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0७९शं०ा 1:, , जसदेव की पिटाई के बाद मज़दूरों का समूचा दिन कैसा बीता?, , ५७५६४:, , जसदेव की पिटाई के बाद मज़दूरों का समूचा दिन दहशत तथा अदृश्य डर में बीता था। सभी इस डर में जी रहे थे कि न जाने, कब सूबेसिंह आएगा और फिर मार-पिटाई का दौर चल पड़ेगा।, , 2806 ३० 77:, , 0७९श४०ा॥ 2:, , 'ईंटों को जोड़कर बनाए चूल्हे में जलती लकड़ियों की चिट-पिट जैसे मन में पसरी दुश्चिताओं और तकलीफ़ों की प्रतिध्वनियाँ थीं, जहाँ सब कुछ अनिश्चित था।' - यह वाक्य मानो की किस मनोस्थिति को उजागर करता है?, , 21१७9५४४६१:, , यह वाक्य मानो के मन की दुविधाग्रस्त तथा कष्ट की स्थिति को दर्शाता है। मानो सदैव अपने भविष्य के लिए चिंतित रहती थी।, वह सदैव अनिश्चितता, कष्ट तथा तकलीफों के बारे में सोचती रहती थी। ये बातें उसके मन में विद्यमान थीं। जैसे जलती, लकड़ियों के मध्य चिट-पिट की आवाज़ होती है, वैसे ही उसके मन में उठने वाली अनिश्चितता, कष्ट तथा तकलीफें धीरे-धीरे, उभरती रहती थीं। ये सभी उसके मन में छोटे रूप में विद्यमान थीं। वे अभी तक ज्वाला का रूप धारण नहीं कर पाई थी।, , 2806 ३० 77:, , 0७९श०ा 3:, , मानो अभी तक भट्ठे की ज़िंदगी से तालमेल क्यों नहीं बैठा पाई थी?, , 21१७9५४४६१:, , मानो एक किसान परिवार से थी। वह पहले अपने मालिक स्वयं थे। अपने लिए कमाते थे। किसी के पास मज़दूरी नहीं करते, थे। बदहवाली के कारण उसे गाँव छोड़कर भट्ठे पर काम करने के लिए आना पड़ा था। अपने पति सुकिया के कारण उसे भट्ठे में, काम करना पड़ रहा था। भट्ठे का माहौल उसे पसंद नहीं था। शाम ढलते ही वहाँ का वातावरण काट खाने को आ रहा हो, ऐसा, लगता था। वह इस माहौल में घबराने लगती थी। यही कारण था कि यहाँ के जीवन से संबंध स्थापित नहीं कर पा रही थी।, , 2806 1१० 77:
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0७९श४०ा॥ 4:, , 'खुद के हाथ पथी ईटों का रंग ही बदल गया था। उस दिन ईटों को देखते-देखते मानो के मन में बिजली की तरह एक ख्याल, कौंधा था।' वह क्या ख्याल था जो मानो के मन में बिजली की तरह कौंधा? इस संदर्भ में सुकिया के साथ हुए उसके वार्तालाप, को अपने शब्दों में लिखिए।, , 21१७9५४४६१:, , खुद के हाथ से पथी ईटों का रंग बदला हुआ देखकर मानो के मन में इन्हीं पक्की ईंटों से घर बनाने का ख्याल आया। यह, सोचकर उसे नींद नहीं आ रही थी। अब वह भी चाहती थी कि ऐसी ही पक्की ईंटों से उसका अपना छोटा-सा घर हो। सुबह, जब मानो ने उसे उठाया तो उससे चुप न रहा गया।, , मानो: क्या हम इन पक्की ईंटों से अपने लिए एक घर बना सकते हैं?, , सुकिया: (हैरानपूर्वक) पगली दो-चार पैसे से पक्की ईंटों का घर नहीं बनता है। इसके लिए हमें बहुत-सा पैसा चाहिए।, , मानो: (भोलेपन से) दूसरों के लिए जब हम ईटें बनाते हैं, तो अपने घर के लिए भी ईंटें बना सकते हैं।, , सुकिया: (समझाते हुए) हम भट्टठे के मालिक के लिए काम करते हैं। ये सब ईटें उसकी हैं।, , मानो: (दुखी होकर) हम बहुत मेहनत करेंगे और पैसे जोड़कर अपने लिए घर बनाएँगें। इसके लिए हम रात-दिन मेहनत करेंगे।, , सुकिया: अच्छा ठीक है। ऐसा ही करेंगे।, , दोनों को जीवन का उद्देश्य मिल गया था।, , 2806 ४० 77:, , 0७९श०णा 5:, , असगर ठेकेदार के साथ जसदेव को आता देखकर सूबे सिंह क्यों बिफर पड़ा और जसदेव को मारने का क्या कारण था?
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५७५६४:, , सूबे सिंह की मानो पर बुरी नज़र थी। अतः उसने असगर ठेकेदार को मानो को बुलाने के लिए कहा। जब असगर ठेकेदार ने, यह बात मानो तथा सुकिया को कही, तो सुकिया क्रोधित हो उठा। स्थिति भाँपकर जसदेव ने फैसला किया कि वह मानो के, स्थान पर सूबे सिंह के पास जाएगा। जब सूबे सिंह ने देखा कि मानो नहीं आई है और उसके स्थान पर जसदेव आया है, तो वह, बिफर पड़ा। मानो का सारा गुस्सा उसने जसदेव पर निकाल दिया। उसने जसदेव को बहुत बुरी तरह मारा।, , 2808 1४० 77:, , (७९,४0० 6:, , 'सुकिया ने मानो की आँखों से बहते तेज़ अँधड़ों को देखा और उनकी किरकिराहट अपने अंतर्मन में महसूस की। सपनों के टूट, जाने की आवाज़ उसके कानों को फाड़ रही थी।" प्रस्तुत पंक्तियों का संदर्भ बताते हुए आशय स्पष्ट कीजिए।, , /4५७५४६४:, , प्रसंग- प्रस्तुत पंक्तियाँ ओमप्रकाश वाल्मीकि द्वारा रचित खानाबदोश रचना से ली गई हैं। मानो और सुकिया सब भुलाकर, अपना पक्का घर बनाने के सपने को पूरा करने में लगे हुए हैं। सूबेसिंह के गंदे इरादे उनकी राह में रोड़े अटकाना आरंभ कर देते, हैं। वह किसी भी कीमत में मानो को हासिल करना चाहता है। अतः वे दोनों पति-पत्नी को परेशान करने के लिए नए-नए बहाने, ढूँढ़ता है। आखिर एक दिन वह उनकी हिम्मत तोड़ने में सफल हो जाता है।, , व्याख्या- मानो जब रात को बनाई अपनी ईटों की दुर्दशा देखती है, तो ज़ोर-ज़ोर के रोने लगती है। वे पति-पत्नी बहुत प्रयास, करते हैं। सूबेसिंह हर बार उस पर पानी फेर देता है। अब उनके सहने की सीमा समाप्त हो गई है। उनकी बनाई सारी ईटें तोड़, दी गई हैं। मानो की आँखों से तकलीफ आँसू बनकर गिरने लगती है। हताश मानो को सुकिया रोते हुए देखता है। मानो की, आँखों से गिरते हुए आँसुओं को वह तेज़ अँधड़ों के समान देखता है। मानो के हृदय में उठने वाला दर्द, वह अपने ह्दय में, महसूस करता है। वह समझ जाता है कि यदि वह यहाँ से नहीं गया, तो जो आगे होगा वह उचित नहीं होगा।, , 2806 1५० 77:, , 0प९शांणा 7:, , 'खानाबदोश' कहानी में आज के समाज की किन-किन समस्याओं को रेखांकित किया गया है? इन समस्याओं के प्रति, कहानीकार के दृष्टिकोण को स्पष्ट कीजिए।, , #५9५४६२:, 'खानाबदोश' कहानी में आज के समाज की निम्नलिखित समस्याओं को रेखांकित किया गया है(क) किसानों का जीविका चलाने के लिए गाँवों से पलायन।, , (ख) मज़दूरों का शोषण तथा नरकीय जीवन।
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(ग) जातिवाद तथा भेदभाव भरा जीवन।, , (घ) स्त्रियों का शोषण।, , लेखक ने प्रस्तुत कहानी में सुकिया और मानो के माध्यम से निम्नलिखित समस्याओं को हमारे समक्ष रखा है। ये ऐसे दो पात्रों, की कहानी है, जो भेड़चाल में जीवन नहीं बिताना चाहते हैं। वे समझौता नहीं करते हैं। अपनी मेहनत पर विश्वास करते हैं और, समाज के ठेकेदारों को मुँहतोड़ जवाब देते हैं। वे अपनी शर्तों पर जीने के लिए कष्टों तक को गले लगाने से चूकते नहीं हैं।, , 2806 1५० 77:, 0प९शांणा 8:, , 'चल! ये लोग म्हारा घर ना बणने देंगे।! - सुकिया के इस कथन के आधार पर कहानी की मूल संवेदना स्पष्ट कीजिए।, , ५७५६४:, , इस कथन से सुकिया तथा मानो जैसे लोगों की शोषण भरी जिंदगी का पता चलता है। उन लोगों को पूँजीपतियों के हाथों, शोषण का शिकार होना पड़ता है। पूँजीपति वर्ग उन्हें पैसे के ज़ोर पर अपने हाथों की कठपुतलियाँ बनाकर रखना चाहता है।, सूबेसिंह जैसे लोग सुकिया तथा मानो जैसे लोगों को चैन से जीने नहीं देते हैं। एक मज़दूर के पास यह अधिकार नहीं होता है, कि वह अपने अनुसार जीवन जी सके। वे इनके हाथों सदैव से प्रताड़ित होते आ रहे हैं। इन्हें या तो पूँजीपतियों की नाज़ायज़, माँगों के आगे घूटने टेकने पड़ते हैं या फिर खानाबदोश के समान एक स्थान से दूसरे स्थानों तक भटकना पड़ता है। सुकिया का, कथन मज़दूरों की इसी संवेदना को प्रकट करता है।, , 2898 ४० 77:, 0फ9९शं०णा 9:, , निम्नलिखित पंक्तियों का आशय स्पष्ट कीजिए- (पृष्ठ संख्या 78), , (क) अपने देस की सूखी रोटी भी परदेस के पकवानों से अच्छी होती है।, , (ख) इत्ते ढेर से नोट लगे हैं घर बणाने में। गाँठ में नहीं है पैसा, चले हाथी खरीदने।, , (ग) उसे एक घर चाहिए था- पक्की ईटों का, जहाँ वह अपनी गृहस्थी और परिवार के सपने देखती थी।, , (घ) फिर तुम तो दिन-रात साथ काम करते हो.....मेरी खातिर पिटे.....फिर यह बामन म्हारे बीच कहाँ से आ गया....?, (ड) सपनों के काँच उसकी आँख में किरकिरा रहे थे।, , 21१9५४४६१:, , (क) मनुष्य जहाँ पैदा हुआ होता है, वही उसका देश है। वहाँ पर यदि उसे पकवान के स्थान पर साधारण खाना भी मिले, तो, वह अच्छा होता है। अभिप्राय है कि जहाँ मनुष्य बचपन से रहता आया है, वहाँ पर जीने के लिए उसे दूसरों की शर्तों पर नहीं
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चलना पड़ता। वहाँ पर वह मान-सम्मान से जीता है। दूसरे स्थान पर उसे दूसरे मनुष्य की बनाई शर्तों पर जीना पड़ता है। ऐसे, भी उसका मान-सम्मान जाता रहता है।, , (ख) सुकिया, मानो को कहता है कि घर बनाना आसान काम नहीं है। इसके लिए बहुत सारे नोटों की आवश्यकता होती है।, इस समय हमारे पास इतने पैसे नहीं है। हमारी ऐसी ही स्थिति है कि हाथ में पैसा नहीं है और हाथी खरीदने की इच्छा रखते हैं।, , (ग) मानो तथा सुकिया मज़दूर थे। वे ठेकेदार द्वारा दी गई झुगियों में रहती थे। मानो के मन में अपना घर बनाने का सपना, जन्म लेने लगा था। वह अपने लिए एक पक्का घर चाहती थी। अपने घर में वह अपनी गृहस्थी को आगे बढ़ाना चाहती थी तथा, अपने बच्चों के लिए छत चाहती थी।, , (घ) मानो, जसदेव को खाना देने जाती है। वह उसके हाथ की बनाई रोटी खाने से मना कर देता है। उसकी यह हिचक, निकालने के लिए सुखिया कहती है कि तुम हमारे साथ रात-दिन काम करते हो। मुझे बचाने के लिए तुमने मार भी खाई है।, ऐसे में जब हम सब एक हो चुके हैं, तो हमारे बीच में जाति कहाँ से आ जाती है। अर्थात तुम ब्राह्मण हो या हम चमार इससे, कोई फर्क नहीं पड़ता है। हम अब एक ही हैं।, , (ड) जिस प्रकार काँच के टूटने पर उसके छोटे टुकड़े आँख में जाने से तकलीफ देते हैं, वैसे ही मानो के सपनों टूट कर उसकी, आँखों को तकलीफ दे रहे थे। उसने सोचा था कि खूब मेहनत करेगी और पक्की ईंटों का एक छोटा-सा घर बनाएगी। वह, सपना टूट कर चकनाचूर हो चूका था। उसके कारण उसकी आँखें रो-रोकर काट रही थीं।, , 2868 1५० 78:, (७९५४०॥ 10:, नीचे दिए गए गद्यांश की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए, भट्ठे के उठते काले धुएँ ................ ज़िंदगी का एक पड़ाव था यह भट्ठा।, , /4५७५४६४:, , प्रसंग- प्रस्तुत पंक्तियाँ ओमप्रकाश वाल्मीकि द्वारा रचित कहानी खानाबदोश से ली गई हैं। इसमें भट्ठा छोड़कर जाते मानो तथा, सुकिया के हृदय का दुख बयान किया गया है। दोनों सूबेसिंह के अत्याचारों से तंग आकर भट्ठा छोड़ने के लिए विवश हो जाते, हैं।