Page 1 :
DAWN OF THE CENTURY, औद्योगीकरण का युग, 1067CH04, DAWN OF THE CENTURY, ENTURY, MARCH &, Two STEP, BY E.T.PAULL., चित्र 1 -, डॉन ऑफ द सेंचुरी, ई.टी. पॉल म्यूज़िक कंपनी, न्यूयॉर्क, (अमेरिका) एवं इंग्लैंड, 1900, ई.टी. पॉल म्यूज़िक कंपनी ने सन् 1900 में संगीत की एक किताब प्रकाशित, की थी जिसकी जिल्द पर दी गई तसवीर में 'नयी सदी के उदय' (डॉन ऑफ़, द सेंचुरी) (चित्र 1) का ऐलान किया था । जैसा कि आप इस चित्र में देख, सकते हैं, तसवीर के मध्य में एक देवी जैसी तसवीर है। यह देवी हाथ में, नयी शताब्दी की ध्वजा लिए प्रगति का फ़रिश्ता दिखाई देती है। उसका एक, पाँव पंखों वाले पहिये पर टिका हुआ है। यह पहिया समय का प्रतीक है ।, उसकी उड़ान भविष्य की ओर है। उसके पीछे उन्नति के चिह्न तैर रहे हैं।, रेलवे, कैमरा, मशीनें, प्रिंटिंग प्रेस और कारख़ाना।, :, मशीन और तकनीक का यह महिमामंडन एक अन्य तसवीर में और भी ज़्यादा, साफ़ दिखाई देता है। यह तसवीर एक व्यापारिक पत्रिका के पन्नों पर सौ साल, से भी पहले छपी थी (चित्र 2 ) । इस तसवीर में दो जादूगर दिखाए गए हैं।, ऊपर वाले हिस्से में प्राच्य (Orient) इलाके का अलादीन है जिसने अपने, जादुई चिराग को रगड़ कर एक भव्य महल का निर्माण कर दिया है । नीचे, नए शब्द, प्राच्य : भूमध्य सागर के पूर्व में स्थित देश। आमतौर पर, यह शब्द एशिया के लिए इस्तेमाल किया जाता है।, पश्चिमी नज़रिये में प्राच्य इलाक़े पूर्व-आधुनिक, पारंपरिक, और रहस्यमय थे।, 2019-20, औद्योगीकरण का युग, अध्याय 4
Page 3 :
1 औद्योगिक क्रांति से पहले, औद्योगीकरण को अकसर हम कारखानों के विकास के साथ ही जोड़कर, देखते हैं। जब हम औद्योगिक उत्पादन की बात करते हैं तो हमारा आशय, फैक्ट्रियों में होने वाले उत्पादन से होता है। और जब हम औद्योगिक मजदूरों, की बात करते हैं, तो भी हमारा आशय कारखानों में काम करने वाले मज़दूरों, से ही होता है। औद्योगीकरण के इतिहास अकसर प्रारंभिक फैक्ट्रियों की, स्थापना से शुरू होते हैं।, पर इस सोच में एक समस्या है। दरअसल, इंग्लैंड और यूरोप में फैक्ट्रियों की, स्थापना से भी पहले ही अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार के लिए बड़े पैमाने पर, नए शब्द, औद्योगिक, उत्पादन होने लगा था। यह उत्पादन फैक्ट्रियों में नहीं होता था। बहत सारे आदि : किसी चीज़ की पहली या प्रारंभिक अवस्था का संकेत।, इतिहासकार औद्योगीकरण के इस चरण को आदि-औद्योगीकरण (proto-, industrialisation) का नाम देते हैं।, सत्रहवीं और अठारहवीं शताब्दी में यूरोपीय शहरों के सौदागर गाँवों की तरफ़, रुख़ करने लगे थे। वे किसानों और कारीगरों को पैसा देते थे और उनसे, अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार के लिए उत्पादन करवाते थे। उस समय विश्व व्यापार के, विस्तार और दुनिया के विभिन्न भागों में उपनिवेशों की स्थापना के कारण, चीज़ों की माँग बढ़ने लगी थी। इस माँग को पूरा करने के लिए केवल शहरों, में रहते हुए उत्पादन नहीं बढ़ाया जा सकता था। वजह यह थी कि शहरों में, शहरी दस्तकारी और व्यापारिक गिल्ड्स काफ़ी ताकतवर थे। ये गिल्ड्स, उत्पादकों के संगठन होते थे। गिल्ड्स से जुड़े उत्पादक कारीगरों को प्रशिक्षण, देते थे, उत्पादकों पर नियंत्रण रखते थे, प्रतिस्पर्धा और मूल्य तय करते थे तथा, व्यवसाय में नए लोगों को आने से रोकते थे। शासकों ने भी विभिन्न गिल्ड्स, को खास उत्पादों के उत्पादन और व्यापार का एकाधिकार, दिया हुआ था। फलस्वरूप, नए व्यापारी शहरों में कारोबार, नहीं कर सकते थे। इसलिए वे गाँवों की तरफ़ जाने लगे।, गाँवों में गरीब काश्तकार और दस्तकार सौदागरों के लिए, काम करने लगे। जैसा कि आपने पिछले साल की पाठ्यपुस्तक, में देखा है, यह एक ऐसा समय था जब खुले खेत खत्म होते, जा रहे थे और कॉमन्स की बाड़ाबंदी की जा रही थी। अब, तक अपनी रोज़ी-रोटी के लिए साझा ज़मीनों से जलावन की, लकड़ी, बेरियाँ, सब्ज़ियाँ, भूसा और चारा आदि बीन कर, काम चलाने वाले छोटे किसान (कॉटेज़र ) और गरीब किसान, आमदनी के नए स्रोत ढूँढ़ रहे थे। बहुतों के पास छोटे-मोटे, खेत तो थे लेकिन उनसे घर के सारे लोगों का पेट नहीं भर, सकता था। इसीलिए, जब सौदागर वहाँ आए और उन्होंने, माल पैदा करने के लिए पेशगी रकम दी तो किसान फ़ौरन, तैयार हो गए। सौदागरों के लिए काम करते हुए वे गाँव में, ही रहते हुए अपने छोटे-छोटे खेतों को भी सँभाल सकते थे।, चित्र 3 -, अठारहवीं सदी में कताई।, आप देख सकते हैं कि परिवार के सभी सदस्य धागा बनाने के काम में लगे, हैं। ध्यान से देखिए कि एक चरखे पर केवल एक ही तकली बन रही है।, 81, 2019-20, औद्योगीकरण का युग
Page 4 :
इस आदि-औद्योगिक उत्पादन से होने वाली आमदनी ने खेती के कारण, सिमटती आय, में, बड़ा सहारा दिया। अब उन्हें पूरे परिवार के श्रम संसाधनों नए शब्द, के इस्तेमाल का मौका भी मिल गया।, स्टेपलर : ऐसा व्यक्ति जो रेशों के हिसाब से ऊन को 'स्टेपल, करता है या छाँटता है।, इस व्यवस्था से शहरों और गाँवों के बीच एक घनिष्ठ संबंध विकसित हुआ।, सौदागर रहते तो शहरों में थे लेकिन उनके लिए काम ज़्यादातर देहात में चलता, था। इंग्लैंड के कपड़ा व्यवसायी स्टेप्लर्स (Staplers) से ऊन खरीदते थे, और उसे सूत कातने वालों के पास पहुँचा दते थे । इससे जो धागा मिलता था, उसे बुनकरों, फ़ुलर्ज़ (Fullers), और रंगसाजों के पास ले जाया जाता, था। लंदन में कपड़ों की फिनिशिंग होती थी। इसके बाद निर्यातक व्यापारी, कपड़े को अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में बेच देते थे। इसीलिए लंदन को तो फ़िनिशिंग, सेंटर के रूप में ही जाना जाने लगा था।, फुलर : ऐसा व्यक्ति जो 'फुल' करता है यानी चुन्नटों के सहारे, कपड़े को समेटता है।, कार्डिंग : वह प्रक्रिया जिसमें कपास या ऊन आदि रेशों को, कताई के लिए तैयार किया जाता है ।, यह आदि-औद्योगिक व्यवस्था व्यवसायिक आदान-प्रदान के नेटवर्क का, हिस्सा थी। इस पर सौदागरों का नियंत्रण था और चीजों का उत्पादन कारखानों, की बजाय घरों में होता था। उत्पादन के प्रत्येक चरण में प्रत्येक सौदागर, 20-25 मज़दूरों से काम करवाता था। इसका मतलब यह था कि कपड़ों के, हर सौदागर के पास सैकड़ों मज़दूर काम करते थे ।, 1.1 कारख़ानों का उदय, इंग्लैंड में सबसे पहले 1730 के दशक में कारखाने खुले लेकिन उनकी संख्या, में तेज़ी से इज़ाफ़ा अठारहवीं सदी के आखिर में ही हुआ।, कपास (कॉटन) नए युग का पहला प्रतीक थी। उन्नीसवीं सदी के आखिर, में कपास के उत्पादन में भारी बढ़ोतरी हुई। 1760 में ब्रिटेन अपने कपास, उद्योग की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए 25 लाख पौंड कच्चे कपास का, आयात करता था 1787 में यह आयात बढ़कर 220 लाख पौंड तक पहुँच, गया। यह इज़ाफ़ा उत्पादन की प्रक्रिया में बहुत सारे बदलावों का परिणाम था ।, आइए देखें कि ये बदलाव कौन से थे।, अठारहवीं सदी में कई ऐसे आविष्कार हुए जिन्होंने उत्पादन प्रक्रिया, (कार्डिंग, ऐंठना व कताई, और लपेटने) के हर चरण की कुशलता बढ़ा दी।, प्रति मज़दूर उत्पादन बढ़ गया और पहले से ज़्यादा मजबूत धागों व रेशों का, बाद रिचर्ड, रूपरेखा सामने रखी। अभी तक कपड़ा उत्पादन पूरे देहात में फैला हुआ था।, यह काम लोग अपने-अपने घर पर ही करते थे। लेकिन अब मँहगी नयी, मशीनें खरीदकर उन्हें कारखानों में लगाया जा सकता था | कारखाने में सारी, उत्पादन होने लगा।, कराइट ने सूती कपड़ा मिल की, प्रक्रियाएँ एक छत के नीचे और एक मालिक के हाथों में आ गई थीं । इसके, चलते उत्पादन प्रक्रिया पर निगरानी, गुणवत्त का ध्यान रखना और मज़दूरों पर, चित्र 4 - लंकाशायर की एक कॉटन मिल, सी.ई. टर्नर, द्वारा बनाया चित्र, दि इलस्ट्रेटेड लंदन न्यूज़, 1925, कलाकार ने कहा : 'अगर उस नम मौसम की नज़र से, देखें जिसके कारण लंकाशायर दुनिया में सूत कताई के, लिए सबसे आदर्श स्थान बनता है तो शाम के धुँधलके में, दमकता कॉटन मिल सबसे शानदार नज़ारा दिखाई देता है।, नज़र रखना संभव हो गया था। जब तक उत्पादन गाँवों में हो रहा था तब तक, ये सारे काम संभव नहीं थे।, 82, 2019-20, भारत और समकालीन विश्व
Page 5 :
उन्नीसवीं सदी की शुरुआत में कारखाने इंग्लैंड के भूदृश्य का अभिन्न अंग, बन गए थे। ये नए कारखाने इतने विशाल, और नयी प्रौद्योगिकी की ताकत, इतनी जादुई दिखाई देती थी कि उस समय के लोगों की आँखें चौंधिया जाती, थीं। लोगों का ध्यान कारखानों पर टिका रह जाता था| वे इस बात को मानो, जाते थे कि उनकी आँखों से ओझल गलियों और वर्कशॉप्स में अभी, गतिविधि, जिस तरह इतिहासकार छोटी वर्कशॉप की बजाय औद्योगीकरण, पर ध्यान केंद्रित करते हैं यह इस बात का एक बढ़िया उदाहरण, है कि आज हम अतीत के बारे में जो विश्वास लिए हुए हैं वे, इस बात से तय होते हैं कि इतिहासकार भी सिर्फ़ कुछ चीज़ों, पर ध्यान देते हैं और कुछ को नज़रअंदाज़ कर देते हैं। अपने, जीवन की किसी एक ऐसी घटना या पहलू को लिखें जिसे, आपके माता-पिता या शिक्षक आदि वयस्क लोग महत्त्वपूर्ण, नहीं मानते लेकिन आपको वह महत्त्वपूर्ण लगती है।, भूल, भी उत्पादन चालू, है।, 1.2 औद्योगिक परिवर्तन की रफ्तार, औद्योगीकरण की प्रक्रिया कितनी तेज़ थी? क्या औद्योगीकरण का मतलब, केवल फैक्ट्री उद्योगों के विकास तक ही सीमित होता है?, चित्र 5 - औद्योगिक मैनचेस्टर, एम. जैक्सन का चित्र, द इलस्ट्रेटेड लंदन न्यूज, 1857, धुआँ छोड़ती चिमनियाँ औद्योगिक इलाकों की पहचान बन गई थीं।, पहला : सूती उद्योग और कपास उद्योग ब्रिटेन के सबसे फलते-फूलते उद्योग, थे। तेज़ी से बढ़ता हुआ कपास उद्योग 1840 के दशक तक औद्योगीकरण के, पहले चरण में सबसे बड़ा उद्योग बन चुका था। इसके बाद लोहा और स्टील, उद्योग आगे निकल गए। 1840 के दशक से इंग्लैंड में और 1860 के दशक, गतिविधि, चित्र 4 और 5 को देखें। क्या आपको दोनों तसवीरों में, औद्योगीकरण को दर्शाने के ढंग में कोई फ़र्क दिखाई देता, से उसके उपनिवेशों में रेलवे का विस्तार होने लगा था। फलस्वरूप लोहे और है? अपना दृष्टिकोण संक्षेप में व्यक्त करें।, स्टील की ज़रूरत तेजी से बढ़ी। 1873 तक ब्रिटेन के लोहा और स्टील निर्यात, का मूल्य लगभग 7.7 करोड़ पौंड हो गया था। यह राशि इंग्लैंड के कपास, निर्यात के मूल्य से दोगुनी थी।, दूसरा : नए उद्योग परंपरागत उद्योगों को इतनी आसानी से हाशिए पर नहीं, ढकेल सकते थे। उन्नीसवीं सदी के आखिर में भी तकनीकी रूप से विकसित, औद्योगिक क्षेत्र में काम करने वाले मजदूरों की संख्या कुल मज़दूरों में 20, 83, 2019-20, औद्योगीकरण का युग