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लेखन, , इकाई तीन
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14 1, कार्यालयी लेखन, , और प्रक्रिया, , इस पाठ में..., , औपचारिक पत्र, , टिप्पण, मुख्य टिप्पण, आनुषंगिक टिप्पण, अनुस्मारक, , अर्धसरकारी पत्र, , स्वत: स्पष्ट टिप्पणी, , कार्यसूची, , कार्यवृत्त, , प्रेस विज्ञप्ति, , परिपत्र, , कक कक ओआऋ फअओकऊफअक क कु अऋ, , , , जवाब देना है, , किसी ऐरे-गैरे को नहीं, , बल्कि मुझे समंदर को जवाब देना है।, -वेणु गोपाल, , हिंदी कवि, , , , आपको किसी आम सरकारी दकफ़्तर में जाने, का अवसर अवश्य मिला होगा जहाँ आपने, कागज़ों और फ़ाइलों के ढेर देखे होंगे। ये, फाइलें दफ़्तरों के कामकाज में महत्त्वपूर्ण, भूमिका निभाती हैं। सरकारी कामकाज की, गाड़ी फ़ाइलों के पहियों पर ही दोड़ती है।, , किसी भी विषय पर विचार करने और, उस पर निर्णय लेने के लिए उस विषय से, संबंधित एक फ़ाइल होती है। उस विषय से, संबंधित जो प्रस्ताव या पत्र बाहरी व्यक्तियों, या दूसरे कार्यालयों से प्राप्त होते हैं उन्हें, फ़ाइल की दाहिनी तरफ़ रखा जाता है।, किसी प्रस्ताव या विषय पर विचार के लिए, जो टिप्पणियाँ लिखी जाती हैं या मंतव्य, प्रकट किए जाते हैं वे फ़ाइल की बाई तरफ़, लगे पृष्ठों पर होते हैं।, , जैसा कि अभी ऊपर बताया गया, फ़ाइल, के बाई तरफ़ का हिस्सा टिप्पण के लिए, और दाहिनी तरफ़ का हिस्सा पत्र व्यवहार, को संजोकर रखने के लिए होता है।, , 2020-21
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अभिव्यक्ति और माध्यम, , सरकारी कार्यालयों की ज़रूरतों को ध्यान में रखते हुए इन पत्रों को कई श्रेणियों में बाँट दिया, गया है। मसलन, कई पत्र सूचनाएँ माँगने या भेजने के लिए लिखे जाते हैं। कुछ पत्रों द्वारा मुख्यालय, या बड़े अधिकारी अपने अधीनस्थ कार्यालयों या अधीनस्थ कर्मचारियों को आदेश भेजते हैं। कुछ, पत्र अखबारों को विभागीय गतिविधियों की जानकारी देने के लिए भेजे जाते हैं। हर श्रेणी के पत्र, के लिए एक विशेष स्वरूप निर्धारित कर दिया गया है। इस पाठ में हम इन्हीं अलग-अलग स्वरूपों, की चर्चा करेंगे।, , इन स्वरूपों की जानकारी प्राप्त करने के लिए हम किसी कार्यालय में चलते हैं। आप इसका, नाम जानना चाहेंगे? अजी नाम में क्या रखा है! चलिए हम इसका नाम रखते हैं अखिल भारतीय, साहित्य एवं सस्कृति संस्थान। यह है संस्थान का मुख्यालय जिसे महानिदेशालय के नाम से जाना, जाता है। देशभर में फैले तमाम क्षेत्रीय कार्यालय इसी के नियंत्रण में आते हैं। आइए हम इसके, अंदर चलें।, , यह है महानिदेशालय का प्रशासन विभाग। यहाँ एक अनुभाग अधिकारी शंकरन जी पूरी, गंभीरता से किसी मसले को सुलझाने में व्यस्त हैं। सामने एक पत्र पड़ा है जो मसले का केंद्रबिंदु, है। पत्र मुंबई के क्षेत्रीय कार्यालय से आया हुआ है और इस प्रकार है, , , , , , , , , औपचारिक पत्र ( फ़ॉर्मल लेटर ), के भारतीय साहित्य एवं संस्कृति संस्थान, क्षेत्रीय कार्यालय : मुंबई, 'फा.संख्या: मुंबई /का./5/2005/206 मुंबई, 15 मार्च 2005, सेवा में,, महानिदेशक, , अखिल भारतीय साहित्य एवं संस्कृति संस्थान, तिलक मार्ग, नयी दिल्ली-110001, , विषय: मोबाइल फ़ोन पर होने वाले व्यय के लिए निर्धारित सीमा, , महोदय,, , कृपया अपने परिपत्र का स्मरण करें जिसकी संख्या 24/13/प्र./2004 थी, जो 23 नवंबर,, 2004 को जारी किया गया था। परिपत्र में हिदायत दी गई थी कि मोबाइल फ़ोन पर महीने में दो, हज़ार से अधिक खर्च नहीं किया जाना चाहिए।, , इस संबंध में निवेदन है कि मुंबई स्थित क्षेत्रीय कार्यालय की गतिविधियाँ अत्यंत व्यापक हैं।, देश के तमाम फ़िल्म और टेलीविज्ञन निर्माता मुंबई में ही हैं। इनकी वजह से विभिन्न विधाओं, के कलाकार बड़ी संख्या में मुंबई में ही निवास करते हैं। साथ ही निदेशक को देश के विभिन्न, नगरों में स्थित कार्यालयों एवं क्षेत्रीय कार्यालय से भी निरंतर संपर्क में रहना पड़ता है। साथ ही, , 2020-21
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कार्यालयी लेखन और प्रक्रिया, , डलनय- की गतिविधियों के लिए प्रायोजक जुटाने के सिलसिले में देश के विभिन्न औद्योगिक, संगठनों से भी लगातार बात करनी पड़ती हे।, , ऊपर बताए तथ्यों की वजह से दो हज़ार रुपए मासिक की सीमा मुंबई कार्यालय के लिए, कम पड़ रही है। पिछले छह महीनों से यह देखा जा रहा है कि मासिक खर्च छह हज़ार रुपये, , के आसपास आता है।, , अतः निवेदन है कि मुंबई कार्यालय की विशेष स्थिति को ध्यान में रखते हुए मोबाइल फ़ोन, पर मासिक खर्च की सीमा बढ़ाकर छह हज़ार रुपये कर दी जाए।, , भवदीय, , श्प्प, (राकेश कुमार), , निदेशक, , , , शंकरन जी ने पत्र को पढ़कर, बुरा-सा मुँह बनाया। वे पत्र में बताए, गए कारणों से कतई सहमत नहीं थे।, उन्हें लग रहा था कि खर्च की सीमा, को बढ़ाना फ़िजूलखर्ची को दावत देना, है। अगर एक जगह ढील दे दी जाए, तो ऐसी दस माँगें लेकर लोग सामने, आ जाते हैं। लेकिन यह तो उनकी, व्यक्तिगत राय थी।, , दफ़्तर का एक अपना तरीका होता, है और निर्णय में अन्य दूसरे लोगों की, भी भूमिका होती है। लिहाज़ा उन्होंने वह, पत्र अपने सहायक ज्ञान प्रकाश जी को, इस निर्देश के साथ भेजा कि इस पर, आवश्यक कार्रवाई की जाए।, , ज्ञान प्रकाश जी खुर्राट सहायकों में, से एक हें। विभाग में लंबे अर्से से हैं, और इस वजह से वे विभागीय ज्ञान के, भंडार हैं। उन्हें कार्यालय नियमावली, की चलती-फिरती लाइब्रेरी कहना कोई, अतिशयोक्ति नहीं होगी।, , ज्ञान प्रकाश जी ने तुरंत वह फ़ाइल, निकाली जो मोबाइल फ़ोन के खर्च में, , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , ध्यान देने की बातें, , » सरकारी पत्र औपचारिक पत्र की श्रेणी में आते हैं।, , » प्राय: ये पत्र एक कार्यालय, विभाग अथवा मंत्रालय से दूसरे, कार्यालय, विभाग या मंत्रालय को लिखे जाते हैं।, , » पत्र के शीर्ष पर कार्यालय, विभाग या मंत्रालय का नाम व पता लिखा, जाता है।, , » पत्र के बाईं तरफ़ फ़ाइल सख्या लिखी जाती है जिससे यह स्पष्ट हो सके, कि पत्र किस विभाग द्वारा किस विषय के तहत कब लिखा जा रहा है।, , » जिसे पत्र लिखा जा रहा है उसका नाम, पता आदि बाईं तरफ़ लिखा जाता, है। कई बार अधिकारी का नाम भी दिया जाता है।, , » सेवा में” का प्रयोग धीरे-धीरे कम हो रहा है।, , » “विषय ' शीर्षक के अतर्गत संक्षेप में यह लिखा जाता है कि पत्र किस प्रयोजन, के लिए या किस सरददर्भ में लिखा जा रहा है।, , » विषय के बाद बाई तरफ़ “महोदय” संबोधन लिखा जाता है।, , » पत्र की भाषा सरल एवं सहज होनी चाहिए। क्लिष्ट शब्दों के प्रयोग से, बचना चाहिए।, , » अनेक बार स्टीक अर्थ प्रेषित करने के लिए प्रशासनिक शब्दावली का प्रयोग, करना ही उचित होता है।, , » इस पत्र के बाईं ओर प्रेषक का पता और तारीख दी जाती है।, , » पत्र के अत में 'भवदीय” शब्द का प्रयोग अधोलेख के रूप में होता है।, , » भवदीय के नीचे पत्र भेजने वाले के हस्ताक्षर होते हैं। हस्ताक्षर के नीचे, कोष्ठक में पत्र लिखने वाले का नाम मुद्रित होता है। नाम के नीचे पदनाम, लिखा जाता है।, , 2020-21