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सपने का भी हक् नहीं [डॉ. जे . बाबू ], , 1.मगर नींद के टूटने के पूर्व ही नोटीस बैंक की आ, धमकी सपने में। कवि यहाँ किस सामाजिक, सच्चाई की ओर इशारा करते हैं?, , उत्तर:, , गरीब लोग बैंक से कर्ज लेते हैं और उसका, भुगतान समय पर नहीं कर पाते हैं। अंत में बैंक से, आनेवाली नोटीस की भीषणता में जीने के लिए वे, विवश हो जाते हैं। कविता यही सामजिक सच्चाई, की ओर प्रकाश डालती है।
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2.कविता की आस्वादन टिप्पणी लिखें।, उत्तर:, , हिंदीतर प्रदेशों के लेखकों में डॉ.जे बाबू का, महत्वपूर्ण स्थान है। “सपने का भी हक नहीं” उनकी, एक महत्वपूर्ण कविता है। इसमें साधारण से, साधारण एक मज़दूरिन की अवस्था का चित्रण है।, , एक कमरेवाली झोंपड़ी में रहनेवाली गरीब, मज़दूरिन एक विशाल घर की सपना देखती है।, नये घर में खाने, पीने, सोने से लेकर बैठक, रसोई, और पूजा के लिए भी अलग-अलग कमरे हैं। नये, घर की छत काँक्रीट की है। दीवार और खिड़की, पीले रंग से सजा है। ग्राइन्टर, फ्रिड्ज और मैक्रोवेव, सभी से युक्त रसोई अत्यंत शानदार लग रहा है।, मगर अचानक सपने में ही एक डरावनी सच्चाई, उसके आगे बैंक के नोटीस के रूप में आ धमती है।, इसके साथ साथ असकी सारे सपने छिन्न-भिन्न हो, जाती है और जाग जाती है।, , इस कविता में डॉ.जे बाबू ने एक कड़वी, सच्चाई को , यहाँ प्रस्तुत किया है। गरीब लोग बैंक, से कर्ज लेते हैं और उसका भुगतान समय पर नहीं, कर पाते हैं। अंत में बैंक से आनेवाली नोटीस की, भीषणता में जीने के लिए वे विवश हो जाते हैं।, कविता यही सामजिक सच्चाई की ओर प्रकाश, डालती है।