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विषय, 11, आधुनिकीकरण के रास्ते, उन्नीसवीं सदी की शुरुआत में चीन का पूर्वी एशिया पर प्रभुत्व था। लंबी परंपरा के वारिस, छींग राजवंश की सत्ता अक्षुण्ण जान पड़ती थी, जबकि नन्हा- सा द्वीप-देश जापान अलग- थलग, पड़ा हुआ प्रतीत होता था। इसके बावजूद, कुछ ही दशकों के भीतर चीन अशांति की गिरफ़्त, में आ गया और औपनिवेशिक चुनौती का सामना नहीं कर पाया। छींग राजवंश के हाथ से, राजनीतिक नियंत्रण जाता रहा, वह कारगर सुधार करने में असफल रहा और देश गृहयुद्ध, की लपटों में आ गया। दूसरी ओर जापान एक आधुनिक राष्ट्र-राज्य के निर्माण में, औद्योगिक, अर्थतंत्र की रचना में और यहाँ तक कि ताइवान (1895) तथा कोरिया (1910) को अपने, में मिलाते हुए एक औपनिवेशिक साम्राज्य कायम करने में सफल रहा। उसने अपनी संस्कृति, और अपने आदर्शों की स्रोत-भूमि चीन को 1894 में हराया और 1905 में रूस जैसी यूरोपीय, शक्ति को पराजित करने में कामयाब रहा।, चीनियों की प्रतिक्रिया धीमी रही और उनके सामने कई कठिनाइयाँ आई। आधुनिक दुनिया, का सामना करने के लिए उन्होंने अपनी परंपराओं को पुन: परिभाषित करने का प्रयास किया।, साथ ही अपनी राष्ट्र-शक्ति का पुनर्निर्माण करने और पश्चिमी व जापानी नियंत्रण से मुक्त, होने की कोशिश की। उन्होंने पाया कि असमानताओं को हटाने और अपने देश के पुनर्निर्माण, के दुहरे मकसद को वे क्रांति के ज़रिये ही हासिल कर सकते हैं। 1949 में चीनी साम्यवादी, पार्टी ने गृहयुद्ध में जीत हासिल की। लेकिन 1970 के दशक के आखिर तक चीनी नेताओं, को लगने लगा कि देश की विचारधारात्मक व्यवस्था उसकी आर्थिक वृद्धि और विकास में, बाधा डाल रही है। इस वजह से अर्थव्यवस्था में व्यापक सुधार किए गए। यद्यपि इससे पूँजीवाद, और मुक्त बाज़ार की वापसी हुई, तथापि साम्यवादी दल का राजनीतिक नियंत्रण अब भी, ishedt®, बरकरार रहा।, जापान उन्नत औद्योगिक राष्ट्र बन गया, लेकिन साम्राज्य की लालसा ने उसे, झोंक दिया। 1945 में आंग्ल-अमरीकी सैन्यशक्ति के सामने उसे हार माननी पड़ी।, अमरीकी आधिपत्य के साथ अधिक लोकतांत्रिक व्यवस्था की शुरुआत हुई ओर 1970, के दशक तक जापान अपनी अर्थव्यवस्था का पुनर्निर्माण करके एक प्रमुख आर्थिक, शक्ति बनकर उभरा।, युद्ध, में, जापान का आधुनिकीकरण का सफ़र पूँजीवाद के सिद्धांतों पर आधारित था और यह, सफ़र उसने ऐसी दुनिया में तय किया, जहाँ पश्चिमी उपनिवेशवाद का प्रभुत्व था। दूसरे, देशों में जापान के विस्तार को पश्चिमी प्रभुत्व का विरोध करने और एशिया को आज़ाद, कराने की माँग के आधार पर उचित ठहराया गया। जापान में जिस तेज़ी से विकास, हुआ वह जापानी संस्थाओं और समाज में परंपरा की सुदृढ़ता, उनकी सीखने की शक्ति, और राष्ट्रवाद की ताकत को दर्शाता है ।, चीन और जापान में इतिहास लेखन की लंबी परंपरा रही है, क्योंकि इन देशों में यह माना, जाता है कि इतिहास शासकों के लिए महत्त्वपूर्ण मार्गदर्शक का काम करता है। ऐसा समझा, जाता है कि अतीत वे मानक पेश करता है, जिनके आधार पर शासकों का आकलन किया, 2020-21
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232, विश्व इतिहास के कुछ विषय, जा सकता है। इसीलिए शासकों ने अभिलेखों की देखरेख और राजवंशों का इतिहास लिखने, के लिए सरकारी विभागों की स्थापना की। सिमा छियन (Sima Qian, 145-90 ईसा पूर्व), को प्राचीन चीन का महानतम इतिहासकार माना जाता है। जापान में भी चीनी सांस्कृतिक, प्रभाव के चलते इतिहास को ऐसा ही महत्त्व दिया जाने लगा। मेजी सरकार के शुरुआती अधि, नियमों में से एक था, 1869 में एक ब्यूरो की स्थापना, जिसका काम था अभिलेखों को इकट्ठा, करना। इसका एक अन्य उद्देश्य मेजी पुनर्स्थ्थापना के बारे में मेजी विजेताओं के नज़रिये से, लेखन करना था। लिखित शब्द का बहुत सम्मान था और साहित्यिक कौशल को, समझा जाता था। इसका नतीजा यह रहा है कि भांति-भांति के लिखित स्त्रोत उपलब्ध हैं:, सरकारी इतिहास, विद्वत्तापूर्ण लेखन, लोकप्रिय साहित्य और धार्मिक परचे| मुद्रांकन और, प्रकाशन पूर्व आधुनिक काल में महत्त्वपूर्ण उद्योग थे और यह संभव है कि 18वीं शताब्दी के, चीन और जापान की किसी किताब के वितरण का पता लगाया जा सके। आधुनिक विद्वानों, ने इस सामग्री का इस्तेमाल नये और भिन्न तरीकों से किया है।, आधुनिक विद्वानों ने चीनी बौद्धिकों जैसे लिमांग छिचाओ (Lian Oichao) या जापान, में आधुनिक इतिहास के पथप्रदर्शकों में से एक, कुमे कुनीताके (Kume Kunitake,, 1839-1931) जैसे बौद्धिकों के काम को आगे बढ़ाया है। इसके अलावा इन्होंने पहले के, यूरोपीय मुसाफ़िरों के लेखन, जैसे इटली के मार्को पोलो (1254-1324) जो चीन में 1274, से 1290 तक रहे, चीन में जैसूट पादरी मैटियो रिक्की (Mateo Ricci, 1552-1610) और, जापान में लूई फ़रॉय (Luis Frois, 1532=1597) जैसे बुद्धिजीवियों के काम को भी आगे, बढ़ाया है। इन सभी ने इन देशों के बारे में समृद्ध जानकारियाँ दी हैं। आधुनिक विश्व को 19वीं, सदी के ईसाई मिशनरियों के लेखन से भी फ़ायदे हुए, जिनके काम से इन देशों के बारे में, समझ बनाने के लिए बहुमूल्य सामग्री मिलती है।, अंग्रेज़ी में चीनी-जापानी इतिहास पर परिष्कृत पांडित्यपूर्ण काम का विशाल भंडार उपलब्ध, है। चीनी सभ्यता में विज्ञान के इतिहास पर जोज़फ नीडहम (Joseph Needham) के, अत्यंत महत्त्वपूर्ण कार्य और जापानी इतिहास और संस्कृति पर जॉर्ज सैन्सम के कार्य से इसकी, शुरुआत हुई। हाल के वर्षों में चीनी और जापानी विद्वानों की लिखी चीज़ें अंग्रेज़ी में अनूदित, हुई हैं। उनमें से कुछ विद्वान तो विदेशों में ही पढ़ाते हैं और अंग्रेज़ी में लिखते हैं। 1980 से, कई चीनी विद्वान जापान में ही काम करते और जापानी में लिखते आए हैं। मतलब यह कि, हमारे पास विश्व के कई हिस्सों से आनेवाला विद्वत्तापूर्ण लेखन उपलब्ध है, जो हमें इन देशों, का अधिक विस्तृत और गहन परिचय देता है।, बहुमूल्य, नाइतो कोनन (Naito Konan) 1866-1934, *जापान में कुलनाम, व्यक्तिगत नाम के पहले, ये चीन पर काम करने वाले प्रमुख जापानी विद्वान थे, जिनके लेखन ने अन्य जापानी, लेखकों को प्रभावित किया। जापान में चीन का अध्ययन करने की लंबी परंपरा रही है। नाइतो, ने अपने काम में पश्चिमी इतिहास-लेखन की नयी तकनीकों तथा अपने पत्रकारिता के, अनुभवों का इस्तेमाल किया। उन्होंने 1907 में क्योतो विश्वविद्यालय में प्राच्य अध्ययन का, विभाग बनाने में मदद की। शिनारॉन (Shinaron) ( चीन पर, 1914) में उन्होंने तर्क दिया, कि गणतांत्रिक सरकार के ज़रिये चीनी सुंग राजवंश (960-1279) के काल से चले आ रहे, अभिजात वर्ग के नियंत्रण और केंद्रीय सत्ता को खत्म कर सकते हैं। उनका मानना था कि, लिखा जाता है।, स्थानीय समाज को पुनर्जीवित करने का यही रास्ता है और सुधार यहीं से शुरू होने चाहिए, थे। उन्हें चीनी इतिहास में ऐसी क्षमताएँ नज़र आईं जो चीन को आधुनिक और लोकतांत्रिक, बना सकती थीं। उनके मुताबिक जापान चीन में एक अहम भूमिका निभा सकता था लेकिन, वे चीनी राष्ट्रवाद की शक्ति का सही आकलन नहीं कर पाए।, 2020-21, Mou
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234 विश्व इतिहास के, कुछ, विषय, इसके विपरीत, जापान एक द्वीप श्रृंखला है जिसमें चार सबसे बड़े द्वीप हैं होंशू (Honshu),, क्यूशू (Kyushu), शिकोकू (Shikoku) और होकाइदो (Hokkaido)। ओकिनावा (Okinawan), द्वीपों की श्रृंखला सबसे दक्षिण में है, लगभग बहामास वाले ही अक्षांश पर। मुख्य द्वीपों की 50, प्रतिशत से अधिक ज़मीन पहाड़ी है। जापान बहुत ही सक्रिय भूकम्प क्षेत्र में है । इन भौगोलिक, परिस्थितियों ने वहाँ की वास्तुकला को प्रभावित किया है । अधिकतर जनसंख्या जापानी है लेकिन, कुछ आयनू (Ainu) अल्पसंख्यक और कुछ कोरिया के लोग हैं जिन्हें श्रमिक मज़दूर के रूप में उस, समय जापान लाया गया था जब कोरिया जापान का उपनिवेश था।, जापान में पशुपालन की परंपरा नहीं है । चावल बुनियादी फसल है और मछली प्रोटीन का, मुख्य स्रोत। कच्ची मछली साशिमी या सूशी अब दुनिया भर में बहुत लोकप्रिय हो गई है क्योंकि, इसे बहुत सेहतमंद माना जाता है।, जापान, राजनीतिक व्यवस्था, shed, जापान पर क्योतो में रहनेवाले सम्राट का शासन हुआ करता था, लेकिन बारहवीं सदी आते-आते, असली सत्ता शोगुनों के हाथ में आ गई जो सैद्धांतिक रूप से राजा के नाम पर शासन करते थे।, 1603 से 1867 तक तोकुगावा परिवार के लोग शोगुनपद पर कायम थे। देश 250 भागों में, विभाजित था जिनका शासन दैम्यो चलाते थे। शोगुन दैम्यो पर नियंत्रण रखते थे । शोगुन दैम्यो को, लंबे अरसे के लिए राजधानी एदो (आधुनिक तोक्यो) में रहने का आदेश देते थे ताकि उनकी, तरफ़ से कोई खतरा न रहे। शोगुन प्रमुख शहरों और खदानों पर भी नियंत्रण रखते थे सामुराई, (योद्धा वर्ग) शासन करनेवाले कुलीन थे और वे शोगुन तथा दैम्यो की सेवा में थे ।, 16वीं शताब्दी के अंतिम भाग में तीन परिवर्तनों ने आगे के विकास की तैयारी की। पहला ,, किसानों से हथियार ले लिए गए, और अब केवल सामुराई तलवार रख सकते थे। इससे शान्ति, और व्यवस्था बनी रही जबकि पिछली शताब्दी में इस वजह से अक्सर लड़ाइयाँ होती रहती थीं |, दूसरा, दैम्यो को अपने क्षेत्रों की राजधानियों में रहने के आदेश दिए गए और उन्हें काफी हद तक, स्वायत्तता प्रदान की गई। तीसरा, मालिकों और करदाताओं का निर्धारण करने के लिए जमीन का, सर्वक्षण किया गया तथा उत्पादकता के आधार पर भूमि का वर्गीकरण किया गया। इन सबका, मिलाजुला मकसद राजस्व के लिए स्थायी आधार बनाना था।, दैम्यो की राजधानियाँ बड़ी हुई, जिसके चलते 17वीं शताब्दी के मध्य तक जापान में एदो, दुनिया का सबसे अधिक जनसख्या वाला शहर बन गया । इसके अलावा ओसाका और क्योतो अन्य, बड़े शहरों के रूप में उभरे। कम से कम छह ऐसे गढ़ वाले शहर उभरे जहाँ जनसंख्या 50,000, से अधिक थी। इसकी तुलना में उस समय के ज्यादातर यूरोपीय देशों में केवल एक बड़ा शहर, था। इससे वाणिज्यिक अर्थव्यवस्था का विकास हुआ और वित्त और ऋण की प्रणालियाँ स्थापित, हुई। व्यक्ति के गुण उसके पद से अधिक मूल्यवान समझे जाने लगे। शहरों में जीवंत संस्कृति, खिलने लगी जहाँ तेज़ी से बढ़ते व्यापारी वर्ग ने नाटक और कलाओं को प्रोत्साहन दिया। चूंकि, * छपाई लकड़ी के ब्लॉको लोगों को पढ़ने का शौक था. होनहार लेखकों के लिए यह संभव हो सका कि वे केवल लेखन, से की जाती थी। जापानी, लोग यूरोपीय छपाई को, पसंद नहीं करते थे।, से अपनी जीविका चला लें।एदो में लोग नूडल की कटोरी की कीमत पर किताब किराये पर, ले सकते थे। इससे यह पता चलता है कि छपाई* किस स्तर पर होती थी और पढ़ना कितना, लोकप्रिय था।, 2020-21
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आधुनिकीकरण के रास्ते 235, जापान अमीर देश समझा जाता था, क्योंकि वह चीन से रेशम और भारत से कपड़ा जैसी, विलासी वस्तुएँ आयात करता था। इन आयातों के लिए चाँदी और सोने में कीमत अदा करने, से अर्थव्यवस्था पर भार ज़रूर पड़ा जिसकी वजह से तोकुगावा ने कीमती धातुओं के नियात, पर रोक लगा दी। उन्होंने क्योतो के निशिजिन में रेशम उद्योग के विकास के लिए, उठाये जिससे रेशम का आयात कम किया जा सके। निशिजिन का रेशम दुनिया भर में, बेहतरीन रेशम माना जाने लगा। मुद्रा का बढ़ता इस्तेमाल और चावल के शेयर बाज़ार का, निर्माण जैसे अन्य विकास दिखाते हैं कि अर्थतंत्र नयी दिशाओं में विकसित हो रहा था।, सामाजिक और बौद्धिक बदलावों- मिसाल के लिए, प्राचीन जापानी साहित्य के अध्ययन, ने लोगों को यह सवाल उठाने पर मजबूर किया कि जापान पर चीन का प्रभाव किस हद तक, है और यह तर्क पेश किया गया कि जापानी होने का सार चीन के संपर्क में आने से बहुत पहले, का है। यह सार की कहानी जैसे उच्च प्राचीन साहित्य में और जापान की उत्पत्ति की पौराणिक, कथाओं में देखी जा सकती है, ये मिथकीय कहानियाँ बताती हैं कि इन द्वीपों को भगवान ने बनाया, कदम, निशिजिन क्योतो की एक, बस्ती है। 16वीं शताब्दी में, वहाँ 31 परिवारों का बुनकर, संघ था। 17वीं शताब्दी के, आखिर तक इस समुदाय में, 70,000 लोग थे। रेशम, उत्पादन फैला और 1713 में, केवल देशी धागा इस्तेमाल, करने के आदेश जारी किए, था और सम्राट सूर्य देवी के उत्तराधिकारी थे।, गेंजी की कथा, गए जिससे उसे और, प्रोत्साहन मिला। निशिजिन, में केवल विशिष्ट प्रकार के, मुरासाकी शिकिबु (Murasaki Shikibu)) द्वारा लिखी गई हेआन (Heian) राजदरबार, की यह काल्पनिक डायरी दि टेल ऑफ दि गेंजी जापानी साहित्य में प्रमुख कथाकृति बन, गई। इस काल में मुरासाकी जैसी अनेक लेखिकाएँ उभरीं जिन्होंने जापानी लिपि का, इस्तेमाल किया, जबकि पुरुषों ने चीनी लिपि का। चीनी लिपि का इस्तेमाल शिक्षा और, महंगे उत्पाद बनाए जाते थे।, रेशम उत्पादन से ऐसे क्षेत्रीय, उद्यमी वर्ग का विस्तार हुआ, जिन्होंने आगे चलकर, तोकुगावा व्यवस्था को, चुनौती दी। जब 1859 में, विदेशी व्यापार की शुरुआत, हुई, जापान से रेशम का, निर्यात अर्थव्यवस्था के लिए, सरकार में होता था। इस उपन्यास में कुमार गेंजी की रोमांचक जिंदगी दर्शायी गई और हेआन, राजदरबार के अभिजात वातावरण की जीती जागती तस्वीर पेश की गई। इसमें यह भी, दिखाया गया है कि औरतों को अपने पति चुनने और अपनी जिंदगी जीने की कितनी, आज़ादी थी।, मुनाफ़े का प्रमुख स्रोत बन, गया, एक ऐसे समय में, जबकि जापानी अर्थव्यवस्था, मेजी पुनर्स्थापना, 1867-68 में मेजी वंश के नेतृत्व में तोकुगावा वंश का शासन समाप्त किया गया | मेजियों की, पुनर्स्थापना के पीछे कई कारण थे। देश में तरह- तरह का असंतोष था, साथ ही अंतर्राष्ट्रीय व्यापार, व कूटनीतिक संबंधों की भी माँग की जा रही थी। इसी बीच 1853 में अमरीका ने कॉमोडोर मैथ्य मुकाबला करने की कोशिश, पेरी (1794-1858) को जापानी सरकार से एक ऐसे समझौते पर हस्ताक्षर करने की मांग के साथ, भेजा जिसमें जापान ने अमरीका के साथ राजनयिक और व्यापारिक संबंध बनाए। जापान ने अगले, साल ऐसे समझौते पर हस्ताक्षर किए। जापान चीन के रास्ते में था और अमरीका चीन में एक बड़ा, बाज़ार देखता था। इसके अलावा अमरीका को प्रशांत महासागर में अपने बेड़ों के लिए ईंधन लेने, की जगह चाहिए थी। उस समय केवल एक ही पश्चिमी देश जापान के साथ व्यापार करता था।, पश्चिमी वस्तुओं से, कर रही थी।, वह था, हॉलैंड।, पेरी के आगमन ने जापानी राजनीति पर महत्त्वपूर्ण असर डाला। सम्राट की अचानक अहमियत, बढ़ गई, जिसे तब तक बहुत कम राजनैतिक सत्ता मिली हुई थी। 1868 में एक आंदोलन द्वारा, 2020-21