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आमुख, राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा (2005) सुझाती है कि बच्चों के स्कूली जीवन को बाहर, के जीवन से जोड़ा जाना चाहिए। यह सिद्धांत किताबी ज्ञान की उस विरासत के विपरीत है।, जिसके प्रभाववश हमारी व्यवस्था आज तक स्कूल और घर के बीच अंतराल बनाए हुए है।, नयी राष्ट्रीय पाठ्यचर्या पर आधारित पाठ्यक्रम और पाठ्यपुस्तकें इस बुनियादी विचार पर, अमल करने का प्रयास हैं। इस प्रयास में हर विषय को एक मज़बूत दीवार से घेर देने और, जानकारी को रटा देने की प्रवृत्ति का विरोध शामिल है। आशा है कि ये कदम हमें राष्ट्रीय, शिक्षा नीति (1986) में वर्णित बाल-केंद्रित व्यवस्था की दिशा में काफ़ी दूर तक ले जाएँगे।, इस प्रयत्न की सफलता अब इस बात पर निर्भर है कि स्कूलों के प्राचार्य और अध्यापक, बच्चों को कल्पनाशील गतिविधियों और सवालों की मदद से सीखने और सीखने के दौरान, अपने अनुभव पर विचार करने का अवसर देते हैं। हमें यह मानना होगा कि यदि जगह,, समय और आज़ादी दी जाए तो बच्चे बड़ों द्वारा सौंपी गई सूचना-सामग्री से जुड़कर और, जूझकर नए ज्ञान का सृजन करते हैं। शिक्षा के विविध साधनों व स्रोतों की अनदेखी किए, जाने का प्रमुख कारण पाठ्यपुस्तक को परीक्षा का एकमात्र आधार बनाने की प्रवृत्ति है। सर्जना, और पहल को विकसित करने के लिए जरूरी है कि हम बच्चों को सीखने की प्रक्रिया में, पूरा भागीदार मानें और बनाएँ, उन्हें ज्ञान की निर्धारित खुराक का ग्राहक मानना छोड़ दें।, ये उद्देश्य स्कूल की दैनिक जिंदगी और कार्यशैली में काफ़ी फेरबदल की माँग करते, हैं। दैनिक समय-सारणी में लचीलापन उतना ही ज़रूरी है जितनी वार्षिक कैलेंडर के अमल, 200000, 00000, में चुस्ती, जिससे शिक्षण के लिए नियत दिनों की संख्या हकीकत बन सके। शिक्षण और, मूल्यांकन की विधियाँ भी इस बात को तय करेंगी कि यह पाठ्यपुस्तक स्कूल में बच्चों के, जीवन को मानसिक दबाव तथा बोरियत की जगह खुशी का अनुभव बनाने में कितनी प्रभावी, सिद्ध होती है। बोझ की समस्या से निपटने के लिए पाठ्यक्रम निर्माताओं ने विभिन्न चरणों, ज्ञान का पुनर्निर्धारण करते समय बच्चों के मनोविज्ञान व अध्यापन के लिए उपलब्ध समय, का ध्यान रखने की पहले से अधिक सचेत कोशिश की है। इस कोशिश को और गहराने, के यत्न में यह पाठ्यपुस्तक सोच-विचार और विस्मय, छोटे समूहों में बातचीत व बहस और, हाथ से की जाने वाली गतिविधियों को प्राथमिकता देती है।, एन.सी.ई.आर.टी. इस पुस्तक की रचना के लिए बनाई गई पाठ्यपुस्तक निर्माण समिति, के परिश्रम के लिए कृतज्ञता व्यक्त करती है। परिषद् भाषा सलाहकार समिति के अध्यक्ष, प्रोफ़ेसर नामवर सिंह और इस पुस्तक के मुख्य सलाहकार प्रोफ़ेसर पुरुषोत्तम अग्रवाल की, विशेष आभारी है। इस पाठ्यपुस्तक के विकास में कई शिक्षकों ने योगदान दिया; इस योगदान, को संभव बनाने के लिए हम उनके प्राचार्यों के आभारी हैं। हम उन सभी संस्थानों और, संगठनों के प्रति कृतज्ञ हैं जिन्होंने अपने संसाधनों, सामग्री तथा सहयोगियों की मदद लेने में, हमें उदारतापूर्वक सहयोग दिया। हम माध्यमिक एवं उच्च शिक्षा विभाग, मानव संसाधन, OXXXXX, ০000000, 2020-21
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iv, विकास मंत्रालय द्वारा प्रोफ़ेसर मृणाल मीरी एवं प्रोफ़ेसर जी. पी. देशपांडे की अध्यक्षता में, गठित (मॉनिटरिंग कमेटी) द्वारा नामित श्री अशोक वाजपेयी और प्रोफ़ेसर सत्यप्रकाश मिश्र, को अपना मूल्यवान समय और सहयोग देने के लिए धन्यवाद देते हैं। व्यवस्थागत सुधारों, और अपने प्रकाशनों में निरंतर निखार लाने के प्रति समर्पित एन. सी. ई. आर. टी टिप्पणियों व, सुझावों का स्वागत करेगी जिनसे भावी संशोधनों में मदद ली जा सके।, नयी दिल्ली, 20 दिसंबर 2005, निदेशक, राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद्, © NCERT, not to be republished, 2020-21
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में आ, यह पुस्तक, विद्यार्थियों की सहज भाषा अभिव्यक्ति का ताकतवर जरिया बने। स्कूली जीवन से ही वे, बाहर की विशाल दुनिया में झाँकें, जीवन-जगत के अनेक रूपों को समझे-बूझें, रंग-बिरंगे, सपनों का ताना-बाना फैलाना सीखें, मुश्किलों को पहचानें और उसका सामना कर सकें यानी, अपनी राह तलाशने में या बनाने में वे खुद सक्षम हो सकें । राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा, (2005) में इन बिंदुओं पर खासा बल है। इन्हीं को ध्यान में रखकर नए पाठ्यक्रम के तहत, उच्चतर माध्यमिक स्तर पर हिंदी पढ़ने वाले विद्यार्थियों के लिए एक ऐसी पुस्तक की, परिकल्पना की गई, जो अभिव्यक्ति के अलग - अलग माध्यमों पर केंद्रित हो ।, अभिव्यक्ति और माध्यम नामक इस पुस्तक की तीन इकाइयाँ हैं - जनसंचार माध्यम और, लेखन, सृजनात्मक लेखन और व्यावहारिक लेखन। ये तीनों ही माध्यम एक विशेष बिंदु, पर एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं और व्यापक रूप से, पत्रकारिता का साहित्य से, साहित्य का व्यवहार से, 000000, 200000, इन सबका संचार से क्या संबंध है?, यह बताने की आवश्यकता नहीं।, माध्यम और लेखन संबंधी सामग्री पाँच, 00000, अध्यायों में दी गई है। अपने समय, समाज और देश के प्रति जागरूक बनाने में जनसंचार, माध्यम सबसे सशक्त माध्यम के रूप में, मीडिया में क्रांति-सी आई है। समाचार माध्यमों का विस्तार हुआ है और जनता का इससे जुड़ाव, बढ़ा है। मीडिया क्रांति ने जहाँ एक ओर पूरे विश्व से जुड़ने का अवसर दिया है वहीं दूसरी, ओर बाज़ार के दबाव, उभर कर सामने आया है। हाल के वर्षों में भारतीय, आम आदमी, उसके सुख-दुख, उसकी चिंताएँ, उसके सरोकार,, उसकी उम्मीदों को हाशिये पर रख दिया है । केंद्र में सेलिब्रिटीज़ हैं और बिकाऊ खबरें हैं । युवा, होते विद्यार्थियों को यह जानना ही होगा कि केंद्र और हाशिये का संतुलन तय करने में उनकी, कलम क्या भूमिका अदा कर सकती है? उन्हें यह समझना ही होगा कि एक खुशहाल देश, के निर्माण और प्रगति में भाषा की क्या भूमिका होती है? इन सबसे अनजान आज के बच्चों, को टेलीविज़न, रेडियो, अखबार, इंटरनेट और पत्रिकाएँ आकृष्ट तो करती हैं %3B जैसे, कहाँ से, आती हैं खबरें, कैसे छपते हैं अखबार, कैसे जुड़े हैं आपस में पूरी दुनिया के तार? वगैरह।, लेकिन इन सवालों के साथ-साथ उन्हें यह भी बताया जाना जरूरी है कि पूरी दुनिया के तार, जोड़ने वाली मीडिया की जानदार दुनिया उनकी सक्रिय और सचेत पहल के बिना कितनी, बेजान है। सही मायनों में संचार का यही अर्थ है । यह पुस्तक जनसंचार की दुनिया को जानने,, समझने और बच्चों से उनका तार जोड़ने की दिशा में एक पहल कर सकती है ।, कहा जाता है कि अच्छी पत्रकारिता अच्छा साहित्य है, उसी तरह से यह भी कहा जाता, है कि अच्छा साहित्य अच्छी पत्रकारिता की भूमिका निभाता है । यानी दोनों का लक्ष्य एक, है। इस पुस्तक की दूसरी इकाई में सृजनात्मक लेखन संबंधी आठ अध्याय शामिल हैं ।, साहित्य निर्जीव चीजों में भी स्पंदन भर देता है। यह स्पंदन भरना ही सृजनात्मकता है। इस, प्रक्रिया से जुड़ना केवल नदी, पहाड़, फूल, तारे, बादल, खेत आदि को ही नहीं बल्कि खुद, lllllll, 666, OXXXXX, 0000000, 2020-21