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विषय, ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ, एक, हड़प्पा सभ्यता, 12095CHO1, हड़प्पाई मुहर (चित्र 1.1) संभवत: हड़प्पा अथवा सिंधु घाटी सभ्यता, की सबसे विशिष्ट पुरावस्तु है । सेलखड़ी नामक पत्थर से बनाई गई इन, मुहरों पर सामान्य रूप से जानवरों के चित्र तथा एक ऐसी लिपि के चिह्न, उत्कीर्णित हैं जिन्हें अभी तक पढ़ा नहीं जा सका है । फिर भी हमें इस, क्षेत्र में उस समय बसे लोगों के जीवन के विषय में उनके द्वारा पीछे, छोड़ी गई पुरावस्तुओं-जैसे उनके आवासों, मृदभाण्डों, आभूषणों, औज़ारों, तथा मुहरों-दूसरे शब्दों में पुरातात्विक साक्ष्यों के माध्यम से बहुत, जानकारी मिलती है। अब हम देखेंगे कि हम हड़प्पा सभ्यता के विषय, में क्या और कैसे जानते हैं। हम यह अन्वेषण करेंगे कि पुरातात्विक, साक्ष्यों की व्याख्या कैसे की जाती है और इन व्याख्याओं में कैसे, या, चित्र 1.1, कई, हमेशा, कभी-कभी बदलाव आ जाता है। निश्चित रूप से इस सभ्यता के, एक हड़प्पाई मुहर, आज भी हमारी जानकारी से परे हैं और हो सकता,, पारिभाषिक शब्द,, स्थान, काल, सिंधु घाटी सभ्यता को हड़प्पा संस्कृति भी कहा जाता, प्रयोग पुरावस्तुओं के ऐसे समूह के लिए करते, सामान्यतया एक साथ, एक विशेष भौगोलिक क्षेत्र तथा काल-खंड से संबद्ध पाए जाते हैं।, हड़प्पा सभ्यता के संदर्भ में इन विशिष्ट पुरावस्तुओं में मुहरें, मनके, बाट, पत्थर के फलक, (चित्र 1.2) और पकी हुई ईंटें सम्मिलित हैं। ये वस्तुएँ अफ़गानिस्तान, जम्मू, बलूचिस्तान, (पाकिस्तान) तथा गुजरात जैसे क्षेत्रों से मिली हैं जो एक दूसरे से लंबी दूरी पर स्थित हैं।, हैं जो।, पुरातत्वविद 'संस्कृति' शब्द का, एक विशिष्ट शैली के होते हैं और, (मानचित्र 1)।, इस सभ्यता का नामकरण, हड़प्पा नामक स्थान, जहाँ यह संस्कृति पहली बार खोजी गई थी, (पृष्ठ 6), के नाम पर किया गया है। इसका काल निर्धारण लगभग 2600 और 1900 ईसा, पूर्व के बीच किया गया है । इस क्षेत्र में इस सभ्यता से पहले और बाद में भी संस्कृतियाँ अस्तित्व, में थीं जिन्हें क्रमश: आरंभिक तथा परवर्ती हड़प्पा कहा जाता है। इन संस्कृतियों से हड़प्पा सभ्यता, को अलग करने के लिए कभी-कभी इसे विकसित हड़प्पा संस्कृति भी कहा जाता है।, चित्र 1.2, मनके, बाट तथा फलक, 2020-21
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ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ, 3, के विशेषज्ञ होते हैं। हडप्पा स्थलों से मिले, अनाज के दानों में गेहूँ, जौ, दाल,, तथा तिल शामिल हैं। बाजरे के दाने गुजरात के, स्थलों से प्राप्त हुए थे। चावल के दाने अपेक्षाकृत, कम पाए गए हैं।, हड़प्पा स्थलों से मिली जानवरों की हड्डियों, में मवेशियों, भेड़, बकरी, भेंस तथा सूअर की, हड्डियाँ शामिल हैं। पुरा-प्राणिविज्ञानियों अथवा, जीव-पुरातत्वविदों द्वारा किए गए अध्ययनों से, संकेत मिलता है कि ये सभी जानवर पालतू थे।, जंगली प्रजातियों जैसे वराह ( सूअर), हिरण तथा, घड़ियाल की हड्डियाँ भी मिली हैं। हम यह नहीं, जान पाए हैं कि हड़प्पा-निवासी स्वयं इन, जानवरों का शिकार करते थे अथवा अन्य, आखेटक-समुदायों, थे। मछली तथा पक्षियों की हड्डियाँ भी मिली हैं।, सफ़ेद चना, सिसवल, दंबसादात, .., कोटदीजी,, आमरी-नाल, अरब सागर, इनका मांस प्राप्त करते, मानचित्र 2, आरंभिक, 2.1 कृषि प्रौद्योगिकी, के, रेखाचित्र, हालाँकि अनाज के दानों से कृषि के संकेत, मिलते हैं पर वास्तविक कृषि विधियों के, विषय में स्पष्ट जानकारी मिलना कठिन है। क्या जुते हुए खेतों में बीजों, का छिड़काव किया जाता था? मुहरों पर, मृण्मूर्तियाँ यह इंगित करती हैं कि वृषभ के विषय में जानकारी थी और, इस आधार पर पुरातत्वविद यह मानते हैं कि खेत जोतने के लिए बैलों, का प्रयोग होता था। साथ ही चोलिस्तान के कई स्थलों और बनावली, (हरियाणा) से मिट्टी से बने हल के प्रतिरूप मिले हैं। इसके अतिरिक्त, पुरातत्वविदों को कालीबंगन (राजस्थान ) नामक स्थान पर जुते हुए खेत, का साक्ष्य मिला है जो आरंभिक हड़प्पा स्तरों से संबद्ध है । इस खेत में, हल रेखाओं के दो समूह एक-दूसरे को समकोण पर काटते हुए विद्यमान, थे जो दर्शाते हैं कि एक साथ दो अलग-अलग फ़सलें उगाई जाती थीं |, पुरातत्वविदों ने फ़सलों की कटाई के लिए प्रयुक्त औजारों को, पहचानने का प्रयास भी किया है। क्या हड़प्पा सभ्यता के लोग लकड़ी, के हत्थों में बिठाए गए पत्थर के फलकों का प्रयोग करते थे या फिर, के औज़ारों का प्रयोग करते थे?, reaubhshed, गए रेखांकन तथा, चित्र 1.3, पकी मिट्टी से बना वृषभ, वे, धातु, अधिकांश हड़प्पा स्थल अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में स्थित हैं जहाँ संभवत:, कृषि के लिए सिंचाई की आवश्यकता पड़ती होगी। अफ़गानिस्तान में, शोर्तुघई नामक हड़प्पा स्थल से नहरों के कुछ अवशेष मिले हैं, परंतु, पंजाब और सिंध में नहीं। ऐसा संभव है कि प्राचीन नहरें बहुत पहले ही कीजिए तथा इनमें बस्तियों के वितरण में, गाद से भर गई थीं। ऐसा भी हो सकता है कि कुओं से प्राप्त पानी का, ० चर्चा कीजिए..., मानचित्र 1 तथा 2 की आपस में तुलना, समानताओं तथा असमानताओं की सूची बनाइए।, 2020-21
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4, भारतीय इतिहास के कुछ विषय, प्रयोग सिंचाई के लिए किया जाता हो। इसके अतिरिक्त धौलावीरा, (गुजरात) में मिले जलाशयों का प्रयोग संभवत: कृषि के लिए जल, संचयन हेतु किया जाता था।, स्रोत 1, पुरावस्तुओं की पहचान कैसे की जाती है।, भोजन तैयार करने की प्रक्रिया में अनाज पीसने के यंत्र तथा उन्हें आपस, में मिलाने, मिश्रण करने तथा पकाने के लिए बरतनों की आवश्यकता, चित्र 1.4, थी। इन सभी को पत्थर, धातु तथा मिट्टी से बनाया जाता था। यहाँ एक, महत्वपूर्ण हड़प्पा स्थल मोहनजोदड़ो में हुए उत्खननों पर सबसे, आरंभिक रिपोर्टों में से एक से कुछ उद्धरण दिए जा रहे हैं:, अवतल चक्कियाँ ... बड़ी संख्या में मिली हैं ... और ऐसा प्रतीत होता, है कि अनाज पीसने के लिए प्रयुक्त ये एकमात्र साधन थीं। साधारणत:, ये चक्कियाँ स्थूलत: कठोर, कंकरीले अग्निज अथवा बलुआ पत्थर से, निर्मित थीं और आमतौर पर इनसे अत्यधिक प्रयोग के संकेत मिलते हैं।, चूँकि इन चक्कियों के तल सामान्यतया उत्तल हैं, निश्चित रूप से इन्हें, ज़मीन में अथवा मिट्टी में जमा कर रखा जाता होगा जिससे इन्हें हिलने, से रोका जा सके।, धातु के औज़ार, |२ क्या आपको लगता है कि, | इन औज़ारों का प्रयोग फसल कटाई के लिए, | किया जाता होगा?, चित्र, 1.5, धौलावीरा से मिला जलाशय। इसके, राजगिरी-कार्य पर ध्यान दीजिए।, मुख्य प्रकार की चक्कियाँ मिली हैं। एक वे हैं, जिन पर एक दूसरा छोटा पत्थर आगे-पीछे चलाया जाता था, जिससे, निचला पत्थर खोखला हो गया था, तथा दूसरी वे हैं जिनका प्रयोग, संभवत: केवल सालन या तरी बनाने के लिए जड़ी-बूटियों तथा मसालों, को कूटने के लिए किया जाता था इन दूसरे प्रकार के पत्थरों को हमारे, द्वारा 'सालन पत्थर' का नाम दिया गया है तथा हमारे बावर्ची ने, एक यही पत्थर रसोई में प्रयोग के लिए संग्रहालय से उधार माँगा है।, अर्नेस्ट मैके, फर्दर एक्सकैवेशन्स एट मोहनजोदड़ो, 1937 से उद्धृत, चित्र 1.6, अवतल चक्की, पुरातत्वविद वर्तमान समय की तुलनाओं से यह समझने का, प्रयास करते हैं कि प्राचीन पुरावस्तुएँ किस प्रयोग में लायी जाती, थीं। मैके खोजी गई वस्तु की तुलना आजकल की चक्कियों से, कर रहे थे? क्या यह एक उपयोगी नीति है?, ৩ चर्चा कीजिए..., आहार संबंधी आदतों को जानने के लिए, पुरातत्वविद किन साक्ष्यों का इस्तेमाल करते हैं।, 2020-21
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ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ, 5, 3. मोहनजोदड़ो, एक नियोजित शहरी केंद्र, संभवत: हड़प्पा सभ्यता का सबसे अनूठा पहलू शहरी केंद्रों का, विकास था। आइए ऐसे ही एक केंद्र, मोहनजोदड़ो को और सूक्ष्मता से, देखते हैं। हालाँकि मोहनजोदड़ो सबसे प्रसिद्ध पुरास्थल है सबसे पहले, खोजा गया स्थल हड़प्पा, चित्र 1.7, मोहनजोदड़ों का नक्शा, 1., बस्ती दो भागों में विभाजित है, एक छोटा लेकिन ऊँचाई पर बनाया, गया और दूसरा कहीं अधिक बड़ा लेकिन नीचे बनाया गया | पुरातत्वविदों, निचला शहर दुर्ग से किस प्रकार, भिन्न है?, निचला शहर, 160, डी के-जी, उत्तरी, हिस्सा, पुरास्थल 3, आभूरषण, दुर्ग, खाई ई, ब्लाक, डी के-जी, दक्षिणी, हिस्सा, पुरास्थल 2, के-सी क्षेत्र, 175, एस डी क्षेत्र, क्षेत्र, आर ई एम क्षेत्र, के-ए क्षेत्र, VO 160, वी एस-ए क्षेत्र, मॉनियर क्षेत्र, एल क्षेत्र, सी सी क्षेत्र, वी एस-बी क्षेत्र, एच आर-बी क्षेत्र, एच आर-ए क्षेत्र), जी एफ डी क्षेत्र, 160, नक्शे पर रोमन लिपि के अक्षर उन विविध, पुराविदों के नामों का संकेत करते हैं जिन्होंने, मोहनजोदड़ो के विविध क्षेत्रों में खुदाई करवाई।, 200, 100, मीटर, 2020-21, not to be re