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1069CH03, जल संसाधन, "पिंकी, क्या तुम ने टी.वी. पर असम में आई बाढ़ पर दिल, दहलाने वाली रिपोर्ट देखी? हे भगवान! उसने क्या प्रलय मचाई, है - रास्ते में जो कुछ आया बर्बाद कर दिया और बहा ले गई। ", "हाँ चिंटू, मैंने देखा। क्या यह आश्चर्यजनक नहीं, है कि जल जीवन दे भी सकता है और ले भी, सकता है। हम पानी के बिना क्या करेंगे? मेरे, पिताजी मुझे बता रहे थे कि उनके कारखाने में, बहुत सारी चीज़ों के लिए काफ़ी जल की, आवश्यकता होती है। क्या तुम जानते हो कि, मशीनों को ठंडा करने के लिए भी जल की, आवश्यकता होती है। कारखाना भी जल विद्युत संयत्र द्वारा पैदा की हुई, बिजली से चलता है। अब मैं समझ सकती हूँ कि विभिन्न युगों में, मानव, नदियों और अन्य जल स्रोतों जैसे- झरनों, झीलों, पोखरों और, मरुद्यानों के आस-पास क्यों बसता था।", जैसा कि आप जानते हैं कि तीन-चौथाई धरातल जल से, जल दुर्लभता और जल संरक्षण एवं प्रबंधन की, ढका हुआ है, परंतु इसमें प्रयोग में लाने योग्य अलवणीय, जल का अनुपात बहुत कम है। यह अलवणीय जल हमें, सतही अपवाह और भौमजल स्रोत से प्राप्त हाता है ,, जिनका लगातार नवीकरण और पुनर्भरण जलीय चक्र, द्वारा होता रहता है। सारा जल जलीय चक्र में गतिशील दुलभता का सामना करना पड़ सकता है। जैसे ही हम, रहता है जिससे जल नवीकरण सुनिश्चित होता है।, आप को आश्चर्य हो रहा होगा कि जब पृथ्वी का, तीन-चौथाई भाग जल से घिरा है और जल एक नवीकरण, योग्य संसाधन है तब भी विश्व के अनेक देशों और क्षेत्रों, में जल की कमी कैसे है? ऐसी भविष्यवाणी क्यों की जा, रही है कि 2025 में 20 करोड़ लोग जल की नितांत, कमी झेलेंगे?, आवश्यकता, जल के विशाल भंडार और इसके नवीकरण योग्य गुणों, के होते हुए यह सोचना भी मुश्किल है कि हमें जल, जल की कमी की बात करते हैं तो हमें तत्काल ही कम, वर्षा वाले क्षेत्रों या सूखाग्रस्त इलाकों का ध्यान आता है।, हमारे मानस पटल पर तुरंत राजस्थान के मरुस्थल और, जल से भरे मटके संतुलित करती हुई और जल भरने के, लिए लंबा रास्ता तय करती पनिहारिनों के चित्र चित्रित, हो जाते हैं। यह सच है कि वर्षा में वार्षिक और मौसमी, परिवर्तन के कारण जल संसाधनों की उपलब्धता में, 2019-2020
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आपने टेलीविजन विज्ञापनों में देखा होगा कि बहुत, से किसानों के खेतों पर अपने निजी कुएँ और नलकूप, हैं जिनसे सिंचाई करके वे उत्पादन बढ़ा रहे हैं। परंतु, आपने सोचा है कि इसका परिणाम क्या हो सकता है?, इसके कारण भौम जलस्तर नीचे गिर सकता है और, लोगों के लिए जल की उपलब्धता में कमी हो सकती है।, और भोजन सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है।, स्वतंत्रता के बाद भारत में तेजी से औद्योगीकरण, और शहरीकरण हुआ और विकास के अवसर प्राप्त हुए ।, आजकल हर जगह बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ (MNCS) बड़े है कि हम अपने जल संसाधनों का संरक्षण और प्रबंधन, औद्योगिक घरानों के रूप में फैली हुई हैं। उद्योगों की, बढ़ती हुई संख्या के कारण अलवणीय जल संसाधनों पर, दबाव बढ़ रहा है। उद्योगों को अत्यधिक जल के अलावा, उनको चलाने के लिए ऊर्जा की भी आवश्यकता होती, है और इसकी काफी हद तक पूर्ति जल विद्युत से होती, है। वर्तमान समय में भारत में कुल विद्युत का लगभग, 22 प्रतिशत भाग जल विद्युत से प्राप्त होता है । इसके, अलावा शहरों की बढ़ती संख्या और जनसंख्या तथा, शहरी जीवन शैली के कारण न केवल जल और ऊर्जा, भारत की नदियाँ विशेषकर छोटी सरिताएँ, जहरीली धाराओं, में परिवर्तित हो गई हैं और बड़ी नदियाँ जैसे गंगा और, यमुना कोई भी शुद्ध नहीं हैं। बढ़़ती जनसंख्या, कृषि, आधुनिकीकरण, नगरीकरण और औद्योगीकरण का भारत, की नदियों पर अत्यधिक दुष्प्रभाव है और हर दिन गहराता, जा रहा है... इससे संपूर्ण जीवन खतरे में है ।, स्रोत, द सिटीज़न्स फिफ्थ रिपोर्ट, सी एस ई, 1999, आपने अनुभव कर लिया होगा कि समय की माँग, करें, स्वयं को स्वास्थ्य संबंधी खतरों से बचाएँ, खाद्यान्न, सुरक्षा, अपनी आजीविका और उत्पादक क्रियाओं की, निरंतरता को सुनिश्चित करें, और हमारे प्राकृतिक, पारितंत्रों को निम्नीकृत (degradation ) होने से बचाएँ।, जल संसाधनों के अतिशोषण और कुप्रबंधन से इन, संसाधनों का हरास हो सकता है और पारिस्थितिकी, संकट की समस्या पैदा हो सकती है जिसका हमारे, जीवन पर गंभीर प्रभाव हो सकता है।, क्रियाकलाप, की आवश्यकता में बढ़ोतरी हुई है अपितु इनसे संबंधित, समस्याएँ और भी गहरी हुई हैं। यदि आप शहरी आवास, समितियों या कालोनियों पर नज़र डालें तो आप पाएँगें, कि उनके अंदर जल पूर्ति के लिए नलकूप स्थापित, किए गए हैं। इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि शहरों में, जल संसाधनों का अति शोषण हो रहा है और इनकी, कमी होती जा रही है।, अब तक हमने जल दुर्लभता के मात्रात्मक पहलू वैज्ञानिक और ऐतिहासिक अभिलेख/दस्तावेज (record), की ही बात की है। आओ, हम ऐसी स्थिति के बारे में, विचार करें जहाँ लोगों की आवश्यकता के लिए काफ़ी पत्थरों और मलबे से बाँध, जलाशय अथवा झीलों के, जल संसाधन हैं, परंतु फिर भी इन क्षेत्रों में जल की, दुर्लभता है। यह दुर्लभता जल की खराब गुणवत्ता के इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि हमने यह परिपाटी आधुनिक, कारण हो सकती है। पिछले कुछ वर्षों से यह चिंता का, अपने दिन-प्रतिदिन के अनुभव के आधार पर जल संरक्षण, के लिए एक संक्षिप्त प्रस्ताव लिखें।, बहु-उद्देशीय नदी परियोजनाएँ और समन्वित, जल संसाधन प्रबंधन, हम जल का संरक्षण और प्रबंधन कैसे करें? पुरात्त्व, बताते हैं कि हमने प्राचीन काल से सिंचाई के लिए, तटबंध और नहरों जैसी उत्कृष्ट जलीय कृतियाँ बनाई हैं।, भारत में भी जारी रखी है और अधिकतर नदियों के, बेसिनों में बाँध बनाए हैं।, विषय बनता जा रहा है कि लोगों की आवश्यकता के, लिए प्रचुर मात्रा में जल उपलब्ध होने के बावजूद यह, घरेलू और औद्योगिक अपशिष्टों, रसायनों, कीटनाशकों, और कृषि में प्रयुक्त उर्वरकों द्वारा प्रदूषित है और मानव, उपयोग के लिए खतरनाक है।, प्राचीन भारत में जलीय कृतियाँ, ईसा से एक शताब्दी पहले इलाहाबाद के नजदीक श्रिगंवेरा, में गंगा नदी की बाढ़ के जल को संरक्षित करने के लिए, एक उत्कृष्ट जल संग्रहण तंत्र बनाया गया था।, जल संसाधन, 27, 2019-2020
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* चन्द्रगुप्त मौर्य के समय बृहत् स्तर पर बाँध, झील और, सिंचाई तंत्रों का निर्माण करवाया गया।, * कलिंग (ओडिशा), नागार्जुनकोंडा (आंध्र प्रदेश) बेन्नूर, (कर्नाटक) और कोल्हापुर (महाराष्ट्र) में उत्कृष्ट सिंचाई, तंत्र होने के सबूत मिलते हैं।, बाँध बहते जल को रोकने, दिशा देने या बहाव कम करने, के लिए खड़ी की गई बाधा है जो आमतौर पर जलाशय,, झील अथवा जलभरण बनाती हैं। बाँध का अर्थ जलाशय, से लिया जाता है न कि इसके ढाँचे से। अधिकतर बाँधों, में एक ढलवाँ हिस्सा होता है जिसके ऊपर से या अन्दर, * अपने समय की सबसे बड़ी कृत्रिम झीलों में से एक,, भोपाल झील, 11वीं शताब्दी में बनाई गई।, से जल रुक-रुक कर या लगातार बहुता है। बाँधों का, वर्गीकरण उनकी संरचना और उद्देश्य या ऊँचाई के अनुसार, किया जाता है। संरचना और उनमें प्रयुक्त पदार्थों के, आधार पर बाँधों को लकड़ी के बाँध, तटबंध बाँध या, पक्का बाँध के अलावा कई उपवर्गों में बाँटा जा सकता है।, ऊँचाई के अनुसार बाँधों को बड़े बाँध और मुख्य बाँध या, नीचे बाँध, मध्यम बाँध और उच्च बाँधों में वर्गीकृत किया, जा सकता है।, * 14वीं शताब्दी में इल्तुतमिश ने दिल्ली में सिरी फोर्ट क्षेत्र, में जल की सप्लाई के लिए हौज खास (एक विशिष्ट, तालाब) बनवाया।, स्रोत - डाईंग विजडम, सी एस, 1997, स्वतंत्रता के बाद शुरू की गई समन्वित जल संसाधन, प्रबंधन उपागम पर आधारित बहुउद्देशीय परियोजनाओं को, उपनिवेशन काल में बनी बाधाओं को पार करते हुए देश, को विकास और समृद्धि के रास्ते पर ले जाने वाले वाहन, के रूप में देखा गया। जवाहरलाल नेहरू गर्व से बाँधों को, आधुनिक भारत के मंदिर' कहा करते थे । उनका मानना, था कि इन परियोजनाओं के चलते कृषि और ग्रामीण, अर्थव्यवस्था, औद्योगीकरण और नगरीय अर्थव्यवस्था, समन्वित रूप से विकास करेगी ।, पिछले कुछ वर्षों, बाँध कई कारणों से परिनिरीक्षण और विरोध के विषय बन, चित्र 3.2 -, हीराकुड बाँध, बहुउद्देशीय परियोजनाएँ और बड़े, बाँध क्या हैं और वे हमें जल संरक्षण और प्रबंधन, में कैसे सहायक हैं? परम्परागत बाँध, नदियों और वर्षा, जल को इकट्ठा करके बाद में उसे खेतों की सिंचाई के, लिए उपलब्ध करवाते थे। आज कल बाँध सिर्फ सिंचाई, के लिए नहीं बनाए जाते अपितु उनका उद्देश्य विद्युत, उत्पादन, घरेलू और औद्योगिक उपयोग, जल आपूर्ति,, बाढ़ नियंत्रण, मनोरंजन, आतंरिक नौचालन और मछली, पालन भी है। इसलिए बाँधों को बहुउद्देशीय परियोजनाएँ, भी कहा जाता है जहाँ एकत्रित जल के अनेकों उपयोग, समन्वित होते हैं। उदाहरण के तौर पर सतलुज -ब्यास, क्रियाकलाप, परंपरागत तरीकों से बाँध बनाने की कलाविधि और सिंचाई, कार्यों के बारे में अधिक पता लगाएँ।, हमने अषाढ़ में फसलें बोई हैं।, हम भद्रा में भादु लाएँगे, बाढ़ से दामोदर फैल गई है।, नाव इसमें नहीं चलेंगी, ओह। दामोदर, हम आपके पैर पड़ते हैं, बाढ़ का कहर कुछ कम करो, भादु एक साल बाद आएगा, बेसिन में भाखड़ा- नांगल परियोजना जल विद्युत उत्पादन, और सिंचाई दोनों के काम में आती है। इसी प्रकार, महानदी बेसिन में हीराकुड परियोजना जलसंरक्षण और, बाढ़ नियंत्रण का समन्वय है।, अपनी सतह पर नाव चलने दो, (यह लोकप्रिय भादु गीत दामोदर घाटी क्षेत्र में गाया जाता है, जो शोक की नदी कही जाने वाली दामोदर नदी में बाढ़ के, दौरान आने वाली समस्याओं का वर्णन करता है।), 28, समकालीन भारत-2, 2019-2020
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गए हैं। नदियों पर बाँध बनाने और उनका बहाव नियंत्रित, करने से उनका प्राकृतिक बहाव अवरुद्ध होता है, जिसके, कारण तलछट बहाव कम हो जाता है और अत्यधिक तलछट, उत्तरजीवियों ने हमें बताया कि उन्होने अपने कष्टों को देश, के लिए कुर्बानी के रूप में स्वीकार किया। परंतु अब तीस, साल के कड़े अनुभव के बाद, जब उनकी आजीविका और, अधिक जोखिमपूर्ण हो गई है, पूछते जा रहे हैं - "हमें ही, देश के लिए कुर्बानी देने के लिए क्यों चुना गया?", जलाशय की तली पर जमा होता रहता है जिससे नदी का, तल अधिक चट्टानी हो जाता है और नदी जलीय जीव- आवासों, में भोजन की कमी हो जाती है। बाँध नदियों को टुकड़ों में बाँट, देते हैं जिससे विशेषकर अंडे देने की ऋतु में जलीय जीवों, का नदियों में स्थानांतरण अवरुद्ध हो जाता है। बाढ़ के मैदान, जाने वाले जलाशयों द्वारा वहाँ मौजूद वनस्पति और, मिट्टियाँ जल में डूब जाती हैं जो कालातर में अपघटित हो, जाती है।, बहुउद्देशीय परियोजनाएँ और बड़े बाँध नए पर्यावरणीय, आंदोलनों जैसे - 'नर्मदा बचाओ आंदोलन' और 'टिहरी बाँध, आंदोलन' के कारण भी बन गए हैं । इन परियोजनाओं का, विरोध मुख्य रूप से स्थानीय समुदायों, विस्थापन के कारण है। आमतौर पर स्थानीय लोगों को उनकी, जमीन, आजीविका और संसाधनों से लगाव एवं नियंत्रण देश, की बेहतरी के लिए कुर्बान करना पड़ता है। इसलिए, अगर, स्थानीय लोगों को इन परियोजनाओं का लाभ नहीं मिल रहा, 11, स्रोत - एस. शर्मा, बेली आफ द रिवर, ट्राईबल कर्नफ्लिक्ट्स, ओवर डेवलपमेंट इन नर्मदा वैली, ए. बावीस्कर, 1995 से, उद्धृत।, में, बनाए, क्या आप जानते हैं?, सरदार सरोवर-बाँध गुजरात में नर्मदा नदी पर बनाया गया है।, यह भारत की एक बड़ी जल संसाधन परियोजना है जिसमें चार, राज्य - महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, गुजरात तथा राजस्थान सम्मिलित, हैं। सरदार सरोवर परियोजना गुजरात (9490 गांवों तथा 173, कस्बों) तथा राजस्थान (124 गांवों) के सूखा ग्रस्त तथा, मरुस्थलीय भागों की जल को आवश्यकता को, वृहद स्तर पर, करेगी।, पूरा, ata-http://www.sardarsarovardam.org/project.aspx, भूमि मालिकों और गरीब भूमिहीनों में सामाजिक दूरी बढ़ाकर, है तो किसको मिल रहा है? शायद जमींदारों और बड़े किसानों सामाजिक परिदृश्य बदल दिया है । जैसा कि हम देख सकते, को या उद्योगपतियों और कुछ नगरीय केंद्रों को। गाँव के हैं कि बाँध उसी जल के अलग-अलग उपयोग और लाभ, भूमिहीनों को लीजिए, क्या वे वास्तव में ऐसी परियोजनाओं से चाहने वाले लोगों के बीच संघर्ष पैदा करते हैं।, में, लाभ उठाते हैं?, सिंचाई ने कई क्षेत्रों में फसल प्रारूप परिवर्तित कर दिया, है जहाँ किसान जलगहन और वाणिज्य फसलों की ओर, आकर्षित हो रहे हैं। इससे मृदाओं के लवणीकरण जैसे गंभीर, पारिस्थितिकीय परिणाम हो सकते हैं। इसी दौरान इसने अमीर, गुजरात, साबरमती बेसिन में सूखे के दौरान नगरीय क्षेत्रं में अधिक, जल आपूर्ति देने पर परेशान किसान उपद्रव पर उतारू हो, गए। बहुद्देशीय परियोजनाओं के लागत और लाभ के बँटवारे, को लेकर अंतर्राज्यीय झगड़े आम होते जा रहे हैं।, क्या आप जानते हैं?, नर्मदा बचाओ आंदोलन एक गैर सरकारी संगठन (एन जी ओ), है जो जनजातीय लोगों, किसानों, पर्यावरणविदों और, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को गुजरात में नर्मदा नदी पर, सरदार सरोवर बाँध के विरोध में लामबंद करता है। मूल, रूप से शुरू में यहाँ आंदोलन जंगलों के बाँध के पानी में, डूबने जैसे पर्यावरणीय मुद्दों पर केंद्रित था हाल ही में इस, आंदोलन का लक्ष्य बाँध से विस्थापित गरीब लोगों को, है।, क्या आप जानते हैं कि कृष्णा-गोदावरी विवाद की शुरुआत, महाराष्ट्र सरकार द्वारा कोयना पर जल विद्युत परियोजना के, लिए बाँध बनाकर जल की दिशा परिवर्तन कर कर्नाटक, और आंध्र प्रदेश सरकारों द्वारा आपत्ति जताए जाने से हुई।, इससे इन राज्यों में पड़ने वाले नदी के निचले हिस्सों में, जल प्रवाह कम हो जाएगा और कृषि और उद्योग पर, विपरीत असर पड़ेगा।, सरकार से संपूर्ण पुनर्वास सुविधाएँ दिलाना हो गया, लोगों ने सोचा कि उनकी यातनाएँ व्यर्थ नहीं जाएगी..., क्रियाकलाप, विस्थापन का शोक स्वीकार किया यह विश्वास करके की, अंतर्राज्यीय जल विवादों की एक सूची तैयार करें।, सिंचाई के प्रसार से वे मालामाल हो जाएँगे। प्राय: रिहंद के, जल संसाधन, 29, 2019-2020