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1९0९/ ४४४धाह ॥1 ॥॥101 - पत्र-लेखन, , 50111 | (९ ॥ 1191 - पत्र-लेखन एक कला है इसलिए पत्र लिखते समय पत्र में सहज, सरल तथा सामान्य, बोलचाल की भाषा का प्रयोग करना चाहिए, जिससे पत्र को प्राप्त करने वाला पत्र में वयक्त भावों को अच्छी प्रकार से, समझ सकें।, , पत्र-लेखन के माध्यम से हम अपने भावों और विचारों को व्यक्त कर सकते हैं। पत्रों के माध्यम से एक व्यक्ति अपनी, बातों को लिखकर दूसरों तक पहुँचा सकता है। जिन बातों को लोग कहने में हिचकिचाते हैं, उन बातों को पत्रों के, माध्यम से आसानी से समझाया या कहा जा सकता है।, , पत्र की आवश्यकता क्यों है?, , दूर रहने वाले अपने सबंधियों अथवा मित्रों की कुशलता जानने के लिए और अपनी कुशलता का समाचार देने के लिए, पत्र लिखे जाते हैं। आजकल हमारे पास बातचीत करने के लिए, हालचाल जानने के लिए अनेक आधुनिक साधन, उपलब्ध हैं, जैसे- टेलीफ़ोन, मोबाइल फ़ोन, ईमेल आदि।, , प्रश्न यह उठता है कि फिर भी पत्र-लेखन सीखना क्यों आवश्यक है? पत्र लिखना महत्वपूर्ण ही नहीं अत्यंत आवश्यक, भी है, फ़ोन आदि पर बातचीत अस्थायी होती है, इसके विपरीत लिखित दस्तावेज स्थायी रूप ले लेता है। उदाहरणजब आप विद्यात्रय नहीं जा पाते, तब अवकाश के लिए प्रार्थना पत्र लिखना पड़ता है।, , 1५79९ ण [९९४1५ - पत्रों के प्रकार मुख्य रूप से पत्रों को निम्नलिखित दो वर्गों में विभाजित किया जा सकता है (1) औपचारिक-पत्र, , (2) अनौपचारिक-पत्र, , औपचारिक और अनौपचारिक पत्रों में अंतर- (एॉल४शिश1०९ 0९9९९॥ 03| 310 #01713| |शाश)
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औपचारिक पत्र (0174| |शाश) , औपचारिक पत्र उन्हें लिखा जाता है जिनसे हमारा कोई निजी संबंध ना हो। व्यवसाय से संबंधी, प्रधानाचार्य को लिखे, प्रार्थना पत्र, आवेदन पत्र, सरकारी विभागों को लिखे गए पत्र, संपादक के नाम पत्र आदि औपचारिक-पत्र कहलाते हैं।, औपचारिक पत्रों की भाषा सहज और शिष्टापूर्ण होती है। इन पत्रों में केवल काम या अपनी समस्या के बारे में ही बात, कही जाती है।, , अनौपचारिक पत्र (#01113/ |९(४९४/) , अनौपचारिक पत्र उन लोगों को लिखा जाता है जिनसे हमारा व्यक्तिगत सम्बन्ध रहता है। अनौपचारिक पत्र अपने, परिवार के लोगों को जैसे माता-पिता, भाई-बहन, सगे-सम्बन्धिओं और मित्रों को उनका हालचात पूछने, निमंत्रण देने, और सूचना आदि देने के लिए लिखे जाते हैं। इन पत्रों में भाषा के प्रयोग में थोड़ी ढ़ील की जा सकती है। इन पत्रों में, शब्दों की संखया असीमित हो सकती है क्योंकि इन पत्रों में इधर-उधर की बातों का भी समावेश होता है।, , औपचारिक पत्र किसे कहते हैं? (10011 (४९), , यह पत्र उन्हें लिखा जाता है जिनसे हमारा कोई निजी संबंध ना हो। औपचारिक पत्रों में केवल काम से सम्बंधित बातों, पर ध्यान दिया जाता है। व्यवसाय से संबंधी, प्रधानाचार्य को लिखे प्रार्थना पत्र, आवेदन पत्र, सरकारी विभागों को, लिखे गए पत्र, संपादक के नाम पत्र आदि औषचारिक-पत्र कहलाते हैं। औषचारिक पत्र लेखन में मुख्य रूप से संदेश,, सूचना एवं तथ्यों को ही अधिक महत्व दिया जाता है। इसमें संक्षिप्तता अर्थात कम शब्दों ने केवल काम की बात, करना, स्पष्टता अर्थात पत्र प्राप्त करने वालों को बात आसानी से समझ आये ऐसी भाषा का प्रयोग तथा स्वतः पूर्णता, अर्थात पूरी बात एक ही पत्र में कहने की अपेक्षा (उम्मीद) की जाती है।, , 1५9९५ ए णिाव। शशि - औपचारिक-पत्र के प्रकार, , औपचारिक-पत्रों को तीन वर्गों में विभाजित किया जा सकता है
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(1) प्रार्थना-पत्र - जिन पत्रों में निवेदन अथवा प्रार्थना की जाती है, वे 'प्रार्थना-पत्र' कहलाते हैं। प्रार्थना पत्र में अवकाश,, शिकायत, सुधार, आवेदन आदि के लिए लिखे गए पत्र आते हैं। ये पत्र स्कुल के प्रधानाचार्य से लेकर किसी सरकारी, विभाग के अधिकारी को भी लिखे जा सकते हैं।, , (2) कार्याल्रयी-पत्र - जो पत्र कार्यालयी काम-काज के लिए लिखे जाते हैं, वे 'कार्यालयी-पत्र' कहलाते हैं। ये सरकारी, अफसरों या अधिकारियों, स्कूल और कॉलेज के प्रधानाध्यापकों और प्राचार्यों को लिखे जाते हैं। इन पत्रों में डाक, अधीक्षक, समाचार पत्र के सम्पादक, परिवहन विभाग, थाना प्रभारी, स्कूल प्रधानाचार्य आदि को लिखे गए पत्र आते, हैं।, , (3) व्यवसायिक-पत्र - व्यवसाय में सामान खरीदने व बेचने अथवा रुपयों के लेन-देन के लिए जो पत्र लिखे जाते हैं,, उन्हें 'व्यवसायिक-पत्र' कहते हैं। इन पत्रों में दुकानदार, प्रकाशक, व्यापारी, कंपनी आदि को लिखे गए पत्र आते हैं।, , औपचारिक-पत्र लिखते समय ध्यान रखने योग्य बातें , () औपचारिक-पत्र नियमों में बंधे हुए होते हैं।, , 0) इस प्रकार के पत्रों में भाषा का प्रयोग ध्यानपूर्वक किया जाता है। इसमें अनावश्यक बातों (कुशल्-मंगल समाचार, आदि) का उल्लेख नहीं किया जाता।, , (॥) पत्र का आरंभ व अंत प्रभावशाली होना चाहिए।, (५) पत्र की भाषा-सरल, लेख-स्पष्ट व सुंदर होना चाहिए।, , (४) यदि आप कक्षा अथवा परीक्षा भवन से पत्र त्रिख रहे हैं, तो कक्षा अथवा परीक्षा भवन (अपने पता के स्थान पर), तथा क० ख० ग० (अपने नाम के स्थान पर) लिखना चाहिए।, , (५) पत्र पृष्ठ के बाई ओर से हाशिए (॥/9६8॥ ।1९) के साथ मित्राकर लिखें।, (शा) पत्र को एक पृष्ठ में ही लिखने का प्रयास करना चाहिए ताकि तारतम्यता/लयबदूधता बनी रहे।, , (५) प्रधानाचार्य को पत्र लिखते समय प्रेषक के स्थान पर अपना नाम, कक्षा व दिनांक लिखना चाहिए।, , औपचारिक-पत्र (प्रारूप) के निम्नलिखित सात अंग होते हैं , (1) 'सेवा में' लिख कर, पत्र प्रापक का पदनाम तथा पता लिख कर पत्र की शुरुआत करें।