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कबीर के दोहे, , , , , , 1. बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय।, जो दिल खोजौआपना , मुझसा बुरा न कोय ॥, कबीरदास भक्ति काल के प्रमुख निर्गुण भक्त, कवि थे। उन्होंने अपने दोहों के माध्यम से समाज, , , , को सुधारने का प्रयत्न किया है।, , कबीरदास कहते हैं कि वे बुराई को खोजने, , चले। लेकिन कोई बुरा नहीं मिला, , 1। अंत में वे अपने, , , , दिल में खोजकर देखा। तब पता चला कि अपने, , समान बुरा दूसरा कोई नहीं है।, कबीरदास का उपदेश है, , , , कि दूसरों की, , बुराइयों को खोजने से पहले अपने आप को, , सुधारना ज़रूरी है।
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3. दुख में सुमिरन सब करै, सुख में करै न कोय।, जो सुख में सुमिरन करै, तो दुख काहे होय ॥, , कबीरदास भक्ति काल के प्रमुख निर्गुण भक्त, , कवि थे। उन्होंने अपने दोहों के माध्यम से समाज, को सुधारने का प्रयत्न किया है।, , कबीरदास कहते हैं कि दुख के समय सभी, लोग ईश्वर को स्मरण करते हैं। लेकिन सुख के, समय लोग ईश्वर को स्मरण नहीं करते। कबीरदास, के मत में यदि सुख में ईश्वर का स्मरण करें तो, जीवन में दुख कभी नहीं होता।, , कबीरदास का उपदेश है कि जीवन में दुःख, एवं सुख के समय अर्थात् हमेशा ईश्वर का स्मरण, करना अनिवार्य है।
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4. कामी क्रोधी लालची, इन ते भक्ति न होय ।, भक्ति करै कोय सूरमा , जाति बरन कुल खोय ॥, , कबीरदास भक्ति काल के प्रमुख निर्गुण भक्त, कवि थे। उन्होंने अपने दोहों के माध्यम से समाज, को सुधारने का प्रयत्न किया है।, , कबीरदास कहते है कि काम , क्रोध और, लालच से भक्ति नहीं हो सकता। यथार्थ भक्त को, काम, कोध और लालच को छोड़ना चाहिए। भक्ति, तो ऐसा शू२-वीर कर सकता है जिसने जाति वर्ण, और कुल के मोह को छोड़ दिया है।, , कबीरदास का उपदेश है कि हमें काम, क्रोध, और लालच को छोड़ना चाहिए। मन में समभावना, , होना चाहिए ।