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फिल्मी समीक्षा, सिनेमा मनोरंजन का माध्यम है। फिल्म के गुण-दोष के विवेचन अर्थात किसी भी फिल्म के सर्वांग विश्लेषण ही फिल्मी समीक्षा है । ग्यारहवीं, कक्षा के परीक्षा में किसी एक मन पसंद फिल्म की समीक्षा लिखने केलिए 8 अंक का प्रश्न जंरूर पूछ सकते है ।, फिल्मी समीक्षा लिखते समय इन बातें पर ज़रा ध्यान रखें:-, किसी भी फिल्म के गुण-दोष का विवेचन अर्थात फिल्म के सर्वांग विश्लेषण और मूल्यांकन फिल्मी समीक्षा है।, किसी मनपसंद फिल्म की समीक्षा लिखना है।, फिल्म का कथासार, पात्र की भूमिका, निदेशक की भूमिका, पटकथा, संवाद, छायांकन, संपादन, गीत आदि की संक्षिप्त चर्चा करके उस, फिल्म की समग्रता पर अपना दृष्टिकोण प्रकट करना है।, शायद 8 अंक का प्रश्न होगा पाठ - पुस्तक में 'ब्लैक' फिल्म की समीक्षा दी गई है । उसको या अन्य किसी मनपसंद फिल्म की समीक्षा ध्यान, से पढ़े तो ज़रूर 8 अंक मिलेगा।, (एक बात यहाँ ध्यान रखें कि किसी हिंदी फिल्म न होनी चाहिए, किसी भी भाषा चाहे मलयालम हो, अंग्रेज़ी हो, तमिल हो या किसी भी, भाषा हो तो हम लिख सकते हैं।), ब्लैक, संजय लीला भंसाली द्वारा निदेशित 'ब्लैक' की समीक्षा आपके पाठ-पुस्तक के पन्ने 39 - 40 में प्रस्तुत है । उसका एक संक्षिप्त रूप यहाँ, आपके लिए प्रस्तुत है।, ब्लैकः स्पर्श जहाँ भाषा बनता है....., संजय लीला भंसाली द्वारा निदेशित ब्लैक एक संवेदनशील फिल्म है । यह हेलन केलर और उसकी टीचर आनि सुलिवन केलिए, अर्पित है।, अपनी शिक्षक देवराज सहाय (अमिताभ बच्चन) की तलाश में भटकती मिशैल (आयशा कपूर) की संवेदना से फिल्म शुरु होती है ।, उसे पता चलता है कि देवराज एक आस्पताल में हैं । अंधी मिशैल सबकुछ भूलकर उससे मिलने दौड़ती है तो अतीत जीवन की कहानी, शुरू होती है।, मिशैल अंधी, वहरी, गूँगी लड़की थी । अपंगता से पीड़ित मिशैल जिद्दी और आक्रामक है । दुखी माँ-बाप उसे सुधारने केलिए बहरों, और अंधों के अध्यापक देवराज सहाय को नियुक्त करते हैं। सनकी एवं पियक्कड़ देवराज का मिशैल से व्यवहार पहले कठोर था । बाद में, वे मिशैल को घर से बाहर निकालकर प्रकृति से परिचय कराते हैं । धीरे-धीरे मिशैल सुधारने लगी । बोलने- सुनने की क्षमता आई तो मिशैल, को स्कूल में भर्ती कराई। मिशैल को स्नातक बनाना उसका सपना था।, बीच में देवराज समझता है कि मिशैल का व्यवहार नया मोड़, विस्मृति रोग से पीड़ित है और मिशैल को पहचानने में वह असफल रहा। गुरु की अवस्था देखकर मिशैल टूट जाते है। लेकिन पुरानी यादें, दिलाकर देवराज की खोई स्मृतियों को जगाने में वह सफल हो जाती है । वह देवराज के हाथ पकड़कर आगे निकलती है ।, | वह कहीं चला जाता, | बारह वर्ष बीत गई । देवराज, भवानी अय्यर, प्रकाश कपाडिया और संजय लीला भंसाली की पटकथा गतिशील एवं हृदयस्पर्शी है । अपंग जीवन की यह कहानी, दर्शकों के दिल को कचोड़ती है। संवाद पात्र, भाव एवं परिवेश के अनुकूल है। शिमला के शीलतला में इसका छायांकन रवि के चंद्रन ने, किया है। ध्वन्यांकन रसूल पूक्कुट्टी का है । फिल्म का संपादन बेला सहगल ने सतर्कता से किया है । एक मात्र गीत प्रसंगोचित है एवं, पारश्वसंगीत बेहतरीन है।, अमिताभ बच्चन, राणी मुखर्जी, आयशा कपूर की महत्वपूर्ण भूमिका है। देवराज की भूमिका बच्चन ने अनन्य बना दिया। राणी, मुखर्जी अपंग जीवन की मर्म व्यथा को स्मरणीय बना दिया। छोटी मिशैल की भूमिका में आयशा कपूर ने जादू का काम किया। फिल्म की, स्तरीयता का अधिकार निदेशक का है । हरेक क्षेत्र में उनका संस्पर्श है । चरमसीमा सकरुण एवं सारपूर्ण है । अपनी संपूर्ण क्षमता से संजय, लीला भंसाली ने दर्शकों के दिल पर फिल्म की प्रतिष्ठा की है । हिंदी फिल्म के इतिहास में मनोविकारों की यह आर्द्र कहानी ज़रूर एक, मील पत्थर है।, आगे हम हिंदी एवं मलयालम के कुछ फिल्मों की समीक्षा से परिचित करें:, 1. तारे ज़मीन पर, 2. तन्मात्रा, 3. माणिक्य कल्ल्, 4. क्लासमेट्स, 5. चक दे इंडिया, 6. जय हो, Hss Live, Downloaded frpm www.hsslive.in
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तारे ज़मीन पर : हरेक बच्चे अमूल्य है., नन्हे बाल्य और बच्चे हमारे देश की जनसंख्या का बडा हिस्सा है, जो कल के नागरिक भी है । देश का उज्वल भविष्य उन पर निर्भर है ।, आधुनिक युग का भाग-दौड़ में हम माता-पिताएँ यह जानने की कोशिश नहीं करते हैं कि अपने बच्चों के सोच-विचार क्या-क्या हैं? इन बाल्यों को, फिल्मों में भी बहुत कम स्थान मिला है। आमीर खाँ के निदेशन में बनी पहली फिल्म 'तारे ज़मीन पर' इसका पहला प्रयास है।, मनोरंजन के स्तर के बढ़कर यह फिल्म ऐसा संदेश भी देता है कि हर बच्चे अपने आप में अद्वितीय है। यह फिल्म डिस्लेक्सिया से, जुझनेवाले आठ वर्षीय बालक इशान अवस्थी की कहानी है । उसका मन पढ़ाई के अलावा पेंटिंग आदि में लगता है। लेकिन माता-पिता की इच्छा-पूर्ति, केलिए पढ़ाई में सफलता प्राप्त करने केलिए वह मज़बूर होते है। उसके समझ में अक्षरों नहीं आता, लेकिन वह बहुतधिक रचनात्मक क्षमतावाला बच्चा, है। लेकिन माता-पिता और अध्यापत उसे बेवकूफ़ कहते हैं।, इशान का बड़ा भाई तो हर क्षेत्र में उज्ज्वल है और इशान की हरकतों में परेशान होकर माता-पिता उसे बोर्डिग स्कूल भेज जाता है । वहाँ, भी वह अध्यापक और सहपाठियों का मज़ाक का पात्र बनता है। वहाँ परंपरागत कला शिक्षक रामशंकर निकुंभ आता है। वे उस नन्हे बाल्य की हालत, समझकर उसकी असल निपुणता को दुनिया के सामने प्रस्तुत करते है । प्यार और क्षमाभरी ममता से निकुंभ, इशान के भीतर छिपी प्रतिभा को बाहर, लिया तो सब ढ़ंग रह जाते है ।, फिल्म का निदेशन अमीर खाँ और अमोल गुप्ता ने किया। मानवीय अनुभूतियों के ताने-बाने में बुने इसकी पटकथा अमोल गुप्ता का ही है ।, संवाद भी अमोल गुप्ता का है, जो परिवेश के अनुकूल है । छायांकन सेतु का है, जो फिल्म को आद्यंत आकर्षक बनाता है। फिल्म के अंतिम 'फ्रीज़, फ्रेम शॉट' (Fresh frame shot) आकर्षक है। गीतों की रचना प्रसून जोशी और संगीत शंकर, एहसान और लॉय ने किया है । इसका प्रमुख गीत, 'क्या इतना बुरा हूँ, माँ दर्शकों की आँखों में आँसु भरता है। शीर्षक गीत भी प्रसंगानुकूल है । साज -श्रृंगार जोगींदर गुप्त और शब्द मिश्रण नकुल, काटते ने किया है।, फिल्म में आमीर खाँ, दर्शीला सफारी, टिस्का चोपड़ा और विपिन शर्मा की महत्वपूर्ण भूमिका है । रामशंकर अवस्थी का प्यार, ममता एवं दुलार को, आमीर खाँ ने अनश्वर बना दियाष इशान अवस्थी की भूमिका निभानेवाले दर्शीला सफारी ने भी दर्शकों के दिल को जीत लिया है। टिस्का चोपड़ा, (माया अवस्थी-इशान की माँ), विपिन शर्मा (नंदकिशोर अवस्थी-इशान के पिता) और सचेत इंजिनीयर (योहन अवस्थी) आदि की भूमिकाएँ अच्छा है।, इसका पहला प्रदर्शन 2007 में हुआ और 2008 में सर्वश्रेष्ठ फिल्म पुरस्कार और दर्शीला सफारी को फिल्म फेयर का समीक्षक पुरस्कार भी मिला ।, यह फिल्म दरअसल एक बड़ा तत्व सिखाता है कि, हरेक बच्चे अमूल्य है । यह फिल्म कालजयी और नित्य-प्रासंगिक है ।, तन्मात्रा - अल्षिमेर्स की छाया में...., ब्लेस्सी द्वारा निदेशित तन्मात्रा एक बेहद संवेदनशील फिल्म है । फिल्म की प्रेरणा पत्मराजन्, के लघु-कहानी 'याद' है। रमेशन नायर, जो, ईमानदारी एवं कठिन प्रयत्नी है, सेक्रटरियट के क्लर्क है। अपनी पत्नी लेखा , पुत्र मनु और पुत्री मंजु के साथ आदर्श एवं सरल जीवन बिताते है।, अपने परिवार के प्रति उसके ज़्यादा अधिक प्यार है। मनु ग्यारहवीं कक्षा में और मंजु प्राथमिक स्तर में पढ़ते है । अपने बेटा को ऐ, ए,एस अफसर, बनाना ही उनका लक्ष्य रहा। इस केलिए उसके पढ़ाई में ज़्यादा अधिक ध्यान और अच्छे-अच्छे उपदेश भी, के सबसे अच्छे छात्र बनते है। रमेशन के साथी जोसफ, उनको, हैं। उसी निरीक्षण में मनु अपने स्कूल, बहुतथिक, सहायताएँ देती है ।, उनके सरल जीवन, एक स्नेह निर्झरी की तरह बहते थे, जो ईश्वर केलिए भी पसंद नहीं होगा एक दिन उसे ऐसा लगता है कि वह जीवन, के कुछ-कुछ महत्वपूर्ण घटनाएँ और बातें भूल गई है । एक ड्रॉक्टर के निर्देश पूछता है, तो तनाव कहकर इसे तिरस्कार करता है। लेकिन बाद में यह, अल्षिमेर्स हो जाता है।, वह नौकरी से पद त्याग करते है और परिवार के साथ अपने माता-पिता के घर जाता है, जो गाँव में है । धीरे - धीरे उनके स्मृति पूर्ण रूप से, नष्ट होते है। फिल्म के शेष भाग, उनके परिवार- लेखा, मनु, मंजु और पिता कृष्णन् नायर - सब कैसे इस आकस्मिक एवं निर्णायक परिस्थिति सामना, करते है? इसका उत्तर देता है।, इसकी पटकथा हृदयस्पर्शी एवं मानवीय संवेदनाओं के ताने-बाने में बुनी है। वास्तव में इसकी कथा उतना मनोरंजक नहीं है । बल्कि एक, अत्यंत सूक्ष्मता से बुनी एक परिवार की यथार्थ जीवन की कुछ निर्णायक क्षणों का रेखाचित्र है । रमेशन् नायर का अपने पिता और बेटा से जो संबंध, है, वह हृदयस्पर्शी है ।, फिल्म में मोहनलाल, मीरा वासुदेव, नेडुमुडी वेणु, जगती श्रीकुमार, अर्जुन और निरंजना की महत्वपूर्ण भूमिका है। रमेशन् नायर की भूमिका, असल में मोहनलाल ने अनश्वर बना दिया। अल्पिमेर्स से पीडित एक व्यक्ति की विषमताओं का सही प्रस्तुतीकरण । लेखा ( मीरा वासुदेव) उतनी कठिन, विषमताओं में भी अपने पति के साथ नहीं छोडता।, मनु (अर्जुन), जो फिल्मी क्षेत्र में नया है, अत्यंत स्वाभाविकता से अपनी भूमिका को स्मरणीय बना दिया। चरमसीमा अत्यंत करुण और, स्तरीय है। इसके गीत भारतियार और कैतप्रम के हैं। संगीत मोहन सितारा और ध्वन्यांकन राजा मुहम्मद का है, जो स्तरीय है । भारतियार के गीत, 'काट्टर विळियित कण्णम्मा ' जिसके शास्त्रीय गीत कैतप्ररम ने किया है , एक पाठ सिखाता है 'मातृ देवो भव, मम पितृ देवो भव, आचार्य देवो भव ' ।, वास्तव में यह फिल्म प्रेक्षकों को न दुनखी और क्रुद्ध बना देते, बल्कि दर्शकों के मन में इस प्रकार के रोग से पीड़ित व्यक्ति के प्रति ध्यान की, भावना दिलाती है।, II.. ... ., ...., Hss Live, Downloaded frpm www.hsslive.in
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माणिक्य कल्लु - गुरु-शिष्य संबंध की पवित्रता...., गौरी-मीनाक्षी बैनर में श्री मोहनन् द्वारा निदेशित माणिक्य कल्लु गुरु-शिष्य संबंध की सार्थकता को व्यक्त करती है।, अपने छात्रों के जीवन में नया परिवर्तन लाने में समर्थ एक अध्यापक का रेखाचित्र है ।, सरकारी मोड़ल हाईस्कूल, वण्णामला का अतीत गौरवमयी है । वर्तमान शिक्षामंत्री तक अनेक प्रमुख व्यक्तियाँ इस स्कूल की देन है । लेकिन, आज केवल 50 छात्र से यह स्कूल एस.एस.एल. सी परीक्षा में शत प्रतिशत पराजित स्कूलों की सूची में है । वहाँ विनयचंद्रन नामक एक युवा अध्यापक, आता है, जो उस पुराने विद्यालय में नियुक्ति माँग करके आयी है इस केलिए उनके कुछ निजी कारण भी है । दसवीं कक्षा के कक्षाध्यापक के, जिम्मेदारी वह स्वयं लेते है, जहाँ केवल 12 छात्र, 7 लडके और 5 लड़कियाँ पढ़ते हैं। लड़कियाँ आपस में बहस करते रहते है तो लड़के अपने, दूरबीन (binoculars) में उनके निरीक्षण करते रहते है।, प्रधान अध्यापक करुणाकर कुरुप्प (नेडुमुडि वेणु) अपनी सुविधा केलिए कक्षा में उर्वरकों रखते है । इसलिए लोग उसे 'फैक्टम् फोस' पुकारते, है। पवनन (कोट्टयम नज़ीर), भौतिक शास्त्र के अध्यापक होकर भी वस्तु विक्रेता है । एस. के (अनिल मुरली), एक नेता है जो पढ़ाई के अपेक्षा, ज़्यादा उपदेश देते है सार्वजनिक शिक्षा क्षेत्र की सुरक्षा केलिए जुलूस आदि का संयोजक भी है । अज़ीज़ (अनूप चंद्रन) सदा खाने और सोने में व्यस्त, है। वी.सी.सी ( जगदीश) स्कूल समय में भी टेलिविज़न शो केलिए छात्रों को तैयार करने में व्यस्त है । चाँदनी ( संवृता सुनिल), शारीरिक शिक्षा, अध्यापिका होने के साथ ही अंड़े विक्रेता भी है ।, अध्यापक ऐसा है तो वहाँ के छात्र की हालत कैसी होगी? दसवीं कक्षा के मनु, वहाँ के मद्य तस्कर करुणन् करिकलकुषी के सहायक है।, छात्रों की उन्नति पर ध्यान रखकर, अपने प्यार एवं ममता से स्कूल में अनुशासन लाने और अध्यापक और छात्रों को कक्षा में लाने केलिए वह प्रयत्न, भी करते है। लोग इसे 'तुग्लक परिष्कार' नाम दिया तो अंत में सह-अध्यापक ईमानदार और छात्रों के प्रति ज़िम्मेदारी रहने की आवश्यकता, समझकर, विनयचंद्रन के हाथ पकडते है। प्रधान अध्यापक भी प्रोत्साहन करते है, जिसके फलस्वरूप उस वर्ष की एस. एस.एल. सी परीक्षा में स्कूल, शत प्रतिशत विजय प्राप्त की। विनयचंद्रन क्यों ऐसी एक स्कूल को चुन लिया ? प्रश्न का उत्तर भी पूर्वदीप्ति के सहारे व्यक्त करते हैं।, पटकथा अत्यंत रोचक एवं नित्य प्रासंगिक है । छायांकन, पी. सुकुमारन् का है । अनिल पनच्चूरान और रमेश काविल के गीत प्रसंगोचित है ।, संगीत एम.जयचंद्रन का है। 'नाडायालोरु स्कूल वेणम्' एक ग्रामीण गीत है, जो सलीम कुमार ने गाकर अभिनय किया है। श्रेया गोषाल की आलापन, में 'चेंपरत्ती' अत्यंत सुरीली सिद्ध हो गई है । संपादन रंजन् एब्रहाम ने किया।, फिल्म में पृथ्वीराज, संवृता, नेड्मुडी वेणु, जगती श्रीकुमार, कोट्टयम नज़ीर आदि का महत्वपूर्ण भूमिका है। विनयचंद्रन की भूमिका पृथ्वीराज, ने अनश्वर बनाया। अपने संपूर्ण क्षमता को समेटते हुए एम. मोहनन ने प्रक्षकों के दिल में माणिक्य कल्ल की प्रतिष्ठा की. जो हर ज़माने में भी, प्रासंगिक है।, क्लासमेट्स, कालेज के दिन हर व्यक्ति के जीवन के सुंदर समय होता है। इसके हँसी मज़ाक और त्रासदी को बतानेवाला अनेक फिल्म मलयालम में निकल, चुकी है। पत्मराजन्-भरतन् जोडी के 'चामरम्', वेणु नागवल्ली की 'सर्वकलाशाला' एवं 'सुखमो देवी', मोहन के 'शालिनी एन्टे कूट्टुकारी', षाफी के, चोक्लेटस' आदि आज कौन भूल सकते हैं?, स्वच्छ-शाँत कॉलेज जीवन...., HSSLIVE.IN, लाल जोस द्वारा निदेशित 'क्लासमेट्स' को मलयालम के कैंपस कहानियों में हमेशा एक खास स्थान है । प्रेक्षक के हृदयतंत्रियों को, खींचनेवाला मनोरंजक कहानी है। सेवानिवृत्त प्रोफेसर अय्यर बालचंद्र मेनन) और पत्नी रसायन शास्त्र के प्रोफेसर लक्ष्मी (शोभा मोहन) के द्वारा, सी.एम.एस कालेज, कोट्टयम के 1991 दल के छात्रों के पुनरमिलन के आयोजन से फिल्म शुरु होते है । यह उनके इकलौता पुत्र मुरली (नरेंन), जो, कालेज की गायक भी है, की याद में है, जिसकी मृत्यु स्नातक स्तर के अंतिम वर्ष के दौरान आकस्मिक एवं रहस्यमी परिस्थिति में हुई है।, मुरली को एक सपना था कि, स्नातक स्तर की पढ़ाई के दस वर्ष बाद वे फिर कालेज में मिलेगा। अपने- अपने वैयक्तिक इच्छाओं की पूर्ति, केलिए वे फिर वहाँ एकत्रित होते है। संघ का नायक सुकुमारन्, एस. एफ.के के उग्र नेता थे, अब मुंबई के हीरा व्यापारी है । सतीशन् करञजीकुषी,, डी.एस.यू के प्रतिद्वन्द्वी छात्र नेता थे, अब एक विधायक है। उसके साथ हमेशा 'वालु' वासु (विजीष) है, जो उसके दाहिना हाथ एवं निजी सहायक, है। पयस जोर्ज (इंद्रजीत) एक अमीर व्यापारी के पुत्र और सुकुमारन के साथी है , अब विदेश में है । तारा कुरुप्प (काव्या माधवन), जो मंत्री -पुत्री और, नर्तकी भी है, सुकुमारन से प्यार करते है, अब एक नृत्य विद्यालय चलाता है और अब भी अविवाहिता है । रज़िया (राधिका), एक खास 'बुर्का' पहनने, के कारण कालेज के 'पेगुइन है ।, पुनःमिलन के उसी दिन रात मे गिटार की तार से गला दबाकर आसन्न मृत्यु होकर सुकुमारन को आस्पताल में प्रवेश कराता है । यह एक, आत्महत्या प्रयत्न है या ठंड़ा-खून (cold-blooded) हत्या का प्रयत्न ? इसकी खोज में अतीत जीवन की रील खुल जाते है । पयस अपनी यादों से, कालेज जीवन की कहानी प्रोफेसर अय्यर से बताते हैं जिसके अंत अप्रत्याशित मोड तक पहुँचती है।, पटकथा स्तरीय है, जो जेइम्स आलबर्ट ने किया । राजीव रवि ने महाराजा कालेज के वातावरण में कैंपस के दृश्यों बडे शानदार ढंग से, छायांकन किया है। सुकुमारन-तारा कुरुप्प के प्रणय रसायन प्रयोगशाला में अत्यंत सुंदर ढंग से चित्रित है । कैंपस के विनोद-कैंटीन, होस्टल वार्डन, फादर एस्तप्पान (जगती), पुस्तकालय , हिंसात्मक विद्यार्थी राजनीति, प्रणय, चुनाव - आदि सारे घटनाएँ दर्शकों के मन में हँसी उठाते है।अपनी संपूर्ण, क्षमता से लाल जोस प्रेक्षकों में हँसी-मज़ाक उठाते है। गीत वयलार शरत् चंद्र वर्मा का है और संगीत अलक्स पॉल ने की है। फ्लैषबैक के समय के, 'काट्टाडी तणलुम' गीत दर्शकों को पुनरः अपने कालेज दिनों की ओर खींचते है।, सुकुमारन के जीवन, जो सार्थक में तारा से प्रेम करनेवाला कालेज विद्यार्थी ही है, पृथ्वीराज ने अनश्वर बना दिया। जयसूर्या भी हास्य और, गंभीर दोनों पक्षों का सही प्रस्तुतीकरण एक साथ किया । पृथ्वीराज और तारा कुरुप्प के कुछ रोचक मुहूर्त भी इसमें है इंद्रजीत, नरेंन, राधिका आदि, ने अपनी-अपनी भूमिकाओं में प्रेक्षक को हँसाने में सफल हुए । बालचंद्र मेनन, जगती, शोभा मोहन जैसे सहायक अभिनेताओं ने अपनी अनुभव संपत्ति से, छोटे-छोटे भूमिकाओं में भी जादू का काम किया । सही अर्थ में यह 80-90 के कैंपस जीवन दर्शकों के सामने प्रस्तुत करते है।, 1., Hss Live, Downloaded from www.hsslive.in
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चक दे इंडिया ।, हम सब भारतीय है....., भारत में खेलों पर आधारित फिल्म बहुत कम निकली है । शिमित अमीन का चक दे इंडिया ऐसी कहानी है। हॉकी हमारा राष्ट्रीय खेल है, और अभी-अभी इसकी गिनती पिछडा हुआ खेलों में है। इस खेल पर फिल्म बनाकर शिमित अमीन ने एक साहसिक काम किया है ।, कबीर खान एक वरिष्ठ हॉकी खिलाडी है, जो भारतीय टीम का सँटर फॉरवार्ड भी है । पाकिस्तान के विरुद्ध एक खेल के फाइनल की अंतिम, क्षणों में पेनाल्टी स्ट्राइक के ज़रिए गोल बनाने में वह असफल हुए और इसलिए ही भारत हार गया । मुस्लिम होने के कारण उसकी देशभक्ति पर, प्रश्नचिह्न लगा दिया, वह गद्दार कहा गया। उस खेल के बाद खिलाडी के रूप में उसकी प्रतीक्षा नष्ट हो गया। सात वर्ष बाद अपने खोया नाम, वापस लाने केलिए वह महिला हॉकी टीम का प्रशिक्षक बनता है। टीम को विश्व चैंपियन बनाकर अपने ऊपर लगे हुए दाग को धोना उनका लक्ष्य रहा,, लेकिन वह आसान नहीं थी। खिलाडियों की ध्यान खेल पर कम था, वे अपने नाम केलिए खेलती थी। देश के विभिन्न भागों से आई इन लडकियों में, एकता नहीं थी।, कबीर इन लडकियों के मन में देश के विभिन्न भागों से होकर भी अपने देश व टीम के प्रति प्रेम की भावना जागते है। उनकी प्रशिक्षण में, सभी बाधाओं को पार करते है और अंत में कठिन प्रशिक्षण और परिश्रम से अपनी टीम को विजेता बनाता है।, कहानी तो सरल है, लेकिन जयदीप साहनी की पटकथा इतनी गंभीर है कि, पहले शॉट से ही दर्शक फिल्म से जुड जाता है। फिल्म का, संवाद भी जयदीप साहनी का है, जो पात्र, भाव और परिवेश के अनुकूल है । शिमित अमीन का निदेशन बेहद शानदार है। शाहरुख खान ने एक, खिलाडी और एक कठोर प्रशिक्षक- दोनों भूमिकाओं को अनश्वर बना दिया। अपने ऊपर लगे हुए दाग को धोने की उनकी बेचैनी उनके आँखों में सदा, विद्यमान है। विद्या मालवदे, सागरिका, अंजन श्रीवास्तव , जावेद खान आदि भूमिकाएँ भी महत्वपूर्ण है। जयदीप साहनी का 2-3 गीत है, जिसका, संगीत सलीम-सुलमाने ने किया है। अमिताभ शुक्ला ने अतीव सतर्कता से फिल्म का संपादन-कार्य किया है।, हॉकी के ज़रिए दर्शकों में देशप्रेम की भावना जगाती है। एक दृश्य में खेल के पूर्व जब 'जन-गण-मन' की धुन बजती है, तो थियेटर में, दर्शक बड़े सम्मान से खड़े हो जाते है। मनोरंजन प्रधान फिल्मों के इतिहास में एक खेल के ज़रिए देशप्रेम को जागरित करनेवाला 'चक दे इंडिया, बिलकुल एक मील पत्थर है। सभी भारतीय एक बार ज़रूर यह फिल्म देखी जानी चाहिए।, सत्य की जय हो., ®, HSSLIVE.IN, सही कहा है किसी ने, सत्य परेशान हो सकता है, पराजित नहीं- सुहेल खान द्वारा निदेशित जय हो, हमें ऐसा एक संदेश देता है। फिल्म, जय हो, हमें यह दिखाती है कि आज दुनिया भर भ्रष्टाचार की छाया है। राजनीति, शासन, पुलिस आदि में व्याप्त भ्रष्टाचार की बात कही गई है।, फिल्म का केंद्र एक परिवार है, जिसका बेटा जय अग्निहोत्री ( सलमान खान) सेना में है। जय ऐसा एक व्यक्ति है, जो कहीं कुछ गलती, देखता है, उसके विरुद्ध आवाज़ उठाता है और उसकेलिए किसी से भी लडते है।, सेना से बर्खास्त करने के बाद वह अपने मित्रों के साथ एक चेन बनाता है। इसका लक्ष्य है कि लोगों को भी अपने जैसे बनाना अर्थात लोगों, में दूसरों को मदद करने की भावना बढ़ाना। जय या साथी जिन लोगों की मदद करते है और जब वे उन्हें थैंक्यु (च्ण्ुदत्त न्दृद्व) कहे तो जय और, साथी उन्हें कहते है, थैंक्यू नहीं इसके बदले आप तीन और लोगों की मदद कीजिए और उन्हें भी यही कहिए कि वे भी थैंक्यू के बदले दूसरों की, मदद करें। इस तरह से करोड़ लोगों की एक चेन बन जाती है। इस तरह से दुनिया को स्वस्टैं और स्वच्छ बनाया जा सकता, |, अपनी मददगार स्वभाव से एक बार उसकी मुलाकात राज्य के गृह-मंत्री दशरथ सिंह (डैनी) और परिवार से होता है । दशरथ सिंह बेहद, भ्रष्ट और ताकतवार है । उसकी ताकत में जय की बहन गीता (तबु) डर जाती है । गीता जय रक समझौता का दवाब डालती है । जय, बहन की बातें, सुनकर समझौते केलिए आता है, लेकिन अपने स्वभाव के कारण मंत्री को भी सबक सिखाता है ।, ए.आर. मुरुगदास द्वारा लिखी गई कहानी 'स्टालिन' इसकी आधार है । अंतराल तक फिल्म को रोमांस, कामडी, और ऐक्शन ( Action), के सहारे आगे बढाया गया है, शेष भाग में जय और दशरथ के बीच के लडाई है।, इसमें सलमान खान, नव प्रतिभा डैजी शाह, तबु और साना खान की महत्वपूर्ण भूमिका है । जय की परेशानी , बेचैनी, एवं हताश को सलमान, खान ने अनश्वर बना दिया। पटकथा दिलीप शुक्ला का है, जो स्तरीय है। छायांकन संतोष तुंडियिल ने किया। संपादन हर्ष तीवारी से अतीव भावुकता, से की है। गीत सजिद वाजिद-देवी श्री प्रसद युग्म का है।, वास्तव में फिल्म देखते हुए हमें ऐसा लगता है, हम आम घटनाओं को ही देख रहे हैं।, ****************, Hss Live, Downloaded frpm www.hsslive.in