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यह एक कपष्टदायक सचाई है कि एक, स्वतंत्र साहित्यिक विधा के रूप में, , , , 2 हमर रेडियो नाटक हिंदी में अभी तक कोई, जगह नहीं बना पाया है।, कैसे बनता है नेमिचंद जैन, , मशहूर रंगकर्मी एवं साहित्यकार, , रेडियो नाटक, , इस पाठ में..., , » रेडियो नाटक की परंपरा, , » सिनेमा, रंगमंच और रेडियो नाटक, समानता और, अंतर, , » रेडियो नाटक में ध्वनि संकेतों की महत्ता, , » रेडियो नाटक की अवधि और पात्र, , , , आज से कुछ दशक पहले एक ज़माना ऐसा, भी था, जब दुनिया में न टेलीविज्ञन था, न, कंप्यूट।। सिनेमा हॉल और थिएटर थे तो,, लेकिन उनकी संख्या आज के मुकाबले, काफ़ी कम होती थी और एक आदमी के, लिए वे आसानी से उपलब्ध भी नहीं थे।, ऐसे समय में घर में बैठे मनोरंजन का जो, सबसे सस्ता और सहजता से प्राप्त साधन, था, वो था-रेडियो। रेडियो पर खबरें आती, थीं, ज्ञानवर्धक कार्यक्रम आते थे, खेलों का, आँखों देखा हाल प्रसारित होता था, एफ़.एम., चैनलों की तरह गीत-संगीत की भरमार, रहती थी। टी.वी. धारावाहिकों और टेलीफ़िल्मों, की कमी को पूरा करते थे, रेडियो पर आने, वाले नाटक।, , हिंदी साहित्य के तमाम बडे नाम,, साहित्य रचना के साथ-साथ रेडियो स्टेशनों, के लिए नाटक भी लिखते थे। उस समय ये, , 2020-21
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अभिव्यक्ति और माध्यम, , बड़े सम्मान की बात मानी जाती थी।, हिंदी व अन्य भारतीय भाषाओं के नाट्य, आंदोलन के विकास में रेडियो नाटक, की अहम भूमिका रही है। हिंदी के कई, नाटक जो बाद में मंच पर भी बेहद, कामयाब रहे, मूलतः: रेडियो के लिए, लिखे गए थे। धर्मबीर भारती कृत, अंधा बुग और मोहन राकेश का आषाढ़, का एक दिन इसके श्रेष्ठ उदाहरण हैं।, लेकिन फिलहाल हम इस पर ध्यान देंगे, कि रेडियो नाटक लिखे कैसे जाते हैं?, , सिनेमा और रंगमंच की तरह रेडियो, नाटक में भी चरित्र होते हैं उन चित्रों, के आपसी संवाद होते हैं और इन्हीं, संवादों के ज़रिये आगे बढ़ती है कहानी। बस सिनेमा और रंगमंच की तरह रेडियो नाटक में, विजुअल्स अर्थात दृश्य नहीं होते।, , यही सबसे बड़ा अंतर है, रेडियो नाटक तथा सिनेमा या रंगमंच के माध्यम में। रेडियो पूरी, तरह से श्रव्य माध्यम है इसीलिए रेडियो नाटक का लेखन सिनेमा व रंगमंच के लेखन से थोड़ा, भिन्न भी है और थोड़ा मुश्किल भी। आपको सब कुछ संवादों और ध्वनि प्रभावों के माध्यम से, संप्रेषित करना होता है। यहाँ आपकी सहायता के लिए न मंच सज्जा तथा वस्त्र सज्जा है और न, ही अभिनेता के चेहरे की भाव-भंगिमाएँ। वरना बाकी सब कुछ वैसा ही है। एक कहानी, कहानी, का वही ढाँचा, शुरुआत-मध्य-अंत, इसे यूँ भी कह सकते हैं, परिचय-द्वंद्र-समाधान। बस ये सब, होगा आवाज्ञ के माध्यम से। कहानी की विस्तृत जानकारी आपको कथालेखन और नाट्यलेखन के, अध्यायों से मिल ही गई होगी।, , सबसे पहले बारी आती है कहानी चुनने की। कहानी आपकी मौलिक हो या चाहे किसी और, स्रोत से ली हुई। उसमें निम्न बातों का ध्यान ज़रूर रखना होगा, कहानी ऐसी न हो जो पूरी तरह से एक्शन अर्थात हरकत पर निर्भर करती हो। क्योंकि रेडियो, पर बहुत ज़्यादा एक्शन सुनाना उबाऊ हो सकता है। मान लीजिए आपकी पूरी कहानी का आधार, पीछा करना है। अपराधी अपराध करके भाग रहा है पुलिस उसके पीछे लगी है और बीच-बीच, में दिलचस्प, नाटकीय घटनाएँ घटती हैं। अब सिनेमा में इसे बड़ी खूबसूरती से पेश किया जा, सकता है, लेकिन रेडियो में ये कथानक शायद अपना पूरा असर बनाने में कामयाब न हों। क्योंकि, सिर्फ़ आवाज़्ों की मदद से आप अपराधी और पुलिस की भाग-दौड़ से पैदा होने वाले रोमांच का, सृजन नहीं कर पाएँगे या मान लीजिए आपकी कहानी क्रिकेट या फ़ुटबाल जैसे खेल के इर्द-गिर्द, बुनी हुई है, अब इस पर अच्छा सिनेमा तो बन सकता है, लेकिन रेडियो नाटक नहीं। इसलिए, कहानी का चुनाव अपने माध्यम को समझते हुए करिए।, , , , , , 2020-21
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कैसे बनता है रेडियो नाटक, , दूसरी बात, आमतौर पर रेडियो नाटक की अवधि 15 मिनट से 30 मिनट होती है। उसके, दो कारण हैं, श्रव्य माध्यम में नाटक या वार्ता जैसे कार्यक्रमों के लिए मनुष्य की एकाग्रता की, अवधि 15-30 मिनट ही होती है, इससे ज़्यादा नहीं। दूसरे, सिनेमा या नाटक में दर्शक अपने घरों, से बाहर निकल कर किसी अन्य सार्वजनिक स्थान पर एकत्रित होते हैं इसका मतलब वो इन, आयोजनों के लिए एक प्रयास करते हैं और अनजाने लोगों के एक समूह का हिस्सा बनकर, प्रेक्षागृह में बैठते हैं। अंग्रेज़ी में इन्हें केपटिव ऑडिएंस कहते हैं, अर्थात एक स्थान पर कैद किए, गए दर्शक। जबकि टी.वी. या रेडियो ऐसे माध्यम हैं कि आमतौर पर इंसान अपने घर में अपनी, मरज़ी से इन यंत्रों पर आ रहे कार्यक्रमों को देखता-सुनता है। सिनेमाघर या नाट्यगृह में बैठा दर्शक, थोड़ा बोर हो जाएगा, लेकिन आसानी से उठ कर जाएगा नहीं। पूरे मनोयोग से जो कार्यक्रम देखने, आया है, देखेगा। जबकि घर पर बैठ कर रेडियो सुननेवाला श्रोता मन उचटते ही किसी और स्टेशन, के लिए सुई घुमा सकता है या उसका ध्यान कहीं और भी भटक सकता है। इसलिए अमूमन, रेडियो नाटक की अवधि छोटी होती है और अगर आपकी कहानी लंबी है तो फिर वह एक, धारावाहिक के रूप में पेश की जा सकती है, जिसकी हर कड़ी 15 या 30 मिन्रट की होगी। यहाँ, एक बात और समझ लीजिए। रेडियो पर निश्चित समय पर निश्चित कार्यक्रम आते हैं, इसलिए, उनकी अवधि भी निश्चित होती है 15 मिनट, 30 मिनट, 45 मिनट, 60 मिनट वगैरह।, , अब क्योंकि आपके रेडियो नाटक की अवधि ही सीमित है-तो फिर अपने-आप ही पात्रों की, संख्या भी सीमित हो जाएगी। क्योंकि श्रोता सिर्फ़ आवाज़ के सहारें चरित्रों को याद रख पाता हे,, ऐसी स्थिति में रेडियो नाटक में यदि बहुत ज़्यादा किरदार हैं तो उनके साथ एक रिश्ता बनाए रखने, में श्रोता को दिक्कत होगी। अगर संख्याओं में बात करनी है तो हम इस प्रकार कह सकते हैं, 15, मिनट की अवधि वाले रेडियो नाटक में पात्रों की अधिकतम संख्या 5-6 हो सकती है। 30-40, मिनट की अवधि के नाटक में 8 से 12 पात्र। अगर एक घंटे या उससे ज़्यादा अवधि का रेडियो, नाटक लिखना ही पड़ जाए, तो उसमें 15 से 20, भूमिकाएँ गढ़ी जा सकती हैं। पात्रों की संख्या के, मामले में दो संकेत और उपरोक्त बताई गईं, संख्याएँ एक अंदाज्ञा मात्र हैं। अर्थात 15 मिनट, के रेडियो नाटक में अगर ज़रूरत है तो 7 या 8, किरदार भी हो सकते हैं। लेकिन यह संख्या, बहुत ज़्यादा बढ़ाई, तो जैसा पहले ही कहा था, श्रोता के लिए मुसीबत उठ खड़ी हो सकती है।, दूसरे, हम जब इन संख्याओं की बात कर रहे हैं,, तो ये प्रमुख और सहायक भूमिकाओं की संख्या, है। छोटे-मोटे किरदारों की गिनती इसमें नहीं की, गई है। मतलब, फेरीवाले की एक आवाज्ञ या, पोस्टमैन का एक संवाद या न्यायालय में जज का, सिर्फ़ 'ऑर्डर-ऑर्डर' कहना आदि।, , , , , , 2020-21
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अभिव्यक्ति और माध्यम, , तो हमने देखा कि रेडियो नाटक के लिए कहानी का चुनाव करते समय हमें तीन मुख्य बातों, का खयाल रखना है-कहानी सिर्फ़ घटना प्रधान न हो, उसकी अवधि बहुत ज़्यादा न हो, (धारावाहिक की बात दीगर है) तथा पात्रों की संख्या सीमित हो।, , अब आती है बारी रेडियो नाटक लिखने की। जैसा कि पहले भी ज़िक्र हुआ था, मंच का, नाट्यालेख, फ़िल्म की पटकथा और रेडियो नाट्यलेखन में काफ़ी समानता है। सबसे बड़ा फ़र्क, यही है कि इसमें दृश्य गायब है, उसका निर्माण भी ध्वनि प्रभावों और संवादों के ज़रिये करना, होगा। यहाँ एक बात और समझ लीजिए, ध्वनि प्रभाव में संगीत भी शामिल है। अपनी बात को, और बेहतर ढंग से समझने के लिए एक उदाहरण की मदद लेते हैं। मान लीजिए दृश्य कुछ इस, प्रकार का है, रात का समय है और जंगल में तीन बच्चे, राम, श्याम और मोहन रास्ता भटक गए, हैं। फ़िल्म या मंच पर इसे प्रकाश, लोकेशन /मंच सज्जा, ध्वनि प्रभावों और अभिनेताओं की, भाव-भंगिमाओं से दिखाया जा सकता था। रेडियो के लिए इसका लेखन कुछ इस प्रकार होगा।, , कट-1 या पहला हिस्सा, (जंगली जानवरों की आवाजें, डरावना संगीत, पदचाप का स्वर), , , , राम : श्याम, मुझे बड़ा डर लग रहा है, कितना भयानक जल है।, , श्याम : डर तो मुझे भी लग रहा है राम! इत्ती रात हो गई घर में अम्मा-बाबू सब परेशान, होंगे!, , राम : ये सब इस नालायक मोहन की वजह से हुआ। (मोहन की नकल करते हुए), जंगल से चलते हैं, मुझे एक छोटा रास्ता मालूम हे., , श्याम : (चौककर) अरे! मोहन कहाँ रह गया? अभी तो यहीं था! (आवाज़ लगाकर), मोहन! मोहन!, , राम :. (लगभग रोते हुए) हम कभी घर नहीं पहुँच पाएँगे..., , श्याम : चुप करो! (आवाज़ लगाते हुए) मोहन! अरे मोहन हो!, , 2020-21
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कैसे बनता है रेडियो नाटक, , मोहन : (दूर से नज़दीक आती आवाज़) आ रहा हूँ! वहीं रुकना! पेर में काँग चुभ गया था।, (नजदीक ही कोई पक्षी पंख फड़फड़ाता भयानक स्वर करता उड़ जाता है।), (राम चीख पड़ता है।), , राम ४: श्याम, बचाओ!, , मोहन : (जो नज़दीक आ चुका है।) डरपोक कहीं का।, , राम : (डरे स्वर में) वो... वो... क्या था?, , मोहन : कोई चिड़िया थी। हम लोगों की आवाज़ों से वो खुद डर गई थी। एक नंबर के, डरपोक हो तुम दोनों।, , श्याम : मोहन रास्ता भटका दिया, अब बहादुरी दिखा रहा हे., , ये दृश्य इसी तरह चलेगा। आपने गौर किया होगा, शुरू में हमने अंक या दृश्य की जगह, कट / हिस्सा लिखा है। दरअसल रेडियो नाटक में दृश्य नहीं होता, इसीलिए उसकी बजाय अंग्रेज़ी, शब्द “कट' लिखने की परिपाटी है। वैसे ये इतना महत्त्वपूर्ण नहीं है, आप अलग-अलग दृश्यों या, हिस्सों को अपने तरीके से दर्शा सकते हैं। महत्त्वपूर्ण हैं-संवाद और ध्वनि प्रभाव। हमने शुरू में, ही ध्वनि प्रभावों से जंगल या किसी खुली जगह का संकेत दे दिया है, फिर राम भी अपने संवाद, में कहता है-कितना भयानक जंगल है। अर्थात ये लोग इस समय जंगल में हैं ये बात श्रोता को, मालूम हो गई है, अब श्याम अपने अगले संवाद में--इत्ती रात हो गई अर्थात स्थान-जंगल,, समय-रात। अगर हमें समय और ज़्यादा स्पष्ट करना है, तो श्याम का संवाद कुछ इस प्रकार हो, सकता था-रात के बारह बज गए हैं, घर में अम्मा-बाबू सब परेशान होंगे। तात्पर्य यह है कि आप, संवादों के द्वारा दृश्य का देशकाल स्थापित कर सकते हैं, बस शर्त यह है कि वो स्वाभाविक होना, चाहिए, ज़बरदस्ती ठूँसा हुआ न लगे। मसलन श्याम अगर ये संवाद कहें-राम, रात के बारह बजे, हैं और मुझे डर लग रहा है। साफ़ दिखाई देता है कि मात्र सूचना देने के अंदाज़ में संवाद लिखा, गया हे।, , हम आगे देखते हैं कि दृश्य हमें और क्या-क्या जानकारी दे रहा है-तीन दोस्त हैं राम, श्याम, और मोहन। तीनों कहीं से वापस घर आ रहे थे। मोहन ने सुझाव दिया कि उसे जंगल से होकर, जानेवाला कोई छोटा रास्ता पता है। तीनों ने जल्दी घर पहुँचने की ललक में वो राह पकड़ ली और, अब भटक गए हैं। हमें यह भी पता चलता है कि सबसे ज़्यादा डरा हुआ राम है, डर श्याम को भी, लग रहा है, लेकिन वो उस पर काबू करने की कोशिश कर रहा है। तीनों में सबसे बेफ़िक्र मोहन है।, , रेडियो नाटक में पात्रों संबधी तमाम जानकारी हमें संवादों के माध्यम से ही मिलती हैं। उनके, नाम, आपसी संबंध, चारित्रिक विशेषताएँ, ये सभी हमें संवादों द्वारा ही उजागर करना होता है। भाषा, पर भी आपको विशेष ध्यान रखना होगा। वो पढ़ा-लिखा है कि अनपढ़, शहर का है कि गाँव का,, क्या वो किसी विशेष प्रांत का है, उसकी उम्र क्या है, वो क्या रोज़गार-धंधा करता है। इस तरह, की तमाम जानकारियाँ उस चरित्र की भाषा को निर्धारित करेंगी। फिर पात्रों का आपसी संबंध भी, संवाद की बनावट पर असर डालता है। एक ही व्यक्ति अपनी पत्नी से अलग ढंग से बात करेगा,, अपने नौकर से अलग ढंग से, आपने बॉस के प्रति सम्मानपूर्वक रवैया अपनाएगा, तो अपने मित्र, , 2020-21