब हमारी हद में है, कुछ नहीं जो कल में है, जिंदगी पल-पल में है, उजले दिन की चाह में, आज ना मैला करो, हर तरफ दीवार है, मुश्किलें-ही-मुश्किलें, अपने हिस्से आई है, बस कोशिश-ही-कोशिश, जिस तरफ नजरें घुमाओ, साजिशें-ही-साजिशें, दफन हैं भीतर हमारे, ख्वाहिशें-ही-ख्वाहिशें, हक ना झोली में गिरेगा, माद्दा पैदा करो, रीढ़ को सीधा करो, आँख से देखा करो, सुनने की आदत को बदलो, मुँह से कुछ बोला करो ।, (समाप्त), , 8800, , ०
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१4. हिंदी में उज्ज्वल भविष्य की संभावनाएँ, - डॉ. दामोदर खड़से, लेखक परिचय ः दामोदर खड़से जी का जन्म ११ नवंबर १९48 को जिला कोरिया (छत्तीसगढ़) में हुआ । आपकी प्रारंभिक, शिक्षा रामपुर में तथा स्नातक एवं स्नातकोत्तर शिक्षा नागपुर विश्वविद्यालय में हुई । आप ३० वर्षों तक बैंक में सहायक, महाप्रबंधक (राजभाषा) के रूप में कार्यरत रहे । आप कवि, कथाकार तथा अनुवादक के रूप में हिंदी साहित्याकाश पर छाए, हुए हैं । आपको राष्ट्रीय स्तर के अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है । ‘भटकते कोलंबस’, ‘पार्टनर’, ‘गौरैया को तो, गुस्सा नहीं आता’ (कहानी संग्रह), ‘काला सूरज’, ‘भगदड़’, ‘बादल राग’ (उपन्यास), ‘सन्नाटे में रोशनी’, ‘नदी कभी नहीं, सूखती’ आदि (कविता संग्रह), मराठी से २१ कृतियों का हिंदी में अनुवाद किया है ।, भाषण ः जनमानस को अपने विचारों से अवगत कराने का सबसे सशक्त माध्यम है ‘भाषण’ । भाषण करना यह एक कला, है, इस कला का उद्देश्य श्रोताओं को अपने विचारों से प्रभावित करना होता है । स्वामी विवेकानंद, सुभाषचंद्र बोस,, जवाहरलाल नेहरू, सरोजिनी नायडू, सरदार पटेल आदि महापुरुषों के भाषण विश्व में प्रसिद्ध हैं ।, पाठ परिचय ः प्रस्तुत पाठ में भाषण का संकलित अंश दिया गया है । हिंदी के माध्यम से रोजगार की बढ़ती संभावनाओं से, संबधित, ं विचार प्रस्तुत करना लेखक के भाषण का मूल उद्देश्य है । लेखक के अनुसार आज कई क्षेत्रों में हिंदी के आधार, पर रोजगार के अवसर उपलब्ध हैं । आवश्यकता है अपना क्षेत्र चयन करने की । देश-विदेश में हिंदी भाषा के बढ़ते महत्त्व, को वक्ता ने सहज, स्वाभाविक तथा जानकारीपरक ढंग से विद्यार्थियों के सम्मुख प्रस्तुत किया है ।, मित्रो,, आज मैं आप सभी को इस बात से अवगत कराना, चाहता हूँ कि हिंदी सीखकर तथा हिंदी का अध्ययन कर, आप अपने भविष्य को कैसे उज्ज्वल बना सकते हैं? आप, जानते ही हैं कि विश्व स्तर पर हिंदी का अपना एक, महत्त्वपूर्ण स्थान है । हिंदी में निपुणता प्राप्त व्यक्ति न, केवल रचनात्मक रूप से बल्कि व्यावसायिक रूप से भी, सफल हो सकता है ।, , आपमें से अनेक विद्यार्थियों के मन में इस बात को लेकर, प्रश्न होंगे कि क्या हिंदी को करियर के रूप में हम अपना, सकते हैं? हिंदी में निपुणता प्राप्त कर या विशेष अध्ययन, कर हम किन क्षेत्रों में रोजगार पा सकते हैं? मैं आपको, बताना चाहता हूँ कि हिंदी अनेक संभावनाएँ लिए हुए है हिंदी ने जन भाषा, संपर्क भाषा, विज्ञापन भाषा, मीडिया, भाषा जैसे अनेकानेक रूपों को अपने भीतर सँजोया है ।, हिंदी का ज्ञान, हिंदी की विशेषज्ञता एक विशाल जगत से, हमारा परिचय करवाती है । हिंदी में रोजगार है और रोजगार, के लिए हिंदी... अब मैं आपको बताना चाहता हूँ कि किस, तरह से हिंदी में रोजगार के विपुल अवसर उपलब्ध हैं और, कहाँ-कहाँ आप हिंदी भाषा के ज्ञान के आधार पर अपना, करिअर बना सकते हैं । यह तो आप सबको ज्ञात है कि, दुनिया ने वैश्वीकरण के दौर में प्रवेश कर लिया है । बाजार, और व्यवसाय ने देश की सीमाएँ लाँघ ली हैं । अगर कोई, देश किसी दूसरे देश में व्यापार करना चाहता है तो उसे उस, देश की स्थानीय भाषा से अवगत होना पड़ता है । भारत में, भी बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ अपने उत्पाद बेचने के लिए हिंदी, , 84, 84
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और आवश्यकता पड़ने पर क्षेत्रीय भाषाओं का उपयोग कर, अपना व्यवसाय बढ़ा रही हैं ।, भारत संघ की राजभाषा हिंदी होने के कारण मंत्रालयों,, संसद तथा सरकारी कार्यालयों में हिंदी में कामकाज करने, को अपेक्षित स्तर तक पहुँचाने के लिए प्रयास किए जा रहे, हैं । इसके अंतर्गत हिंदी में प्राप्त पत्रों के उत्तर हिंदी में देना, अनिवार्य हुआ तथा केंद्र सरकार और उसके नियंत्रणाधीन, सभी कार्यालयों के लिए हिंदी पत्राचार का निर्धारित लक्ष्य, दिया गया । इन सभी गतिविधियों पर देखरेख के लिए, उच्चाधिकार प्राप्त ‘संसदीय राजभाषा समिति’ का गठन, किया गया । इस तरह हिंदी के अधिकाधिक प्रयोग की, अपेक्षा की गई । इसके लिए समुचित कर्मचारियों की, आवश्यकता को महसूस किया गया । केंद्र सरकार के, कार्यालयों में अनुवाद और मूल पत्राचारसहित अन्य अनेक, क्षेत्रों में हिंदी के कार्यान्वयन के लिए कर्मचारियों की भरती, आवश्यक हो गई । अनुवादक, लिपिक, अधिकारी और, वरिष्ठ अधिकारियों की नियुक्तियाँ की जाने लगीं । इस क्षेत्र, में विशेषज्ञों की माँग बढ़ने लगी । अंग्रेजी से हिंदी और हिंदी, से अंग्रेजी अनुवादकों की माँग तेजी से बढ़ी । इसके लिए, वरिष्ठ, कनिष्ठ अनुवादक तथा लिपिक की आवश्यकता, होती है । इसकी निगरानी के लिए राजभाषा अधिकारियों, की नियुक्तियाँ होती हैं । सौ से अधिक कर्मचारी संख्या, वाले कार्यालयों में एक राजभाषा अधिकारी और, आवश्यकतानुसार अन्य कर्मचारियों की भरती की अपेक्षा, होने लगी । सहायक निदेशक, उप निदेशक, संयक्त, ु निदेशक, और निदेशक जैसे पद हिंदी के क्षेत्र में कार्य करने वाले, अधिकारियों के सामने संभावना के रूप में उभरने लगे ।, कार्यालयीन कामकाज में हिंदी के उपयोग को सुनिश्चित, करने के लिए भारत सरकार के गृह मंत्रालय में राजभाषा, विभाग का गठन किया गया है । प्रेरणा, प्रोत्साहन, निरीक्षण, और निगरानी के लिए कर्मचारियों की नियुक्ति होने लगी ।, हिंदी में रोजगार के बढ़ते अवसरों की इन आवश्यकताओं, की पूर्ति के लिए कई विश्वविद्यालयों ने आवश्यक, पाठ्यक्रम बनाए और इस माँग को पूरा करने लगे । केंद्रीय, अनुवाद ब्यूरो ने अनुवाद का पाठ्यक्रम चलाया । कुछ, , स्थानों पर डिप्लोमा कोर्स तो कहीं प्रयोजनमूलक में, स्नातकोत्तर पाठ्य क्रम तैयार किए गए ।, जब काम का प्रारंभ दिशा प्राप्त कर लेता है तो उसमें, विकास की संभावनाएँ बढ़ जाती हैं । अब विज्ञापनों को ही, देखिए, ये तो हिंदी से सराबोर हैं ।, हिंदी की प्रकृति विज्ञापन के लिए बहुत लाभदायी एवं, महत्त्वपूर्ण है । इलेक्ट्रॉनिक और मुद्रित मीडिया में हिंदी, विज्ञापनों की भरमार होती है । विभिन्न विज्ञापन हमें निरंतर, लुभाते रहते हैं । इतना ही नहीं, हम उनको अपने जीवन के, साथ भी जोड़ लेते हैं । सड़कों पर, दुकानों के बाहर, रेलवे, स्टेशनों, वाहनों, सार्वजनिक स्थानों, विविध कार्यक्रमों,, खेल आयोजनों आदि तमाम अवसरों पर विज्ञापन की, आवश्यकता होती है । इन विज्ञापनों के कॉपी रायटर होते, हैं । आजकल प्रतिभावान हिंदी कॉपी रायटरों की बड़ी माँग, है । इस क्षेत्र में अन्य क्षेत्रों की तुलना में आर्थिक लाभ बहुत, अधिक है । ‘बुलदं भारत की, बुलदं तस्वीर’, ‘ये दिल माँगे, मोर’, ‘आम के आम, गुठलियों के दाम’, ‘ठंडा मतलब...’,, ‘जिंदगी के साथ भी, जिंदगी के बाद भी’ आदि कुछ ऐसे, विज्ञापन हैं जिनके बनाने वालों को लाखों में भुगतान किया, गया है । आपमें अगर प्रतिभा है तो आप इस क्षेत्र में अपना, अच्छा करिअर बना सकते हैं और यदि आपने उस उत्पाद, से संबंधित सटीक बात एक या दो लाइन में कहने का, कौशल प्राप्त किया हो तो आप इस क्षेत्र में करोड़ों रुपये, कमा सकते हैं ।, इसके साथ ही मनोरंजन एक उद्य ोग के रूप में, उभरकर आया है । टीवी ने असंख्य कलाकारों, संगीतकारों, और गायकों के लिए जहाँ रोजगार का महाद्वार खोला है,, वहीं हिंदी के रचनाकारों, संवाद लेखकों, पटकथा लेखकों,, और गीतकारों के लिए वरदान के रूप में अवसर उपलब्ध, कराए हैं । कई प्रसिद्ध धारावाहिकों के अनुवाद में भी, रोजगार की संभावनाएँ हैं । कई चैनल्स अब बहुभाषी हो गए, हैं । इन सबमें अनुवादक की आवश्यकता होती है । कार्टून, फिल्मों में भी डबिंग (पार्श्व आवाज) के लिए अनेक, संभावनाएँ हैं । जनसंपर्क से जुड़े ये माध्यम हिंदी में अधिक, सार्थक हो रहे हैं । अधिकांश मनोरंजन के ये क्षेत्र हिंदी से ही, परिपूर्ण हैं । चाहे वह टीवी जगत हो या फिल्म जगत ।, , 8855
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फिल्म उद्य ोग ने तो हिंदी का इतना प्रचार-प्रसार, किया है कि उसका कोई सानी नहीं । शहरों से लेकर गाँवों, तक बच्चे और बड़े हिंदी फिल्में देख-देखकर और हिंदी, फिल्मी गीत सुन-सुनकर हिंदी सीखते हैं, समझते हैं और, उनमें हिंदी के प्रति रुचि जागृत हुई है । फिल्मों के लिए, पटकथा लेखन, संवाद लेखन, गीत लेखन के साथ-साथ, कलाकारों को हिंदी उच्चारण सिखाने का काम भी कई, हिंदी के प्रशिक्षक कर रहे हैं । आपको यदि हिंदी फिल्म, जगत का आकर्षण है तो आप कथा, गीत लेखन के साथ, हिंदी प्रशिक्षक के रूप में इस उद्योग में प्रवेश पा सकते हैं ।, रेडियो वैसे तो पुराना माध्यम है लेकिन आज भी, उसकी प्रासंगिकता बरकरार है । रेडियों में रूपक, नाटक,, धारावाहिक, समाचार लेखन, वाचन तथा रेडियो जॉकी, जैसे रोजगार की अनेक संभावनाएँ हैं ।, प्रसारण के बाद आप लीजिए प्रकाशन क्षेत्र को ।, प्रकाशन के क्षेत्र में भी हिंदी में उल्लेखनीय कार्य हो रहा है ।, पुस्तकों के लिए मुद्रित शोधक की आवश्यकता होती है ।, जिन्हें मानक हिंदी का सही ज्ञान हो, वे इस क्षेत्र में अपना, करिअर बना सकते हैं । हिंदी के समाचारपत्रों की बढ़ती, संख्या हिंदीवालों के लिए रोजगार के अवसर उपलब्ध करा, रही है । हिंदी समाचारपत्रों में संपादक, पत्रकार, अनुवादक,, स्तंभ लेखक आदि की आवश्यकता दिन-ब-दिन बढ़ती, जा रही है । हर नगर और शहर से हिंदी समाचारपत्र निकल, रहे हैं । इसी तरह हिंदी में कई पत्रिकाएँ अपना स्थान बनाए, हुए हैं । कुछ अंग्रेजी पत्रिकाओं के हिंदी संस्करण भी, व्यावसायिक रूप से सफल होते जा रहे हैं ।, रक्षा विभाग में अनुसंधान और विकास का काम बड़ी, मात्रा में होता है । अब रक्षा विभाग के अन्वेषक अपने शोध, पत्र हिंदी में भी तैयार करते हैं । विविध रिपोर्ट, प्रकाशन और, शोध कार्य हिंदी में होते हैं ।, संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) की परीक्षाओं का, माध्यम भी हिंदी है । पुलिस, प्रशासन, वित्त, रक्षा, रेल, आदि क्षेत्रों के लिए भी दी जाने वाली परीक्षाएँ हिंदी में होती, हैं । कई उम्मीदवारों ने आई.ए.एस. की परीक्षा हिंदी माध्यम, से उत्तीर्ण की हैं ।, मैं आपका ध्यान इस ओर आकर्षित करना चाहूँगा, कि विधि क्षेत्र में भी हिंदी का व्यापक उपयोग हो रहा, , 8866, , है । न्यायालयों में हिंदी के उपयोग के लिए प्रावधान किया, गया है । जिला और ग्रामीण न्यायालयों में हिंदी और, भारतीय भाषाओं का उपयोग किया जा रहा है । संसद की, कार्यवाही हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में होती है ।, विधि मंत्रालय ने विधि शब्दावली का निर्माण कराया है ।, इससे विधि क्षेत्र में शब्दों की एकरूपता सुनिश्चित करने में, सहायता हो रही है ।, तकनीकी क्षेत्र में भी हिंदी ने अब प्रवेश कर लिया है ।, अंतरिक्ष विभाग, परमाणु ऊर्जा विभाग, रसायनऔर उर्वरक, विभाग, जलपोत परिवहन विभाग, भारी उद्योग जैसे नितांत, तकनीकी क्षेत्र में हिंदी का प्रयोग होने लगा है । इस क्षेत्र में, विशेषज्ञों की निपुणता का उपयोग तेजी से बढ़ रहा है ।, संगणक के आगमन के साथ प्रयोजनमूलक हिंदी की, आवश्यकता बढ़ती जा रही है । इसमें मूलत: आलेखन,, टिप्पणी, पत्राचार, शब्दावली का निर्माण तथा अनुवाद, विषयक उपयोगिता हर क्षेत्र में देखी जा सकती है । गूगल में, किए गए अनुवाद के विविध उपयोग जन-जन तक पहुँच रहे, हैं । मोबाइल, लैपटॉप, टैब आदि में हिंदी का प्रयोग अपनी, जगह बना चुका है । विभिन्न विभागों में अब हिंदी माध्यम, से तकनीकी विषयों का प्रशिक्षण दिया जाने लगा है ।, पारिभाषिक शब्दावली का कार्य भी बड़े पैमाने पर चल रहा, है । हमने अब तक विभिन्न क्षेत्रों में अंग्रेजी शब्दावली का, ही प्रयोग किया है । आज हर क्षेत्र में सामान्य जन को, समझने-समझाने के लिए हिंदी पारिभाषिक शब्दावली के, निर्माण की आवश्यकता महसूस की जा रही है । इसलिए, इस शब्दावली को तैयार करने का काम तेजी से हो रहा है ।, इस क्षेत्र में अनेक विद्वान कार्यरत हैं । जैसे-जैसे प्रौद्य ोगिकी, विकसित होती जाएगी, वैसे-वैसे इसकी आवश्यकता, बढ़ती जाएगी । आप अपनी योग्यता, कौशल तथा ज्ञान के, आधार पर इस क्षेत्र में रोजगार के अवसर पा सकते हैं ।, भारत सरकार के विविध कार्यालयों, बैंकों, बीमा कंपनियों,, उपक्रमों में हिंदी का अधिकतम प्रयोग हो रहा है ।, मित्रो, आप जानते हैं कि आज सेवा क्षेत्र में अनेक, रोजगार उपलब्ध हैं । इन सभी सेवा क्षेत्रों में भी हिंदी का, प्रयोग अब सामान्य बात है । दवाई कंपनियाँ अब अपनी, दवाइयों से संबधित, ं सूचनाएँ हिंदी में देने लगी हैं । जनसेवा, से संबधित, ं उपयोग की वस्तुओं की पैकिंग पर आवश्यक
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जानकारी अब हिंदी में होती है । रेल, टेलीफोन, बैंक,, बीमा, शेयर मार्केट आदि से संबंधित कार्य, जानकारियाँ, हिंदी में भी दी जाने लगी हैं ।, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर लगभग १२७ देशों के, विश्वविद्यालयों में हिंदी पढ़ाई जाती है । दुनिया के लगभग, सभी देशों में हमारे दूतावास हैं । इसी तरह दुनिया के तमाम, देशों के दूतावास हमारे देश में हैं । कई दूतावासों में अब, हिंदी विभाग की स्थापना हो चुकी है । इस विभाग में हिंदी, अधिकारी, हिंदी अनुवादक, हिंदी सहायक जैसे पद होते, हैं । इस विभाग द्वारा देश-विदेश से संबधित, ं जानकारी,, घटनाएँ, स्थितियाँ आदि को हिंदी में भी तैयार किया जाता, है और भारत के विदेश मंत्रालय को भेजा जाता है । इन, पत्राचारों, समाचारों, रिपोर्टों में हिंदी का उपयोग होता है ।, इस तरह हिंदी विशेषज्ञों की माँग निरंतर बढ़ रही है ।, अपने यहाँ देखें तो भारत में कई पर्यटन स्थल हैं । यहाँ, धार्मिक, ऐतिहासिक, प्राकृतिक, सांस्कृतिक, सागरीय तट, एवं पर्वतीय स्थलों का ऐसा खजाना है जो दुनिया के बहुत, कम देशों में पाया जाता है ।, ऐसे दर्शनीय, मोहक और सुदं र पर्यटन स्थलों को, देखने देश ही नहीं विदेशों से भी कई पर्यटक आते हैं । ये, पर्यटक स्थानीय या प्रादेशिक भाषा नहीं जानते । अत:, संवाद स्थापित करने के लिए हिंदी ही संवाद की भाषा का, दायित्व निभाती है । इन पर्यटन केंद्रों पर पर्यटकों को, मार्गदर्शन करने व जानकारी देने के लिए ‘टुरिस्ट गाइड’ की, आवश्यकता होती है । इस दृष्टि से भी हिंदी भाषा के आधार, पर भी रोजगार का एक माध्यम है । कुछ पर्यटन स्थल पर, ऐसी संस्थाएँ भी हैं जो ‘टुरिस्ट गाइड’ उपलब्ध करा देती, हैं । इसके लिए आपको विभिन्न पर्यटन स्थलों की जानकारी, लेकर भाषा कौशल प्राप्त करना, उच्चारण में स्पष्टता होना,, बहुभाषी होना, मृदुभाषी होना तथा सरल-सहज भाषा का, प्रयोग करना आना आवश्यक है । हिंदी के स्नातकोत्तर, विद्य ार्थी इस क्षेत्र में आकर रोजगार पा सकते हैं ।, मैंने अभी कुछ देर पहले आपको फिल्म एवं टीवी में, पटकथा/संवाद लेखन के बारे में बताया । इसी के साथ एक, और लेखन कार्य भी आपको रोजगार के अवसर उपलब्ध, , करा सकता है । वह है ‘डाक्यूमेंटरी लेखन’ जिसे हिंदी में, ‘प्रलेख लेखन’ कहा जाता है । प्रलेखीय लेखन विभिन्न, विषयों पर किया जा सकता है । जैसे - कोई महत्त्वपूर्ण, घटना, किसी ऐतिहासिक स्थल को लेकर पर्व या त्योहार, की जानकारी देने के लिए प्रलेख तैयार किए जाते हैं । इस, क्षेत्र में कदम रखने के लिए आपको रंगमंच और फिल्म की, तकनीकी जानकारी होना आवश्यक है । साथ ही, आकलन, क्षमता भी होनी चाहिए । यह कार्य भी हिंदी में स्नातकोत्तर, उपाधि प्राप्त या हिंदी भाषा के जानकार युवक हिंदी में, प्रवीणता प्राप्त कर आगे बढ़ सकते हैं ।, अब बताइए, क्रिकेट मैच तो आप सभी देखते ही, होंगे, कमेंटरी भी सुनते हैं । मैं आपको बताऊँ कि खेल का, आँखों देखा हाल हिंदी में बताना यानि कमेंटरी करना भी, हिंदी भाषा द्वारा रोजगार प्राप्ति का एक और माध्यम है ।, हिंदी भाषा में समालोचना करने वालों की आज खेल जगत, में बहुत माँग है । न सिर्फ क्रिकेट बल्कि फुटबॉल, हॉकी,, बेडमिंटन आदि खेलों में भी धाराप्रवाह बोलने वालों की, बहुत जरूरत है । अपनी एक विशेष शैली में बोलने वाला, कमेंटेटर सुननेवालों पर अच्छा प्रभाव छोड़ता है । यदि, आपका हिंदी भाषा पर प्रभुत्व है और खेलों में भी आपकी, रुचि है तो आपका इस क्षेत्र में अपना बेहतर करिअर बना, सकते हैं । संबधित, ं खेल के बारे में आपको पूरी जानकारी, होना आवश्यक है तथा समयसूचकता के अनुसार, अालंकारिक भाषा या प्रसंगानुसार काव्य पंक्तियों का प्रयोग, करते आना चाहिए ।, देखा आपने, हिंदी देश-विदेश में रोजगार के कितने, अवसर उपलब्ध करा रही है । प्रकाशन, पत्रिकाएँ, अखबार,, टीवी, इंटरनेट, मीडिया के क्षेत्र में हिंदी को लेकर अपार, संभावनाएँ हैं । अनुवाद तो रोजगार के महत्त्वपूर्ण साधन के, रूप में उभरा है । राजभाषा विभागों में रोजगार की संभावनाएँ, बहुत हैं । कुल मिलाकर मनोरंजन, विज्ञापन, अनुवाद,, प्रशिक्षण, संगोष्ठियाँ, तकनीकी, विधि, सेवा, रक्षा आदि, सभी क्षेत्रों में हिंदी का महत्त्व तथा रोजगार की संभावनाएँ, निर्विवाद हैं ।, ०, , 8877
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१5. समाचार : जन से जनहित तक, - डॉ. अमरनाथ ‘अमर’, , लेखक परिचय ः अमरनाथ ‘अमर’ जी का जन्म ७ अप्रैल १९5६ को पटना (बिहार) में हुआ । आपने ‘मीडिया’ में, पीएच.डी की उपाधि प्राप्त की है । लेखक, कवि, आलोचक तथा दूरदर्शन के सैकड़ों सफल कार्यक्रमों के निर्माता एवं, निर्देशक के रूप में आपकी एक अलग पहचान है । आपको प्रिंट एवं इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में लगभग ३5 वर्षों का अनुभव, है । हिंदी साहित्य के प्रति आपकी विशेष रुचि के कारण आपने हिंदी साहित्यकारों के जीवन पर अनेक डॉक्यूमेंटरीज, और विशेष कार्यक्रमों का निर्माण और निर्देशन किया है । संप्रति आप दूरदर्शन के सलाहकार के रूप में कार्यरत हैं ।, ‘स्पंदित प्रतिबिंब’ - (काव्य संग्रह), ‘वक्त की परछाइयाँ’ (निबंध संग्रह), ‘पुष्पगंधा’ (कहानी संग्रह), ‘इलेक्ट्रॉनिक, मीडिया : बदलते आयाम’, ‘दूरदर्शन एवं मीडिया : विविध आयाम’ आदि ।, लेख ः ‘लेख’ में किसी भी विषय को लेकर विस्तार से लिखते हैं । अनेक अनुच्छेदों में विषय को विभाजित करके विषय, से संबंधित जानकारी को रोचक तरीके से समझाने का प्रयत्न किया जाता है । लेख रचनात्मक साहित्य भी हो सकता है, और सूचनात्मक साहित्य भी । इसमें मौलिक, रोचक, उत्कृष्ट जानकारी और रचनात्मक सौष्ठव का मिला-जुला प्रभाव, होता है । ऐसे लेख साहित्य की श्रेणी में आते हैं ।, पाठ परिचय ः आज के वैश्वीकरण के युग में जनसंपर्क माध्यमों में ‘समाचार’ एक क्रांति, एक मिशन है । समाचार पाठ्य, माध्यम है, रेडियो श्राव्य माध्यम है तो दूरदर्शन दृक्-श्राव्य माध्यम है । इस कार्य में सहज, प्रवाहमयी, प्रभावी एवं, गरिमामय भाषा की आवश्यकता है । यह एक गंभीर एवं उत्तरदायित्वपूर्ण कार्य है । लेखन से लेकर प्रसारण तक अनेक, छोटे-बड़े अधिकारी तथा कर्मचारियों के समन्वय से यह कार्य पूर्ण किया जाता है । प्रस्तुत लेख में समाचार की, आवश्यकता, महत्ता और भविष्य की विविध संभावनाओं को बताया गया है ।, आज वैश्वीकरण के युग में समाचार का बहुत महत्त्व, भारत का पहला समाचारपत्र ‘बंगाल गजट’ है जिसकी, है । सैटल, े ाइट के माध्यम से अब रेडियो, टेलीविजन, शुरूआत वर्ष १७8० में बंगाल में हुई । समाचारपत्र की, मोबाइल, समाचारपत्र में विश्व में घटित घटनाओं के शुरूआत होने के बाद विविध भाषाओं में अनेक समाचारपत्र, समाचार उपलब्ध होते हैं । संचार के क्षेत्र में यह एक क्रांति प्रकाशित होने लगे । प्रत्येक समाचारपत्र का ध्येय वाक्य, है । वस्तुत: समाचार की प्रस्तुति जन से जनहित तक का भिन्न होते हुए भी सभी समाचारपत्र राष्ट्रीयता से संलग्न हैं ।, माध्यम है । कोई भी समाचार जो हम पल भर में देख, पढ़ तीनों माध्यमों ने जनहित में तीन तरह के कार्यक्रमों की, या सुन लेते हैं, उसके पीछे लोगों की मेहनत, एकाग्रता और रूपरेखा बनाई - मनोरंजन, ज्ञानवर्धन और सूचना का, प्रतिबद्धता शामिल रहती है ।, प्रसारण । इसी सूचना में समाचार और समाचार के विविध, स्वरूप शामिल हैं ।, , 8899
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रेडियो की शुरूआत १६ मई १९२4 को हुई, इसी, तरह १5 दिसंबर १९5९ को दूरदर्शन की शुरूआत हुई ।, आकाशवाणी ने ‘‘बहुजन हिताय: बहुजन सुखाय’’ और, दूरदर्शन ने ‘‘सत्यं-शिवं-सुंदरं’’ के मूल मंत्र को अपनाकर, जनहित में प्रसारण शुरू किया । आज भारत में आकाशवाणी, और दूरदर्शन के विविध चैनलों के अलावा अन्य अनेक, समाचार चैनलों, विदेशी चैनलों द्व ारा प्रसारित किए जाने, वाले समाचार घर-घर में पहुँचते हैं । भारत में सिर्फ हिंदी, और अंग्रेजी में ही नहीं बल्कि हर प्रदेश की भाषा में भी, समाचार प्रसारित किए जाते हैं । परंतु आकाशवाणी और, दूरदर्शन के युग में भी समाचारपत्रों का महत्त्व कम नहीं, हुआ है । गाँवों से लेकर महानगरों तक हर नागरिक को, सुबह-सुबह समाचारपत्र पढ़ने की ललक बनी रहती है ।, समाचारपत्र भी अंग्रेजी और हिंदी के अलावा क्षेत्रीय, भाषाओं में प्रकाशित होते हैं । यह अनेकता में एकता का, प्रतीक है, हर भाषा और बोली का सम्मान है । रेडियो, समाचार श्राव्य अर्थात सुनने के माध्यम से प्रस्तुत होता है ।, इसमें दृश्य नहीं होता । आवाज के माध्यम से दृश्य की, अनुभूति कराई जाती है ।, समाचारपत्रों को प्रिंट मीडिया कहा जाता है । इसमें, कागजों पर समाचारों की छपाई होती है । इसमें भी विविध, समाचार एजंसियों से समाचार प्राप्त किए जाते हैं । इसके, अलावा पत्र के अपने रिपोर्टर भी शहर में घूमकर समाचार, एकत्र करते हैं । उपसंपादक समाचार के लेखन का कार्य, करते हैं । वर्तमान में तो सीधे संगणक में ही समाचार टाइप, किए जाते हैं । इस कार्य के बाद मुद्रित शोधन का महत्त्वपूर्ण, कार्य होता है ।, मुद्रित सामग्री में कहाँ त्रुटियाँ हैं; उन्हें दूर करने के, लिए दी गई सामग्री में ही संकेत लगाने होते हैं । जिस स्थान, पर जो अंश शुदध् किया जाना है, उसे हाशिये में लिखा, जाता है । पहली आधी पंक्ति की अशुद्धियों के संकेत बाईं, ओर तथा दूसरी आधी पंक्ति की अशुदधि, ् यों के संकेत दाईं, ओर लगाए जाते हैं । मुद्रित शोधन के कुछ विशिष्ट संकेत, होते हैं । इन संकेतों द्वारा मुद्रित शोधक बताता है कि, शुदधि, ् किस प्रकार की जानी है । इस प्रकार पुस्तक को, शुदध् , समुचित, मानक साहित्यिक भाषाई रूप प्रदान करने, , का कार्य सही अर्थ में मुद्रित शोधक करता है । अत: मुद्रण, कार्य में मुद्रित शोधक का अपना विशिष्ट स्थान है ।, उसके बाद प्रधान संपादक की ओर से हरी झंडी, मिलने पर समाचारों की पृष्ठानुसार सेटिंग की जाती है ।, इसके बाद छपाई का काम होता है । दूरदर्शन/टेलीविजन, दृश्य अर्थात देखने का माध्यम है, जिसमें श्राव्य भी शामिल, होता है । वस्तुत: समाचार लेखन से प्रसारण तक के कार्यों, के कई पक्ष हैं । जैसे - समाचार कक्ष में विभिन्न समाचार, एजंसियों से असंख्य समाचार प्राप्त होते हैं । उन समाचारों, को दूरदर्शन में प्रस्तुति के हिसाब से तैयार करना, संबंधित, समाचार से जुड़े क्लिपिंग्स, (विजुअल्स/दृश्य) का संपादन, करना, फिर उन्हें एक क्रम में तैयार करना । इसके पश्चात, स्टुडियो में समाचार वाचक/वाचिका द्व ारा समाचारों को, पढ़ना, पी.सी.आर पैनल से निर्माता-निर्देशक द्व ारा निर्देश, देना । समाचार प्रस्तुत करने से पूर्व समाचार संपादक अपनी, कुशलता से समाचार की महत्ता, प्रासंगिकता को क्रमबद्ध, रूप से तैयार करता है । फिर उससे संबंधित चित्र, फिल्म या, कवरेज/रिपोर्टिंग की फुटेज देखकर समाचार के स्वरूप को, शब्दों में ढालता है । ये क्लिपिंग्स कई बार रिकार्डेड होती है, तो कई बार संवाददाता द्व ारा लाइव भी दी जाती हैं । चूँकि, दूरदर्शन/टी.वी. चैनल्स (विजुअल) दृश्य मीडिया हैं ।, इसलिए इसमें समाचार की पटकथा रेडियो समाचार की, तरह बड़ी नहीं होती है । इस टीम में प्रोड्य ूसर, इंजीनियर,, कैमरामैन, फ्लोर मैनेजर, वीडियो संपादक, ग्राफिक, आर्टिस्ट, मेकअप आर्टिस्ट, टेप लाइब्रेरी, समाचार संपादक, तथा अन्य भी बहुत सारे कर्मचारी/अधिकारी शामिल होते, हैं । समाचार के लेखन, वाचन और प्रसारण तक यह पूरीकी-पूरी टीम गंभीरता से एक-दूसरे से जुड़कर समाचार, प्रस्तुति को पूर्ण करते हैं । मूल रूप से समाचार वाचक अब, समाचार एंकर की भूमिका भी निभा रहा है अर्थात समाचार, पढ़ने के साथ-साथ वह समाचार से जुड़े अन्य पक्षों की, एंकरिंग और रिपोर्टिंग भी करता है । किसी का साक्षात्कार, भी लेता है, चैनल परिचर्चा में भी सवाल करता है । इसके, बीच में वह तत्काल घटी घटनाओं को ‘‘ब्रेकिंग न्यूज’’ के, रूप में शामिल करता है ।, , 90
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यूँ तो हर कार्यक्रम की रिकार्डिंग और प्रस्तुति में, सामान्य कैमरा का प्रयोग होता है लेकिन समाचार वाचक, जिस कैमरे को देखकर समाचार पढ़ता है, उसमें टेलीप्रॉम्प्टर, की सुविधा होती है । टेलीप्रॉम्प्टर के समाचार पढ़ते समय, समाचार वाचक टेबल पर नीचे नजर कर पढ़ने की बजाय, सामने स्क्रीन की ओर देखते हुए समाचार पढ़ता है पर हमें, ऐसा लगता है जैसे वह हमारे सामने बातचीत कर रहा है ।, लगभग सभी टी.वी. चैनल पर समाचार पढ़ने की तकनीक, एक जैसी होती है । समाचार वाचक के लिए प्रभावशाली, व्यक्तित्व के साथ-साथ सुयोग्य आवाज, उच्चारण की, शुदध् ता, भाषा का ज्ञान, शब्दों का उतार-चढ़ाव एवं भाषा, का प्रवाहमयी होना बहुत ही जरूरी होता है ।, समाचारपत्र, रेडियो और टेलीविजन में समाचार प्राप्त, करने के अनेक साधन होते हैं । जैसे - समाचार एजेंसियाँ,, संवाददाता, प्रेस विज्ञप्तियाँ, भेंटवार्ताएँ, साक्षात्कार,, क्षेत्रीय जनसंपर्क अधिकारी, राजनीतिक पार्टियों के प्रवक्ता,, मोबाइल पर रिकॉर्ड की गई कोई जानकारी । सारे विश्व में, समाचारों का संकलन और प्रेषित करने का काम मुख्यत:, समाचार एजेंसियाँ करती हैं । समाचार एजेंसियों के क्षेत्रीय, ब्यूरो समाचारों का प्रांतीय या केंद्रीय कार्यालयों तक, टेलीप्रिंटर द्व ारा पहुँचाते हैं और मुख्य कार्यालय उन्हें, पुनर्संपादित कर क्षेत्रीय एवं ब्यूरो कार्यालय को भेजता है;, जिनके टेलीप्रिंटर रेडियो और टेलीविजन के संपादित, समाचार कक्ष में इन समाचारों को भेजते हैं । भारत में, मुख्यत: विदेशी और भारतीय समाचार एजेंसियों में रायटर,, प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया (पी.टी.आई), यूनाइटेड न्यूज ऑफ, इंडिया (यू.एन.आई), यूनीवार्ता एजेंसियाँ समाचार, उपलब्ध कराती हैं ।, समाचारों का एक अन्य प्रमुख स्रोत है- प्रेस, विज्ञप्तियाँ । केंद्र सरकार की खबरें, पत्र, सूचना कार्यालय, द्वारा और राज्य सरकार की खबरों की सूचनाएँ जन संपर्क, विभाग की प्रेस विज्ञप्तियों से मिलती हैं । इनके अलावा, सार्वजनिक प्रतिष्ठान, शोध तथा निजी संस्थानों के, जनसंपर्क अधिकारी और प्रेस के संवाददाता भी समाचार, उपलब्ध कराते हैं ।, राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, उपराष्ट्रपति, लोकसभा, अध्यक्ष, राज्यपाल, न्यायाधीश आदि के पद गरिमामय, , होते हैं । समाचार में इस गरिमा का ध्यान रखना जरूरी है ।, आज समाचार का स्वरूप और प्रकार बहुत विस्तृत, हो चुका है । राजनीतिक, संसद, विकासात्मक, खेल,, व्यापार, रोजगार, विज्ञान, बजट, चुनाव, कृषि, स्वास्थ्य,, लोकरुचि से संबंधित समाचार । समाचारों की अवधि भी, आज अलग-अलग हैं । मुख्य समाचार दो मिनट, पाँच, मिनट, दस मिनट और पंद्रह मिनट के बुलेटिन । इनके, अलावा परिचर्चा आदि भी समाचार के ही अंग हैं ।, समाचार के कुछ महत्त्वपूर्ण पक्ष हैं जिन पर ध्यान देना, बहुत जरूरी है - समाचार की भाषा सरल और सहज हो ।, समाचार के वाक्य छोटे-छोटे हों । प्रदेश और क्षेत्र की भाषा, की गरिमा के अनुकूल वाक्य हों । समाचार में ऐसी बात न, हो जिसमें किसी धर्म, जाति, वर्ग की भावना को चोट, पहुँचे । किसी भी चैनल पर समाचार की प्रस्तुति राष्ट्रहित,, एकता और अखंडता को ध्यान में रखकर होनी चाहिए ।, इस क्षेत्र में रोजगार की बहुत सारी संभावनाएँ हैं ।, प्रोड्य ूसर और समाचार संपादक के लिए यू.पी.एस.सी., परीक्षाएँ देनी होती हैं । कैमरामैन, वीडियो संपादक, ग्राफिक, आर्टिस्ट मान्यताप्राप्त संस्थाओं से डिग्री/डिप्लोमा लेकर, इस परीक्षा में भाग ले सकते हैं । इसी तरह इंजीनियरिंग, विभाग में डिग्री/डिप्लोमा लेकर संबंधित परीक्षाओं में, सफल होकर रोजगार प्राप्त कर सकते हैं । संवाददाता और, समाचार वाचक भी स्वर परीक्षा, साक्षात्कार आदि द्वारा, निपुण हो सकते हैं । दूरदर्शन में जितना महत्त्व पर्दे पर आने, वाले लोगों का है, उससे तनिक भी कम महत्त्व पर्दे के पीछे, काम करने वालों का नहीं है । इस क्षेत्र में अपनी योग्यता,, क्षमता और प्रतिभा के अनुरूप रोजगार प्राप्त हो सकता है ।, वस्तुत: रेडियो, समाचारपत्र और टी.वी. पत्रकारिता, एक मिशन है, उत्तरदायित्व और कर्तव्यनिष्ठा है । देश के, प्रति जागरूकता और सामाजिक सरोकार के दायरे में, जनहित का महत्त्व है । समाचार/संचार के क्षेत्र में जनहित, एक मशाल है और पत्रकार उसकी एक-एक किरण ।, आवश्यकता इस बात की है कि सब मिलकर देश को, गौरवान्वित करें । सफलता, राष्ट्रीय एकता, अखंडता,, सद्भाव और भाईचारा से प्रकाशमान करें ।, ०, , 91
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स्वाध्याय, पाठ पर आधारित, (१) टेलीविजन के लिए समाचार वाचन की विशेषताएँ लिखिए ।, (२) रेडियो और टेलीविजन के लिए समाचार प्राप्त करने के साधन लिखिए ।, (३) समाचार के महत्त्वपूर्ण पक्ष स्पष्ट कीजिए ।, , व्यावहारिक प्रयोग, निम्नलिखित विषयों पर आकाशवाणी/दूरदर्शन/समाचारपत्र के लिए समाचार लेखन कीजिए ।, (१) अकाल से उपजीं गंभीर स्थितियाँ ।, (२) विश्वभर में बढ़ती हुई खादी की माँग ।, ●, , समाचार लेखन के सोपान, (१) समग्र तथ्यों को एकत्रित करना ।, (२) समाचार लेखन का प्रारूप तैयार करना ।, (३) दिनांक, स्थान तथा वृत्तसंस्था का उल्लेख करना ।, (4) परिच्छेदों का निर्धारण करते हुए समाचार लेखन करना ।, (5) शीर्षक तैयार करना ।, , ●, , समाचार लेखन के लिए आवश्यक गुण, (१) लेखन कौशल, (२) भाषाई ज्ञान, (३) मानक वर्तनी, (4) व्याकरण, , ●, , समाचार लेखन के मुख्य अंग, (१) शीर्षक - शीर्षक में समाचार का मूलभाव होना चाहिए । शीर्षक छोटा और आकर्षक होना चाहिए ।, , (२) आमुख - समाचार के मुख्य तत्त्वों को सरल, स्पष्ट रूप से लिखा जाए । घटना के संदर्भ में कब,, , कहाँ, कैसे, कौन, क्यों आदि जानकारी हो ।, , समाचार के कुछ विषय, (१) अपने कनिष्ठ महाविद्य ालय में मनाए गए ‘विज्ञान दिवस’ का समाचार लेखन कीजिए ।, (२) ‘शिक्षा के क्षेत्र में ई-तकनीक का प्रयोग’ का समाचार लेखन कीजिए ।, (३) ‘पर्यावरण संवर्धन में युवाओं का योगदान’ का समाचार लेखन कीजिए ।, , 92
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१६. रेडियो जॉकी, - अनुराग पांडेय, लेखक परिचय ः अनुराग पांडेय जी का जन्म ११ जुलाई १९७4 को सीधी (मध्य प्रदेश) में हुआ । आपने विज्ञान में, स्नातक की शिक्षा देवी अहिल्या विश्वविद्यालय, इंदौर से प्राप्त की । युवाओं के लिए कार्यक्रम का संचालन, मंच, संचालन, टी.वी. चैनल के लिए पार्श्व आवाज, अंग्रेजी सिनेमाओं और टेलीविजन के लिए हिंदी में डबिंग आदि कार्यों, से आप जुड़े रहे । आपने रेडियो के लिए पच्चीस से अधिक नाटकों का लेखन कार्य किया है ।, रेडियो जॉकी ः ‘रेडियो जॉकी’ में मनोरंजन के लिए दो से अधिक भाषाओं का ज्ञान रखते हुए शीघ्रातिशीघ्र संवादों को, व्यक्त करने की अद्भुत कला होती है । रेडियो जॉकी में भाषा का मिश्र रूप हमें सुनाई देता है । अद्भुत और कलात्मक, रेडियो जाॅकींग करने के कारण श्रोता वर्ग इनकी ओर आकर्षित होता है । वर्तमान में शहरों में इस कला को युवा पीढ़ी, द्वारा बहुत अधिक रूप में पसंद किया जा रहा है ।, पाठ परिचय ः प्रस्तुत साक्षात्कार में रेडियो जॉकी के क्षेत्र में रोजगार के विपुल अवसरों की जानकारी दी गई है ।, रेडियो जॉकी को करिअर के रूप में चुनने के लिए आवश्यक योग्यताओं का उल्लेख करते हुए साक्षात्कारदाता ने, सामाजिक जागरूकता जगाने में आर.जे. की महत्त्वपूर्ण भूमिका पर भी प्रकाश डाला है । अपनी अभिव्यक्ति करने तथा, रोजगार के रूप में भी रेडियो जॉकी उपयोगी तथा प्रभावी लगता है ।, , (रेडियो जॉकी अनुराग पांडेय जी से युवक श्री प्रगल्भ की बातचीत), प्रगल्भ : नमस्ते, अनुराग जी ! आपका बहुत-बहुत स्वागत है ।, अनुराग : जी, धन्यवाद ! मुझे खुशी है कि आप जैसे नवयुवक ‘रेडियो जॉकी’ की जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं ।, यह समय की माँग है ।, प्रगल्भ : अनुराग जी, यह बताइए कि रेडियो जॉकी की संकल्पना क्या है?, अनुराग : ‘रेडियो जॉकी’ शब्द से ही स्पष्ट है कि यह ‘रेडियो’ और ‘जॉकी’ इन दो शब्दों के मेल से बना, है । ‘जॉकी’ शब्द के कई अर्थ हैं जैसे - राइडर (अश्वारोही), डिप्लॉय (फैलाना), मुव (संचालित करना),, स्टीयर (प्रस्तुत करना), टर्न (घुमाना) । प्रचलित अर्थ के आधार पर जॉकी अर्थात राइडर, अश्वारोही । ऐसा, व्यक्ति जो घोड़े पर सवार है जो यह ध्यान रखे कि घुड़दौड़ में उसका घोड़ा सबसे आगे, रहे । ‘रेडियो जॉकी’ भी ऐसा कार्यक्रम संचालक होता है जो कुशलतापूर्वक अपने चैनल के किसी भी, कार्यक्रम को इस खूबी से संचालित या प्रस्तुत करता है कि उसका चैनल और कार्यक्रम सबसे आगे रहे ।, , 93
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समय के साथ-साथ सब कुछ बदलता जा रहा है । एक जमाने में रेडियो जॉकी उद्घोषक होते थे,, अनाउन्सर होते थे । तब वह कार्य आकाशवाणी के माध्यम से सरकारी हिसाब से होता था । मुख्यत:, इन्फर्मेशन देना वह कार्य था, फिर धीरे से इंफोटेनमेंट आ गई । इन्फर्मेशन विथ एंटरटेनमेंट हो गई । जैसे-जैसे, रेडियो का प्रसार होने लगा वैसे-वैसे रेडियो इंफोटेनमेंट का माध्यम बन गया ।, प्रगल्भ : आर.जे. के लिए प्रवेश प्रक्रिया क्या होती है?, अनुराग : ऑल इंडिया रेडियो में नौकरी प्राप्त करने के लिए स्टाफ सिलेक्शन कमिशन (कर्मचारी चयन आयोग) तथा, ऑल इंडिया रेडियो द्व ारा परीक्षा होती है । यह परीक्षा देने के लिए स्नातक पदवी प्राप्त करना आवश्यक, है । इस परीक्षा में उत्तीर्ण होना अनिवार्य है । उसके पश्चात प्रत्यक्ष साक्षात्कार होने के बाद उम्मीदवार का, चयन किया जाता है । ऑल इंडिया रेडियो के साथ क्षेत्रीय स्टेशन पर भी ऐसी परीक्षा होती है । स्थानीय लोगों, को इसके जरिए काम करने का मौका मिल सकता है ।, निजी रेडियो चैनल में आपकी कला और प्रतिभा देखी जाती है । मुझे ऐसा लगता है, यहाँ भी स्नातक, पदवी प्राप्त करना जरूरी है क्योंकि स्नातक होने के बाद आपकी समाज के प्रति और लोगों की मनोभावना, तथा मनोविज्ञान के प्रति समझ बढ़ जाती है । रेडियो जॉकी के लिए ज्ञान और अनुभव की आवश्यकता होती, है । जिसे इस क्षेत्र में सफल होना है, उसे निरंतर पढ़ना अति आवश्यक होता है । कलाकार एक बीज के, समान होता है, जहाँ उसे धूप, पानी, मिट्ट ी मिली तो वह पनपने लगता है, वैसे ही आपके पास आर.जे., बनने के गुण हैं तो मौका मिलते ही वे पनपने लगेंगे और लोगों की नजर में आएँगे ।, प्रगल्भ : क्या आर.जे. का कार्य आजीविका का साधन हो सकता है?, अनुराग : नि:संदेह । इस क्षेत्र में रोजगार के विपुल अवसर उपलब्ध हैं । इसके लिए आपके पास योग्यता, भाषा पर, प्रभुत्व, देश-विदेश की जानकारी, नित नई रची जाने वाली रचनाओं को पढ़ने की ललक, आवाज में, उतार-चढ़ाव, वाणी में नम्रता तथा समय की पाबंदी आदि अति आवश्यक गुण होने चाहिए । आपकी शैली, भी विशेष हो, आपको अनुवाद करने का ज्ञान भी होना चाहिए । कई रेडियो स्टेशन हैं जहाँ रेडियो जॉकी की, आवश्यकता होती है । आप अपने कार्य का प्रारंभ अपने क्षेत्रीय रेडियो स्टेशन से कर सकते हैं । अनुभव प्राप्त, होने के बाद बड़े रेडियो स्टेशनों पर आपको काम करने के अवसर मिलते हैं ।, प्रगल्भ : क्या आर.जे बनने के लिए प्रशिक्षण संस्थान से प्रशिक्षण प्राप्त करना आवश्यक है?, अनुराग : देखो प्रगल्भ, इसका उत्तर हाँ भी है और ना भी । हर रेडियो स्टेशन के अपने-अपने मापदंड और निकष, होते हैं । कोई यह देखता है कि आपने प्रशिक्षण लिया है या नहीं । वहीं पर कई रेडियो स्टेशन सिर्फ आपकी, कला, ज्ञान तथा प्रस्तुतीकरण की शैली देखकर आपका चयन कर लेते हैं । आजकल जगह-जगह रेडियो, जॉकी से संबंधित कार्यशालाओं का आयोजन किया जा रहा है ।, प्रगल्भ : आर.जे. बनने के इच्छुकों को किस प्रकार की तैयारी करने की आवश्यकता है?, अनुराग : आर.जे. को अपने कान, आँखें निरंतर खुली रखने की जरूरत है । उसे जिस भाषा में बोलना है, उस भाषा, को ज्यादा-से-ज्यादा सुनना होगा, उस भाषा का साहित्य पढ़ना होगा, रोज समाचारपत्र पढ़ने होंगे, इसके, साथ ही अपने क्षेत्र का सांस्कृतिक, भौगोलिक तथा ऐतिहासिक ज्ञान होना भी जरूरी है । उसे देश-विदेश, की जानकारी रखनी होगी । इसके साथ ही अपनी एक भाषा शैली तैयार करनी होगी, अपने उच्चारण पर, ध्यान देना होगा । भाषा के आरोह-अवरोह का ज्ञान बढ़ाना होगा । एक बढ़िया आर.जे. बनने की कोशिश, हरदम जारी रखनी होगी क्योंकि कलाकार कभी तृप्त, संतुष्ट नहीं होता । उसे विशिष्ट लोगों के विशेष, अवसर पर साक्षात्कार लेते हुए कार्यक्रम की प्रस्तुति करनी पड़ती है । इसलिए साक्षात्कार लेने की कुशलता, उसमें होनी चाहिए ।, , 90, 994, 4
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कभी-कभी श्रोता के प्रश्नों का निराकरण आर.जे को करना पड़ता है, यह तभी संभव है जब उनके, प्रश्नों के उत्तरों का ज्ञान उसके पास हो । कई बार श्रोता अपनी जिंदगी से निराश होकर आर.जे को फोन, करते हैं, तब उन्हें प्रोत्साहित करने के लिए आर.जे. का अपना मनोविश्लेषणात्मक अध्ययन उपयोगी होता, है । कई बार परीक्षाओं के पहले मुझे विद्य ार्थियों के फोन आते हैं, कहते हैं ‘‘कल से परीक्षा शुरू हो रही है, और मुझे बहुत टेंशन हो रहा है । लगता है कि मैंने जो पढ़ा है, मुझे ऐन मौके पर याद नहीं आएगा, मैं क्या, करूँ ? मेरी समझ में नहीं आ रहा है ।’’ ऐसी स्थिति में मैं उनका मनोबल बढ़ाने का काम करता हूँ और कहता, हूँ, ‘‘आपके मन में आने वाले विचार बहुत स्वाभाविक हैं । इस प्रकार के विचार आपको स्ट्रेस के कारण, आते हैं । आप निश्चिंत रहिए । परीक्षा के दौरान आपको अपनी की हुई पढ़ाई याद आएगी । आप विचलित, न हों मेहनत करते रहिए, आप जरूर परीक्षा में सफल होंगे ।’’, , अगर आप एक अच्छे संवादक (Communicator) बनना चाहते हैं तो आप लोगों को देखकर तथा, सुनकर अभ्यास द्वारा अपने-आपको तैयार कर सकते हैं । जब आप अपनी कही हुई बात को दुबारा सुनते, हैं तो आपको लगता है कि इसे आप और अच्छी तरह से प्रस्तुत कर सकते थे । इस तरह आप स्वयं अपना, गुरु बन सकते हैं । यदि आपको सफल आर.जे बनना है तो आपकी भाषा सहज, सरल, संतुलित, रोचक, तथा प्रवाहमयी होनी चाहिए जो श्रोताओं की समझ में आसानी से आए और उनका मनोरंजन भी हो, साथ, में उन्हें ज्ञान भी मिले ।, प्रगल्भ : आर.जे. को अपनी भाषा पर प्रभुत्व बनाए रखने के लिए किस तरह के प्रयास करने चाहिए?, अनुराग : आर.जे. और भाषा मानो एक ही सिक्के के दो पहलू हैं । इसलिए उसे भाषा पर प्रभुत्व पाने के लिए तथा, वाक्पटुता बढ़ाने के लिए लोगों से बातचीत करना, पुस्तकें, समाचारपत्र पढ़ना, अच्छे वक्ताओं को सुनना, आवश्यक है । इससे आपकी शब्दसंपदा बढ़ेगी । जिससे आपको शब्द चयन में सुविधा होगी । अपने करिअर, को सुदृढ़ बनाने के लिए भाषा शालीन, रोचक एवं प्रभावशाली होनी चाहिए । लोकोक्तियों, मुहावरों का, प्रयोग यथासमय और आवश्यकतानुसार कर सकें तो सोने पे सुहागा ।, आपमें ज्ञान पाने और आगे बढ़ने की ललक, लोगों से मेलमिलाप की भावना और कुछ कर गुजरने का जुनून, है तो नि:संदेह आप इस क्षेत्र में नये कीर्तिमान स्थापित कर सकते हैं । अपने कार्य को अधिक प्रभावशाली, बनाने के लिए आप निरंतर अभ्यास करते रहिए । जैसे - आप किसी विषय पर किसी व्यक्ति से बात कर रहे, हैं तो उसे ध्वनिमुद्रित कीजिए और स्वयं सुनिए ताकि आपको अपनी गलतियों का अहसास हो, जिससे आप, अगली बार अपनी गलतियाँ सुधार सकते हैं ।, प्रगल्भ : आर.जे को तकनीकी के संदर्भ में किन-किन बातों की जानकारी होनी चाहिए ?, अनुराग : आज का युग तकनीकी युग है । आर.जे को तकनीकी चीजों की जानकारी होनी ही चाहिए । अलग-अलग, सॉफ्टवेयर जो हर दिन बाजार में आ रहे हैं, उनकी उपयोगिता, नई आनेवाली मशीनों के बारे में जानकारी,, ध्वनिमुद्रण के बारे में जानकारी रखना आर.जे के लिए आवश्यक है ।, प्रगल्भ : अनुराग जी ! आपके साथ हुई बातचीत के दौरान बहुत महत्त्वपूर्ण जानकारी मिल रही है । सर, मुझे तो, लगता है कि आर.जे सामाजिक जागरूकता फैलाने में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है ।, अनुराग : तुम्हारी बात बिल्कुल सही है । किसी भी काम को समाज से दूर रहकर नहीं किया जा सकता । आर.जे. का, काम तो समाज के हर घटक से जुड़ा हुआ है । जैसे - हम अपने कार्यक्रम के दौरान पर्यावरण दिवस, पोलियो, अभियान, जल साक्षरता, बाल मजदूरी, दहेज समस्या, कन्या साक्षरता, विश्व पुस्तक दिवस, किसान और, खेती का महत्त्व, व्यसन से मुक्ति, मतदान जनजागृति आदि विषयों पर चर्चा करते हुए मनोरंजनात्मक ढंग, से लोगों के बीच में जागरूकता फैलाने का काम करते हैं ।, , 990, 5, 95
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: जी सर, मैं आपको एक बात बताना चाहता हूँ । अभी जो चुनाव हुआ है ना, उसमें मेरे कितने सारे दोस्तों ने, बड़े उत्साह के साथ मतदान किया । सर, आप जैसे रेडियो जॉकी को सुनकर मेरे बहुत से दोस्त व्यसनमुक्त, भी हुए । इस परिवर्तन का श्रेय मैं आर.जे को देना चाहूँगा ।, अनुराग : यह तो हमारा फर्ज है ।, प्रगल्भ : सर ! आर.जे. के क्षेत्र में जाने वाले नवयुवकों का भविष्य कैसा रहेगा, इस संदर्भ में थोड़ी-सी जानकारी, दीजिए ।, अनुराग : मैं यह देखता हूँ कि रेडियो का क्षेत्र कभी समाप्त न होने वाला जनसंचार माध्यम है । रेडियो जन-जन का, माध्यम है । वह हमेशा रहेगा और लोगों के मन को छूता रहेगा । जनमानस को आगे बढ़ाने का हौसला देगा,, नई-नई बातें बताएगा । उनके मनपसंद गीत सुनाएगा और यह सब उनकी (जनमानस की) अपनी भाषा में, करेगा । प्रसारण के सब माध्यमों में रेडियो सबसे तेज प्रसारित और प्रेषित करने का सशक्त माध्यम है ।, संप्रेषण सभी के लिए एक समान है । एक ही भाषा, मनोरंजन, सबके लिए एक जैसा । रेडियो का भविष्य, हमेशा उज्ज्वल रहा है । रेडियो के आरंभ से लेकर आज तक संसार के सभी माध्यमों में यह महत्त्वपूर्ण, माध्यम रहा है । इसलिए इसका भविष्य हरदम उज्ज्वल है । प्रगल्भ, तुम्हें एक बात बताऊँ । इस क्षेत्र से जुड़ी, चुनिंदा हस्तियाँ जिन्होंने घर-घर में अपनी छाप छोड़ी हैं - अमीन सयानी, काका कालेलकर, हरीश भीमानी, आदि नाम आज भी लोगों के दिलों पर राज करते हैं । अत: मैं आप सभी से निवेदन करता हूँ कि मनोरंजन,, जोश से भरपूर इसके विस्तृत क्षेत्र में अपने उज्ज्वल भविष्य के सपने संजोने के लिए कदम बढ़ाएँ । अपनी, आवाज से पूरी दुनिया को मुटठ् ी में कर लें । करियर की दृष्टि से आज का युवा वर्ग इस क्षेत्र में पदार्पण, करे । इसके लिए सभी को शुभकामनाएँ देता हूँ । तुम्हें भी धन्यवाद देता हूँ । तुम्हारे कारण मैं नवयुवकों को, आर.जे. संबंधी जानकारी प्रदान कर सका । तुम्हें भी भविष्य के लिए अनेकानेक शुभकामनाएँ देता हूँ ।, प्रगल्भ : धन्यवाद अनुराग जी ! आज आपने रेडियो जॉकी के क्षेत्र के विविध आयाम, विस्तृतता तथा रोजगार के, व्यापक अवसर, जैसे पहलुओं पर प्रकाश डालते हुए जो जानकारी प्रदान की, वह हमारे विद्यार्थियों के लिए, प्रेरक रहेगी । एक बार फिर बहुत-बहुत धन्यवाद तथा शुभकामनाएँ आपको भी !, , श्रोताओं, से संवाद, करना, , 96, , दो ग, ीतों, कड़ी के बीच, क, कार्य ा, , रेडियो जॉकी, के, कार्य, , ्कार, त, षा, क्, सा ेना, ल, , मेहम, ा, , कार्यक्रमों, को प्रस्तुत, करना, , ाध्यम, के म से, फोन, टेली े श्रोताओं, स, चीत, बात ना, कर, , नों,, अ, का तिथिय, परि, ों, करा चय, ना, , प्रगल्भ, , ०
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स्वाध्याय, पाठ पर आधारित, (१) आर.जे. के लिए आवश्यक गुण लिखिए ।, (२) सामाजिक सजगता निर्माण करने में आर.जे. का योगदान अपने शब्दों में लिखिए ।, (३) आर.जे. के महत्त्वपूर्ण कार्य पर प्रकाश डालिए ।, , व्यावहारिक प्रयोग, (१) ‘जलसंवर्धन’ के किसी कार्यकर्ता के साक्षात्कार हेतु संहिता तैयार कीजिए ।, (२) रेडियो जॉकी के रूप में ‘होली’ के अवसर पर काव्य वाचन प्रस्तुति के लिए कार्यक्रम तैयार कीजिए ।, , विषय वस्तु की अधिक-से-अधिक, जानकारी एकत्रित करना, पटकथा लिखना, और उसे याद करना, , प्रसारण से पूर्व, रेडियो जॉकी के कार्य, , तकनीकी समूह और निर्मिति समूह, सदस्यों के बीच ताल-मेल बिठाना, , कार्यक्रम की योजना बनाना, / पूर्वाभ्यास करना, , प्र, सा, र, ण, के, स, म, य, , ●, , कार्यक्रम की योजना बनाना तथा परिचय कराना ।, , ●, , स्टूडियो में आए अतिथियों से साक्षात्कार करना ।, , ●, , गीत बजाना ।, , ●, , संक्षेप में समाचार सुनाना, जैसे - ट्रैफिक का हाल, मौसम की जानकारी, महत्त्वपूर्ण घटनाएँ (Breaking News) ।, , ●, , फिल्मों की समीक्षा करना ।, , ●, , संहिता पढ़ना या श्रोताओं से बातचीत करना ।, , ●, , जरूरत पड़ने पर तुरंत कोई गीत, कविता या किस्सा सुनाना ।, , ●, , निर्धारित समय सारिणी के अनुसार कार्यक्रम चलाना, प्रतिक्रिया देना,, कार्यक्रम में परिवर्तन की जानकारी देना, समस्या आने पर तुरंत उसे सँभालना ।, , 97
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१७. ई-अध्ययन : नई दृष्टि, संकलन, , आलेख ः ‘आलेख’ एक गद्य लेखन विधा है जिसे वैचारिक गद्य रचना भी कह सकते हैं । किसी एक विषय पर तथ्यात्मक,, विश्लेषणात्मक अथवा विचारात्मक जानकारी आलेख में होती है । आलेख गद्य लेखन की वह विधा है जिसमें लेखक, अपनी बातों को स्वतंत्रतापूर्वक दुनिया के सामने प्रस्तुत करता है ।, पाठ परिचय ः वर्तमान में ज्ञान और सूचना एक नयी शक्ति के रूप में उभरकर आई है । सूचना का प्रसारण, ज्ञान प्राप्ति तथा, दैनंदिन कार्य की संपन्नता के मापदंड बदल गए हैं । मनुष्य अब जहाँ भी है, वहीं से ई-संसाधनों के माध्यम से कार्य कर रहा, है । इससे शिक्षा का क्षेत्र भी अछूता नहीं है । वर्तमान शिक्षा पद्धति में शिक्षक और विद्यार्थी अध्ययन अध्यापन के लिए, ई-संसाधनों का व्यापक और प्रभावी ढंग से प्रयोग कर रहे हैं । इंटरनेट, मोबाइल, कंप्यूटर, टैब आदि के द्वारा विद्य ार्थी, ज्ञान तथा सूचना प्राप्त कर रहे हैं, स्मार्ट बन रहे हैं । इस आलेख में ई-अध्ययन की संकल्पना, संसाधन, उसके प्रयोग की, विधियाँ, प्रयोग करते समय बरती जानेवाली सावधानियाँ आदि के बारे में महत्त्वपूर्ण जानकारी दी गई है । साथ ही भविष्य, में ई-अध्ययन की आवश्यकता को भी स्पष्ट किया गया है ।, , बार-बार आज हम यह सुन रहे हैं कि वर्तमानकालीन, विद्यार्थी मोबाइल, टीवी, इंटरनेट आदि आधुनिक, तकनीक के अधीन हो गए हैं । वर्तमान समाज में विद्यार्थियों, की यह समस्या बन गई है कि वे २4 घंटे मोबाइल के, मोहजाल में डूबे होने के कारण पुस्तकों से दूर हो गए हैं ।, मोबाइल उनके जीवन का हिस्सा बन गया है । विद्य ार्थी, आधुनिक तकनीक के साथ जुड़ने चाहिए, यह समय की, माँग है । हर चीज के सकारात्मक और नकारात्मक ऐसे दो, पहलू होते हैं । उसी प्रकार मोबाइल तथा आधुनिक तकनीक, के दो पहलू हैं । उनका जो सकारात्मक पहलू है, उसका, सदुपयोग विद्यार्थी कैसे करें, यह सोचना अनिवार्य है । हर, क्षेत्र में तंत्रज्ञान के माध्यम से क्रांति हुई है । सूचना एवं, तकनीकी क्रांति से शिक्षा क्षेत्र भी प्रभावित हुआ है ।, अध्ययन-अध्यापन में ई-अध्ययन ने नई दृष्टि प्रदान की, है ।, , 9988, , ई-अध्ययन से हम शिक्षा क्षेत्र में कई सारे सकारात्मक, बदलाव ला सकते हैं । आज तक विद्यार्थी केवल हाथ में, पुस्तक लेकर ज्ञान प्राप्त कर सकते थे परंतु आज एक बटन, दबाते ही ज्ञान का भंडार उसके सामने बैठे-बिठाए प्रस्तुत, होता है । आज इंटरनेट की कई सारी वेबसाइट्स से ज्ञान के, दरवाजे खुले हैं । कंप्यूटर हमारे जीवन का एक हिस्सा बन, गया है । सौ व्यक्तियों का काम यह कंप्यूटर अकेला कर, रहा है । ‘कम समय में बहुत सारा काम’ यही कंप्यूटर की, विशेषता है । आज के विद्यार्थी इस ज्ञान देने वाले कंप्यूटर, को तो ज्ञान के स्रोत के रूप में देख रहे हैं । उसके सहारे, हमारी बहुत-सी पढ़ाई होती है । ई-लर्निंग से हम कठिन से, कठिन जानकारी आसानी से विद्यार्थियों तक पहुँचा सकते, हैं । ई-लर्निंग की सुविधा इंटरनेट द्वारा हमें मिलती है ।, इसलिए पहले हमें इंटरनेट क्या है? इस संदर्भ में संक्षेप में, जानकारी होना अनिवार्य है ।, इंटरनेट शब्द अंग्रेजी इंटरनेशनल और नेटवर्क इन दो, शब्दों को जोड़कर बनाया गया है । जिसका अर्थ है, विश्वव्यापी ‘अंतरजाल’ । आज इंटरनेट विचारों की स्वतंत्र, अभिव्यक्ति का सर्वाधिक प्रभावी माध्यम है । इंटरनेट एक, ऐसी व्यवस्था है जो सारे संसार के सरकारी, प्राइवेट, संस्थानों, व्यावसायिक प्रतिष्ठानों और विश्वविद्यालयों, के लाखो कंप्यूटर और व्यक्तिगत कंप्यूटरों को इस तरह, जोड़ रही है जिससे इन कंप्यूटरों में संजोया डाटा और
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सूचनाओं का आदान-प्रदान तुरंत सफलतापूर्वक हो ।, भारत में इंटरनेट का कार्य और महत्त्व निरंतर बढ़ रहा है ।, भारत में अनेक राज्य, अनेक भाषाएँ तथा अनेक परंपराएँ, होने के कारण एक-दूसरे के साथ-साथ सहजता से संपर्क, बनाना बड़ा ही कठिन कार्य था । अब इंटरनेट के कारण ये, सभी कठिनाइयाँ दूर हुई हैं । इंटरनेट द्वारा संदेश के, आदान-प्रदान से कार्य में गति आई और प्रगति भी हुई ।, विभिन्न देश तथा व्यक्तियों को करीब लाने में इंटरनेट की, महत्त्वपूर्ण भूमिका है । भारत में इंटरनेट के बढ़ते विस्तार के, कारण निजी क्षेत्र के साथ ग्रामपंचायत से लेकर राष्ट्रपति, भवन तक इंटरनेट का उपयोग हो रहा है । यह हमारे, ‘डिजिटल इंडिया’ की तरफ बढ़ने की सुखद स्थिति है और, खुशी की बात यह है कि भारत में प्रारंभ में इंटरनेट संचालन, के लिए केवल अंग्रेजी भाषा का ही प्रयोग होता था, अब, भारत जैसे बहुभाषी देश में कंप्यूटर और इंटरनेट की, उपयोगिता को ध्यान में रखकर हिंदी तथा अन्य प्रादेशिक, भाषाओं के साॅफ्टवेअर तैयार किए गए हैं । आज करोड़ों, लोग हिंदी में इंटरनेट का उपयोग कर रहे हैं और इंटरनेट की, कई वेबसाइटों ने भी हिंदी के प्रचार-प्रसार में अपना योगदान, दिया है ।, इंटरनेट सूचना और जानकारी का एक विशाल भंडार, है जो भिन्न-भिन्न वेबसाइट के रूप में उपलब्ध है । जिस, किसी विषय पर हमें सूचना तथा ज्ञान चाहिए वह इंटरनेट, द्वारा हमें तुरंत प्राप्त होता है इसलिए ई-लर्निंग तथा, ई-अध्ययन हमारे लिए वरदान के रूप में साबित हुआ है ।, आज के विद्यार्थी इस ई-अध्ययन में बड़ी रुचि रखते, हैं । दृक्-श्राव्य माध्यम से यह पढ़ाई रोचक होती है ।, मनोरंजन-ज्ञान का सुंदर समन्वय ई-अध्ययन में होता है ।, जिसमें संगीत का उपयोग करने से पढ़ाई और अधिक मात्रा, में आनंददायी होती है । ई-लर्निंग में यह भी सुविधा है कि, बच्चे अपने मोबाइल, कंप्यूटर पर मनचाहे लेखक का, साहित्य पढ़ सकते हैं । ‘ई-बुक’, ‘ई-मैगजिन’ जैसे शब्द, हर पल हम उच्चारित करते हैं, सुनते हैं । जहाँ चाहे वहाँ, बैठकर हम पुस्तकें, पत्रिकाएँ पढ़ सकते हैं । कई बार ऐसा, होता है कि कोई पुस्तक हमें पढ़नी होती है पर वह हमारे, ग्रंथालयों में नहीं मिलती । तब उसे हम ई-कॉपी द्व ारा पढ़, , सकते हैं । पुस्तक को सँभालकर रखने, गुम हो जाने या फट, जाने की संभावना इसमें नहीं होती है । मनचाहे पुस्तक को, अपने कंप्यूटर में, मोबाईल में संकलित कर सुरक्षित रख, सकते हैं । ई-साहित्य से एक पल में हमारे सामने ज्ञान का, भंडार खुल जाता है । ई-अध्ययन से हमें शिक्षा की तरफ, देखने की एक नई दृष्टि मिल गई है । ई-पुस्तकों के साथसाथ आज ई-ग्रंथालय की नई सुविधा प्राप्त हुई है ।, ई-ग्रंथालय वेबसाइट अथवा एप पाठकों तक पुस्तकों को, पहुँचाने का काम करते हैं । यह ग्रंथालय शुल्क सहित तथा, निशुल्क दोनों तरीके से उपलब्ध है । ऐसे ग्रंथालयों में, ई-पुस्तकें, ई-वीडियो, वार्तापट आदि द्वारा ज्ञान उपलब्ध, होता है । आप यह सुविधा हर दिन, हर समय, जब चाहे, उसका लाभ उठा सकते हैं । सबसे बड़ी बात यह है कि इससे, केवल हमारे देश के लेखकों का ही साहित्य नहीं तो विदेशी, लेखकों के साहित्य को भी हम पढ़ सकते हैं । आज तक, कई सारे प्रकाशक पुस्तक बनते ही वेबसाइट द्वारा पाठकों, को पढ़ने के लिए उसे ई-पुस्तक द्व ारा उपलब्ध कराने की, सुविधा दे रहे हैं तथा ये पुस्तकें चाहे तो हम किताब के रूप, में पढ़ भी सकते हैं तथा आवश्यकतानुसार मल्टीमीडिया, द्वारा देख, सुन सकते हैं । ई-पुस्तक वापस लौटाने की, जरूरत नहीं होती ।, आज का युग प्रतियोगिता का युग है । विद्यार्थियों, को कई सारी प्रतियोगिताएँ, परीक्षा की तैयारियाँ करनी, होती है और इन परीक्षाओं के लिए ई-अध्ययन एक वरदान, के रूप में विद्यार्थियों के लिए सहायक बना हुआ है ।, प्रतियोगिता, अलग-अलग परीक्षाओं की जानकारी तुरंत, ई-अध्ययन से हम प्राप्त कर सकते हैं । आज हर विषय का, ज्ञान दिन-प्रतिदिन बदल रहा है । जैसे - सामाजिक,, राजनीतिक, आर्थिक, सामान्य ज्ञान, खेल-कूद की, जानकारी, संगीत क्षेत्र का ज्ञान आदि विषयों में तेजी से, बदलाव आ रहा है और इन सबकी जानकारी ई-अध्ययन, से हम ले सकते हैं । यह जानकारी हम विभिन्न वेबसाइट, द्वारा प्राप्त कर सकते हैं ।, इंटरनेट द्वारा समाज को पर्यावरण, किसानों को, खेती की जानकारी, महिलाओं को खाद्य-व्यंजन की, जानकारी तथा स्वस्थ निरोगी रहने हेतु योगा, कसरत आदि, , 99
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की भी जानकारी हम ले सकते हैं । आज ऐसा एक भी क्षेत्र, नहीं कि जिसकी जानकारी हमें ई-लर्निंग से ना मिलती, हो ! यह सारी जानकारी लेते-लेते कभी-कभी वेबसाइट, खुलने में दिक्कत आती है । ऐसे समय में वेबसाइट में, अकाउंट बनाना पड़ता है । उसके लिए अपने निजी विवरण, के साथ पंजीकरण फॉर्म भरना पड़ता है । इसके जवाब में, आपको एक ई-मेल आता है जिसमें एक ‘लिंक’ दी होती, है इस लिंक को क्लिक करके आप के अकाउंट की पुष्टि, होती है । इसके बाद आप इच्छित वेबसाइट पर लॉग इन, कर सकते हैं । इसके साथ अपना युजर नेम और पासवर्ड, डालकर आप किसी भी मॉड्यूल को देखकर अध्ययन कर, सकते हैं । तकनिकी दुनिया में इंटरनेट एक किताब है और, वेबसाइट उसके अध्याय । जानकारी के लिए उस साइट का, नाम टाइप करने से उस विषय की पूरी जानकारी आपको, आपके कंप्यूटर द्वारा मिल जाती है । वेबसाइट पते के, अंतिम तीन अक्षर महत्त्वपूर्ण होते हैं जो यह बताते हैं कि, आपने जो साईट खोली है वह किस प्रकार की है । यदि, आपके पते के अंतिम तीन अक्षर .org है तो यह किसी गैर, , व्यावसायी संस्थान और समितियों की साइट है । यदि यह, .edu है तो इसका मतलब है कि आप किसी शैक्षिक, संस्थान की साइट खोल रहे हैं और यदि .com है तो यह, कमर्शियल ऑर्गनायजेशन है । इस प्रकार ई-अध्ययन आज, के युग की सबसे अद्भ ुत, आश्चर्यजनक संकल्पना है ।, इससे ज्ञान का विस्तार तेजी से बढ़ता जा रहा है । ई-अध्ययन, करते-करते इस क्षेत्र में ज्ञान के साथ-साथ हमें हमारा, करियर करने का अवसर भी प्राप्त हो सकता है । ज्ञानमनोरंजन-करिअर ऐसा त्रिवेणी संगम यानि ई-अध्ययन, है जो युवा पीढ़ी के लिए शिक्षा क्षेत्र की एक नई दृष्टि प्रदान, कर रहा है ।, अत: कहा जा सकता है कि भविष्य में प्रभावी रूप से, कार्य करने हेतु अधिक-से-अधिक विद्यार्थियों को, ई-अध्ययन अपनाना चाहिए । ई-अध्ययन से हमारा ज्ञान, अद्यतन रहता है । समय, श्रम और आर्थिक बचत बड़े, पैमाने पर होती है । उज्ज्वल भारत तथा उज्ज्वल भविष्य के, लिए सभी को ई-अध्ययन का उपयोग करना चाहिए ।, , जानकारी, ई-मेल E-mail, , : कंप्यूटर द्व ारा जो पत्र/सूचना भेजी जाती है, वह ‘ई-मेल’ है ।, , इन-बॉक्स In Box, , : किसी और के द्व ारा भेजा गया ई-मेल हमें ‘इन-बॉक्स’ में प्राप्त होता है ।, , सेन्ट आइटम्स Sent Items : जो मेल हम दूसरों को भेजते हैं उसकी प्रति ‘सेंट आइटम्स’ में रहती है ।, आउट बॉक्स Out Box, , : जो ई-मेल मैसेज दूसरों को भेजते हैं वह उस व्यक्ति के पास पहुँचने तक, ‘आउट-बॉक्स’ में रहता है ।, , नया संदेश बनाना, , : आउट लुक का प्रयोग करके जब नया संदेश बनाना चाहते हैं तब एक खाली, फॉर्म ‘मेल’ कहलाता है । यह फॉर्म टेंप्लेट की तरह है जिसकी सहायता से, संदेश बना सकते हैं ।, , ई-साहित्य पढ़ते समय मूलरचना, है या नहीं, यह देखना जरूरी है ।, , ई-लर्निंग द्वारा स्वीकृत सामग्री का, सत्यापन करना चाहिए ।, , सावधानियाँ, बहुत-सी वेबसाइट्स का प्रयोग करने के, लिए स्वीकृति लेना अनिवार्य होता है ।, , प्रतिबंधित या विवादास्पद नाम, आशय या, मानचित्रों का प्रयोग टालना चाहिए ।, ०, , 100
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परिशिष्ट, मुहावरे, * अंकुर जमाना , * अपने पैरों पर खड़ा होना , * आँच न आने देना , * आँखों में सैलाब उमड़ना , * आँखें फटी रहना , * आईने में मुँह देखना , * आसमान के तारे तोड़ना , * ईंट का जवाब पत्थर से देना , * उधेड़ बुन में लगना , * एक आँख से देखना , * एक और एक ग्यारह होना , * कदम बढ़ाना , * कमर कसना , * कमर सीधी करना , * कलई खुलना , * कान देना , * किस्मत खुलना , * गले का हार होना , * गागर में सागर भरना , * घी के दीये जलाना , * चिकना घड़ा होना , * चुटकी लेना , * जबान देना , * झंडे गाड़ना , * डंका पीटना , * तितर-बितर होना , * हजारों दीप जल उठना , * रुपये दाँत से पकड़ना , * दूध का दूध, पानी का पानी करना, , प्रारंभ करना ।, आत्मनिर्भर होना ।, संकट न आने देना ।, - फूट-फूटकर रोना ।, आश्चर्यचकित रह जाना ।, अपनी योग्यता जाँचना ।, असंभव कार्य करना ।, कड़ा जवाब देना, सोच-विचार करना ।, समान रूप से देखना ।, एकता में बल होना ।, - प्रगति करना ।, पूरी तरह तैयार होना ।, आराम करना, सुस्ताना ।, - भेद प्रकट होना ।, ध्यान से सुनना ।, - भाग्य चमकना ।, अत्यंत प्रिय होना ।, थोड़े में बहुत कहना ।, खुशी मनाना ।, - निर्लज्ज होना ।, व्यंग्य करना ।, - वचन देना ।, पूर्ण रूप से प्रभाव जमाना ।, - प्रचार करना ।, - बिखर जाना ।, आनंदित हो उठना ।, कंजूसी करना ।, इनसाफ करना, न्याय करना ।, , 102
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* नाम कमाना , * पाँचों उंगलियाँ घी में होना , * फूला न समाना , * बीड़ा उठाना , * बाँछें खिलना , * मरजीवा होना , * मल्हार गाना , * राई का पहाड़ बनाना , * लोहा मानना , * सफेद झूठ बोलना , * सिर खपाना , * सिर पर सेहरा बाँधना , * सोना उगलना , * साै बात की एक बात , * हाथ-पैर मारना , * हौसला बुलंद होना , * श्रीगणेश करना , * दाँतों तले उँगली दबाना , * अंधे की लाठी होना , * आग से खेलना , * मुटठ् ी गर्म करना , * इतिश्री होना , * उड़ती चिड़िया पहचानना , * हथेली पर सरसों जमाना , * कंचन बरसना , * कानों कान खबर न होना , * गाल बजाना , * घड़ों पानी पड़ना , * चिकनी-चुपड़ी बातें करना , * छाती पर साँप लोटना , * तूती बोलना , * दो टूक जवाब देना , , यश प्राप्त करना ।, हर तरफ से लाभ होना ।, अत्यधिक प्रसन्न होना ।, - किसी काम को करने की ठान लेना ।, अत्यधिक प्रसन्न होना ।, कठोर साधना से लक्ष्य तक पहुँचने वाला होना ।, आनंद मनाना ।, बात को बढ़ा-चढ़ाकर कहना ।, श्रेष्ठता स्वीकार करना ।, पूरी तरह से झूठ बोलना ।, ऐसे काम में समय लगाना जिसमें कोई लाभ नहीं ।, अधिक यश प्राप्त करना ।, बहुत अधिक लाभ होना ।, असली बात, निचोड़ ।, बहुत प्रयत्न करना ।, उत्साह बना रहना ।, कार्य आरंभ करना ।, आश्चर्यचकित होना ।, - निराधार का सहारा बनना ।, - मुसीबत मोल लेना ।, रिश्वत देना ।, समाप्त होना ।, - तीक्ष्ण बुद्धि वाला होना ।, कठिन कार्य करना ।, धन-दौलत से परिपूर्ण होना ।, - बिल्कुल पता न चलना ।, अपनी प्रशंसा आप करना ।, बहुत लज्जित होना ।, - चापलूसी करना, मीठी-मीठी बातें बोलना ।, ईर्ष्या होना ।, - प्रभाव होना ।, स्पष्ट बोलना ।, , * नुक्ताचीनी करना , , -, , 103, , आलोचना करना ।
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भावार्थ : पाठ्यपुस्तक पृष्ठ क्रमांक २० : पाठ - भक्ति महिमा - संत दादू दयाल, * जो माया-मोह का रस पीते रहे, उनका मक्खन-सा हृदय सूखकर पत्थर हो गया किंतु जिन्होंने भक्ति रस का पान, किया, उनका पत्थर हृदय गलकर मक्खन हो गया । उनका हृदय प्रेम से भर गया ।, * अहंकारी व्यक्ति से प्रभू दूर रहता है। जो व्यक्ति प्रभुमय हो जाता है, फिर उसमें अहंकार नहीं होता । मनुष्य का, हृदय एक ऐसा सँकरा महल है, जिसमें प्रभु और अहंकार दोनों साथ-साथ नहीं रह सकते । अहंकार का त्याग, करना अनिवार्य है ।, * दादू मगन होकर प्रभु का कीर्तन कर रहे हैं । उनकी वाणी ऐसे मुखरित हो रही है जैसे ताल बज रहा हो ।, यह मन प्रेमोन्माद में नाच रहा है । दादू के सम्मुख दीन-दुखियों पर विशेष कृपा करने वाला प्रभु खड़ा है ।, * जिन लोगों ने भक्ति के सहारे भवसागर पार कर लिया, उन सभी की एक ही बात है कि भक्ति का संबल लेकर, ही सागर को पार किया जा सकता है । सभी संतजन भी यही बात कहते हैं । अन्य मार्गदर्शक, जीवन के उद्ध ार, के लिए जो दूसरे अनेक मार्ग बताते हैं, वे भ्रम में डालने वाले हैं । प्रभु स्मरण के सिवा अन्य सभी मार्ग दुर्गम, हैं ।, * प्रेम की पाती (पत्री) कोई विरला ही पढ़ पाता है । वही पढ़ पाता है, जिसका हृदय प्रेम से भरा हुआ है । यदि, हृदय में जीवन और जगत के लिए प्रेम भाव नहीं है तो वेद-पुराण की पुस्तकें पढ़ने से क्या लाभ?, * कितने ही लोगों ने वेद-पुराणों का गहन अध्ययन किया और उसकी व्याख्या करने में लिख-लिखकर कागज, काले कर दिए लेकिन उन्हें जीवन का सच्चा मार्ग नहीं मिला । वे भटकते ही रहे, जिसने प्रिय प्रभु का एक अक्षर, पढ़ लिया, वह सुजान-पंडित हो गया ।, * मेरा अहंकार - ‘मैं’ ही मेरा शत्रु निकला, जिसने मुझे मार डाला, जिसने मुझे पराजित कर दिया । मेरा अहंकार, ही मुझे मारने वाला निकला, दूसरा कोई और नहीं ।, , , अब मैं स्वयं इस ‘मैं’ (अहंकार) को मारने जा रहा हूँ । इसके मरते ही मैं मरजीवा हो जाऊँगा । मरा हुआ था फिर, से जी उठूँगा । एक विजेता बन जाऊँगा ।, , * हे सृष्टिकर्ता ! जिनकी रक्षा तू करता है, वे संसार सागर से पार हो जाते हैं ।, , , और जिनका तू हाथ छोड़ देता है, वे भवसागर में डूब जाते हैं । तेरी कृपा सज्जनों पर ही होती है ।, , * रे नासमझ ! तू क्यों किसी को दुख देता है । प्रभु तो सभी के भीतर हैं । क्यों तू अपने स्वामी का अपमान करता, है? सब की आत्मा एक है । आत्मा ही परमात्मा है । परमात्मा के अलावा वहाँ दूसरा कोई नहीं ।, * इस संसार में केवल ऐसे दो रत्न हैं, जो अनमोल हैं । एक है सबका स्वामी-प्रभु । दूसरा स्वामी का संकीर्तन करने, वाला संतजन, जो जीवन और जगत को सुंदर बनाता है ।, , , इन दो रत्नों का न कोई मोल है, न कोई तोल ! न इनका मूल्यांकन हो सकता है, न इन्हें खरीदा जा सकता है,, न तौला जा सकता है ।, , 10, 4, 104
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रेडियो जॉकी, , भाषा पर, अधिकार, संहिता लिखने, की क्षमता, , स्वयं की, शैली, , रेडियो जॉकी के, लिए आवश्यक, गुण, , हाजिरजवाबी, , स्वर की गुणवत्ता, और नियंत्रण, , कार्यक्रम में, आवश्यकतानुसार, गंभीरता तो कहीं, हास–परिहास निर्माण, करने की क्षमता, , लिखित शब्दों को, सूक्ष्मता से पढ़ना, , रेडियो संहिता, , , रेडियो श्राव्य माध्यम है । इसलिए श्राव्य माध्यम के अनुकूल संहिता होती है । इसमें शब्दों के साथ ध्वनि संकेत,, , ठहराव, मौन, अंतराल आदि के संकते भी होने चाहिए । गीत- संगीत के बीच में चलनेवाली आर.जे. की बातचीत कम, शब्दों में रोचक, चटपटी और मिठास भरी होनी चाहिए । भाषा प्रवाहमयी हो । शब्द सरल हों । संहिता लयात्मकता के, साथ कार्यक्रम को आगे बढ़ाने में सहायक होनी चाहिए । रेडियो संहिता के तीन हिस्से होते हैं । आरंभ, मध्य और, अंत । आरंभ जितना आकर्षक, उतना ही अंत भी आकर्षक होना चाहिए । मध्य में विषयवस्तु कार्यक्रम की लंबाई पर, निर्भर है ।, हिंदी में रेडियो चैनल के लिए जो संहिता होती है, वह बहुत ही सधी हुई होती है । रेडियो की लोकप्रियता का, सबसे बड़ा कारण है – कार्यक्रमों की प्रस्तुति, संयोजन और भाषा का नयापन । संहिता की भाषा गतिशील और, अनौपचारिक होनी चाहिए । कुछ चैनलों पर जिस हिंदी भाषा का प्रयोग किया जाता है वह ‘प्रोमो’ हिंदी है । ‘प्रोमो’, अर्थात ‘पोस्ट मॉडर्न’ – उत्तर आधुनिक हिंदी । इस हिंदी भाषा में चुलबुलापन, मसखरापन, मस्ती और लय होती है ।, इसकी अपनी एक अलग पहचान है ।, , 106
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