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निर्मला पुतुत्र, आओ मिलकर बचायें, , , , , , प्रस्तुत कविता 'आओ मिलकर बचायें' में कवयित्री निर्मला पुतुल जी ने अपनी संस्कृति, अपने, झारखंड की सभ्यता को बचाने का आह्वाहन किया है।, , शहरी सभ्यता के कारण झारखंड के लोग अपने निजी संस्कृति को भूत्रते चले जा रहे हैं।, जिस कारण कवसयित्री निर्मल्रा पुतुत जी अपने झारखंड को फिर से वापस लाने के लिए,, लोगों से आग्रह करती हैं कि लोग शहरी सभ्यता की आड़ में न पल्)ें।, , झारखंड की संस्कृति में बहुत कुछ व्याप्त है और जब अपनी संस्कृति खूबसूरत हो, तो, फिर शहरी संस्कृति को अपनाने की क्या जरूरत है। इन्हीं सब बातों की चर्चा इस संपूर्ण, कविता में की गयी है।, , , , प्रश्नोत्तर :, , » प्रश्न 1. माटी का रंग प्रयोग करते हुए किस बात की ओर संकेत किया गया है?, , उत्तर - माटी के रंग का प्रयोग करते हुए अपनी मातृभूमि की ओर संकेत किया गया है। जिस, स्थान पर हम पत्र कर बड़े हुए हैं उस स्थान की मिट्टी से मिले हमारे भावों को हमें संजो कर, रखना है। उस मिट्टी की हमें इज्जत करनी है और उसकी गरिमा को बनाए रखना है।
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०प्रश्न 2. भाषा में झारखंडीपन से क्या अभिप्राय है?, , उत्तर- भाषा में 'झारखंडीपन' से अभिप्राय झारखंड के लोगों की स्वाभाविक बोली से है।, , »प्रश्न 3. दिल के भोलेपन के साथ-साथ अक्खड़पन और जुझारूपन को भी बचाने की, आवश्यकता पर क्यों बल दिया गया है?, , उत्तर - कवयित्री को अपने परिवेश की स्वाभाविक विशेषताओं से लगाव है। मैं भोत्रेपन के साथसाथ अक्खड़पन और जुझारूपन को भी आवश्यक मानती है। कारण यह है कि भोले आदमी ही, जरा-जरा सी बात पर अकड़कर तन जाते हैं और संघर्ष करने के ल्रिए तैयार हो जाते हैं। दिल से, भोले बना रहना, बुरी बात को न सहकार उसके प्रति रोष प्रकट करना और लड़ जाना इन तीनो, गुणों का उपयोग है। इसलिए इनकी आवश्यकता है।, , ० प्रश्न 4. प्रस्तुत कविता आदिवासी समाज की किन बुराइयों की ओर संकेत करती है?, उत्तर : प्रस्तुत कविता आदिवासी समाज कि निम्न बुराइयों की ओर संकेत करती है , 1 यह समाज शहरी जीवन से प्रभावित हो रहा है। 2. अब इनके जीवन में उत्साह समाप्त हो, रहा है। 3. इन में अविश्वास की भावना बढ़ती जा रही है। 4. अपनी भाषा और परंपराओं को, गल्लत समझना जैसे दुर्गुण भी आते जा रहे हैं।, , प्रश्न 5. 'इस दौर में भी बचाने को बहुत कुछ बचा है' से क्या आशय है?, उत्तर : 'इस दौर में भी बचाने को बहुत कुछ बचा है! से आशय विश्वास को बचाए रखने से है।, कवसयित्री को अविश्वास-भरे दौर में आपसी विश्वास, उम्मीदों और सपने बचाने योग्य प्रतीत होते, हैं। उसके शब्दों में और इस अविश्वास-भरे दौर में, थोड़ा-सा विश्वास, थोड़ी-सी उम्मीद, थोड़े-से सपने।, प्रश्न 6. निम्नलिखित पंक्तियों के काव्य सौंदर्य को उद्घाटित कीजिए ( क ) ठंड होती दिनचर्या में, जीवन की गर्माहट, ( ख ) थोड़ा-सा विश्वास, थोड़ी-सी उम्मीद, थोड़े-से सपने, आओ, मिलकर बचाएं।, उत्तर: ( क ) (1 ) यह काव्य-पंक्ति ल्लाक्षणिक है। 'ठंडी होती दिनचर्या' का आशय है- उत्साहहीन,, उमंगहीन,नहलचल-शून्य जीवन। 'गर्माहट' उमंग, उत्साह और क्रियाशीलता की प्रतीक है।
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( 2 ) भाषा प्रतीकात्मक होते हुए भी अत्यंत सरल है।, (3 ) छंद मुक्त कविता।, , ( ख ) (1 ) इसमें प्रेरणा का स्वर है तथा कुछ कर गुजरने का आहवान।, , ( 2 ) अभिव्यक्ति प्रवाहपूर्ण है। थोड़ा-सा, थोड़ी-सी, थोड़े-से, तीनों प्रयोग थोड़े-से अंतर के साथ, एक ही अर्थ के वाहक हैं। इनके कारण लय का समावेश हुआ है।, , ( 3 ) भाषा सरल सहज एवं भावाभिव्यक्ति में सक्षम है।, , प्रश्न 7. बस्तियों को शहर की किस आबो-हवा से बचाने की आवश्यकता है?, , उत्तर - बस्तियों को शहर की नग्नता 'जड़ता' लालचीपन की आबो-हवा से बचाने की आवश्यकता, है। शहरी वातावरण में दिखावा, एकाकीपन, अलगाव, व्यस्तता आदि के साथ पर्यावरणीय प्रदूषण, भी एक बहुत बड़ी समस्या है। यह बस्तियां भी इस प्रभाव को ग्रहण करने लगेंगे तो बस्तियों में, सांस्कृतिक और पर्यावरणीय प्रदूषण फैल जाएगा। इन्हीं प्रभावों से कवयित्री बस्तियों को बचाना, चाहती है।, , कविता के आस-पास, ० प्रश्न 1. आप अपने शहर या बस्ती की किन चीजों को बचाना चाहेंगे?, , उत्तर - हम अपने शहर या बस्ती की प्राचीन धरोहर, यहां के रीति-रिवाज, स्वाभाविक रुचियां, और परंपराओं को बचाना चाहेंगे।, , ० प्रश्न 2. आदिवासी समाज की वर्तमान स्थिति पर टिप्पणी करें।, , उत्तर - आदिवासी समाज की वर्तमान स्थिति में शनै:-शनै परिवर्तन हो रहा है। आदिवासी बाहुल, क्षेत्रों में शिक्षा की उपयोगिता को ध्यान में रखते हुए शिक्षा केंद्र खोले जा रहे हैं। आदिवासी, समाज में बेरोजगारी की ओर भी ध्यान केंद्रित किया जा रहा है। वहां की पारंपरिक कलाकृति,, हस्तशिल्प आदि को बढ़ावा दिया जा रहा है। इससे वहां के लोगों के आर्थिक स्तर में सुधार, आया है। आदिवासी सांस्कृतिक पहचान को भी बचाने के निरंतर प्रयास किए जा रहे हैं। इस, प्रकार आदिवासी समाज की पहचान को बनाए रखते हुए उन्हें आधुनिक समाज से जोड़ने के, प्रयास किए जा रहे हैं।