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Chapter 17 शिरीष के फूल, पाठ्यपुस्तक के प्रश्न-अभ्यास, पाठ के साथ, प्रश्न 1., लेखक ने शिरीष को कालजयी अवधूत (, संन्यासी) की तरह क्यों माना है? (CBSE-, 2010), अथवा, शिरीष को 'अद्भुत अवधूत' क्यों कहा गया है?, (CBSE-2014, 2017), उत्तरः, लेखक ने शिरीष को कालजयी अवधूत कहा, है। अवधूत वह संन्यासी होता है जो विषय-, वासनाओं से ऊपर उठ जाता है, सुख-दुख हर, स्थिति में सहज भाव से प्रसन्न रहता है तथा, फलता-फूलता है। वह कठिन परिस्थितियों में
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प्रश्न 3., विवेदी जी ने शिरीष के माध्यम से कोलाहल व, संघर्ष से भरी स्थितियों में अविचल रहकर, जिजीविषु बने रहने की सीख दी है। स्पष्ट करें।, (CBSE-2008), उत्तरः, द्रविवेदी जी ने शिरीष के माध्यम से कोलाहल, व संघर्ष से भरी जीवन-स्थितियों में अविचल, रहकर जिजीविषु बने रहने की सीख दी है।, शिरीष का वृक्ष भयंकर गरमी सहता है, फिर, भी सरस रहता है। उमस व लू में भी वह फूलों, से लदा रहता है। इसी तरह जीवन में चाहे, जितनी भी कठिनाइयाँ आएँ मनुष्य को सदैव, संघर्ष करते रहना चाहिए। उसे हार नहीं माननी, चाहिए। भ्रष्टाचार, अत्याचार, दंगे, लूटपाट के, बावजूद उसे निराश नहीं होना चाहिए तथा, प्रगति की दिशा में कदम बढ़ाते रहना चाहिए।
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प्रश्न 4., हाय, वह अवधूत आज कहाँ है! ऐसा कहकर, लेखक ने आत्मबल पर देहबल के वर्चस्व की, वर्तमान सभ्यता के संकट की ओर संकेत किया, है। कैसे?, उत्तर:, लेखक कहता है कि आज शिरीष जैसे अवधूत, नहीं रहे। जब-जब वह शिरीष को देखता है।, तब-तब उसके मन में 'हूक-सी' उठती है। वह, कहता है कि प्रेरणादायी और आत्मविश्वास, रखने वाले अब नहीं रहे। अब तो केवल देह को, प्राथमिकता देने वाले लोग रह रहे हैं। उनमें, आत्मविश्वास बिलकुल नहीं है। वे शरीर को, महत्त्व देते हैं, मन को नहीं। इसीलिए लेखक ने, शिरीष के माध्यम से वर्तमान सभ्यता का वर्णन, किया है।, प्रश्न 5., कवि (साहित्यकार) के लिए अनासक्त योगी
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प्रश्न 5., कवि (साहित्यकार) के लिए अनासक्त योगी, की स्थित प्रज्ञता और विदग्ध प्रेम का हृदय एक, साथ आवश्यक है। ऐसा विचार प्रस्तुत कर, लेखक ने साहित्य कर्म के लिए बहुत ऊँचा, मानदंड निर्धारित किया है। विस्तारपूर्वक, समझाइए।, उत्तर:, विचार प्रस्तुत करके लेखक ने साहित्य-कम के, लिए बहुत ऊँचा मानदंड निर्धारित किया हैं।, विस्तारपूर्वक समझाएँ/ उत्तर लेखक का, मानना है कि कवि के लिए अनासक्त योगी की, स्थिर प्रज्ञता और विदग्ध प्रेमी का हृदय का, होना आवश्यक है। उनका कहना है कि महान, कवि वही बन सकता है जो अनासक्त योगी की, तरह स्थिर-प्रज्ञ तथा विदग्ध प्रेमी की तरह, सहृदय हो। केवल छंद बना लेने से कवि तो हो, सकता है, किंतु महाकवि नहीं हो सकता।, संसार की अधिकतर सरस रचूनाएँ अवधतों के