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08556 एाव्र55 12 नावधा, अनुच्छेद लेखन, , हिंदी साहित्य की महत्त्वपूर्ण विधाओं में एक है-अनुच्छेद, लेखन। यह अपने मन के भाव-विचार अभिव्यक्त करने की, विशिष्ट विधा है जिसके माध्यम से हम संबंधित विचारों को, 'गागर में सागर' की तरह व्यक्त करते हैं। अनुच्छेद निबंध, की तुलना में आकार में छोटा होता है, पर यह अपने में, पूर्णता समाहित किए रहता है। इस विधा में बात को घुमाफिराकर कहने के बजाए सीधे-सीधे मुख्य बिंदु पर आ, जाते हैं। इसमें भूमिका और उपसंहार दोनों को अधिक, महत्त्व नहीं दिया जाता है। इसी तरह कहावतों, सूक्तियों, और अनावश्यक बातों से भी बचने का प्रयास किया जाता, है। यहाँ यह भी ध्यान रखना चाहिए कि अनावश्यक बातों, को छोड़ते-छोड़ते हम मुख्य अंश को ही नछोड़ जाए और, विषय आधा-अधूरा-सा लगने लगे।
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अनुच्छेद लेखन से संबंधित ध्यान देने योग्य बातें, 1. यह एक सक्षिप्त शैली है। अत: विषय-केंद्रित रहना, चाहिए।, , 2. एक भी वाक्य अनावश्यक नहीं होना चाहिए।, , 3. अपनी बात संक्षिप्त एवं प्रभावपूर्ण तरीके से व्यक्त, करनी चाहिए।, , 4. अनुच्छेद का प्रथम एवं अंतिम वाक्य प्रभावी होना, , चाहिए।, , 5. अनुच्छेद के प्रत्येक वाक्य परस्पर संबद्ध होने, चाहिए।, , 5. अनुच्छेद की भाषा शैली विषयानुरूप होनी चाहिए।, , 7. अनुच्छेद का प्रथम वाक्य ऐसा होना चाहिए, जिसे, पढ़कर पाठक के मन में पूरा अनुच्छेद पढ़ने हेतु, कौतुहल जागृत हो।, , 8. भावया विषय की स्पष्टता में अधूरापन नहीं होना, चाहिए।
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24. नारी शिक्षा, , शिक्षा के बिना व्यक्ति का जीवन अधूरा होता है। किसी ने, ठीक कहा है-'बिना पढ़े नर पशु कहलावै' अक्षरश: सत्य, है। अच्छाई- बुराई का निर्णय शिक्षित व्यक्ति ही ले पाता है।, शिक्षा प्राप्त करना प्रत्येक मनुष्य का जन्मसिद्ध अधिकार, है। मनुष्य से हमारा तात्पर्य पुरुष एवं नारी दोनों से है।, विशेष रूप से समाज में नारी जगत की अनदेखी प्रारंभ से, ही की जा रही है। इसका कारण उनकी अशिक्षा रही है।, उन्हें घर की चारदीवारी में बंद करके मात्र सेविका अथवा, मनोरंजन का साधन समझा जाता रहा है। इसका परिणाम, , यह हुआ कि नारी हर क्षेत्र में पिछड़ गई। नारी सबको जन्म, देने वाली है।, , अत: उस पर सब तरह के प्रतिबंध लगाना पूर्णतया, अनुचित है। प्रतिबंध लगाने वाले यह भूल जाते हैं कि, बालक पर नारी के संस्कारों का प्रभाव प्रत्यक्ष रूप से, पड़ता है। नारी के गुणों का समावेश किसी-न-किसी रूप, में बच्चे में होता है। फलत: परिवार का संपूर्ण विकास नारी, परनिर्भर होता है। अत: नारी का शिक्षित होना अति, आवश्यक है। हालाँकि नारी को शिक्षा प्राप्त करने का, अधिकार वैदिक काल में था। अनेक सूक्तों में महिला, रचनाकारों का नाम मिलता है। वेद व पुराणों में स्पष्ट कहा, , गया है कि नारी के बिना पुरुष कोई भी कार्य संपन्न नहीं, कर सकता।
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महाभारत, रामायण आदि महाकाव्यों से पता चलता है कि, नारी ने विजय प्राप्त करके धर्म की स्थापना में सहयोग, दिया है। फिर भी मध्यकाल में नारियों पर नाना प्रकार के, प्रतिबंध लगाए गए। हालाँकि आजादी के संघर्ष में भी, नारियों ने कंधे-से-कंधा मिलाकर पुरुषों का साथ दिया।, आज नारी जाग्रत हो चुकी है। नारी जाति की जागृति, देखकर ही पुरुष को विवश होकर उसके लिए शिक्षा के द्वार, खोलने पड़ रहे हैं। आज सरकार भी नारी-शिक्षा के लिए, प्रयासरत है। सरकार अपने स्तर पर गाँव-गाँव में स्कूलों व, कॉलेजों की स्थापना कर रही है तथा नारी-शिक्षा को, बढ़ावा देने वाली संस्थाओं को अनुदान देती है। आज मुक्त, कंठ से कहा जा रहा है, , 'पढ़ी - लिखी लड़की, रोशनी घर की। ', , नारी-शिक्षा का ही परिणाम है कि आज प्रत्येक विभाग में, नारी को स्थान मिल रहा है और वे उत्तम कार्य करके अपनी, कार्यकुशलता का परिचय दे रही हैं। शिक्षित लड़कियाँ घर, की जिम्मेदारियों का निर्वाह कर रही हैं। इससे दहेजसमस्या, पर्दा-प्रथा, शिशुहत्या आदि कुप्रथाओं में भारी, कमी आई है। निष्कर्षत: हम कह सकते हैं कि नारियों को, साथ लिए बिना देश का पूर्ण विकास संभव नहीं। इस, विकास में एक कमी यह है कि नारी अभी भी पूरे देश में, समग्र रूप से शिक्षित नहीं हो रही है। क्षेत्रों में शहरों की, तुलना में काफी पिछड़ापन है। अत: नगरों के साथ-साथ, ग्रामीण क्षेत्रों में नारियों की शिक्षा पर विशेष ध्यान देने की, , आवश्यकता है।
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30, खेलों का महत्व, , खेल-कूद में रुचि बढ़ना देश के स्वास्थ्य का प्रतीक है,, देशवासियों की समृद्धि का सूचक है। आजकल खेलों के, प्रति दीवानगी बढ़ती जा रही है। इस दीवानगी को देखते, हुए यह प्रश्न उठना लाजिमी है कि क्या यह भी स्वस्थ, परंपरा का प्रतीक है? इसमें कोई दो राय नहीं कि पोषक, भोजन के बिना मानव स्वस्थ नहीं रह सकता। यह भी उतना, ही सच है कि अच्छे भोजन के साथ यदि मनुष्य खेलों में, भाग न ले तो वह स्वस्थ नहीं रह सकता।, , अत: खेलों का नियमित अभ्यास करना स्वास्थ्य के लिए, उतना ही आवश्यक है जितना कि संतुलित भोजन। वैसे तो, जीवन की सफलता के लिए शारीरिक, मानसिक और, आत्तमिक शक्तियों में से कोई भी एक शक्ति किसी से कम, महत्वपूर्ण नहीं है। फिर भी आम जनमानस में प्रचलित, उक्ति है कि 'स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क का विकास, होता है'। इसलिए शरीर को पूर्ण रूप से स्वस्थ व चुस्त, बनाने के लिए कई प्रकार के शारीरिक अभ्यास किए जाते, हैं, किंतु इनमें खेल-कूद सबसे प्रमुख हैं।, , बिना खेल-कूद के जीवन अधूरा रह जाता है। कहा गया, है-“सारे दिन काम करना और खेलना नहीं, यह होशियार, को मूर्ख बना देता है।” अत: खेलों से हमारा जीवन, अनुशासित और आनंदित होता है। खेल भावना के कारण, खिलाड़ी सहयोग, संगठन, अनुशासन एवं सहनशीलता का, पाठ सीखते हैं। खेलने वालों में संघर्ष करने की शक्ति आ, जाती है। खेल में जीतने की दशा में उत्साह और हारने की, स्थिति में सहनशीलता का भाव आता है।